Steve Jobs Biography Book Summary in Hindi – एप्पल कंपनी की शुरुवात

दोस्तों ये Steve Jobs Biography Book WALTER ISAACSON ने लिखी है और इसे PUBLISH किया है “Little, Brown Book Group” ने। ये सारा CREDIT उन्ही को जाता है।

Apple के Founder Steve Jobs Biography बुक समरी हिंदी में

परिचय

वाल्टर आइजेकसन इस book के author को जब पता लगा कि Steve Jobs कैंसर के Last Stage में है तब जाकर वे Steve Jobs की biography लिखने को तैयार हुए। बेहद होनहार और तेज़ दिमाग वाले Steve Jobs साल 2004 से आइजेकसन को अपनी जिंदगी पर एक किताब लिखने के लिए मना रहे थे मगर उनकी कोशिश 2009 में जाकर कामयाब हो पाई जब Steve Jobs कैंसर से जूझते हुए अपनी दूसरी मेडिकल लीव पर थे।

साल 1984 के वक्त से ही टाइम्स मेगेज़ीन में बतौर मेनेजिंग डायरेक्टर आइजेकसन को कई बार जॉब्स से मिलने का मौका मिला। मगर उस महान इनोवेटर Steve Jobs ने जब पहली बार आइजेकसन से खुद की biography लिखने के लिए कहा तो आईजेकसन उस दौरान अल्बर्ट आइनस्टीन पर लिख रहे थे और बेंजामिन फ्रेंकलिन पर उनकी लिखी किताब पहले ही famous हो चुकी थी।

Steve Jobs का प्रस्ताव आइजेकसन ने ये कहकर ठुकरा दिया कि  “जॉब्स अभी सफलता की सीडिया चढ़ ही रहे है और अभी वो वक्त नहीं आया कि उनपर कोई किताब लिखी जा सके”.

लेकिन ये Steve Jobs की पत्नी लौरीन पॉवेल (Laurene Powell) की कोशिशो का ही नतीजा था जो उनसे Steve Jobs की बिमारी के बारे में जानकर आइजेकसन ने अपना मन बदल लिया और आखिरकार इस काम के लिए तैयार हो गए।

Steve Jobs का कैंसर का ओपरेशन होना था। बावजूद इसके वे खामोशी से लड़ रहे थे। एक और बात जिसने आइजेकसन को बहुत प्रभावित किया वो ये थी कि Steve Jobs ने उन्हें किताब अपने तरीके से लिखने की छूट दी थी।

उन्होंने author के काम में कभी किसी तरह की दखलअंदाजी नहीं की। फ्रेंकलिन और आइन्स्टाइन की तरह ही Steve Jobs ने भी साइंस और इंसानियत दोनों की तरक्की के लिए अपनी क्षमताओं का बेहतर उपयोग किया था।

इंजीनियरिंग दिमाग के साथ साथ Steve jobs creative भी थे और इन्ही खूबियों का तालमेल से एक महान इनोवेटर बनता है जो कि वे खुद है। जॉब्स अपनी इसी रचनाशीलता से पर्सनल कम्प्यूटर की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव ला पाए।

सिर्फ इतना ही नहीं music , डिजिटल पब्लीशिंग और एनिमेटेड मूवीज में भी उनकी बदौलत एक नए दौर की शुरुवात हुई। बेशक उनकी personal life या उनकी personality एक मुक्कमल तस्वीर नहीं बनाती मगर फिर भी वे अपने काम से हमेशा लोगो की जिंदगी प्रभावित करते रहेंगे और inspiration का source बने रहेंगे।

Steve Jobs की बचपन/Childhood

छोटी उम्र में ही Steve Jobs जान चुके थे कि उन्हें गोद लिया गया है, और ये बात उनके पिता पॉल जॉब्स और माँ क्लारा हागोपियेन (Clara Hagopian) ने उनसे कभी भी नहीं छुपाई। जन्म के बाद से ही उन दोनों ने स्टीव को पाला था।

जब Steve jobs 4 साल के थे वो अपने पड़ोसी के घर पर एक लड़की के साथ खेल रहे थे, और Steve Jobs ने उस लड़की को बताया की उन्हें adopt किया गया है। इस बात पर वो लड़की बोली की इसका मतलब तो है की तुम्हारे असली माँ बाप तुम्हे पसंद नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने तुम्हे छोड़ा। इस पर Steve jobs भाग कर अपने घर गए और ये बात उन्होंने अपने parents को बताई।

इस पर उनके parents ने उन्हें कहा की सुनो Steve “हमने तुम्हे इसलिए चुना था क्यूंकि तुम सबसे अलग हो बहुत ख़ास हो, special हो”, और शायद इसी वजह से स्टीव आत्मनिर्भर और मजबूत इरादों के इंसान बन पाए।

उनके कार मेकेनिक पिता उनके पहले हीरो थे। बचपन में ही Steve Jobs इलेक्ट्रोनिक्स में काफी interested थे। हालांकि वे पढ़ाई में कभी बहुत अच्छे नहीं रहे। क्लास में बैठना उन्हें अक्सर boring लगता था। अपने हुनर से वे अक्सर कुछ ना कुछ शरारत भरा किया करते, और ये सिलसिला ग्रेड स्कूल से लेकर कोलेज तक चलता रहा।

वोजनिएक (Wozniak)

(Homestead High) होम्सस्टेड हाई में एक कॉमन friend के ज़रिये स्टीव वोजनिएक और Steve Jobs की मुलाक़ात हुई। दोनों Steve बचपन से ही इलेक्ट्रोनिक्स और मशीन में गजब के प्रतिभाशाली थे। जहाँ Steve Jobs अपने पिता की ही तरह एक businessman बनना चाहते थे, वहीँ स्टीव वोज (Steve Woz) के पिता जिन्हें मार्केटिंग से चिढ़ थी उन्होंने उन्हें इंजीनियरिंग में कुछ बेहतरीन करने के लिए प्रेरित किया।

उम्र में Steve Jobs से 5 साल बड़े होने के बावजूद वो बेहद शर्मीले और हद से ज्यादा पढ़ाकू थे। अपने कॉमन दोस्त की गैराज में वे Steve Jobs से पहली बार मिले थे। इलेक्ट्रोनिक्स में गहरी रूचि के साथ ही बॉब डायलन के music ने भी उनकी जोड़ी जमा दी थी।

Steve Jobs की कालेज ड्राप आउट (College drop-out)

