अगर आप अटलजी के बारे में, और पॉलिटिक्स के बारे में ज़्यादा जानना चाहते हैं, तो आपको ये बुक ज़रूर पढ़नी चाहिए। अटल जी ने बहुत सुधार और डेवलपमेंट करने के लिए पोलिटिकल दुश्मनी और विचारों में अंतर को अलग रख कर एक शानदार सीख दी है. उन्होंने अपना पूरा जीवन इंडिया की ग्रोथ के लिए लगा दिया. उन्होंने अपने जीवन से दुनिया के सारे लीडर्स और पॉलिटिशंस के लिए एक अच्छा एक्जाम्पल सेट किया है.
लेखक –
किंग्सुक नाग एक अवार्ड विनिंग जर्नलिस्ट और ऑथर हैं.
एक आदमी जो कंट्री को इकोनोमिक ग्रोथ और लिबरलाइजेशन की तरफ लेकर गया. और वो इंसान थे अटल बिहारी बाजपाई. इस बुक में आप पढेंगे कि कैसे अटल बिहारी बाजपेई ने पांच दशको तक देश के सेवा में अपना कंट्रीब्यूशन दिया.
इस बुक में आपको उनके केरेक्टर के बारे में तो जानने को मिलेगा ही साथ ही ये पता चलेगा कि कैसे इतने सालो तक वो अपनी एक अच्छी रेपूटेशन मेंटेन कर पाए. अटल बिहारी बाजपेई टू सेंस में एक इंस्पीरेशंन है उन लाखो लोगो के लिए जो उन्हें आईडियाज फोलो करते है. उन्होंने ना सिर्फ इंडियंस के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लोगो के सामने एक्जाम्पल्स सेट किये है.
अटल बिहारी बाजपाई 1924 में क्रिसमस के दिन प्रिंसली स्टेट ऑफ़ ग्वालियर में एक ब्राह्मिन फेमिली पैदा हुए थे. यही उनका बचपन गुज़रा और अर्ली एजुकेशन मिली. तब ये स्टेट ब्रिटिश इण्डिया के अंदर आता था. उनके फादर कृष्णा बिहारी पहले एक स्कूल टीचर थे जो बाद में हेडमास्टर प्रोमोट किये गए और उसके बाद स्कूल इंस्पेक्टर बनकर रहे.
अपने फादर कृष्णा बिहारी के इन्फ्लुएंश से अटल को बचपना से ही पढने लिखने का शौक था. 1942 में जब क्विट इंडिया मूवमेंट पूरे इण्डिया में फैला तो ग्वालियर में भी प्रोटेस्ट और डेमोंस्ट्रेशन चल रहा था, कृष्णा बिहारी ने देखा कि उनके बेटे अटल और प्रेम भी रेवोल्यूशंन में इंटरेस्ट दिखा रहे है. और इसलिए उन्होंने दोनों को बटेश्वर भेजने का फैसला लिया.
लेकिन जल्दी ही बटेश्वर भी फीडम स्ट्रगल में इन्वोल्व हो गया. एक दिन गाँव की मार्किट में डेमोंस्ट्रेशन चल रहा था, अटल और प्रेम भी वहां पर थे. भीड़ के लीडर लीलाधर बाजपेई ने बड़ी पॉवरफुल स्पीच दी, वो लोगो को एंकरेज कर रहे थे कि गवर्नमेंट ऑफिसेस को डेमोलिश करके वहां इंडियन फ्लैग खड़ा कर दो.
लीलाधर बड़े अच्छे स्पीकर थे. उनकी आवाज़ का जादू लोगो के सर चढकर बोलता था. दोनों भाई अटल और प्रेम भी भीड़ के साथ चले गए लेकिन उन्होंने डेमोलिशन में पार्ट नहीं लिया. जब लीलाधर और बाकि लोग “क्विट इंडिया” के नारे लगाते हुए बिल्डिंग्स जला रहे थे तो दोनों भाई उसमे शामिल नहीं हुए.
थोड़ी देर के बाद ही ऑथोरिटीज वहां पहुंच गयी. पोलिस ने कई सारे लोग अरेस्ट किये जिसमे लीलाधर, अटल और प्रेम भी थे. दोनों भाइयों को 23 दिन जेल में काटने पड़े. कृष्णा बिहारी को जब ये सब पता चला तो बड़े परेशान हुए.
अपने बेटो को छुड़ाने के लिए जो उनसे बन पड़ा उन्होंने किया. इसी बीच पोलिस ने अटल और प्रेम को अलग-अलग इंट्रानेट किया. लेकिन दोनों ने सेम स्टेटमेंट दिया. उन्होंने कहा हां, वो लोग भीड़ के साथ थे लेकिन उन्होंने कोई तोड़-फोड़ नहीं की.
क्राउड के लीडर लीलाधर को गिल्टी मानकर कोर्ट ने 3 साल के लिए जेल भेज दिया. दोनों भाई अटल और प्रेम को छोड़ दिया गया. ये इंसिडेंट इस फ्यूचर प्राइम मिनिस्टर के लिए किसी आई ओपनर से कम नहीं था. अरेस्ट के टाइम अटल ग्वालियर में विक्टोरिया कॉलेज में पढ़ते थे जहाँ वो इंग्लिश, हिंदी और संस्कृत सीख रहे थे और बैचलर ऑफ़ आर्ट्स के स्टूडेंट थे.
उसके बाद उन्हें पोलिटिकल साइंस में मास्टर्स करने के लिए गवर्नमेंट स्कोलरशिप मिल गयी थी इसलिए आगे की पढ़ाई उन्होंने कानपुर से की. उन्होंने ऑनर्स से ग्रेजुएशन पूरी की. पढ़ाई के दौरान वो राष्ट्रीय स्वयंम सेवक संघ यानी आरएसएस के कांटेक्ट में आये. यहाँ उन्हें जो एक्सपीएंश मिला उसने उनके पोलिटिकल लीडरशिप की नींव रखी.
