फ़कीर
एक दिन एक फ़कीर अकबर के महल में आया। वह महल की चारदीवारी पर बैठकर प्रार्थना करने लगा। सिपाहियों ने सोचा कि वह थोड़ी देर बाद स्वतः चला जाएगा, किन्तु वह वहीं बैठा रहा। घंटों बीत गए। फ़कीर की इस अनाधिकार चेष्टा से अकबर खीझ उठा और फ़कीर से जाकर बोला, “हे पवित्रात्मा! यह महल है, आश्रम या धर्मशाला नहीं। आप जहाँ चाहें वहाँ बैठकर इस प्रकार ध्यान नहीं लगा सकते।” फ़कीर ने पूछा, “आपसे पहले इस महल में कौन रहता था?” “पहले मेरे दादा जी फिर मेरे पिता और अब मैं रहता हूँ। मेरे बाद मेरा पुत्र और फिर मेरा पोता…” अकबर ने उत्तर दिया। अर्थात् लोग आते और चले जाते हैं। यहाँ कोई भी सदा नहीं रहता है। तब क्या आपको लगता नहीं कि यह एक आश्रम है? उसी प्रकार से यह संसार एक आश्रम है जहाँ हम कुछ समय तक रहते हैं और फिर चले जाते हैं।” अकबर निरुत्तर हो गया था। फ़कीर को लगा कि सम्राट् को बात समझ आ चुकी थी इसलिए उसने अपनी पगड़ी और दाढ़ी उतार दी। अकबर यह देखकर हैरान रह गया कि फ़कीर और कोई नहीं पर छद्म वेष में बीरबल ही था।
बीरबल और पंडित
एक बार एक पंडित अकबर के दरबार में आया और बोला, “महाराज! मैं बहुत ज्ञानी हूँ। अपने ज्ञान की बदौलत कई लोगों को हरा चुका हूँ। आपके दरबार में क्या कोई ज्ञानी है, जो मुझे हराने की चुनौती दे सके?” अचानक बीरबल ने खड़े होकर कहा, ‘ “मैं चुनौती स्वीकार करता हूँ। किसी पुस्तक पर मैं तुमसे शास्त्रार्थ करूँगा । ठहरो, मैं पुस्तक लाता हूँ।” बीरबल एक पुस्तक लेकर वापस लौटा और बोला, “यह है महान पुस्तक. “थिलाकाष्ट महिष बंधनं”। पंडित ने इस पुस्तक के विषय में कभी सुना ही नहीं था। उसने कहा, “मुझे शास्त्रार्थ के लिए कल सुबह तक का समय दीजिए।” उस रात पंडित आगरा छोड़कर ही भाग खड़ा हुआ। दरबार में अगले दिन जब वह नहीं आया तब अकबर ने पूछा, “बीरबल, मुझे वह पुस्तक दिखाओ।” बीरबल ने कहा, “महाराज! ऐसी कोई पुस्तक ही नहीं है। उस में थिला (तिल) और काष्ठा (गोबर) थे, जिन्हें भैंस (महिष) के चमड़े की रस्सी बनाकर बाँधा गया था। इसलिए ‘थिलाकाष्ठ महिष बंधनं’ मैंने कहा। मैं पंडित को उसके घमंड के लिए पाठ पढ़ाना चाहता था।” अकबर ने बीरबल की बुद्धिमानी की भरपूर प्रशंसा की।
हरा घोड़ा
एक दिन अकबर और बीरबल घुड़सवारी करते हुए चारों ओर की हरियाली का मजा ले रहे थे। अचानक अकबर ने कहा, “हरी हरी घास और पेड़ों के बीच घुड़सवारी करने के लिए मुझे एक हरा घोड़ा चाहिए। बीरबल सात दिनों के भीतर हरा घोड़ा ढूँढो । यदि असफल रहे, तो अपना चेहरा मुझे मत दिखाना।” बीरबल हरे घोड़े की खोज में राज्य में घूमता रहा। आठवें दिन दरबार में पहुँचकर उसने कहा कि उसे हरा घोड़ा मिल गया है। अकबर उत्साहित थे। बीरबल ने कहा कि हरे घोड़े के मालिक की दो शर्तें थीं। उत्सुकतापूर्वक अकबर ने पूछा, “क्या शर्तें हैं?” “पहला, आपको अपने घोड़े से जाकर हरे घोड़े को लाना होगा।” “यह तो आसान है। दूसरी शर्त क्या है?” “चूंकि घोड़ा एक विशेष रंग का है, उसे लाने का दिन भी विशेष होना चाहिए। घोड़े के मालिक ने सप्ताह के सात दिनों के अतिरिक्त किसी भी दिन आने के लिए कहा है।” बीरबल की बुद्धिमता पर अकबर ठहाका मारकर हँस पड़ा। वह समझ गया कि बीरबल को मूर्ख बनाना आसान नहीं है।