जहाँ वोजनियेक ने बर्कली युनिवेर्सिटी जाने के फैसला कर लिया था वहीँ Steve Jobs अभी confusion में ही थे कि अपने लिए कौन सा कॉलेज चुने। क्योंकि Steve Jobs के असली parents ने उन्हें इसी शर्त पर गोद दिया था कि उनकी स्कूली पढ़ाई पूरी कराई जायेगी। इसलिए उनके adoptive parents को उनकी कॉलेज फीस जुटाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी।

जॉब्स ने फैसला किया कि वे नजदीकी स्टेंडफोर्ड युनिवेर्सिटी नहीं जायेंगे। वे किसी ऐसी जगह जाना चाहते थे जो उससे ज्यादा artistic और interesting हो।

मगर उनके इस फैसले को उनके parents की मंज़ूरी नहीं मिली बावजूद इसलिए जॉब्स ने रीड कॉलेज, पोर्टलैंड ऑरेगोन में दाखिला ले लिया। सिर्फ एक हजार students वाला ये एक कॉलेज बड़ा महंगा था, और फिर अपने हिप्पी कल्चर के लिए मशहूर भी था।

रीड कॉलेज में पढने के दौरान कुछ ही समय बाद Steve Jobs को लगा कि जो कोर्स उन्होंने चुना था वो उनके सपनो के आड़े आ रहा था। जो चीज़े वो सीखना चाह रहे थे, नहीं सीख पा रहे थे, और तब उन्होंने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया।

अब वो जो पसंद आता वही सीखने लग जाते जैसे कि कैलीग्राफी। रीड में पढ़ाई के दौरान उन्हें हिप्पी कल्चर पसंद आने लगा था। जेन बुधिस्म पर उन्होंने सैकड़ो किताबे पढ़ डाली और pure vegetarian बन गए। उन्होंने बाल कटवाना छोड़ दिया था और पूरे केम्पस में नंगे पाँव घूमा करते।

एप्पल I

स्टीव वोजनिएक और Steve Jobs ने कई तरह के छोटे मोटे स्टार्टअप बिजनेस किये। जहाँ वोजनिएक अपने बनाये डिजाएन केवल बेचने तक सिमित थे वहीँ Steve Jobs कुछ ऐसे प्रोडक्ट बनाकर बेचना चाहते थे जो unique हो और उनसे पैसा कमाए जा सके।

सबसे पहले तो उन्हें एक नाम तय करना था। मेट्रिक्स जैसे टेक्नोलोजीकल और पर्सनल कंप्यूटर इंक जैसे कुछ boring नाम उनके दिमाग में आये भी मगर फिर एप्पल नाम उन्हें interesting लगा जो कुछ अलग लग रहा था। इस नाम को चुने जाने की वजह सिर्फ यही नहीं थी कि Steve Jobs एक एप्पल फार्म में घूमकर आये थे बल्कि सुनने में एप्पल कंप्यूटर नाम बड़ा मजेदार और शानदार लगता था।

उस वक्त तक वोजनिएक HP (एच पी) के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने वहां अपना बनाया सर्कट बोर्ड (circuit board) लगाना चाहा। उनका ये प्रोडक्ट नया था और पहले कभी इस्तेमाल नहीं हुआ था इसलिए उसे नकार दिया गया।

इससे निराश होकर वोजनिएक ने फिर जो भी प्रोडक्ट बनाये वे 100 फीसदी सिर्फ एप्पल के लिए बनाये। Steve Jobs का यही मानना था कि उनकी team इसलिए perfect थी क्यूंकि वो दोनों opposite थे।

एक ओर वोज जहाँ बहुत प्रतिभाशाली तो थे मगर लोगो से मिलने-जुलने में कतराते थे, वहीँ जॉब्स की खासियत थी कि वे किसी से भी बातचीत कर सकते थे और अपना काम निकलवाने में माहिर थे।

एक कंप्यूटर स्टोर का मालिक, पॉल टेरेल उनका पहला ग्राहक बना। उसने उन्हें $500 per piece के हिसाब से 50 सर्कट बोर्ड का आर्डर दिया। क्रेमर इलेक्ट्रोनिक्स (Cramer Electronics) के मेनेजेर को विश्वास में लेकर उससे $25,000 का उधार लेने के बाद जॉब्स, वोज और उनकी बहन पैटी, अपनी पूर्व प्रेमिका एलिज़बेथ होम्स और एक दोस्त डेनियल कोट्के के साथ मिलकर काम में जुट गए, और इस तरह लोस एल्टोस में Steve Jobs के घर की गैराज से एप्पल की शुरुवात हुई।

लीज़ा

पूरे 5 साल तक क्रिसेन् ब्रेनन (Chrisann Brennan) के साथ Steve Jobs कभी हां कभी ना वाले रिश्ते में बंधे रहे। एप्पल की शुरुवात बहुत सफल रही। जॉब्स अब अपने माँ-बाप का घर छोड़कर कपरटीनो(Cupertino) के एक $600 वाले rented घर में रहने लगे थे।

ब्रेनन अब उनकी जिंदगी में वापस आ चुकी थी। दोनों अब साथ रहने लगे थे। जब दोनों ही अपने 23वे साल में थे ब्रेनन, Steve Jobs के बच्चे की माँ बनने वाली थी।

हालांकि Steve Jobs का सारा ध्यान सिर्फ अपनी कंपनी पर था। वे अभी घर गृहस्थी में बंधना नहीं चाहते थे। ब्रेनन और उनके बीच अब झगडे शुरू हो गए थे। इस बच्चे का आना उनके रिश्ते में खटास पैदा कर रहा था।

जॉब्स के मन में कभी भी शादी का ख्याल नहीं था और उन्होंने इस बच्चे का पिता होने से भी इंकार कर दिया। इस सबके बावजूद ब्रेनन ने हार नहीं मानी। उनके कुछ दोस्त इस मुश्किल दौर में उनके साथ रहे और 17 मई, 1978 को ऑरेगोन में उन्होंने लिजा निकोल को जन्म दिया।

माँ और बच्चा मेनलो पार्क के एक छोटे से घर में रहने लगे। वेलफेयर में मिलने वाली रकम से उनका गुज़ारा चल रहा था। जब लिजा एक साल की हुई तो जॉब्स को उन्ही दिनों चलन में आये डीएनए (DNA) टेस्ट से गुज़रना पड़ा।