अटल बिहारी के अपने शुरुवाती पोलिटिकल करियर में दीन दयाल उपाध्याय से बड़े इन्फ्लुएंशड रहे. दोनों ही नार्थ इंडियन ब्राह्मण थे और दोनों आरएसएस के मेम्बर भी थे. आरएसएस न्यूज़पेपर के एडिटर के तौर पर अटल के काम से दीन दयाल बड़े इम्प्रेस्ड थे. अटल की लाइफ को श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी बड़ा इन्फ्लुएंश किया था जोकि जन संघ के फाउन्डर थे. आरएसएस नयी पोलिटिकल पार्टी का मेजर सपोर्टर बन गया था.
और इसलिए दीन दयाल ने अटल को श्यामा प्रसाद से मिलवाया. दीनदयाल को अटल एक ऐसे स्मार्ट एनेर्जेटिक यंगमेन लगते थे जो जन संघ के बड़े काम आ सकते थे. अटल श्यामा प्रसाद के असिस्टेंस बन गए. श्याम प्रसाद जब कश्मीर के कंट्रोवर्शियल इश्यू पर काम कर रहे थे तो अटल उन्हें साथ ही थे. तब तक अटल एक यंग आइडियल पोलिटिकल एक्टिविस्ट के रूप में इमेज बन चुकी थी.
श्याम प्रसाद को कश्मीर जाने की परमिशन नहीं मिली लेकिन फिर भी वो जाना चाहते थे. अटल और उनके स्टाफ के तीन और लोग उनके साथ पठानकोट तक गए. श्यामा प्रसाद को लगा कि शायद पंजाब गवर्नमेंट उन्हें रोक लेगी और अरेस्ट कर लेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
लेकिन अपने खिलाफ हो रही कोंसपाइरेसी (conspiracy) का उन्हें पता नहीं था. उन्हें कश्मीर में एंटर तो करने दिया गया लेकिन उन्हें कश्मीर से वापस नहीं जाने दिया गया. और कश्मीर में ही नज़रबंद रहते हुए उनकी डेथ हो गयी. जन संघ पर पहाड़ टूट पड़ा, ये एक बड़ी ट्रेजेडी थी जिसने अपोजीशन पार्टी को बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था. जन संघ के लोकसभा में एक पोजीशन की वेकेंसी निकली.
दीन दयाल ने अटल का नाम सजेस्ट किया हालाँकि तब अटल सिर्फ 28 के ही थे. लेकिन दीन दयाल को पूरा यकीन था कि अटल ने श्याम प्रसाद से काफी कुछ लर्न किया है. और उन्हें अटल के पब्लिक स्पीकिंग टेलेंट पर भी पूरा भरोसा था. और इस तरह अटल इलेक्शन में खड़े हुए. तब जन संघ उतनी पोपुलर पार्टी नहीं थी.
अटल ने बहुत हार्ड वर्क किया तब जाकर 1957 में जनसंघ 4 सीटे जीतकर पार्लियामेंट में पहुंची. और उनके से एक सीट पर अटल खुद थे. उन्हें पार्लियामेंट के सेशन में सिर्फ 5 मिनट दिए गए बोलने के लिए. और शायद यही वजह थी कि आगे चलकर अटल की पब्लिक स्पीकिंग स्किल्स काफी इम्प्रूव हुई.
उनकी एबिलिटी थी कि वो अपना मैसेज एक बड़े क्लियर ओर्गेनाइज़ तरीके से कम्यूनिकेट करते थे. यहाँ तक कि जवाहर लाल नेहरु भी उन्हें बहुत मानते थे. एक मौके पर नेहरु अटल को ब्रिटिश प्राइम मिनिस्टर से मिलाने ले गए. पंडित नेहरु बोले” ये यंगमेन अपोजिशन पार्टी के लीडर है, वैसे ये हमेशा मुझे क्रिटिसाइज़ करते है, लेकिन मुझे इनका फ्यूचर काफी ग्रेट लगता है”
जन संघ में एक और ट्रेजेडी हो गयी थी. 1967 में दीन दयाल जन संघ के प्रेजिडेंट चुने गए लेकिन वो सिर्फ 40 दिन से ज्यादा पोजीशन में नहीं रह पाए क्योंकि अचानक उनकी मौत हो गयी और वो भी बड़े मिस्टीरियस तरीके से.
वो एक चलती हुई ट्रेन में चढने की कोशिश कर रहे थे कि किसी ने उन्हें पीछे से धक्का दे दिया. उनकी मौत के बाद आरएसएस के लीडर एम्. एस. गोलवालकर जन संघ के नए प्रेजिडेंट बने. पुराने प्रेजिडेंट बलराज मधोक पोजीशन के लिए काफी लोबीइंग (lobbying) कर रहे थे लेकिन गोलवालकर को अटल एक बैटर कंडीडेट लग रहे थे.
अटल को जब पता चला कि उनका नोमिनेशन जन संघ के प्रेजिडेंट के लिए हो रहा है तो वो बड़े शॉक्ड हुए. “मै दींन दयाल की जगह कैसे ले सकता हूँ?” ये ख्याल उनके मन में आ रहा था.खैर, अटल ने अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई. एक अच्छे लीडर के तौर पर उनकी एक स्ट्रोंग इमेज उभर कर आई.
अटल ने एक मज़बूत टीम बनाई जो उनके साथ मिलकर काम कर सके. हालाँकि अपोइन्टमेंट हो चुकी थी, मधोक के दिल में अभी भी अटल के लिए रिवेंज की फीलिंग थी. वो हर मौके पर अटल की बात का प्रोटेस्ट करते थे.
लेकिन मधोक अटल को कमज़ोर नहीं कर पाए. अटल को देखकर वो हमेशा गुस्से में आ जाते थे जबकि अटल कूल कैट बने रहते. मधोक अपने व्यूज़ में एक्सट्रीम थे जबकि अटल हर बात को केयरफूली जज करते थे. अटल मिडल ग्राउंड में रहकर हर साइड के गुड पॉइंट्स देखना पसंद करते थे. जैसे एक्जाम्पल के लिए, मधोक मुस्लिम इश्यूज को लेकर एक्सट्रीम ओपिनियन देते थे लेकिन अटल ने ऐसा कभी नहीं किया.
