117 Akbar Birbal Stories in Hindi | सम्पूर्ण अकबर-बीरबल की कहानियां

चार उँगलियाँ

बादशाह अकबर को दरबारियों से पहेलियाँ पूछना बहुत पसंद था। वे विनोदपूर्ण उत्तर सुनकर बहुत प्रसन्न होते थे। एक दिन की बात है, दरबार सजा हुआ था। अकबर ने दरबारियों से एक प्रश्न पूछा, “सत्य और असत्य के बीच में क्या अंतर है?” इसका उत्तर क्या होगा यही सोचते हुए सभी दरबारी अपना सिर खुजलाने लगे। वे कोई उत्तर न दे सके। अंत में अकबर ने बीरबल से पूछा, “तुम क्यों चुप हो? क्या तुम्हें मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं पता है?” बीरबल ने कहा, “महाराज! मैं दूसरों के उत्तर देने की प्रतीक्षा कर रहा था। इसी बीच मैं उत्तर भी सोच रहा था। सत्य और असत्य के बीच चार उंगलियों का अंतर है।” “अपनी बात ठीक से समझाओ बीरबल।” “सत्य और असत्य के बीच चार उँगलियों का अंतर है, जो आप देखते हैं वह सत्य है, जो आप सुनते हैं वह झूठ भी हो सकता है।” अकबर ने पूछा, “किन्तु ये चार उँगलियाँ क्या हैं?” “महाराज! वह आँख और कान के बीच की दूरी है।” अकबर उत्तर पाकर प्रसन्न हो गया।

चिराग तले अंधेरा

सुहानी सुबह थी। अकबर और बीरबल छज्जे पर बैठे सूर्योदय देख रहे थे। धीरे-धीरे आकाश से अंधकार समाप्त हो रहा था और सूर्य की किरणें बिखर रही थीं। यमुना नदी के कज्जल जल पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं और जल सुनहरा दिखने लगा था। वे दोनों ध्यानमग्न होकर इस मनोहर दृश्य का आनंद ले रहे थे तभी उन्हें महल के फाटक के बाहर कुछ शोर सुनाई दिया। दोनों ने उस दिशा में देखा। कुछ चोर यात्रियों को लूट रहे थे। अकबर ने तुरंत अपने पहरेदारों को चोर को पकड़ने के लिए भेजा किन्तु पहरेदारों के पहुँचने से पहले ही चोर वहाँ से भाग खड़े हुए। अकबर आग बबूला हो उठा। बीरबल की ओर मुड़कर उसने कहा, “प्रशासन की लापरवाही से ही ऐसी घटना घटती है। एक बादशाह के लिए क्या यह शर्म की बात नहीं है कि उसकी नज़रों के सामने लोगों को लूटा जाए और वह कुछ न कर सके?” बीरबल ने अकबर को शांत करते हुए कहा, “महाराज! एक चिराग चारों ओर रोशनी बिखेरता है पर उसके नीचे अंधेरा ही रहता है।” अकबर बीरबल के सूझपूर्ण उत्तर को सुनकर संतुष्ट हो गया। उसने यात्रियों को हरजाना दिया। हरजाना पाकर यात्री अपने रास्ते चले गए।

राजगुरु के पूर्वज

राजगुरु नामक एक रईस आगरा में रहता था। उसे गरीबों से सख्त घृणा थी। वह कभी उनकी ओर देखा भी नहीं करता था। इस बात का पता चलने पर बीरबल ने उससे यह पूछा कि वह गरीबों से घृणा क्यों करता है। राजगुरु ने कहा, “गरीबों से अपशकुन होता है। यदि मैं उनकी ओर देखूँगा तो अगले जन्म में मैं गधा बनकर जन्म लूँगा। बीरबल ने राजगुरु को पाठ पढ़ाने की सोची। कुछ दिनों के बाद अपने और अकबर के साथ गाँव के मेले में चलने के लिए राजगुरु को निमंत्रित किया। शाही काफ़िला मेले के लिए जा रहा था। बीरबल ने गधे के एक झुंड को एक बड़े पेड़ के नीचे आराम करते देखा। रथ से बीरबल तुरंत उतरकर गधों के पास गया और उनका अभिवादन किया। आश्चर्यचकित अकबर ने पूछा, “बीरबल, क्या बोल रहे हो?” “महाराज! मैं राजगुरु के पूर्वजों को आदर दे रहा हूँ जिन्होंने भूलवश गरीबों को देख लिया था और गधों के रूप में दोबारा जन्म लिया है। ” राजगुरु ने यह सुना तब उसे अपनी भूल का एहसास हुआ । उसने बीरबल से वादा किया कि अब वह कभी भी गरीबों से घृणा नहीं करेगा।

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