जिसका result था की 94.41% chance है की steve ही lisa के बाप है। ये साबित हो जाने पर केलिफोर्निया कोर्ट ने उन्हें लिजा के पालन पोषण के लिए monthly child support देने का हुक्म दिया। हालांकि कोर्ट के हुकम से वे अब जब चाहे अपनी बेटी से मिल सकते थे मगर बावजूद इसके वे कभी भी उससे मिलने नहीं गए।

1981 – Steve Jobs

1977 में एप्पल ने शुरुवाती दौर में 2,500 यूनिट्स बेचे और 1981 में उनकी बिक्री बढ़कर 210,000 हो चुकी थी। हालांकि Steve Jobs को अच्छी तरह मालूम था कि सफलता का ये दौर हमेशा रहने वाला नहीं है। इसलिए उन्होंने एक नये प्रोडक्ट के बारे में सोचा जो एप्पल II से ज्यादा बेहतर हो। वे एक ऐसा डिजाईन चाहते थे जो पूरी तरह से उनका अपना बनाया हो।

अपनी बेटी के साथ अपना रिश्ता नकारने के बावजूद उन्होंने अपने नए कंप्यूटर का नाम लीज़ा रखा। दरअसल इसे बनाने वाले इंजीनियर्स को इससे मिलता जुलता एक्रोनिम सोचना पड़ा। लीज़ा का मतलब था लोकल इंटीग्रेटेड सिस्टम आर्किटेक्चर (Local integerated system architecture).

एप्पल में 100,000 शेयर्स के बदले Xerox PARC ने अपनी एकदम नयी टेक्नोलोजी Steve Jobs और उनके प्रोग्रामर्स को बेच दी। कुछ मुलाकातों के बाद ही एप्पल के इंजीनियर्स Xerox कंप्यूटर के माउस डिजाईन और इंटरफेस की नक़ल बनाने में कामयाब रहे। लिजा को पहले से बेहतर ग्राफिक्स और स्मूथ स्क्रोलिंग माउस फीचर के साथ बाज़ार में उतारा गया।

IPO

दिसम्बर 12, 1980 में पहली बार एप्पल को दुनिया के सामने पेश किया गया। मॉर्गन स्टेनले इसके IPO को संभालने वाले बैंको में से एक था। रातो-रात एप्पल के शेयर का दाम $22  से बढकर $29 हो गया। सिर्फ 25 साल के हिप्पी कॉलेज ड्राप आउट Steve Jobs अब करोडो के मालिक बन चुके थे। इतनी बड़ी सफलता के बावजूद उन्होंने दिखावट से दूर एक सादा जीवन जीना पसंद किया।

जॉब्स ने अपने माता-पिता के नाम $750,000 कीमत वाले एप्पल के स्टोक कर दिए थे जिससे उन्हें loans से छुटकारा मिला। वे अब magazines के कवर पर आने लगे थे।

उन्होंने पहली कवर स्टोरी अक्टूबर 1981 में Inc के लिए की थी। इसके तुरंत बाद ही 1982 में टाइम्स मेगेज़ीन में भी उनकी कवर स्टोरी आई। इसमें 26 साल का एक नौजवान के करोडपति बनने के सफ़र की कहानी थी जिसने महज 6 साल पहले ही अपने माता-पिता के गैराज से अपनी कंपनी की शुरवात की थी।

मैकिन्टौश (Macintosh)

अपने आक्रामक व्यवहार के चलते Steve Jobs, लीजा प्रोजेक्ट से जबरन हटा दिए गए थे। इसी दौरान जेफ़ रस्किन(Jef Raskin) नामक एप्पल के एक इंजीनियर एक ऐसा बेहद सस्ता कंप्यूटर बनाने में जुटे थे जिसे कोई भी खरीद सकता था, और अपने इस प्रोजेक्ट का नाम उन्होंने मेकिनतोष रखा जो उनके पसंदीदा सेब की एक किस्म का नाम था।

अब क्योंकि Steve Jobs लीज़ा वाला प्रोजेक्ट खो चुके थे तो उनका सारा ध्यान रस्किन के प्रोजक्ट पर लगा रहा। रस्किन का सपना एक ऐसा सस्ता कंप्यूटर बनाने का था जो स्क्रीन और की-बोर्ड के साथ महज़ $1,000 की लागत का हो। Steve Jobs ने उनसे कहा कि वे सिर्फ मैकिन्टौश बनाने पर ध्यान दे और कीमत की फ़िक्र ना करे।

मगर रस्किन मेकिनतोष पर काम पूरा नहीं कर पाए। पर सयोंग से Steve Jobs ने एक दूसरा इंजीनियर ढूंढ कर उसकी मदद से ऐसा डिवाइस बनाया जो कुछ महंगे मगर पहले से बेहतर माइक्रो-प्रोसेसर पर काम कर सके। मैक लीज़ा से भी बेहतर माउस और ग्राफिक इंटरफेस के साथ बाज़ार में उतरा।

जॉब्स ना केवल एक तेज़ दिमाग वाले इंजीनियर थे बल्कि एक extra-ordinary डिज़ाइनर भी थे। उनके लिए प्रोडक्ट डिजाईन किसी कला से कम नहीं था। “सिम्पल इज सोफेस्टीकेटेड” यही मैक और एप्पल का मोटो था।

वे चाहते थे कि मैक एक छोटे से पैकेज में आ सकने लायक हो जो अन्दर बाहर से बेहद आधुनिक लगे। इसके अलावा उन्होंने मैक के विंडोज, आइकॉन्स, फोंट्स और बाहरी पैकेजिंग की डिजाईन पर भी ख़ास ध्यान दिया था।

अनगिनत प्रपोजल और रीवीजंस के बाद Steve Jobs ने अपनी पूरी डिजाईन टीम के एक पेपर पर signature करवाए। इन सभी 50 signatures को हर मैकिन्टौश कंप्यूटर के अन्दर खुदवाया गया। मैक के design और technology की ख़ुशी का एक जश्न मनाया गया।

माइक्रोसोफ्ट (Microsoft)

बिल गेट्स और Steve Jobs ने मिलकर एक एग्रीमेंट किया। ये एग्रीमेंट मैकिन्टौश को माइक्रोसोफ्ट सोफ्टवेयर के साथ तैयार करके बाज़ार में लाने के बारे में था, और शर्त थी कि प्रोग्राम में एप्पल का logo ज़रूर रहेगा। लेकिन ये सांझेदारी टिक नहीं पाई। इस मुद्दे पर बातचीत के दौरान जॉब्स और गेट्स की अक्सर बहस हो जाया करती थी।