अटल हमेशा टैक्टिकल एलियांस (tactical alliances) के फेवर में रहे. कई मौको पर उन्होंने सेम गोल अचीव करने के लिए अपोजिशन पार्टी का साथ भी दिया. अटल ने एक बार कहा था कि पोलिटिकल अनस्टेबिलिटी अवॉयड नहीं की जा सकती. इसकी एक ही रेमेडी है कि पार्टीज़ को कोएलिशंन पोलिटिक्स (coalition politics.) रखनी चाहिए.
इसी बीच अटल को कई बार इंदिरा गांधी से भी डील करनी पड़ी जैसे कि एक बार दोनों फेमस पोलिटिशियन दिल्ली के जूनियर डॉक्टर्स के इश्यू पर डिसएग्री हो गए थे. ये जूनियर डॉक्टर्स सेलरी बढाने की डिमांड कर रहे थे और साथ ही अपने लिए एक सेपरेट नॉन प्रेक्तिसिंग अलाउंस भी मांग रहे थे.
इस पर इंदिरा और अटल के बीच पार्लियामेंट में जमकर डिबेट हुआ. इंदिरा गाँधी ने कहा” गरीब लोग तो कोई कंप्लेंट नहीं कर रहे? ना तो ये लोग हंगर स्ट्राइक पर बैठे और ना हो नॉन कॉपरेटिव बिहेव कर रहे है? तो ये लोग क्यों कंप्लेंट कर रहे है जो अच्छे-खासे पढ़े लिखे है. मै हैरान हूँ, मुझे ये बात समझ नहीं आती”.
इस पर अटल ने जवाब दिया था” क्या ये बात समझने के लिए कोई स्पेशल एफर्ट लगाना पड़ेगा ? गरीब लोग कभी आवाज़ नहीं उठाते, उन्हें हमेशा ही दबाया जाता है और उनमे यूनिटी भी नहीं होती. जबकि ये लोग पढ़े लिखे है इसलिए इन्हें अपने राइट्स पता है”
इसी तरह कई और इश्यूज थे जिनपर इंदिरा और अटल के बीच डिसएग्रीमेंट था. 1970 में इंदिरा ने जन संघ पर एंटी-मुस्लिम होने का आरोप लगाया और ये भी कहा कि ये इंडियनाइजेशन प्रोग्राम के अंडर देश चलाना चाहता है. इंदिरा ने ये भी डिक्लयेर कर दिया कि वो जन संघ ग्रुप से सिर्फ पांच मिनट में निपट सकती है.
अटल को ये बात बड़ी बेतुकी लगी, उन्होंने इसका जवाब दिया” प्राइम मिनिस्टर इंदिरा कह रही है कि वो हमसे सिर्फ पांच मिनट में निपट सकती है, लेकिन पांच मिनट में जब वो अपने बाल नहीं ठीक कर सकती है तो हमें क्या ठीक करेंगी?’ जब नेहरु जी हमसे नाराज़ होते थे तो एट लीस्ट अच्छी स्पीच तो देते थे, और फिर जन संघ उन्हें चिढाती थी. लेकिन इंदिरा के साथ ये बात नहीं है, वो खुद ही नाराज़ रहती है”.
अटल ने आगे ये भी कहा कि उन्हें नहीं पता कि इंडियनाइजेशन क्या है. जन संघ का प्रोग्राम तो सेक्यूलरिज्म है जिसमे सिर्फ हिन्दू या मुस्लिम नहीं बल्कि सारी इंडियन पोपुलेशन इन्वोल्व है. अटल ने कहा था “इंडियनाइजेशन इज अ मंत्रा ऑफ़ नेशनल अवेकनिंग”.
अटल बिहारी बाजपेई ने कभी शादी नहीं की. लेकिन उनकी पर्सनल लाइफ को लेकर एक कंट्रोवर्सी हमेशा रही. राजकुमारी कौल नाम की एक लेडी थी जो हमेशा अटल के घर का टेलीफोन पिक करती थी. एक जर्नलिस्ट ने इस बारे में अपना एक्सपीरियंस बताया. गिरीश निकम याद करते है कि जब भी वो अटल के घर फोन करते थे, हमेशा मिसेज कौल ही फोन उठाती थी.
मिसेज कौल ने ही उन्हें बड़े जेंटली एक्स्पेलन किया कि वो, उनके हजबैंड और बाजपेई जी 40 सालो से अच्छे फ्रेंड्स है. इसलिए तीनो सेम रेजिडेंस शेयर करते है. एक विमेंस मैगजीन को दिए गए इंटरव्यू में मिसेज कौल ने कहा कि मेरा मिस्टर कौल के साथ काफी स्ट्रोंग रिलेशनशिप है इसलिए मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग अटल और मेरे बारे में क्या सोचते है. लेकिन इसके पीछे एक खूबसूरत सी कहानी है जो विक्टोरिया कॉलेज में शुरू हुई थी.
मिसेज कौल और बाजपेईजी एक्चुअल में क्लासमेट और बेस्ट फ्रेंड्स थे. ये 1940 की बात है. उन दिनों लड़के और लड़की के बीच फ्रेंडशिप बुरी बात मानी जाती थी. इसलिए अक्सर दिल की बात दिल में ही रह जाती थी.
एक दिन राजकुमारी कौल ने अपनी एक फ्रेंड को बताया कि अटल ने मेरे लिए स्कूल लाइब्रेरी में एक बुक के अंदर लैटर रखा है. राजकुमारी ने लैटर पढ़ा और रीप्लाई भी लिखा लेकिन वो लैटर अटल पढ़ नहीं पाए. फिर कई साल बाद गुज़र गए और राजकुमारी की शादी ब्रिजनारायण कौल नाम के एक यंग टीचर से हो गयी. एक्चुअल में राजकुमारी अटल से शादी करना चाहती थी लेकिन उनके फादर नहीं माने.
