117 Akbar Birbal Stories in Hindi | सम्पूर्ण अकबर-बीरबल की कहानियां

शाही स्पर्श

एक बार एक वृद्धा बीरबल के पास आई और बोली, ” श्रीमान्, मेरे पुत्र ने अकबर के लिए कई लड़ाईयाँ लड़ी हैं, किन्तु हाल ही में वह बीमार होकर मर गया। अब मुझे सहायता चाहिए।” “चिंता मत करें, बादशाह अकबर आपकी सहायता करेंगे। जैसा मैं कहता हूँ वैसा ही आप करें।” अगली सुबह वह वृद्धा दरबार में आई। एक जंग लगा हुआ पुराना तलवार उठाकर उसने कहा, “महाराज! यह तलवार मेरे पुत्र की है जिसने आपके लिए कई लड़ाईयाँ लड़ी थीं। कृपया इसे आप अपने पास रखें।” अकबर ने कहा, “मैं इसका क्या करूँगा?” उन्होंने अपने पहरेदार को वृद्धा को पाँच स्वर्ण मुद्राएँ देने के लिए कहा। तभी बीरबल ने उठकर कहा, “मुझे तलवार दिखाओ तो।” तलवार का निरीक्षण कर बीरबल ने कहा, “मुझे लगा कि शाही स्पर्श होते ही यह तलवार सोने की हो जाएगी। पर मुझे आश्चर्य हो रहा है कि आखिर क्यों आपके दयालु हाथों का जादू इस पर नहीं चला है।’ ” अकबर बीरबल का तात्पर्य समझ गया। उसने पहरेदार से कहा, “इस वृद्धा को इस तलवार के वजन के बराबर सिक्के दिए जाएँ।” वृद्धा अकबर और बीरबल को धन्यवाद देकर चली गई।

मुल्ला का सिर

मुल्ला दो प्याजा बादशाह के सलाहकार और मंत्री थे। एक बार बादशाह से उनकी झड़प हो गई। गुस्से में अकबर ने मुल्ले का सिर काटकर अगले दिन उसे पेश करने का आदेश दे दिया। भयभीत मुल्ला ने बीरबल से मदद माँगी। बीरबल ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनका कोई अहित नहीं होगा। बीरबल को एक उपाय सूझा, जिसे उसने मुल्ला के कान में बताया। उसके अनुसार मुल्ला ने सिपाहियों को समझा लिया कि वे उन्हें अकबर के सामने जीवित ही ले चलें। पर ज्यों ही अकबर ने मुल्ला को जीवित देखा वह सिपाहियों पर चिल्ला उठे, “मैंने मुल्ला का सिर दरबार में लाने की आज्ञा दी थी. तुम लोग उसे जीवित क्यों लाए हो?” सिपाही कुछ कह पाते उससे पहले ही मुल्ला ने कहा, “महाराज! यह सिपाहियों की गलती नहीं है। मैंने जैसा कहा उन्होंने वैसा ही किया। मुझे चिंता थी कि शायद वे आपकी आज्ञा का पालन ठीक से नहीं कर पायें, इसलिए मैंने इस काम को स्वयं ही करने की सोची और अपने सिर को अपने कंधों पर ले आया।” अकबर समझ गए कि उन्होंने जल्दबाजी में ऐसी आज्ञा दे दी थी। उन्होंने मुल्ला को क्षमा कर सजा मुक्त कर दिया।

किसका सेवक?

एक दिन अकबर और बीरबल दोपहर का भोजन साथ-साथ कर रहे थे। अकबर को मज़ाक सूझा। उन्होंने कहा, “बीरबल बैंगन की तरकारी से अच्छी और कोई तरकारी नहीं होती है न?” बीरबल ने उत्तर दिया, “जी महाराज! आप सही कह रहे हैं। किसी भी सब्जी से अधिक बैंगन की सब्जी (तरकारी) स्वादिष्ट होती है।” बीरबल का उत्तर सुनकर अकबर अत्यंत प्रसन्न हुआ। कुछ दिनों बाद अकबर दोपहर का भोजन कर रहे थे। अचानक उन्होंने कहा, “वीरबल, बैंगन की तरकारी एकदम स्वादिष्ट नहीं है, बड़ा ही अजीब स्वाद है। अन्य तरकारियाँ अधिक स्वादिष्ट हैं।” “जी महाराज! आप एकदम सही कर रहे हैं- बैंगन की तरकारी का स्वाद अजीब ही है”- बीरबल ने उत्तर दिया। “आह! मैंने तुम्हारा झूठ पकड़ लिया। कुछ दिन पहले जब हम दोनों साथ खाना खा रहे थे तब तुम मुझसे सहमत थे कि बैंगन की तरकारी स्वादिष्ट होती है पर आज स्वाद के विषय में तुमने अपना मन बदल लिया।” बीरबल ने कहा, “जी महाराज! मैंने अपना विचार आपके विचार से मिलाने के लिए बदल दिया। मैं आपका सेवक हूँ बैंगन का नहीं।” बीरबल के चतुरतापूर्ण उत्तर पर बादशाह ने ज़ोर का ठहाका लगाया।

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