गेट्स का background Steve Jobs से बिलकुल अलग था। उनके पिता वकील थे और माँ एक सिविक लीडर थी। गेट्स अपने ख़ास तबके वाले प्राइवेट स्कूल के वक्त से ही टेक्नोलोजी के कीड़े रहे थे, और उन्होंने जॉब्स की तरह कभी कोई प्रेंक नहीं खेला था। हार्वर्ड की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर गेट्स ने अपनी खुद की सॉफ्टवेयर कंपनी शुरू कर ली थी।

जॉब्स दूरदर्शी व्यक्ति थे जिनमे अपने काम के प्रति दीवानगी थी और इसी वजह से कभी-कभी उनका लहज़े में एक रूखापन आ जाता था। इसके उलट बिल गेट्स discipline के पक्के थे, practical थे जो सोच समझ कर कदम उठाते थे। ये सयोंग था कि दोनों का ही जन्म 1955 में हुआ था। दोनों ही कॉलेज ड्राप आउट थे जो पर्सनल कंप्यूटर की दुनिया में एक क्रान्तिकारी बदलाव लाये थे।

गेट्स माइक्रोसोफ्ट सॉफ्टवेयर को अलग-अलग तरह के प्लेटफॉर्म में खोलना चाहते थे। मगर Steve Jobs चाहते थे कि एप्पल के लिए अलग से कुछ खास सोफ्टवेयर रहे। उनका ये मतभेद चलता रहा और आख़िरकार उनके इस मतभेद का फायदा आई बी एम (IBM) के पर्सनल कंप्यूटर्स को हुआ।

माइक्रोसॉफ्ट ने पहले अपना ऑपरेटिंग सिस्टम – डीओएस (DOS) निकाला और बाद में विंडोज 1.0.  इस पर जॉब्स ने कहा था “माइक्रोसोफ्ट की समस्या ये है कि उनके अन्दर creativity की कमी है, उनके आइडियाज़ ना तो असली होते है ना ही उनके प्रोडक्ट में कोई कल्चर होता है”.

त्यागपत्र – Steve Jobs

लीजा प्रोजेक्ट Steve Jobs के हाथो से छीनकर उन्हें बोर्ड का नॉन- एक्जीक्यूटिव सदस्य बना दिया गया था। बेशक उनके पास एप्पल के 11% शेयर थे फिर भी उनके पास अब ज्यादा अधिकार नहीं रहे।

1985में उन्होंने प्रेजिडेंट जॉन स्क्ली से कहा कि वे एक अलग कंपनी खोलना चाहते है। Steve Jobs ने कहा कि उनकी ये कम्पनी एप्पल से अलग होगी मगर उसकी competitor नहीं होगी।

जॉब्स ने अपनी इस नयी कंपनी का नाम नेक्स्ट NeXT रखा। उन्होंने स्क्ली से कहा कि उन्हें 5 लो लेवल employees चाहिए जिन्हें वे नेक्स्ट में रख सके।

जब Steve Jobs ने स्क्ली को 5 कर्मचारियों के नाम बताये तो स्कली नाराज़ हो गए क्योंकि जिन लोगो के नाम Steve Jobs ने सुझाये थे, वे बिलकुल भी लो लेवल के नहीं थे।

बोर्ड मेम्बर को लग रहा था कि जॉब्स अब कंपनी के प्रति ईमानदार नहीं रहे और एक चेयरमेन के तौर पर अपने फ़र्ज़ से मुंह मोड़ रहे है। सबने एकजुट होकर जॉब्स का विरोध करने का निर्णय लिया।

मीडिया में इस बात की चर्चा जोरशोर से होने लगी कि Steve Jobs को चेयरमेन के पद से निकाला जा रहा है। मगर त्यागपत्र का ख्याल उनके मन में तब से ही था जब उन्होंने नेक्स्ट के बारे में सोचा था। आखिर में उन्होंने एक्जीक्यूटिव माइक मर्क्कुला (Mike Markkula) को अपना त्यागपत्र मेल कर दिया।

Steve Jobs के त्यागपत्र की ये कुछ पंक्तिया थी “अब कंपनी एक ऐसा रवैया दिखाती नजर आ रही है जो मेरे और मेरे new venture के लिए safe नहीं लग रहा है…. जैसा कि आप जानते है कि कंपनी की नयी guidelines में मेरे लिए करने को कुछ अधिक नहीं बचा, यहाँ तक कि रेगुलर मेनेजमेंट रिपोर्ट पर भी मेरा कोई अधिकार नहीं रह गया है। मैं अभी सिर्फ 30 का हूँ और बहुत कुछ हासिल करने की इच्छा रखता हूँ”.

PIXAR और टॉय स्टोरी

जोर्ज लुकास (George Lucas) अपने कंप्यूटर डिवीज़न के लिए किसी खरीददार की तलाश में थे। एक दोस्त ने जॉब्स को सलाह दी कि उन्हें लुकास फ़िल्म कंप्यूटर डिवीज़न के प्रमुख एड केटमल (Ed Catmull) से मिलना चाहिए। Steve Jobs टेक्नोलोजी के साथ आर्ट को मिलाने में बहुत ज्यादा interested थे। जब वे डिवीज़न गए तो वहां का काम देखकर पूरी तरह हैरान रह गए।

डिवीज़न मुख्य रूप से डिजिटल इमेजेस के लिए सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर बेच रहा था। दूसरी तरफ यहाँ पर एनीमेटर्स (animators) थे जो शोर्ट फिल्म्स बनाया करते थे। इस छोटी सी एनिमेशन टीम के मुखिया थे जॉन लासेटर (John Lasseter). Steve Jobs ने तुरंत ही ये डील पक्की कर ली और 70 % शेयर उनके हो गए।

इस डिवीज़न का सबसे ख़ास प्रोडक्ट था PIXAR इमेज कंप्यूटर, और इसलिए नयी कंपनी का नाम भी PIXAR रखा गया। इसके 3डी ग्राफिक इमेजिंग सोफ्टवेयर में डिज्नी ने बहुत रूचि दिखाई। उन दिनों डिज्नी का एनिमेशन डिपार्टमेंट बुरी हालत में था। PIXAR का सोफ्टवेयर पहली बार डिज्नी के “लिटिल मरमेड” में इस्तेमाल किया गया।