कौल फेमिली वैसे तो ब्राह्मण थी लेकिन वे लोग खुद को हायर कास्ट समझते थे. अटल अपनी लाइफ में मूव हो गए और एक रिस्पेक्टेड पोलिटिशियन बने. जब मिस्टर एंड मिसेज कौल दिल्ली मूव हुए तो एक बार फिर तीनो की मुलाकात हुई. उनके बीच इतनी गहरी फ्रेंडशिप थी कि ये रिश्ता लाइफ टाइम तक चला.
अटल के गुड केरेक्टर की कई लोग मिसाल देते है. इनमे से एक है उनके फॉर्मर ऐड (former aide.) वो बताते है कि अटल पार्लियामेंट के लिए बड़े डेडीकेट थे. जब वो प्राइम मिनिस्टर थे उन दिनों भी अक्सर राज्य सभा और लोक सभा के सेशंस अटेंड करने आते थे.
स्पेशली जब क्योरम बेल (quorum bell) बजती थी, जो सिग्नल देती है कि सेशन में कई लोग एब्सेंट है, तो अटल पर्सनली एम् पीज को फ़ोन करके पूछते थे. उनके फॉर्मर ऐड (former aide) याद करते है कि अटल एक लॉ मेकर की रीस्पोंसेबिलिटी को बड़ा सीरियसली लेते थे.
हर स्पीच से पहले वो खूब रीसर्च करते थे, वो अपने सारे आईडियाज और आग्ग्यमेंट्स लिखकर रखते थे. अपने हार्ड वर्क और पैशन की वजह से ही 1984 में उन्हें आउटस्टेंडिंग पार्लियामेंटेरियन का अवार्ड दिया गया.
अभी तक बहुत कम लोगो को ये ऑनर मिला है जिनमे इन्द्रजीत गुप्ता और जयपाल रेड्डी भी शामिल है. अटल का फर्स्ट लव ही पार्लियामेंट था. उनके फॉर्मर ऐड ये भी शेयर करते है कि अटल कभी भी ऊँची आवाज़ में बात नहीं करते थे. वो बोलने से पहले हमेशा सोचते थे और अपने इमोशंस पर उनका कण्ट्रोल था.
अगर उन्हें गुस्सा भी आ रहा हो तो भी वो शुद्ध हिंदी में बोलते थे. अटल बाजपेई भले ही पब्लिक फिगर थे लेकिन उनकी एक बेहद प्राइवेट पर्सनल लाइफ भी थी. उन्हें अपनी फेमिली और फ्रेंड्स के साथ टाइम स्पेंड करना पसंद था.
वो नेचर बड़ा वार्म और फ्रेंडली था. उनके फ्रेंड्स हमेशा उनसे मिलने पहुँच जाते थे. हर तरह के लोगो से उनकी फ्रेंडशिप थी. जो उनसे मिलने आते थे अटल अपने बिजी शेड्यूल के बाद भी उनसे ज़रूर मिलते. कोई अगर अपोइन्टमेंट के बिना ही चला आता तो उसे भी डिसअपोइन्ट नहीं करते थे.
अटल कहते थे “अब मै क्या करू?’ मेरे फ्रेंड्स मुझे मिलने आये है तो मुझे भी तो उनको टाइम देना पड़ेगा”. पोएट सुरेन्द्र शर्मा अपना एक्स्पिरियेंश शेयर करते है. एक बार वो बिना अपोइन्टमेंट लिए अटल के ऑफिस पहुँच गए. उस टाइम अटल मिनिस्टर राजनाथ सिंह से बात कर रहे थे. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने सुरेन्द्र का वेलकम किया और तीनो बड़ी देर तक बाते करते रहे.
जब पीएम मोरारजी देसाई जनता गवर्नमेंट के साथ पॉवर में आये, अटल बाजपेई फॉरेन अफेयर्स मिनिस्टर बने. इण्डिया के बाकि कंट्रीज के साथ रिलेशनशिप को लेकर अटल इंटरेस्टेड थे. ये उनके करियर की अभी शुरुवात ही थी. अटल की हमेशा यही कोशिश रही कि इंडिया की ज्यादा से ज्यादा कंट्रीज के साथ अच्छे रिलेशन बने.
इस मामले में वो जवाहर लाल नेहरु से इंस्पायर्ड थे जो खुद फॉरेन अफेयर्स मिनिस्टर रहे थे. अटल ने अपने टर्म में कोई रेडिकल चेंजेस नहीं किये. उन्होंने इण्डिया की ये इमेज रखी कि वो सभी देशो के साथ फ्रेंड्शिप चाहता है. उन्होंने ये भी श्योर किया कि हमारी फॉरेन पोलिसी किसी भी तरह के रेसिज्म और कोलोनाएलिज्म (colonialism ) से दूर रहे.
अटल कल्चर और रिलीजियस टोलरेंस के प्रोमोटर माने जा सकते है. अ कंट्री ऑफ़ डाइवर्सिटी होने की वजह से हमें सब लोगो के साथ एक गुड रिलेशनशिप मेंटेन करना है. और यही प्रिंसिपल अटल ने अपनी फॉरेन पोलिसी में भी अप्लाई किया. इण्डिया का रशिया में साथ स्पेशल रिलेशनशिप रहा है.
व्लादिमिर पुतिन इंडिया को मिलिट्री इक्विपमेंट सप्लाई करते रहे है. रशिया ने इण्डिया के इण्डस्ट्रियल और इकोनोमिक ग्रोथ में भी कंट्रीब्यूट किया है. तो अटल ने रशिया में साथ अपने गुड रिलेशनशिप को मेंटेन करने की कोशिश की और साथ ही दुसरी कंट्रीज के साथ भी स्पेशल रिलेशन बनाने पर जोर दिया. और इस तरह अटल ने यूनाइटेड स्टेट्स,पाकिस्तान,ईरान, अफगानिस्तान, रोमानिया और दुसरे देशो के साथ फ्रेंडशिप सिक्योर की.
