50+ Lord Krishna Quotes in Hindi – भगवान श्री कृष्ण वाणी जो परम सत्य हैं

Hello दोस्तों, आज मैं भगवान श्री कृष्ण की कही हुई कुछ बातें, जिसमें उन्होंने प्रेम के बारे में विस्तार में बताते हुए क्या कुछ बातें हमें सीखाया है वो सब आप जानेंगे इस पोस्ट में। प्रेम क्या है और प्रेम के बारे Expression कैसे जानेंगे ऐसे कुछ 3 सवालों का जवाब जान पाएंगे आप। ये Lord Krishna Quotes in Hindi आपको बताएगा प्रेम का असल मतलब ताकि आप love के बारे किसी confusion में ना रहें। इसके अलावा भी श्रीकृष्ण के कहे गए कुछ और भी कोट्स जैसे Bhagwat Geeta में बताये गए कोट्स के बारे में नीचे बताया गया है, तो आप पूरा कोट्स जरूर पढ़े।

Krishna Quotes in hindi

Love Quotes in Hindi

संसार में हर स्थान पर ये व्यापार व्याप्त होता है, कुछ पाने के लिए कुछ देना होता है।

लाभ पाने के लिए निवेश करना होता है।

यदि किसी के भाव जाननी हो तो स्वयं की भावनाओं को व्यय करना ही होता है।

अब देखिये ना, किसी का वास्तविक आचरण जानना हो तो उसे स्वतंत्रता दे दो।

यदि किसी के मन के शुद्धता जाननी हो तो उसे ऋण दे दो।

यदि किसी के गुण जाननी हो तो उसके साथ भोजन करने का समय दे दो।

यदि किसी का धैर्य जानना हो तो उसे उसके प्रिय कार्य करने से मना करके देखो।

यदि किसी की अच्छाई जाननी है तो उससे सलाह ले लो।

हर भाव के बदले कोई भाव देना ही होगा। किन्तु संसार में एकमात्र ऐसा एक भाव है जिसे देखने के लिए, जिसे पाने के लिए बदले में आपको वही भाव देना होगा और वो भाव है प्रेम।

यदि किसी का प्रेम देखना है तो उसे निस्वार्थ प्रेम दीजिये। यदि किसी से प्रेम पाना है तो उसे निस्वार्थ परिशुद्ध प्रेम दीजिये। बदले में आपको भी प्रेम ही मिलेगा।

प्रेम – प्रेम क्या है सभी जानते है! सामान्य रूप से ये प्रेम आकर्षण से प्रारम्भ होता है और इसमें कुछ भी बुरा नहीं है। महत्वपूर्ण बात ये है कि इस प्रेम का लक्ष्य क्या है! जिसे आपने प्रेम किया उसे पा लेना या ना पाने के कारण स्वयं को विचलित कर इस संसार से मुँह मोड़ लेना ! यदि कोई इन दोनों विकल्पों में से कोई एक चुनता है तो आपको बता दूँ ये दोनों ही प्रेम का अंत है।

Love Quotes in Hindi

प्रेम का असली अर्थ है समर्पण, सम्पूर्ण निस्वार्थ समर्पण।

ऐसा प्रेम, जिसमें जिनसे आपने प्रेम किया उसको पाने कि प्रसन्नता आपका लक्ष्य नहीं, जिनसे आपने प्रेम किया उसे प्रसन्न करना आपका लक्ष्य हो। ऐसा प्रेम ईश्वर के समान है, किन्तु यदि इस प्रेम में पूर्णतः समर्पण नहीं होंगे, तो इस प्रेम में एक आकार नहीं हो पाओगे। कित्नु यदि इस प्रेम में स्वयं को पूर्णतः समर्पित कर दिया तो समझो इसी प्रेम में आप ईश्वर को पाओगे।

प्रेम इस संसार में किसे नहीं भांता! हर किसी ने प्रेम का अनुभव किया ही है। हर कोई जानता है ये प्रेम कितना सुन्दर है। क्यों है ना? ये प्रेम भाव इस संसार में सबसे शक्तिशाली भाव है। अब हर शक्ति में आते हैं कुछ उत्तरदायित्व। अब जैसे ही उत्तरदायित्व हमारे जीवन में आते हैं हम सर्वप्रथम प्रेम को ही भूल जाते हैं। और हमें ये प्रेम बोझ लगने लगता है। किन्तु संसार का सत्य तो यही है हर प्रसन्नता के साथ उत्तरदायित्व आएंगे ही, जिसका पालन हमें करना ही होगा।

