117 Akbar Birbal Stories in Hindi | सम्पूर्ण अकबर-बीरबल की कहानियां

जो मुझे प्रिय हो

एक बार अकबर और बेगम में लड़ाई हो गई। अकबर ने क्रोधित होकर कहा, ” जाओ. सदा के लिए अपने पिता के घर चली जाओ। मैं तुम्हारा चेहरा भी नहीं देखना चाहता हूँ।” परेशान बेगम ने बीरबल से सलाह की। बीरबल की सलाह पर उसने बादशाह से जाकर कहा, “जाते समय जो मुझे सबसे प्रिय हो उसे मैं साथ ले जाना चाहती हूँ।” “ठीक है, जो तुम्हें पसंद हो ले जाओ।” उस रात बीरबल ने सेवक से कहकर अकबर के भोजन में नींद की दवा मिलवा दी। अकबर के सो जाने पर बीरबल ने सेवकों की सहायता से उन्हें घोड़ा गाड़ी में सुला दिया। बेगम उन्हें साथ लेकर अपने पिता के घर चली गई। सुबह नींद खुलने पर अकबर को लगा कि वह अपने शयन कक्ष में नहीं थे। बेगम को देखकर उन्होंने पूछा, “तुम यहाँ क्यों हो?” बेगम ने कहा, “यह मेरे पिता का घर है। आपने अपनी प्रिय वस्तु मुझे साथ लाने की अनुमति दी थी, इसलिए मैं आपको अपने साथ यहाँ ले आई। आपसे अधिक प्रिय मुझे और क्या हो सकता है?” बेगम के उत्तर से बादशाह प्रसन्न हो गए और उन्हें साथ लेकर महल वापस लौट आए।

अकबर का तोता

बादशाह के पास एक पालतू तोता था। उन्होंने अपने सेवक को निर्देश दिया, “मेरे तोते का ध्यान रखो और ढंग से खाना खिलाओ। यदि तुमने कभी मुझे कहा कि उसकी मृत्यु हो गई है, तो मैं तुम्हें सजा दूंगा।” सेवक तोते का पूरा ख्याल रखता था। पर एक दिन तोता मर गया। सेवक ने भयभीत होकर सोचा, “यदि मैं बादशाह को तोते की मृत्यु की सूचना दूँगा तो बादशाह मुझे सजा देंगे।” यह विचारकर उसने बीरबल से सहायता माँगी। कुछ समय के बाद बीरबल ने अकबर से जाकर कहा, “महाराज! तोता… कृपया आप चलकर देखें…” अकबर चिंतित हो उठे और बीरबल के साथ गए। उन्होंने देखा कि तोता पिंजरे में शांत पड़ा हुआ है, हिल-डुल भी नहीं रहा है। बीरबल ने कहा, “मुझे लगता है कि तोता प्रार्थना कर रहा है। ” अकबर ने कहा, “तुम्हें पता नहीं है… तोता मर चुका है। मुझे यहाँ लेकर आने की जगह तुम यह बात मुझसे कह भी सकते थे।” इस पर बीरबल ने कहा, “महाराज! आपने कहा था कि जिसने भी उसकी मृत्यु की सूचना दी उसे सजा मिलेगी।” तब अकबर को याद आया कि उन्होंने सेवक से क्या कहा था। अकबर मुस्कराए और चले गए।

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