अटल ने इंडिया और चाइना की दोस्ती भी मज़बूत करने की कोशिश की. क्योंकि पकिस्तान की तरह चाइना भी हमारा पडोसी देश है जिसके साथ इंडिया की पहले वॉर भी हो चुकी है. और इसीलिए अटल 1979 में चाइना गए. हालाँकि उन्हें इंसल्ट फील करनी पड़ी क्योंकि जब अटल चाइना के ऑफिशियल विजिट पर थे तो उस टाइम डेंग शाओ पिंग (Deng Xiao Ping) ने वियतनाम को इन्वेड करने का आर्डर दिया था.
अटल को जब क्रिटीसाइज किया गया कि वो हमेशा कंट्री से बाहर ही रहते है तो उन्होंने कहा “मै मना नहीं कर रहा कि मै ज्यादातर कंट्री से बाहर होता हूँ लेकिन प्लीज़ मुझे दूसरा मौका दीजिए” अटल ने इजराईल के साथ भी कंट्री के रिलेशन इम्प्रूव किये. वो भी तब जब पीएम देसाई ने बोला कि इण्डिया इजराईल के साथ तब तक कोई रिश्ता नहीं रखेगा जब तक कि इजराईल अरब नेशंस पर अपना कण्ट्रोल नहीं छोड़ देता. अटल ने अपनी मिडल ग्राउंड वाली पोजीशन रीस्टेट की.
हालाँकि वो इजराईल के साथ गुड रिलेशन बनाना चाहते थे, लेकिन अटल ने क्लियर कर दिया था कि इंडिया अपनी बात से पीछे नहीं हटेगा कि इजराईल अरब नेशंस से दूर हट जाए और साथ ही पेलेस्टीन के लोगो को उनकी जगह वापस दे बीच कंट्री के अंदर अटल की जनता पार्टी आपसी कंफ्लिक्ट में उलझी हुई थी. इंदिरा गांधी की राइट विंग हिन्दू आईडीयोलोजी, पीएम मोरारजी देसाई और एम्पी चरण सिंह जनता पार्टी को बाँटने में लगे हुए थे. अटल और उनके कलीग्स राइट विंग हिन्दू आईडीयोलोजी को हटाना चाहते थे.
वो एक ऐसी लिबरल पार्टी चाहते थे जिसमे हर कल्चर और रिलिजन के लिए जगह हो और जो महात्मा गाँधी के सोशलिज्म से इंस्पायर्ड हो जहाँ गरीबो और लोअर कास्ट के लोगो को इक्वल राइट्स और अपोच्च्यूनिटी मिल सके. अटल और उनके लॉन्ग टाइम फ्रेंड एल के. आडवाणी और कुछ बाकियों ने मिलकर 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनाई. इसका नाम बेशक जनता संघ से लिया गया था लेकिन इसकी इमेज एकदम डिफरेंट थी.
अटल बाजपेई बीजेपी के पहले लीडर थे. उन्होंने मुस्लिम मिनिस्टर सिकंदर बख्त और फॉर्मर सुप्रीम कोर्ट जज जस्टिस के. एस. हेगड़े जैसे लोगो को इसमें शामिल किया. बीजेपी का एंजेंडा एक नई तरह की पोलिटिक्स करना था जो सिर्फ पार्लियामेंट सीट्स और क्न्फ्रेंटेशंन तक लिमिट ना रहे.
बीजेपी ना तो कम्यूनिज्म को सपोर्ट करती है और ना ही कैपिटलिज्म को. अटल की इस न्यू पार्टी का मकसद पोजिटिव सेक्यूलरिज्म को प्रोमोट करना था जिसका सीधा मतलब है कि बीजेपी रिलिजन पर नहीं बल्कि मोरेलिटी पर फोकस करती है.
एल के. अडवाणी की लीडरशिप में बीजेपी ने अयोध्या डिस्प्यूट का मामला उठाया था. हिन्दू मानते है कि अयोध्या में जहाँ आज मस्ज़िद है, उस जगह पर भगवान् राम का जन्म हुआ था. किसी ज़माने में वहां पर भगवान् राम मंदिर हुआ करता था.
लेकिन 1528 में बिलकुल उसी जगह पर बाबरी मस्जिद बना दी गयी थी. ऐसा लग रहा था कि बीजेपी ने हिन्दुओ के वोट हासिल करने के लिए ये इश्यू उठाया है. उस टाइम पर अटल बाजपेई पार्लियामेंट के मामलो में बीजी थे. अयोध्या काण्ड के वक्त वो दिल्ली में थे.
दिसम्बर 6,1992 के दंगो में बहुत से मुस्लिम्स मारे गए. बाबरी मस्जिद को तोडा गया. उस दिन सुबह एल के. आडवाणी के साथ कुछ और बीजेपी मेंबर्स अयोध्या में मौजूद थे. लेकिन जब टेंशन बढ़ने लगी तो उन लोगो को वहां से निकलना पड़ा. जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ था, अटल ने इस घटना पर बड़ा दुख जताया. उनका मानना था कि ये डिस्प्यूट लोकल लेवल पर ही सोल्व कर सकते थे. वो इस तरह के तोड़-फोड़ और दंगे के खिलाफ थे.
अयोध्या मामला उसी तरह सोल्व होना चाहिए था जिस तरह से सोमनाथ टेम्पल का हुआ था. अगर अयोध्या में राम मंदिर डिस्प्यूट के बीच रीबिल्ट किया जाता तो शायद ये ट्रेजेडी भी नहीं होती और तब ना तो दंगे-फसाद में इतने लोगो को जान जाती और बाबरी मस्जिद को भी डेमोलिश नहीं किया जाता.
बाबरी मस्जिज़ डेमोलिशन ने मुंबई, भोपाल, सूरत और बाकि जगहों पर दंगे भड़का दिए थे. इन दंगो में हज़ारो लोग मारे गए. बीजेपी और एल के. अडवानी के लिए अयोध्या ट्रेजेडी बहुत बड़ा झटका थी. लोगो में बीजेपी और अडवानी बदनाम हो गए थे.