अब यदि मैं आपको उदाहरण दूँ आपके बगीचे में आप चाहते है एक सुन्दर सा पुष्पों से भरा वृक्ष आये। तो सर्वप्रथम उसके लिए आपको जल और धुप का आयोजन करना होगा, उसके जोड़ो पर दीमक ना लगे ये आपको सुनिश्चित करना होगा, उसके आसपास उगे खरपतवार वो आपको हटानी होगी, उसी के पश्चात वो आपके उस बगीचे में वो सुन्दर पुष्पों से भरा वृक्ष आएगा।

उसी प्रकार होता है प्रेम भी। सर्वप्रथम आपको इसमें समर्पण का खाद जल डालना होगा। और संदेह इसकी खरपतवार आपको हटानी होगी और विश्वास कि ये जड़े कभी ना दुर्वल पड़े ये आपको सुनिश्चित करना होगा। उसी के पश्चात प्रेम का वास्तविक सुख आप अनुभव कर पाएंगे।

हमारे आस-पास जो वृक्ष है, जो पौधे, जो पुष्प है देख रहे हैं आप। कितना सुन्दर है ना! क्यूंकि आपने इन्हें देखा है। इसी प्रकार जब प्रेम कि बात आती है लोग किसी का मुख स्मरण कर लेते हैं। ऐसी आंखे, वैसी मुस्कान, घने केश, ऐसी भौं, वैसी होठ; पर क्या यही प्रेम का अस्तित्व है! नहीं। ये उस शरीर का अस्तित्व है जिसे हमारी आँखों ने देखा और हमने स्वीकार कर लिया, परंतु प्रेम भिन्न है। प्रेम उस वायु भांति है जो हमें दिखाई नहीं देता। किन्तु वही हमें जीवन देता है। संसार किसी स्त्री को कुरूप कह सकता है, क्यूंकि वो उसको अपनी तन कि आँखों से देखता है। परन्तु संतान उसी माता को संसार में सबसे सुंदर समझते हैं। क्यूंकि भाव से जुड़े हैं। तन कि आँखों से देखोगे तो वैसे भी पहचान नहीं पाओगे जैसे मईया राधा भगवान श्री कृष्ण को पहचान नहीं पाई। इसलिए यदि प्रेम को समझना है तो मन कि आँखे खोलिये।

Krishna Quotes in Hindi

इस संसार को आप कैसे जानते हैं, कैसे समझ पाते हैं! अब आपका उत्तर बहुत सरल सा होगा – इस संसार को स्वयं देख कर और ये बिलकुल उचित है।

अब देखिये हम आँखों से इस संसार को देखते हैं, इसे जानते है, उसके पश्चात इसको समझ पाते हैं, किन्तु हम इस बात पे ध्यान नहीं दे पाते की समस्त संसार को देखने वाली आंख, स्वयं कितनी छोटी होती है। एक अकेली आंख हमे समस्त संसार दिखा सकती है, तो सोचिये आपके पास क्या क्या है…… दो आंखे है, दो कान, बोलने की क्षमता है – जिससे आप शब्दो का निर्माण कर सकते है। शब्द जिनसे आप ब्रह्म बना सकते है। दो हाथ भी है – यदि ये चाहे तो पाताल तोड़ कर वहां से जल निकाल सकते है। दो पांव है – यदि ये चाहे तो संसार में कितना भी बड़ा पर्वत क्यों न हो, उसे लाँघ सकते है। एक ह्रदय हैं – जो प्रेम के बंधन में सबको बांध दे। एक मन है – जो प्रकाश की गति से भी तेज चलता है। एक मस्तिष्क है – जो कितनी भी बड़ी समस्या क्यों न हो उसका हल एक सेकंड में निकाल लेता है। और बताइये आपके पास क्या कुछ नहीं है! समझने का प्रयास कीजिये की कितने धनवान हैं आप। संसार में सबसे सुखी वो नहीं जिसके पास धन है, सुखी वो जो धन का उपयोग करें। उसी प्रकार आपके जीवन में आपका धन है आपकी ये शरीर की क्षमता। अपनी शरीर की क्षमताओं का उपयोग कर सकारात्मक दृस्टि से सब कुछ देखो। इस संसार को समझो और सब कुछ समझो। ये सुख चाह कर भी आपसे दूर नहीं जायेगा।

