117 Akbar Birbal Stories in Hindi | सम्पूर्ण अकबर-बीरबल की कहानियां

खाने के बाद लेटना

किसी समय बीरबल ने अकबर को यह कहावत सुनाई थी कि खाकर लेट जा और मारकर भाग जा – यह सयानें लोगों की पहचान है। जो लोग ऐसा करते हैं, जिन्दगी में उन्हें किसी भी प्रकार का दुख नहीं उठाना पड़ता। एक दिन अकबर को अचानक ही बीरबल की यह कहावत याद आ गई। दोपहर का समय था। उन्होंने सोचा, बीरबल अवश्य ही खाना खाने के बाद लेटता होगा। आज हम उसकी इस बात को गलत सिद्ध कर देंगे। उन्होंने एक नौकर को अपने पास बुलाकर पूरी बात समझाई और बीरबल के पास भेज दिया। नौकर ने अकबर का आदेश बीरबल को सुना दिया। बीरबल बुद्धिमान तो थे ही, उन्होंने समझ लिया कि बादशाह ने उसे क्यों तुरन्त आने के लिए कहा है। इसलिए बीरबल ने भोजन करके नौकर से कहा – “ठहरो, मैं कपड़े बदलकर तुम्हारे साथ ही चल रहा हूं।”

उस दिन बीरबल ने पहनने के लिए चुस्त पाजामा चुना। पाजामे को पहनने के लिए वह कुछ देर के लिए बिस्तर पर लेट गए। पाजामा पहनने के बहाने वे काफी देर बिस्तर पर लेटे रहे। फिर नौकर के साथ चल दिए। जब बीरबल दरबार में पहुंचे तो अकबर ने कहा –  “कहो बीरबल, खाना खाने के बाद आज भी लेटे या नहीं?” “बिल्कुल लेटा था जहांपनाह।” बीरबल की बात सुनकर अकबर ने क्रोधित स्वर में कहा – “इसका मतलब, तुमने हमारे हुक्म की अवहेलना की है। हम तुम्हें हुक्म उदूली करने की सजा देंगे। जब हमने खाना खाकर तुरन्त बुलाया था, फिर तुम लेटे क्यों?” “बादशाह सलामत! मैंने आपके हुक्म की अवहेलना कहां की है। मैं तो खाना खाने के बाद कपड़े पहनकर सीधा आपके पास ही आ रहा हूं। आप तो पैगाम ले जाने वाले से पूछ सकते हैं। अब ये अलग बात है कि ये चुस्त पाजामा पहनने के लिए ही मुझे लेटना पड़ा था।” बीरबल ने सहज भाव से उत्तर दिया। अकबर बादशाह बीरबल की चतुरता को समझ गए और मुस्करा पड़े।

टेढ़ी गरदन

एक बार अकबर किसी बात पर बीरबल की चतुराई से खुश हो गए। उन्होंने बीरबल को सौ एकड़ जमीन उपहार में देने का वचन दिया। बीरबल बहुत खुश हुए। लेकिन बहुत दिन बीत जाने पर भी उन्होंने अपना वचन पूरा नहीं किया। बीरबल कई अवसरों पर अकबर को इस बात की याद दिलाते रहे, लेकिन बादशाह हर बार उनकी बात सुनी -अनसुनी कर देते या गर्दन घुमाकर दूसरी और देखने लगते। बीरबल समझ गये कि शहंशाह अपना वादा पूरा नहीं करना चाहते। मगर वे भी हार मानने वाले नहीं थे। वे किसी अच्छे अवसर का इंतजार करने लगे। एक शाम अकबर और बीरबल घूमने निकले। सामने से एक ऊंट आ रहा था। ऊंट को देखकर अकबर ने पूछा, बीरबल, इस ऊंट की गरदन टेढ़ी क्यों है? बीरबल ने तुरंत इस अवसर को ताड़ लिया कि सौ एकड़ जमीन की बात उठाने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा। वे बोले – जहाँपनाह शायद यह ऊंट किसी को बचन देकर भूल गया है। धार्मिक पुस्तकों में लिखा है कि जो अपना वचन तोड़ता हैं उनकी गरदन टेढ़ी हो जाती है। शायद इसी कारण ऊंट की गरदन टेढ़ी हो गयी है। अकबर को भी बीरबल को दिया अपना वचन याद आ गया। तुंरत महल वापिस पहुंचकर, उन्होंने बीरबल को उसके इनाम की जमीन दे दी।

धार्मिक ग्रंथ

एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा – तुम्हारे धर्मग्रंथों में यह लिखा है कि हाथी की गुहार सुनकर श्री कृष्ण जी पैदल दौड़े थे। न तो उन्होंने किसी सेबक को ही साथ लिया न ही किसी सवारी पर ही गये। इसकी वजह समझ में नहीं आती। क्या उनके सेवक नहीं थे ?
बीरबल बोले – इसका उत्तर आपको समय आने पर ही दिया जुआ सकेगा जहाँपनाह। कुछ दिन बीतने पर एक दिन बीरबल ने एक नौकर को जो शहजादे को इधर-उधर टहलाता था, एक मोम की बनी मूर्ति दी जिसकी शक्ल बादशाह के पोते से मिलती थी। मूर्ति अच्छी तरह गहने-कपड़ों से सुसज्जित होने के कारण दूर से दिखने में बिल्कुल शहजादा मालूम होती थी। बीरबल ने नौकर को अच्छी तरह समझा दिया कि उसे क्या करना है। जिस तरह तुम रोज बादशाह के पोते को लेकर उनके सम्मुख जाते हो ठीक उसी तरह आज मूर्ति को लेकर जाना और बाग में जलाशय के पास फिसल जाने के बहाना कर गिर पड़ना। तुम सावधानी से जमीन पर गिरना लेकिन मूर्ति पानी में अवश्य गिरनी चाहिए। यदि तुम्हें इस कार्य में सफलता मिली तो तुम्हें इनाम दिया जायेगा। एक दिन बादशाह बाग में बैठे थे। वहीं एक जलाशय था। नौकर शहजादे को खिला रहा था कि अचानक उसका पाँव फिसला और उसके हाथ से शहजादा छूटकर पानी में जा गिरा।बादशाह यह देखकर बुरी तरह घबरा गये और जलाशय की तरफ लपके। कुछ देर बाद मोम की मूर्ति को लिए पानी से बाहर निकले। बीरबल भी उस वक्त वहां उपस्थित थे वे बोले – जहाँपनाह, आपके पास सेवक और कनीजों की फौज है फिर आप स्वयं और वह भी नंगे पावं अपने पोते के लिए क्यों दौड़ पड़े? आखिर सेवक-सेविकाएं किस काम आयेंगे? बादशाह बीरबल का चेहरा देखने लगे – अब भी आपकी आँखे नहीं खुलीं तो सुनिए – जैसे आपको अपना पोता प्यारा है उसी तरह श्री कृष्णजी को अपने भक्त प्यारे हैं। इसलिए उनकी पुकार पर वे दौड़े चले गये थे। यह सुनकर बादशाह को अपनी भूल का एहसास हुआ।

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