और सारा फेवर अटल को मिला जो अडवानी से ज्यादा मोडेरेट और एग्रीएबल थे. अयोध्या ट्रेजेडी अटल बिहारी बाजपेई के पोलिटिकल करियर का एक टर्निंग पॉइंट प्रूव हुई. और अडवाणी को जो स्कैंडल फेस करने पड़े उससे अटल की पोजीशन और भी स्ट्रोंग हो गयी थी. ये पोपुलर इश्यू था जैन डायरीज का. ऐसा माना जाता है कि 1987 से 1997 के बीच कई टॉप पोलिटिशियंस ने कुछ बिजनेसमेंस से ब्राइब ली थी.
एसके जैन नाम के एक बिजनेसमेन ने सारी लेन-दें एक डायरी में रिकोर्ड करके रखी थी और ब्राइब लेने वालो में अडवानी का भी नाम शामिल था. सेन्ट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन और सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को हैंडल किया था. वर्डिक्ट से पहले ही अडवाणी ने लीडरशिप अटल को पास कर दी थी. 1995 में बीजेपी की एनुअल मीटिंग में अडवानी खड़े हुए और एनाउंस किया कि अटल बिहारी बाजपेई बीजेपी के प्राइम मिनिस्टर कैंडीडेट होंगे.
इसके बाद कुछ देर तक को सन्नाटा रहा फिर लोग शाउट करने लगे” अगली बारी अटल बिहारी!” अटल के जेंटल नेचर की वजह से बहुत से लोग उन्हें पसंद करते थे. वो बड़े सोच समझ कर अपने वर्ड्स बोलते थे ताकि किसी को बुरा ना लगे. अपनी ओपिनियन देते वक्त भी वो मोडरेट रहते थे.
वो हमेशा एक्सट्रीम पोजीशन में आने से बचते रहे. अपने पूरे पोलिटिकल करियर में उन्होंने एक पोजिटिव इमेज बनाये रखी. इस न्यू लीडरशिप ने बीजेपी को नयी होप दी. दूसरी पार्टीज़ के पोलिटिशियंस और जर्नल पब्लिक भी अटल को लेकर ऑप्टी मिस्टिक थी.
1996 में प्राइम मिनिस्टर अटल बिहारी बाजपेई इलेक्शन जीत तो गए लेकिन पोजीशन में सिर्फ 13 दिन रह पाए. वो बीजेपी पार्टी से जीतने वाले पहले प्राइम मिनिस्टर बने. अटल को तुरंत ही स्ट्रोंग अपोजिशन का पता चल चूका था. इंडियन नेशनल कांग्रेस और लेफ्ट विंग मिलकर बीजेपी को पॉवर से हटाने की पूरी कोशिश कर रही थी.
इस बारे में अटल ने अपनी स्पीच में कहा “ये हेल्दी पोलिटिक्स नहीं है” 1998 में उन्हें एक और फेल टर्म फेस करना पड़ा. फिर 1999 में जाकर ही प्राइम मिनिस्टर बाजपेई अपनी पोजीशन स्ट्रोंग कर पाए. 1999 से 2004 तक उन्होंने नेशल को सर्व किया. वो पहले ऐसे पीएम थे जो इन्डियन नेशनल कांग्रेस से नहीं थे लेकिन बावजूद इसके उन्होंने 5 इयर्स टर्म पूरा किया था.
एक प्राइम मिनिस्टर के तौर पर अटल बिहारी बाजपेई की एक बड़ी अचीवमेंट न्यूक्लियर टेस्ट है जो इंडिया ने किया. इंडियंस इस टेस्ट का इंतज़ार पिछली दो गवर्नमेंट के टाइम से कर रहे थे. लेकिन पीएम अटल ही थे जो ये कर पाए.
उन्होंने इस टेस्ट के बारे में कहा था” राइज़ ऑफ़ अ स्ट्रोंग सेल्फ-कॉफिडेंट इंडिया” ये टेस्ट पोखरन के एक छोटे से डेजर्ट टाउन में हुआ था. पीएम अटल, साइंटिस्ट की टीम और मिलिट्री के देख-रेख में ये टेस्ट अमेरिकन सेटेलाइट्स से छुपकर किया गया था.
कुल मिलाकर मई 11-13, 1998 को सक्सेसफुल न्यूक्लियर टेस्ट किये गए थे, और उसके बाद पीएम अटल ने खुद इसकी इन्फोर्मेशन प्रेस कांफ्रेंस के श्रू पूरे देश को दी थी. इस न्यूक्लियर टेस्ट का इंडियंस ने खुलकर वेलकम किया. यहाँ तक कि स्टॉक मार्किट के प्राइस में भी उछाल आ गया था. लेकिन यूनाईटेड स्टेट्स बिलकुल भी खुश नहीं था. अमेरिकंस ने अपनी मिलिट्री हेल्प कट ऑफ़ कर दी थी.
फ्रांस और रशिया न्यूट्रल थे जबकि चाइना भड़क गया था. चाईनीज गवर्नमेंट ने डिमांड रखी कि इंडिया तुरंत न्यूक्लियर वीपन्स बनाना बंद कर दे. उसके कुछ ही टाइम बाद पाकिस्तान ने भी चगताई हिल्स में न्यूक्लियर टेस्ट किया.
जिस पर यू.एस. प्रेजिडेंट क्लिंटन ने कुछ यूं रिएक्ट किया “टू रोंग्स डोंट मेक अ राईट”. दीन दयाल उपाध्याय , जो जन संध के फॉर्मर लीडर और अटल के मेंटोर थे, उन्होंने पाकिस्तान और इंडिया के बीच कॉन्फ़ेडरेशन सजेस्ट किया.
और एक्सट्रीम राईट विंग हिन्दू ग्रुप्स ने इस बात का भरपूर विरोध किया. लेकिन दीन दयाल को इस बिलाटेरल रिलेशंस (bilateral relations) की काफी एडवांटेज नजर आ रही थी. साउथ एशियन कंट्री के कई सारे इश्यूज पर इंडिया और पाकिस्तान एक दुसरे को सपोर्ट कर सकते थे.