कहते हैं जीवन में सम्बन्धो में गणित नहीं होता। और उचित ही तो कहते है, यदि इन सम्बन्धो में हानि, लाभ, गुणभाग ये सब आजाये तो सब कुछ केवल व्यापार ही तो बन जाता है।

ये सारा खेल बन है केवल अंको का। और ये जीवन निश्चित रूप से अंक गणित नहीं हैं। इस जीवन में आनंद को बढ़ाना, पीड़ाओं को घटाना, अंक गणित का नहीं व्यव्हार और प्रेम का खेल है। कभी किसी के सर पे हाथ रख के उसे सुभकामनाये ही देना कदासित वो उसे इतना आनंदित कर दें की वो इस संसार को जीते। कभी आपके मुख से किसी के लिए कुछ कटाक्ष निकल जाये और कदासित वो उसे इतनी पीड़ा दे दें, की वो इस संसार में कुछ भी न कर पाए। कभी भी जीवन में इन सम्बन्धो में गणित को न लाये, कभी नहीं….. ना हानि, ना लाभ, ना गुणभाग स्मरण रखियेगा। इस संसार में ऐसा कोई समीकरण नहीं जिसका हल न हो, बस देरी हैं तो उसे ढूंढने की।

स्वप्न – हम जीवन में स्वप्न देखते हैं, उन्हें पूर्ण करने का पूर्ण प्रयास करते है, किन्तु इस स्वप्नों को पूर्ण न कर पाने की स्थिति में हम टूट जाते हैं, बिखर जाते हैं और फिर बोझ हम आने वाली पीढ़ी पर लगभग लाट देते है।

हम सोचते हैं की जो हम ना बन सकें, हमारी संतान अवश्य बने, जो हम कभी ना पा सके, हमारी संतान अवश्य पाएं। ये विचार अनुचित प्रतीत नहीं होता, किन्तु ये भूल है और यही भूल हम कर बैठते हैं। संतान प्रकृति और परमात्मा का आशीर्वाद है, उनके भीतर अपना एक उनका अस्तित्व छिपा है, तनिक गौर से देखिये तो सही। आपने केवल उस संतान को जन्म दिया है, उसका जीवन आपका नहीं हैं, इसलिए अपनी संतान के साथ रहीं समय व्यतीत कीजिये और उन्हें प्रेम दीजिये, भरपूर प्रेरणा दीजिये। किन्तु प्रेरणा दीजिये सिर्फ उसका स्वयं का अस्तित्व बनाने की, उसके स्वयं के स्वप्न पुरे करने की, ना की अपनी अधूरी स्वप्न पूर्ण करने की। उनके अस्तित्व को निखार कर उठने दीजिये।

Bhagwat Geeta Quotes

मनुष्य केवल दो प्रकार के है – देवता और असुर। जिसके ह्रदय में दैवी सम्पद कार्य करती है वह देवता है तथा जिसके ह्रदय में आसुरी सम्पद कार्य करती है वह असुर है। तीसरी कोई अन्य जाती सृष्टि में नहीं है।

ज्ञान – सम्पूर्ण पापियों से भी अधिक पाप करने वाला ज्ञानरूपी नौका द्वारा निःसंदेह पार हो जायेगा।

कर्म – आसक्ति और संगदोष को त्याग कर, सिद्धि और असिद्धि में समान भाव रख कर योग में स्थित हो कर कर्म किये जा। कौन सा कर्म – निष्काम कर्म।

कोई भी पुरुष किसी भी काल में क्षणमात्र भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता, क्यूंकि सभी पुरुष प्रकृति से उत्पन्न हुए गुणों द्वारा विवश होकर कर्म करते है। प्रकृति और प्रकृति से उत्पन्न गुण जब तक जीवित हैं, तब तक कोई भी पुरुष कर्म किये बिना रह ही नहीं सकता। इसीलिए आपको बिना कर्म किये सोकर या बैठ कर दिन नहीं गुजारना चाहिए।

