117 Akbar Birbal Stories in Hindi | सम्पूर्ण अकबर-बीरबल की कहानियां

कठिन प्रश्न

एक बार अकबर के दरबार में एक विद्वान् आया। उसकी इच्छा अपनी विद्वता सिद्ध कर राजा से पुरस्कार पाने की थी। उसने कहा, “मैंने बहुत ज्ञानार्जन किया है। यहाँ उपस्थित सभी लोगों से मैं अधिक ज्ञानी हूँ। आप मुझसे कुछ भी प्रश्न पूछ सकते हैं। और मैं बदले में आपसे कुछ प्रश्न करूँगा। क्या किसी को मेरी चुनौती स्वीकार है?” अकबर ने पल भर कुछ सोचा। उस समय बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं था। एक दूत भेजकर तुरंत अकबर ने बीरबल को बुलवाया। बीरबल के दरबार में आते ही अकबर ने उसे उस विद्वान् की बात बताई। बीरबल ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। विद्वान् ने कहा, “मैं आपसे सौ सरल प्रश्न पूछूं या एक कठिन प्रश्न?” बीरबल ने उत्तर दिया, “कृपया आप एक कठिन प्रश्न पूछें।” विद्वान् ने पूछा, “पहले मुर्गी आई या अंडा?” बीरबल ने उत्तर दिया, “मुर्गी।” आश्चर्यचकित विद्वान् ने पूछा, “ओह! पर आपको इसका पता कैसे चला?” बीरबल ने कहा, “आपको एक प्रश्न पूछना था, आप दूसरा प्रश्न क्यों पूछ रहे हैं?” विद्वान् ने तुरंत समझ लिया कि बीरबल अत्यंत चतुर है। उसने अपनी हार स्वीकार कर ली।

हंस चोर

एक बार एक व्यक्ति दिल्ली आया । वहाँ उसने एक सुंदर हंस देखा । हंस उसे इतना भाया कि सौ स्वर्ण मुद्राओं में उसने उसे खरीद लिया। किन्तु दो दिनों के बाद अचानक हंस गायब हो गया था। सेवकों को भी हंस की कोई जानकारी नहीं थी। परेशान होकर वह व्यक्ति बादशाह अकबर और बीरबल से सहायता माँगने गया। सारी बातें सुनकर बीरबल ने उस व्यक्ति के सेवकों को दरबार में बुलवाया। सभी सेवकों का ध्यान से निरीक्षण करने के बाद कुछ देर तक विचार करता रहा। फिर बीरबल ने कहा, “चोर इन सेवकों में ही है। वह अत्यंत चतुर है। उसने न केवल हंस को मारकर खा लिया है वरन् उसके कुछ पंखों को अपनी पगड़ी में भी रख रखा है।” ठीक उसी समय जिस सेवक ने हंस को खा लिया था उसने अपनी पगड़ी को छुआ। उसे लगा कि संभवतः कुछ पंख पगड़ी में लगे हुए हों। बीरबल ने यह देखकर उसे तुरंत पकड़ लिया। अंततः ‘उस सेवक ने स्वीकारा कि उसने हंस को खा लिया था। साक्ष्य के रूप में उसने हंस के पंख भी दिखाए। अकबर ने तुरंत उसे कारागार में डलवा दिया।

थोड़ी कम थोड़ी ज्यादा

एक दिन बीरबल की पत्नी बाजार गई हुई थी, इसलिए उसकी दस वर्षीया पुत्री, अपने पिता के साथ दरबार में आ गई। बादशाह अकबर उसे देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। प्यार से उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और मिठाई तथा तोहफ़े दिए। थोड़ी देर के बाद वह बादशाह के छोटे बेटे के साथ शाही उद्यान में खेलने लगी। दोपहर का भोजन सभी एक साथ बैठकर कर रहे थे। अकबर ने बीरबल की पुत्री से पूछा, “बेटी, क्या तुम्हें फ़ारसी आती है?” उसने उत्तर दिया, “जी महाराज! मुझे फ़ारसी बोलनी थोड़ी कम और थोड़ी ज्यादा आती है।” ” क्या? इसका क्या मतलब है?” अकबर अपनी जिज्ञासा न रोक सका, उसने बीरबल से पूछा कि वह क्या कहना चाहती है। बीरबल ने कहा, “हुजूर, जो फ़ारसी बिल्कुल नहीं जानते हैं उनसे वह थोड़ा अधिक जानती है और जो अच्छी तरह फ़ारसी बोलते हैं उनसे थोड़ा कम जानती है।” अकबर उत्तर सुनकर प्रभावित हो गया। वह समझ गया कि बीरबल की पुत्री बीरबल की ही भांति बुद्धिमान है।

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