इसी बीच जॉन लासेटर (John Lasseter) और Steve Jobs मिलकर एक ऐसी कहानी सोच रहे थे जो बेजान चीजों की भावनाओं के बारे में हो। लासेटर एक होनहार एनिमेटर थे जो केलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ़ आर्ट् से पढ़कर निकले थे।

जब टॉय स्टोरी को बेशुमार सफलता मिली तो एक असमंजस पैदा हुआ कि ये डिज्नी की फिल्म हो या John Lasseter की। तब Steve Jobs डिज्नी के साथ टॉय स्टोरी और बाकी की एनीमेशन फिल्मो के मालिकाना हक़ में बराबर की हिस्सेदारी के लिए तैयार हो गये।

मोना और लिजा

सन 1980 से ही Steve Jobs गुपचुप तरीके से अपने असली माँ-बाप की तलाश में जुटे हुए थे और इसके लिए उन्होंने जासूसी सेवा की मदद ली, और आखिरकार उन्होंने अपनी असली माँ को ढूंढ निकाला।

उनकी माँ का नाम (Joanne Schieble) जोंने शीबले था और वो लोस एंजेलस में रहती थी। Joanne स्टीव के असली पिता अब्दुलफताह जन्दाली(Abdul Fattah Jandali) से अलग रहती थी जो कि एक सीरियन थे। उनकी शादी सफल नहीं रही थी। मगर उन्होंने जॉब्स को बताया कि मोना सिम्पसन नाम की उनकी एक हाफ सिस्टर भी है।

जॉब्स मोना से न्यू यॉर्क में मिले। उन्हें ये जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि वो एक नॉवेलिस्ट है। दोनों ही आर्ट में गहरी दिलचस्पी रखते थे और यही वजह थी कि उनके बीच एक गहरा रिश्ता बन गया। जॉब्स ने मोना को उनकी बुक र्रीलीज़ में भी मदद की। दोनों एक दुसरे को बहुत पसंद करते थे और उनके बीच मज़बूत दोस्ती का रिश्ता बन गया।

इसी बीच Steve Jobs ने क्रिसेन्न ब्रेनन और लिजा के लिए एक घर खरीदा जहाँ वे दोनों रहने लगी। जब लीज़ा वहां होती तो जॉब्स बीच-बीच में मिलने आते। जॉब्स ने कहा था “मै पिता नहीं बनना चाहता था इसलिए मै नहीं था”.

जब लीज़ा 8 साल की हुई, जॉब्स का आना जाना और ज्यादा बढ़ गया। उन्होंने देखा कि लीज़ा पढ़ाई के साथ-साथ आर्ट में भी बहुत होनहार थी। लीज़ा उन्ही की तरह उत्साही थी और कुछ-कुछ उन जैसी ही दिखती भी थी।

एक दिन Steve Jobs अपने साथियो को सरप्राइज़ देने के लिए लीज़ा को अपने साथ एप्पल के ऑफिस में लेकर गए। कभी – कभी वे उसे स्कूल से भी लेने जाते थे, और एक बार तो वे उसे अपने साथ टोक्यो की बिजनेस ट्रिप में भी लेकर गए। फिर भी ऐसा कई बार हुआ जब Steve Jobs अपनी इन भावनाओ को प्रकट नहीं करते थे, जैसे जैसे वक्त बीतता गया, बाप बेटी का रिश्ता अनेक उतार-चढावो से गुजरा।

शादी – Steve Jobs

अक्टूबर, 1989 में Steve Jobs की मुलाकात लोरीन पॉवेल से हुई। Steve Jobs को स्टैंडफोर्ड युनिवेर्सिटी में लेक्चर के लिए इनवाईट किया गया था और पॉवेल तब नयी-नयी बिजनेस स्कूल ग्रेजुएट थी। वे दोनों लेक्चर के दौरान साथ बैठे थे। Steve Jobs पहली नज़र में ही पॉवेल के प्रति आकर्षित हो गए थे। उन्होंने आपस में कुछ देर बातचीत की और फिर जॉब्स ने उन्हें डिनर के लिए इनवाईट कर लिया।

लौरीन पॉवेल एक स्मार्ट, आत्मनिर्भर और पढ़ी-लिखी औरत थी। उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर गज़ब का था और वे शाकाहारी थी। Steve Jobs इससे पहले कई औरतो को डेट कर चुके थे मगर पॉवेल से उन्हें सच में प्यार हो गया था। दिसंबर 1990, में वे दोनों छुटिया बिताने के लिए हवाई गए। क्रिसमस पर Steve Jobs ने पॉवेल को शादी के लिए प्रपोज किया।

और फिर मार्च 18, 1991 में योसमाईट नेशनल पार्क में वे दोनों शादी के बंधन में बंध गए। उस वक्त जॉब्स 36 साल के थे जबकि पॉवेल 27 की थी। करीब 50 लोग इस शादी में शामिल हुए थे जिनमे जॉब्स के पिता और उनकी बहन मोना भी थी। शादी के बाद ये जोड़ा पालो आल्टो के एक टू स्टोरी में शिफ्ट हो गया था। स्टीव और लौरीन के तीन बच्चे है पॉल रीड, एरीन सियेना और ईव।

Restoration

मैक के ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस का पता लगाने में Microsoft को कुछ वक्त लगा। साथ ही कंपनी ने अब विंडोज 3.0 भी निकाला। विंडोज़ 95 के रिलीज़ के साथ ही Microsoft ने market को dominate कर दिया। ये अब तक का सबसे बढ़िया ऑपरेटिंग सिस्टम था। इस दौरान एप्पल की सेल लगातार घट रही थी।

Steve Jobs को लगा कि स्क्ल्ली ने एप्पल को प्रॉफिट ओरिएंटेड बनाया है। वो मैक को अपग्रेड करके अफोर्डबल नहीं बना पाए थे। 1996 में एप्पल के मार्किट शेयर गिरकर 4% रह गए थे जोकि 1980 के आखिरी दशक में 16% थे। Steve Jobs एप्पल के सीईओ CEO ज़िल एमेलियो से मिले। जॉब्स ने उनसे कहा कि एक नया प्रोडक्ट बनाकर वे एप्पल को बचाना चाहते है।

