लालची कुम्हार
एक बार एक धोबी के गधे ने पड़ोस में रहने वाले कुम्हार के बनाए हुए बर्तन तोड़ दिए। हालांकि धोबी ने गधे से हुए नुकसान की भरपाई कर दी थी पर कुम्हार असंतुष्ट था। उसने धोबी को परेशान करने की एक योजना बनाई। राजा अकबर के पास जाकर उसने कहा, “मेरे रिश्तेदार कहते हैं कि उनके यहाँ सफ़ेद हाथी हैं।” यह सुनकर अकबर को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने अपने सभी हाथियों को अच्छी तरह से साफ़ करने की आज्ञा दी। यह कार्य धोबी को सौंपा गया। धोबी कितना भी हाथियों को साफ़ करता. रगड़ता, वे स्याह ही रहते। वह डर गया और राजा के भय से बीरबल के पास सहायता माँगने गया। बीरबल ने उसे एक उपाय सुझाया। धोबी ने राजा से कहा, “महाराज! हाथियों को नहलाकर सफ़ेद करने के लिए आप कुम्हार से एक बड़ा-सा हौदा बनवा दीजिए।” अकबर ने तुरंत कुम्हार को एक बड़ा-सा हौदा, हाथियों को नहलाने के लिए, बनाने की आज्ञा दी। हौदा बना पर हाथी के उसमें जाते ही हौदा टूट गया। कुम्हार को और मज़बूत हौदा बनाने का आदेश दिया पर वह भी टूट गया। कुम्हार ने अपना सिर पीट लिया। धोबी को परेशान करने की इच्छा उसे बहुत भारी पड़ रही थी। उसने धोबी से क्षमा माँगी।
बेईमान साधु
एक बार एक महिला ने एक साधु को अपनी सारी जमा पूँजी सुरक्षित रखने के लिए दी। साधु ने कहा, “मेरे घर के किसी भी कोने में तुम इसे छिपा सकती हो।” कई महीनों बाद जब वह महिला अपनी जमा पूँजी वापस लेने आई तब वह उसे वहाँ नहीं पाकर अचंभित रह गई। साधु ने कहा कि उसने उस पूँजी को हाथ भी नहीं लगाया था। महिला ने इसके लिए बीरबल से सहायता माँगी। बीरबल ने अपने सेवक से कहा, “साधु के पास इन रत्नों को लेकर जाओ और सुरक्षित रखने के लिए कहो। उससे कहना कि ये रत्न तुम्हारे भाई के हैं, जो कुछ दिनों के लिए शहर छोड़कर जा रहा है।” बीरबल ने उस स्त्री से कहा, “जब मेरा सेवक साधु से बात कर रहा हो तभी तुम अपनी जमा पूँजी वापस माँगना।” उस महिला को देखते ही साधु भयभीत हो उठा। उसे लगा कि इस दूत को कहीं वह अपने खोए पैसे की बात न बता दे। यह सोचकर उसने कहा, “तुमने अपनी पूँजी दबाई कहीं थी और उसे ढूंढ कहीं ओर रही थी। तुम्हारी पूँजी उस कोने में है।” ज्यों ही महिला को अपनी पूँजी मिली, बीरबल के दूसरे सेवक ने वहाँ पहुँचकर पहले सेवक से कहा, “तुम्हारे भाई ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया है।” पहले सेवक ने कहा. “तब तो मुझे साधु की सहायता की आवश्यकता नहीं है।” यह कहकर वह चला गया।
शीघ्रता में दिया गया उपहार
एक दिन बीरबल अपने मित्र के साथ किसी मेले से लौट रहा था। रास्ते में उन्हें एक संकरा पुल पार करना था। ध्यानपूर्वक वे पुल पार कर रहे थे तभी संतुलन बिगड़ने से मित्र पानी में गिर गया। बीरबल ने तुरंत अपना हाथ देकर उसे पकड़ लिया और किनारे तक उसे खींच लाया। किनारे पर चढ़ते समय उसने जान बचाने के लिए बीरबल को बीस स्वर्ण अशर्फ़ियाँ देने का वादा किया। बीरबल ने उत्तर दिया, “धन्यवाद” और फिर मित्र का हाथ उसने छोड़ दिया। परिणामस्वरूप, उसका मित्र फिर से पानी में गिर पड़ा। किसी तरह वह किनारे तक पहुँचा और चिल्लाया, “बीरबल, तुमने मेरा हाथ क्यों छोड़ दिया? “क्योंकि मुझे मेरा पुरस्कार चाहिए था।” “मित्र पानी से सुरक्षित बाहर निकलने तक तुम्हें मेरी प्रतीक्षा करनी चाहिए थी।” मित्र ने यह अनुभव किया कि उसने पुरस्कार देने में जल्दी कर दी थी। उसे समझ आ गया था कि भौतिक लाभ के लिए मित्र अपने मित्र की सहायता नहीं करते हैं। उसने बीरबल से क्षमा माँगी और फिर दोनों अपने रास्ते चले गए।