अटल ने सोचा कि जब इंडिया और पाकिस्तान दोनों ही न्यूक्लियर टेस्ट कर चुके है तो अब टाइम आ गया है कि दोनों आपस में अच्छे पडोसी बनके रहे. उस टाइम के पाकिस्तानी प्राइम मिनिस्टर नवाज़ शरीफ भी यही सोचते थे. उन्होंने पीएम् अटल को ऑफिशियली पाकिस्तान आने के लिए इनवाईट किया. फरवरी 19, 1999, के दिन अटल ने हिस्टोरिकल क्रोसओवर किया. वो पंजाब बॉर्डर के थ्रू बस से पाकिस्तान पहुंचे.
अटल के साथ 22 लोग और थे जो अपने- अपने फील्ड के जानेमाने लोग थे. उनके साथ उनके कलीग्स थे, कुछ जर्नलिस्ट थे और देव आनंद, जावेद अख्तर और मल्लिका साराभाई जैसे सेलेब्रिटीज भी थे. जिस बस से इन्होने ट्रेवल किया वो भी एक लोकल सेलिब्रिटी बन गयी.
इस बस सर्विस के थ्रू बॉर्डर के दोनों तरफ की फेमिलीज एक दुसरे से मिल पाती है. जैसे ही अटल बिहारी बाजपेई पाकिस्तान पहुंचे, नवाज़ शरीफ खुद उन्हें वेलकम करने आए. हज़ारो लोगो ने ये हिस्टोरिकल क्रोस ओवर देखा, जैसा कि अटलजी ने कहा “ये साउथ एशिया की हिस्ट्री में एक यादगार मोमेंट रहेगा हम सब यहाँ चेलेंजेस से ऊपर उठने के लिए साथ में खड़े है”.
उनके और शरीफ के बीच लाहौर समझौता हुआ था जिसमे ये एग्रीमेंट हुआ कि इंडिया और पाकिस्तान कश्मीर जैसे डिस्प्यूट्स का पीसफुल तरीके से सोल्यूशन निकालेंगे.
दोनों कंट्रीज के बीच एक फ्रेंडली कल्चरल, कमर्शियल और मिलिट्री रिलेशनशिप मेंटेन रखने की बात की गई. और ये भी कहा गया कि इंडिया और पाकिस्तान मिलकर न्यूक्लियर टेस्ट के रिक्स रीड्यूस करेंगे. अटल ने शरीफ से मीटिंग तो की ही साथ ही वो मीनार-ए-पाकिस्तान भी देखने गए. ये मोन्यूमेंट 1947 में एक नए नेशन के बर्थ की यादगार के तौर पर बिल्ट किया गया था.
कुछ लोगो ने एडवाईस दी कि अटल को ऐसा नहीं करना चाहिए था क्योकि इससे ये इम्प्रेशन जाएगा कि वो पाकिस्तान के कन्सेप्शन को अप्रूव कर रहे है. लेकिन पीएम अटल ने कहा” मुझे इस स्टाम्प ऑफ़ अप्रूवल में कोई लोजिक नज़र नहीं आता. पाकिस्तान को अपनी एक्जिस्टेंस के लिए मेरे अप्रूवल की ज़रूरत नहीं, पाकिस्तान की अपनी एक पहचान है”.
पीएम् अटल ने इन्डियन इकोनोमी का लिबरलाइजेशन किया था. इंडियन इकोनोमी को पॉवरफुल बनाने में उनके एफोर्ट्स काफी सक्सेसफुल रहे थे. फर्स्ट, उन्होंने हिंदुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम को प्राइवेट किया. पहले ये दोनों बड़ी आयल कंपनीज गवर्नमेंट चलाती थी. अटल ने इन्टरनेशनल टेलीफोन कंपनी विदेश संचार निगम को भी प्राइवेट करके न्यू गवर्नमेंट कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड क्रियेट की.
2000 से 2002 के बीच 13 होटल्स और 12 कंपनीज बेच दी गयी जो गवर्नमेंट के अंडर थी. इसमें मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज, भारत एलूमिनियम कंपनी, हिन्दुस्तान जिंक, हिन्दुस्तान टेलीपेंटर्स और कंप्यूटर मेंटेनेंस कंपनी, इंडियन टूरिज्म डेवलपमेंट के कई होटल्स भी शामिल थे.
लेकिन इस प्राइवेटाइजेशन के पीछे लोजिक क्या था? क्योंकि पीएम् अटल चाहते थे कि पेट्रोलियम, फूड टूरिज्म, माइनिंग, टेक्नोलोजी और बाकी सेक्टर्स बैटर ग्रो करे. और सिर्फ लीडिंग कोर्पोरेश्न्स और ब्रिलिएंट एंटप्रेन्योर्स के अंडर में ही इन कंपनीज की ग्रोथ सिक्योर थी. इन सोल्ड ऑफ कंपनीज की ग्रोथ को अब ब्यूरोक्रेसी लिमिट नहीं कर सकती थी.
अरविन्द पनागारिया, कोलंबिया यूनिवरसिटी के इकोनोमिस्ट ने इस बारे में टाइम्स ऑफ़ इंडिया में लिखा था. उन्होंने लिखा कि यूपीए गवर्नमेंट में इंडियन इकोनोमी की हाई ग्रोथ पीएम् अटल के रीफॉर्म पालिसी की वजह से ही पोसिबल हुई. लास्ट इयर अटल के टर्म में इकोनोमिक ग्रोथ रेट 8% थी. और 10 सालो बाद भी ये सेम रही. पीएम अटल के एडमिनिस्ट्रेशन में लो इंटरेस्ट रेट था और इन्फ्लेशन रेट भी कम था.
लेकिन जिस प्रोजेक्ट के लिए अटल बिहारी बाजपेई को सबसे ज्यादा याद किया जायेगा वो है, गोल्डन क्वाड्रिलेटेरल प्रोग्राम (Golden Quadrilateral Program). पीएम् अटल को आईडिया हो गया था कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के फील्ड में किया गया इन्वेस्टमेंट फ्यूचर में हाई इकोनोमिक ग्रोथ लेकर आएगा. ये एक वेल कंसीव्ड और वेल एक्जीक्यूटेड प्रोग्राम था जो 2012 में पूरा हुआ.