ये दिसंबर 20, 1996 की बात थी जब एमेलियो ने एक एडवाइज़र के तौर पर एप्पल में Steve Jobs की वापसी की घोषणा की। अपने शानदार व्यक्तिव और तेज़ दिमाग बिजनेसमेन होने की वजह से Steve Jobs ने बाद में एप्पल के सीईओ की जगह ले ली। एप्पल में उनकी वापसी का पहला साल बेहद मुश्किलभरा रहा। सभी पुराने बोर्ड मेम्बर जा चुके थे और उनकी जगह नए ढूढने पड़े। एप्पल को 1 बिलियन से ज्यादा का घाटा हुआ था।

सन 1997 में Steve Jobs ने एप्पल के “Think Different” केम्पेन का खूब प्रचार किया। उन्होंने इसके लिए बेहतर मार्केटिंग और एडवरटाईजिंग पर जोर दिया। इस दौरान वे PIXAR, एप्पल और अपने परिवार के बीच एक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहे थे। साल 1998 तक एप्पल ने एक बार फिर से $309 मिलियन का प्रॉफिट हासिल किया। Steve Jobs और उनकी कंपनी, दोनों की गाडी एक बार फिर से पटरी पर दौड़ने लगी।

जब Steve Jobs अपने 30वे साल में थे, एप्पल ने उन्हें कम्पनी से निकाल बाहर फेंका था। मगर उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपना सारा ध्यान अपने परिवार, पिक्सर और NeXT को दिया। अपने चालीसवे साल में टॉय स्टोरी बनाकर उन्होंने कामयाबी की ऊँचाई को छुवा। एप्पल में अपनी वापसी के साथ उन्होंने साबित कर दिया कि चालीस के पार की उम्र में भी लोग बहुत कुछ हासिल कर सकते है।

अपने बीसवे साल में Steve Jobs पर्सनल कंप्यूटर की दुनिया में एक क्रान्ति लेकर आये। उनका ये प्रयास संगीत, मोबाइल फोन्स, टेबलेट, एप्प्स, बुक्स और जर्नलिस्म के क्षेत्र में भी ज़ारी रहा।

आइ मैक और एप्पल स्टोर्स

साल 1998 में Steve Jobs ने Macintosh को iMac के साथ रीइन्वेंट किया। एक बार फिर उन्होंने प्रोडक्ट बनाया जो मोनिटर और कीबोर्ड के साथ एक मुक्कमल कंप्यूटर था। आइमैक को पूरी तरह से एक होम कंप्यूटर के रूप में बनाया गया था। जॉब्स ने प्रोडक्ट की लौन्चिंग Macintosh के साथ एक नए तरह के थियेटर में की थी। आइमैक को भी उन्होंने इसी तरह लांच किया। $1,299 की कीमत का आइमैक, एप्पल का हाथो-हाथ बिकने वाला प्रोडक्ट बन गया था।

1999 में शहर की प्रमुख सड़को या फिर किसी माँल में एक भी Tech स्टोर नहीं था। जॉब्स ने सोचा की आप तब तक कोई नयी इनोवेशन मार्किट में नहीं ला सकते जब तक कि आपकी पहुँच खरीददारों तक ना हो, तब उन्हें एप्पल के रिटेल स्टोर खोलने का विचार सूझा। एक दिन उनके एक साथी ने उनसे पुछा – क्या एप्पल भी Gap की ही तरह एक बड़ा ब्रांड है? Steve Jobs ने जवाब दिया कि एप्पल उससे भी बड़ा ब्रांड है।

सबसे पहला एप्पल स्टोर मई, 2001 में वर्जीनिया में खोला गया। सफ़ेद रंग के काउंटर और वूडन फ्लोर वाले इस स्टोर में एप्पल के सभी प्रोडक्ट थे। साल 2004 तक एप्पल ने रिटेल इंडसट्री में $1.2 बिलियन के मुनाफे के साथ एक रेकोर्ड बना लिया था। 2006 में एप्पल का पांचवा एवेन्यू स्टोर मेनहेट्टेन में खोला गया.. इसमें जॉब्स के ट्रेडमार्क minimalist design from glass, क्यूब से लेकर स्टेयर केस तक थे। साल 2011 आते-आते पूरी दुनिया में एप्पल के 326 स्टोर खुल चुके थे।

Apple – आइ ट्यून्स और आइ पोड

साल 2000 में अमेरिका में 320 मिलियन के करीब ब्लेंक सीडी बिकी। लोग सीडी से गाने अपने कंप्यूटर में डालते थे। Steve Jobs म्युज़िक की दुनिया में भी कुछ नया करना चाहते थे। हालांकि उन्हीने मैक को सीडी बर्नर के साथ बनाया था मगर फिर भी वे कोई और आसान तरीका सोच रहे थे जिससे गाने सूनने के लिए म्युज़िक आसानी से कंप्यूटर में ट्रांसफर किया जा सके।

उस वक्त जो विंडोज का मीडिया प्लयेर था, वो Steve Jobs को बहुत कोम्प्लीकेटेड लगा। इसी दौरान एप्पल के दो पुराने इंजिनियरो ने SoundJam नाम से एक म्युज़िक सॉफ्टवेयर तैयार किया। एप्पल ने उन्हें वापस कम्पनी में लिया और SoundJam को रीइन्वेंट करने के बाद आइ-ट्यून्स बनाया। Steve Jobs ने आइ-ट्यून्स को जनवरी 2001 में इस स्लोगन के साथ लांच किया “Rip, Mix, Burn”.

Steve Jobs ने सोचा, म्युज़िक प्ले करने के लिए एक ऐसा पोर्टेबल डीवाइस हो जिसे आइ-ट्यून्स के साथ पार्टनर किया जा सके। जब वे जापान में थे तब उन्हें एक नए प्रोडक्ट के बारे में पता चल जिसे तोशिबा बना रहा था। सिल्वर कोइन जितना छोटा ये डीवाइस 5 जीबी यानी 1,000 गाने तक स्टोर कर सकता था। ये डीवाइस तोशीबा ने बना तो लिया था मगर उसका सही उपयोग Steve Jobs को पता था।

और हमेशा की ही तरह Steve Jobs चाहते थे कि जो भी एप्पल प्रोडक्ट बने वो इस्तेमाल में आसान हो। उन्होंने सोचा चूँकि आइ-पोड पहले से ही छोटा था तो प्लेलिस्ट को कंप्यूटर के साथ बनाया जाए। तब आइ-पोड को आइ-ट्यून्स की मदद से सिंक (sync) किया जा सकता था। इसके बाद गानों के कॉपी राईट और आइ-ट्यून्स स्टोर्स के लिए Steve Jobs कुछ बड़ी म्युज़िक कंपनियों से मिले।

