दूसरा मेहमान कौन?
एक बार एक रईस ने बीरबल को दोपहर के भोजन पर बुलाया। वहाँ पहुँचने पर बीरबल ने कई लोगों को देखा। उसने सोचा, “ओह! मुझे नहीं पता था कि इतने सारे लोग होंगे। बीरबल चिढ़ गया, क्योंकि उसे अधिक लोग पसंद नहीं थे। मेज़बान ने बीरबल से कहा, “ये सभी मेरे अतिथि नहीं हैं। आपके अतिरिक्त बस एक और अतिथि है। शेष सभी मेरे सेवक हैं। क्या आप अतिथि को पहचान सकते हैं?” बीरबल ने कहा, “मैं उन्हें पास से देखूँगा तब तक आप उन्हें चुटकुला सुनाइए।” वह रईस चुटकुला सुनाता रहा और बीरबल उनके चेहरे ध्यान से देखता रहा । चुटकुला समाप्त होते. ही सभी हँसे, किन्तु एक व्यक्ति नहीं हँसा। बल्कि उसने एक जम्हाई ली। “यही व्यक्ति आपका अतिथि है।” बीरबल ने कहा। मेजबान ने पूछा, “आपको कैसे पता चला?” साधारण-सी बात है- कर्मचारी अपने मालिक के किसी भी चुटकुले पर हँसता है पर यह व्यक्ति साफ़ तौर पर इच्छुक नहीं था और तुम्हारे चुटकुले से ऊब रहा था। मैं तुरंत समझ गया कि यही दूसरा अतिथि है।”
नहीं का दिन
सुलतान खान नामक दरबारी बीरबल से बहुत ईर्ष्या करता था। एक दिन बीरबल को दरबार में आने में थोड़ी देर हुई तो उसने कहा, “इन दिनों प्रशासनिक कार्यों के प्रति बीरबल अत्यंत लापरवाह हो गया है।” अकबर समझ गए कि सुलतान खान उन्हें बीरबल के विरुद्ध भड़का रहा है, अत: उन्होंने कहा, “मैं कैसे उसे सजा दूँ?” सुलतान खान ने कहा, “बीरबल जो भी कहे उसका उत्तर नहीं में दीजिए।” बीरबल ने दरबार में पहुँचते ही कहा, “महाराज! मेरी पत्नी अस्वस्थ थी, इसलिए मुझे वैद्य को बुलाने जाना पड़ा।” “नहीं, मुझे तुम पर विश्वास नहीं हैं।” “यह सच है। देर से आने के लिए मुझे क्षमा कर दें।” “नहीं, मैं तुम्हें क्षमा नहीं करूँगा।” बीरबल ने सोचा, हूँऽऽ… लगता है आज नहीं का दिन है। जब बीरबल ने सुलतान खान को मुस्कराते देखा तब उसे सारी बातें समझ में आ गई। बीरबल ने कहा, “क्या मैं घर जा सकता हूँ?” “नहीं, तुम नहीं जा सकते हो।” “क्या आप सुलतान खान को मेरी जगह पर मंत्री पद देंगे?” अकबर ने कहा, “नहीं, मैं नहीं दूंगा।” इसी बीच अकबर समझ गए कि किस प्रकार बीरबल ने सुलतान को मात दे दी थी। सुलतान का ‘नहीं का दिन’ उसी के लिए बुरा रहा।
वे क्या सोच रहे हैं?
एक बार अकबर ने घोषणा की कि “जो भी व्यक्ति मेरे दरबारियों के मन में चल रहे भावों को बता देगा उसे उपहार स्वरूप पाँच हजार स्वर्ण मुद्राएं दी जाएँगी।” कई ज्योतिषियों, भविष्य वक्ताओं तथा साधारण लोगों ने प्रयत्न किया पर दरबारी सदा यही कहते कि उनके मन में कुछ और ही भाव थे। एक गरीब ब्राह्मण दिल्ली से अपना भाग्य आजमाने आया। हार जाने पर वह बीरबल से मिलने गया। उसने बीरबल को सारी बात बताई। बीरबल ने उसकी बुद्धिमता को समझकर कहा, “कल फिर प्रयत्न करना और मैं जो कहूँ वही कहना।” अगले दिन ब्राह्मण ने अकबर से एक ओर अवसर माँगा। राजा ने उसे अवसर प्रदान कर दिया। ब्राह्मण ने कहा, “मैं केवल एक दरबारी के मन की बात ही नहीं वरन् आप सभी दरबारियों के मन में क्या चल रहा है वह बताऊँगा। उन सभी की इच्छा है। कि बादशाह दीर्घायु हों तथा उनके राज्य में समृद्धि तथा यश हो।” ब्राह्मण की बात को कोई भी दरबारी काट न सका। तब अकबर ने कहा, “अच्छा बताओ, मेरे मन में ?” “आपकी इच्छा है कि आपके सभी पूर्वज स्वर्ग क्या है?” के उत्तराधिकारी हों।” अकबर प्रभावित हो गया और उसने पाँच हजार स्वर्ण मुद्राएँ ब्राह्मण को दे दीं।