इण्डिया के चारो कॉर्नर्स अब फाइनली कनेक्ट हो गए थे. चेन्नई, मुंबई, कोलकाता और दिल्ली को अब एक हाइवे नेटवर्क कनेक्ट करता है. आज बेंगलुरु, सूरत, कानपूर, और बाकि दूसरी बड़ी सिटीज से होकर बिग रोड्स गुजरती है. गोल्डन कवाड्रीलाटेरल प्रोग्राम से ना सिर्फ इंडिया की इकोनोमिक ग्रोथ एंश्योर हुई बल्कि इसकी वजह से इंडस्ट्रीयल और एग्रीकल्चर सेक्टर्स भी इम्प्रूव हुए.
साथ ही इसने हमारे देश के डाइवोर्स कल्चर को भी नरिश किया है. आज इंडिया पहले से कहीं ज्यादा जियोग्राफिकली यूनाईटेड है. और इस एम्बिशन को किसी और ने नहीं बल्कि अटल बिहारी बाजपेई ने पूरा किया.
अटल के पांच साल का टर्म पूरा होते-होते वो आलरेडी 80 साल के हो चुके थे. वो एक माने हुए स्टेट्समेन थे जिन्होंने अपनी गवर्नमेंट में कई अप्स और डाउन देखे थे. फरवरी 2009 में अटल बिहारी बाजपेई को तेज़ फीवर और चेस्ट इन्फेक्शन के चलते होस्पिटल ले जाना पड़ा.
उन्हें स्ट्रोक आया था जिससे उनकी कंडीशन बिगड़ती चली गयी. फॉर्मर प्राइम मिनिस्टर ने बीजेपी के न्यू केंडीडेट को लैटर लिखकर अपनी ब्लेसिंग्स दी. खराब हेल्थ कंडिशन के चलते उन्हें एक्टिव पोलिटिक्स छोडनी पड़ी. अब वो अपने घर में व्हील चेयर में बैठे रहते थे.
स्ट्रोक की वजह से वो बड़ी मुश्किल से बोल पाते थे. बाद में उन्हें डीमेंटिया भी हो गया था. डाईबीटीज की वजह से उनकी बॉडी भी काफी वीक हो गयी थी. उन्हें लोगो को पहचाने में दिक्कत होती थी और ईटिंग प्रोब्लम भी हो गयी थी.
इस सबके बावजूद उनके कलीग्स और फ्रेंड्स उनसे मिलने आते रहे. उनके लास्ट बर्थडे पर उन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया, इस सेरेमनी में उनके कई सारे फोलोवर्स आये थे. लोगो के दिल में इस आदमी के लिए एक डीप रिस्पेक्ट और बेशुमार प्यार था जिसने अपनी पूरी लाइफ देश की सेवा के नाम कर दी थी.
अटल बिहारी बाजपेई एक पोलिटिशियन से कहीं बढकर थे. वो वास्तव में एक एक्सीलेंट स्टेट्समेन थे. वो उन कुछ गिने-चुने लीडर्स में से थे जो पोलिटिक्स में होने के बावजूद लोगो की सेवा के लिए डेडीकेट रहे. अटल की अमेजिंग एबिलिटी थी कि वो डिफरेंट बैकग्राउंड और आइडियोलोजी के लोगो से भी निभा लेते थे.
वो सिर्फ 25 साल के थे जब दिल्ली आये थे. इंडियन रीपब्लिक की जस्ट शुरुवात हुई थी और कोंस्टीट्यूशन का ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा था. अटल एक यंग मेन थे जब पार्लियामेंट में आए. उन्होंने किस बर्ड आई व्यू की तरह इण्डिया को एक नेशन के तौर पर अपने सामने बनते हुए देखा था.
किसी ज़माने में पार्लियामेंट सोलर सिस्टम की तरह था जिसमे नेशनल कांगेस सन की तरह थी और बाकी दुसरी पार्टीज प्लानेट की तरह उसके चक्कर लगाती थी. लेकिन वो अटल बिहारी बाजपेई थे जो बीजेपी को एकदम न्यू लेवल पर लेकर गए.
एक तरह से उन्होंने अपनी पोलिटिकल पार्टी को पार्लियामेंट का न्यू सन बना दिया था. इंडिया के लोगो को इंडियन नेशनल कांग्रेस का आल्टरनेटिव मिल चूका था. अटल बिहारी बाजपेई और बीजेपी ने नेशन को ज्यादा चॉइस और ज्यादा ओपन माइंडेड व्यू दिया. सर्विस ओवर पोलिटिक्स और कांसेंसुस बिल्डिंग (consensus building) ऐसी बाते है जो आज सभी पार्टी के पोलिटिशियंस अटल जी से सीख सकते है.
अटल बिहारी बाजपेई हमेशा मिडल ग्राउंड में रहे क्योंकि वो किसी को भी ओफेंड नहीं करना चाहते थे. वो हर कास्ट और रिलिजन के लोगो के साथ गुड रिलेशनशिप मेंटेन करना चाहते थे. उन्होंने सभी लोगो को एक्स्पेट किया और उन्हें सबके भले की फ़िक्र थी.
पीएम अटल ने पोजिटिव सेक्ल्यूरिज्म और गांधियन सोशलिज्म को बढ़ावा दिया क्योंकि उनका मानना था कि इक्वल राइट्स और अपॉर्च्युनिटी पर सबका हक है. उन्होंने पार्लियामेंट में एक साफ़ सुथरी पोलिटिक्स की और हमेशा लोगो की सर्विस को प्रायोरिटी दी.
जोकि एक पोलीटीशियन की असली ड्यूटी है. अपने जेंटल और फ्रेंडली नेचर वो सबका दिल जीत लेते थे. वो एक ग्रेट इंसान थे जिन्हें देश हमेशा याद रखेगा. अटल बिहारी बाजपेई इण्डिया के ग्रेट लीडर्स में से एक थे.
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.