कैंसर

ये अक्टूबर 2003 की बात थी जब Steve Jobs को पता चला कि उन्हें कैंसर है। उन्हें पहले एक बार किडनी स्टोन हो चूका था इसलिए तस्सली के लिए वे सिर्फ केट (CAT ) स्केन के लिए गए थे। मगर जांच करने पर डॉक्टर को पता लगा कि उनके पेनक्रियाज़ में ट्यूमर था।Steve Jobs की बायोप्सी की गयी जिससे ये पता चला कि ट्यूमर निकाल कर कैंसर को शरीर में फैलने से रोका जा सकता है।

मगर Steve Jobs सर्जरी नहीं कराना चाहते थे। इसके बदले उन्होंने पूरी तरह से Vegetarian हो कर एक्यूपंक्चर इलाज़ का सहारा लिया। हालांकि उनकी पत्नी और दोस्त उन्हें सर्जरी करवाने के लिए मनाते रहे की उन्हें सच में ओपरेशन की ज़रुरत है, ये बात समझने में उन्हें 9 महीने लगे।

जुलाई 2004 में जॉब्स ने अपना दूसरा केट CAT स्केन करवाया। ट्यूमर बढ़ चूका था। मजबूरन उन्हें सर्जरी करवानी पड़ी और इसमें उनके पेनक्रियाज़ का एक हिस्सा निकाल दिया गया। वे सितम्बर से वापस अपने काम पर जाना चाहते थे मगर बदकिस्मती से उनका कैंसर पूरी तरह उनके शरीर में फ़ैल चूका था। Steve Jobs की कीमोथेरेपी चलती रही।

जब उन्हें स्टेंडफोर्ड के कमेंसमेंट एक्सरसाइज़ के लिए इनवाइट किया गया तो Steve Jobs ने अपने कैंसर के ठीक हो जाने की घोषणा की। साल 2005 में उनकी पत्नी ने उनके जन्मदिन पर एक सरप्राइज़ पार्टी रखी। उन्होंने अपना 50वा जन्मदिन अपने परिवार, दोस्तों और साथियो के साथ मिलकर मनाया।

Apple – आइ-फोन

सारी दुनिया आइ-पोड की दीवानी हो गयी थी। साल 2005 तक ये एप्पल का कुल 45% रीवेन्यु कमा रहा था, और हमेशा की ही तरह Steve Jobs कुछ और इनोवेट करने में लगे थे। उन्होंने अपना ये तर्क बोर्ड के सामने रखा कि जो कभी डिजिटल केमरा के साथ हुआ वो आइ-पोड के साथ भी हो सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए एप्पल को अपना खुद का फोन बनाना ज़रूरी था जिसमे इन-बिल्ट केमरा के साथ-साथ म्युज़िक प्लेयर भी हो।

उन्होंने इस बारे में सोचा और मोटोरोला के साथ टाइ-अप करने के लिए नेगोशिएट किया। मगर Steve Jobs पूरी तरह संतुष्ट नहीं हो पाए। उन्हें मार्केट में उपलब्ध एक भी सेल फोन पसंद नहीं आया। इसके अलावा Steve Jobs अपने फ़ोन के लिए एक पोटेंशियल मार्केट भी सोच रहे थे।

Steve Jobs किसी को जानते थे जो माइक्रोसॉफ्ट के लिए टेबलेट पीसी बना रहा था। जो इंजीनियर इसे बना रहा था वो इसके बारे में क्लासीफाइड जानाकरी दे रहा था। माइक्रोसॉफ्ट का ये टेबलेट स्टाइल्स के साथ आता था। लेकिन Steve Jobs ने अपने इंजीनियर्स से पुछा कि क्या वे ऐसा एप्पल प्रोडक्ट बना सकते है जिसमे टच-स्क्रीन हो। जब आइ-फोन का डिजाईन तैयार करके उनके सामने पेश किया गया, जॉब्स ने कहा – “ यही फ्यूचर है”.

कैंसर की वापसी

2008 तक Steve Jobs का कैंसर बुरी तरह उनके शरीर में फ़ैल चूका था। असहनीय दर्द के अलावा उन्हें इटिंग डिसऑर्डर से भी जूझना पड़ रहा था। Steve Jobs को जवानी के दिनों में अक्सर खाली पेट रहने और एक्सट्रीम डाईट की आदत थी। कैंसर की लाइलाज बिमारी में भी वे खाने के प्रति लापरवाह थे। उस साल जॉब्स का वजन लगभग 40 पाउंड घट गया था।

जब वे आइ-फोन 3G को दुनिया के सामने लेकर आये तो मीडिया ने उनके वजन कम होने पर ज्यादा interest दिखाया। सिर्फ महीने भर में ही एप्पल के स्टोक घटने लगे थे।

आखिरकार जॉब्स को जनवरी 2009 में मेडिकल लीव पर जाना पड़ा। उसके दो महीने बाद ही उनका लीवर ट्रांसप्लांट का ओपरेशन हुआ। उनके लीवर में ट्यूमर पाया गया और डॉक्टर इस बात से और चिंतित हो गए थे।

Steve Jobs के मेडिकल लीव पर जाने पर एप्पल के मेनेजमेंट में कुछ अरेंजमेंट किये गए। धीरे-धीरे स्टॉक प्राइस कुछ सुधरे। एक कोंफ्रेंस काल के दौरान, ओपरेशन मेनेजर टीम कुक ने कहा – “हमें इस बात का यकीन है कि हम इस दुनिया में सिर्फ महान प्रोडक्ट बनाने के लिए है और ये हमेशा होता रहेगा। यहाँ कौन क्या काम कर रहा है, इस बात की परवाह किये बगैर हमारा सारा ध्यान सदा इनोवेटिंग पर रहा है। ये वेल्यूज़ कंपनी के साथ इस कदर जुड़े हुए है कि एप्पल हमेशा बेहतरीन करता रहेगा”.