आत्मा – दुःख-सुख को समान समझनेवाले जिस धीर पुरुष को इन्द्रियों और विषयों के संयोग व्यथित नहीं कर पाते, वह मृत्यु से परे अमृत-तत्त्व की प्राप्ति के योग्य हो जाता है। यहाँ अमृत मतलब परम सत्य को बोला गया है।

पार्थिव शरीर को रथ बनाकर ब्रह्मरूपी लक्ष्य पर अचूक निशाना लगाने वाला पृथापुत्र अर्जुन! जो पुरुष आत्मा को नाशरहित, नित्य, अजन्मा और अव्यक्त जानता है, वह पुरुष कैसे किसी को मरवाता है और कैसे किसी को मारता है? अविनाशी का विनाश असंभव है। अजन्मा जन्म नहीं लेता। अतः शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए।

कर्म और ज्ञान – श्री कृष्ण, अर्जुन को ये भी बोलते है – सम्पूर्ण प्राणी जन्म से पहले बिना शरीरवाले और मरने के बाद भी बिना शरीरवाले हैं। जन्म के पूर्व और मृत्यु के पश्चात भी दिखायी नहीं पड़ते, केवल जन्म-मृत्यु के बीच में ही शरीर धारण किये हुए दिखायी देते हैं। अतः इस परिवर्तन के लिए व्यर्थ की चिंता क्यों करते हो? आत्मा ही सनातन है और इसको जानने के लिए आपको सिर्फ काम करने की जरुरत पड़ती है – पहला निष्काम कर्मयोग और दूसरा ज्ञानयोग और ये दोनों मार्गो में किया जाने वाला कर्म एक ही है।

संसार में कर्म करने के दो दृष्टिकोण प्रचलित हैं। लोग कर्म करते हैं तो उसका फल भी अवश्य चाहते है या फल न मिले तो कर्म करना ही नहीं चाहते; किन्तु योगेश्वर श्री कृष्ण इन कर्मों को बंधनकारी बताते हुए ‘आराधना’ को एकमात्र कर्म मानते है। यहाँ श्री कृष्ण ये बताते है की सांसारिक परम्परा से हटकर कर्म करने की कला बतायी कि कर्म तो करो, श्रद्धापूर्वक करो; किन्तु फल के अधिकार को स्वेच्छा से छोड़ दो। फल जायेगा कहाँ? आपने कर्म किया है तो उसका फल भी मिलेगा, लेकिन फल मिलेगा तो कर्म करना है, या फिर फल नहीं मिलेगा तो कर्म नहीं करना है। ऐसा नहीं करना है आपको। फल की चिंता न करते हुए किये जाने वाले कर्म ही असली कर्म है।

फल आपको वही मिलगा जो कर्म आप कर रहे हो, तो अगर आप अच्छा कर्म करते हो तो आपको अच्छा फल मिलेगा, या फिर अगर आप बुरा कर्म करते हो तो आपको बुरा फल मिलेगा। तो आप choose कर सकते हो की आपको कैसा कर्म करना है।

जो मनुष्य मन से इन्द्रियों को वश में करके, जब मन में भी वासनाओं का स्फुरण न हो, सर्वथा अनासक्त हुआ कर्मेन्द्रियों से कर्मयोग का आचरण करता है, वह श्रेष्ठ है। कर्म कौनसा करे – अपने निर्धारित किये हुए कर्म को करे। अर्थात कर्म तो बहुत से हैं, उनमें से जो कोई एक चुना हुआ है, उसी नियत कर्म को आपको करना है। कर्म न करने की अपेक्षा कर्म करना ही श्रेष्ठ है।

मैं कौन हूँ का जवाब – शरीर से इन्द्रियों को परे अर्थात सूक्ष्म और बलवान है, इन्द्रियों से परे मन है, यह उनसे भी बलवान है। मन से परे बुद्धि है और जो बुद्धि से भी अत्यंत परे है, वह है हमारी आत्मा। और वही मैं या आप हो। इसीलिए हम इन्द्रियां, मन और बुद्धि को control कर सकते है और जो इसे control कर लेता है वही जीवन में success को प्राप्त होते है।

राधे राधे

जय श्री कृष्ण

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