बीरबल का चयन
एक दिन की बात हैं. महाराज अकबर किसी गहरी सोच में थे। अचानक अपने विचारों से निकलकर उन्होंने बीरबल से पूछा, “यदि न्याय और स्वर्ण मुद्रा में से किसी एक को तुम्हें चुनना हो तो तुम किसे चुनोगे?” “श्रीमान् मैं स्वर्ण मुद्रा को चुनूँगा,” बीरबल ने तुरंत उत्तर दिया। अकबर बीरबल का उत्तर सुनकर हैरान थे। सभी दरवारियों को भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। काफी समय से वे बीरबल को नीचा दिखाने की ताक में थे और बीरबल ने स्वयं उन्हें यह सुअवसर प्रदान कर दिया था। अकबर ने कहा, “बीरबल, मेरे सेवकों में से किसी ने यह बात कही होती तो मैं मान लेता पर मुझे तुमसे ऐसी आशा बिल्कुल नहीं थी।” बीरबल ने विनम्रतापूर्वक कहा. “महाराज, जिसके पास जो नहीं होता है वह उसी की इच्छा करता है। आपके राज्य में मेरे साथ-साथ सभी के पास न्याय है। हाँ, धन की कमी अवश्य है इसलिए मैंने स्वर्ण मुद्रा का चयन किया।” अकबर ने बीरबल के उत्तर से प्रसन्न होकर उसे एक नहीं वरन् एक हज़ार स्वर्ण मुद्राओं को इनाम में दिया।
बीरबल ने अकबर को मूर्ख कहा
एक दिन अरब का एक सौदागर अकबर के दरबार में अपने घोड़े बेचने आया। उसने कहा कि उसके पास सभी जाति और सभी उम्र के घोड़े थे। अकबर उससे अत्यंत प्रभावित हुआ और उसको कई घोड़े देने के लिए कहा। सौदागर ने अरब पहुँचते ही घोड़े भेज देने का वादा किया। अकबर मान गया और दो लाख रुपए उसे घोड़े के लिए दे दिए। इधर अकबर ने बीरबल से कहा, “राज्य के दस बड़े मूर्खों की सूची मुझे दो।” कुछ दिनों के बाद बीरबल ने अकबर को मूर्खों की सूची दी। सूची देखकर अकबर आग बबूला हो उठा, “इस सूची में मेरा नाम लिखने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?” शांतिपूर्वक बीरबल ने कहा, “महाराज, आपने अरब के सौदागर को बिना किसी जमानत के ढेर सारे पैसे घोड़ों के लिए दे दिए। आपने यह भी नहीं सोचा कि वादे के अनुसार वह घोड़े लाएगा भी या नहीं। इसी कारण मैंने आपका नाम सूची में सबसे ऊपर रखा। अकबर ने कहा, “यदि वह घोड़े ले आया तो?” “तब मैं सूची में से आपका नाम हटाकर उसका नाम लिख दूँगा।” अचानक अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ। बीरबल की हाज़िरजवाबी पर अकबर हँस दिए।
कवि और धनवान आदमी
एक दिन एक कवि किसी धनी आदमी से मिलने गया और उसे कई सुंदर कविताएं इस उम्मीद के साथ सुनाईं कि शायद वह धनवान खुश होकर कुछ ईनाम जरूर देगा। लेकिन वह धनवान भी महाकंजूस था, बोला, “तुम्हारी कविताएं सुनकर दिल खुश हो गया। तुम कल फिर आना, मैं तुम्हें खुश कर दूंगा।” ‘कल शायद अच्छा ईनाम मिलेगा।’ ऐसी कल्पना करता हुआ वह कवि घर पहुंचा और सो गया। अगले दिन वह फिर उस धनवान की हवेली में जा पहुंचा। धनवान बोला, “सुनो कवि महाशय, जैसे तुमने मुझे अपनी कविताएं सुनाकर खुश किया था, उसी तरह मैं भी तुमको बुलाकर खुश हूं। तुमने मुझे कल कुछ भी नहीं दिया, इसलिए मैं भी कुछ नहीं दे रहा, हिसाब बराबर हो गया।”
कवि बेहद निराश हो गया। उसने अपनी आप बीती एक मित्र को कह सुनाई और उस मित्र ने बीरबल को बता दिया। सुनकर बीरबल बोला, “अब जैसा मैं कहता हूं, वैसा करो। तुम उस धनवान से मित्रता करके उसे खाने पर अपने घर बुलाओ। हां, अपने कवि मित्र को भी बुलाना मत भूलना। मैं तो खैर वहां मैंजूद रहूंगा ही।” कुछ दिनों बाद बीरबल की योजनानुसार कवि के मित्र के घर दोपहर को भोज का कार्यक्रम तय हो गया। नियत समय पर वह धनवान भी आ पहुंचा। उस समय बीरबल, कवि और कुछ अन्य मित्र बातचीत में मशगूल थे। समय गुजरता जा रहा था लेकिन खाने-पीने का कहीं कोई नामोनिशान न था। वे लोग पहले की तरह बातचीत में व्यस्त थे। धनवान की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, जब उससे रहा न गया तो बोल ही पड़ा, “भोजन का समय तो कब का हो चुका ? क्या हम यहां खाने पर नहीं आए हैं ?” “खाना, कैसा खाना?” बीरबल ने पूछा।
धनवान को अब गुस्सा आ गया, “क्या मतलब है तुम्हारा ? क्या तुमने मुझे यहां खाने पर नहीं बुलाया है ?” “खाने का कोई निमंत्रण नहीं था। यह तो आपको खुश करने के लिए खाने पर आने को कहा गया था।” जवाब बीरबल ने दिया। धनवान का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, क्रोधित स्वर में बोला, “यह सब क्या है? इस तरह किसी इज्जतदार आदमी को बेइज्जत करना ठीक है क्या ? तुमने मुझसे धोखा किया है।” अब बीरबल हंसता हुआ बोला, “यदि मैं कहूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं तो…। तुमने इस कवि से यही कहकर धोखा किया था ना कि कल आना, सो मैंने भी कुछ ऐसा ही किया। तुम जैसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए।” धनवान को अब अपनी गलती का आभास हुआ और उसने कवि को अच्छा ईनाम देकर वहां से विदा ली। वहां मौजूद सभी बीरबल को प्रशंसा भरी नजरों से देखने लगे।