Steve Jobs हालांकि बीमारी में भी शांत नहीं थे। उनका जुझारूपन अभी कायम था। साल 2010 में वे ठीक होकर फिर से एप्पल आने लगे थे। कैंसर भी उन्हें रोक नहीं पाया और उन्होंने आइ-पेड के बाद आइ-पेड 2 और आइ-क्लाउड डेवलेप किया।

आखिरी बोर्ड मीटिंग

ये साल 2011 था जॉब्स को उनके डॉक्टर्स ने बताया कि ट्यूमर उनकी हड्ड्यों और बाकी ओरगंस में भी फ़ैल चूका था। इसके साथ ही दर्द, वजन घटना, इटिंग डिसऑर्डर, नींद ना आना और मूड स्विंग्स जैसी अन्य परेशानियो से उनकी हालत बदतर होती जा रही थी। ऐसे कई प्रोजक्ट थे जिन्हें जॉब्स पूरा करना चाहते थे मगर अपनी बिमारी की वजह से उन्हें अपने परिवार की देख-रेख में घर पर बैठना पड़ रहा था।

अगस्त में Steve Jobs ने लेखक Issacson को मैसेज करके उनसे मिलने की गुज़ारिश की। वे Issacson को अपनी बायोग्राफी के लिए कुछ फ़ोटोज़ दिखाना चाहते थे। उन्होंने हर तस्वीर के पीछे की कहानी उन्हें बताई और बिल गेट्स से लेकर प्रेजिडेंट ओबामा तक उन सब लोगो के बारे में बताया जिनसे वे मिले थे। Steve Jobs का शरीर भले ही बहुत कमज़ोर हो गया था मगर उनका दिमाग अभी भी तेज़ चलता था।

जब आईजेकसन जाने लगे तो जॉब्स ने अपनी बायोग्राफी को लेकर चिंता जताई। लेकिन फिर उन्होंने लेखक से कहा “मैं चाहता हूँ कि मेरे बच्चे मेरे बारे में जाने। क्योंकि मैं उनके साथ ज्यादा वक्त नहीं बिता पाया। मैं चाहता हूँ कि जो कुछ भी मैंने किया, वे उसके बारे में जाने। एक वजह और भी है। जब मैं नहीं रहूँगा तो लोग मेरे बारे में लिखना चाहेंगे। हालांकि वे मेरे बारे में कुछ नहीं जानते तो जो कुछ भी लिखा जाएगा सब गलत होगा। इससे बेहतर है कि मै अपनी बात खुद की कह सकूँ”.

Steve Jobs की आखिरी बोर्ड मीटिंग 24 अगस्त को की थी। उन्होंने इस मीटिंग में वो लैटर पढ़ा जिसे वे हफ्तों से रीवाइज़ कर रहे थे। इसमें लिखा था “मैं हमेशा से ही कहता आया हूँ कि कभी अगर मैं एप्पल के सीईओ CEO की हैसियत से अपना फ़र्ज़ और इस कम्पनी की उम्मीदों पर खरा उतरने लायक ना रह पाऊं तो ये बात आप लोगो को सबसे पहले मैं खुद बताऊंगा, और अफ़सोस की बात है कि वो दिन आज आ गया है”.

नतीजा

Steve Jobs अपनी पसंद में intense हो सकते थे। उनके साथी उनके लिए या तो हीरो थे या फिर एकदम निकम्मे। इसी तरह उनके प्रतिद्वन्दी भी उनकी नजरो में या तो अव्वल थे या एकदम नाकारा। यही नहीं वे हद से ज्यादा ईमानदार थे। उनके अधीन काम करने वालो के अनुसार वे सीधी और सच्ची बात करने में यकीन रखते थे।

Steve Jobs हर काम में अपना दखल देते थे। स्वभाव से वे कंट्रोलिंग थे। मैक का ऑपरेटिंग सिस्टम वे खासतौर पर सिर्फ एप्पल के लिए ही चाहते थे। हालांकि उनके फैसले से माइक्रोसॉफ्ट को फायदा पहुंचा था। लेकिन Steve Jobs अपने प्रोडक्ट्स को बेहतर से भी बेहतरीन बनाने पर जोर देते थे। प्रोडक्ट के डिजाईन से लेकर कस्टमर के अनुभव तक में उन्हें अपना दखल चाहिए था। उनका लक्ष्य हमेशा सिर्फ और सिर्फ परफेक्शन रहा।

कंज्यूमर क्या चाहता है इससे ज्यादा वे इस बात का ख्याल रखते थे कि मार्किट में आने वाले सबसे पहला प्रोडक्ट सिर्फ उनका हो। उनकी मौजूदगी में एप्पल इनोवेशन में हमेशा सबसे आगे रहा। जैसा कि कम्पनी का मोटो रहा है “थिंक डिफरेंट”. स्टीव जॉब्स भले ही कभी-कभी सनकी हो जाते थे मगर उन्होंने खुद को digital age का सबसे महान इनोवेटर साबित कर दिखाया।

Steve Jobs का हमेशा ये मानना था कि अक्सर किसी भी कम्पनी के डूबने के पीछे एक वजह ये होती है कि जब उनका कोई प्रोडक्ट चल पड़ता है तो कम्पनी का सारा ध्यान प्रॉफिट कमाने में लग जाता है। मगर एक कामयाब कंपनी वही होती है जो आखिर तक कायम रहती है क्योंकि उनका मकसद सिर्फ पैसा कमाना नहीं होता बल्कि हर बार बेहतर करना ही उनका लक्ष्य होता है, और एप्पल के लिए वो यही लक्ष्य चाहते थे।

पूरे तीन दशको तक  Steve Jobs लगातार अपने लक्ष्य की ओर बड़ते रहे। उन्होंने एप्पल II और मेकिनतोष के साथ आल इन वन और Ready to use पर्सनल कंप्यूटर बनाया। उन्होंने PIXAR के साथ एनीमेशन की दुनिया ही बदल दी। उनके आइ-ट्यून्स और आइ-पोड ने म्युज़िंक इंड्सट्री को Piracy से बचाया। आइ-फोन और आइ-पेड की मदद से बिजनेस और एंटरटेन एक ही पोर्टेबल डीवाइस में सिमट कर रह गए, और आइ-क्लाउड ने तो डेटा सिंक (SYNC) को बेहद आसान बना दिया।

Conclusion

बेशक Steve Jobs अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनकी लीगेसी हमेशा जिंदा रहेगी। एप्पल और पिक्सर आगे भी यूँ ही टेक्नोलोजी और आर्ट का तालमेल बनाते रहेंगे।

Steve Jobs की बायोग्राफी से हम जो चीज़ सीख सकते है वो ये है की हमेशा चलते रहो, सुधार करते रहो और तुम्हारी ये कोशिशे खुदबखुद तुम्हे कामयाब बनायेंगी।

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद।

Wish You All The Very Best.

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