Communicate to Influence Book Summary in Hindi – कम्यूनिकेट टू इन्फ्लुएंस (2015) इस किताब को पढ़ कर आप जानेंगे कि कैसे आप अपने आस पास के लोगों को अपनी बातों से मंत्र मुग्ध कर उन्हें आपके बताये रस्ते पर चलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
दोस्तों ये इस बुक समरी का पार्ट – 2 है, अगर आपने पहला पार्ट नहीं पढ़ा है तो पहले उसको पढ़ लीजिये। उसके बाद ही इस पार्ट – 2 को पढ़ें।
कई बार ऐसा होता है कि हम किसी मुश्किल टॉपिक पर बोल रहे होते हैं जिसके बारे में समझाना शायद ज्यादा मुश्किल या बोरिंग हो सकता है तो आप उसे किसी आसान सी चीज़ के साथ जोड़ के समझायें तो ऑडियंस को आपकी बात समझने में आसानी होगी.
जैसे की एक इंजिनियर ने एक बार स्टैंडडाइजेशन का महत्त्व बताने के लिए उसे ग्रेट बाल्टिमोर (Great Baltimore Fire) में लगी 1904 की आग से जोड़ा उसने कहा की फायरब्रिगेड की पाईपों में स्टैंडाइजेशन की कमी के कारण वो शहर की पानी की सप्लाई वाली टंकी के वाल्व में फिट नहीं हुए और आग ने विकराल रुप ले लिए.
तो ऐसे ही सजग और सरल बातों के साथ जोड़ कर हम कठिन से कठिन बात समझा सकते हैं.
अगला इफेक्टिव तरीका है रेफरेन्सेस और कोट्स का यूज़ करना. लेकिन कोट्स का इसतेमाल करते समय ये याद रखें की वो छोटे और सिंपल हों. रेफरेन्सेस और कोट्स दोनों ही आपकी बात का वजन बढ़ाते हैं और लोग आपकी स्पीच को भरोसे से सुनते हैं.
आस्वरी और बहुत जरुरी चीज़ है पिक्चर, वैज्ञानिकों के अनुसार हम जो देखते है वो ज्यादा जल्दी समझ सकते हैं इसलिए पिक्चर की मदद से आपका काम आसान हो सकता है.
तो इस लेसन के अंत में लेखक कहते हैं कि अपनी प्रेजेंटेशन की स्लाइड्स या अपनी स्पीच को आप वीडियोस, प्रोम्स और पिक्चर के जरिये आप सुपर इंटरेस्टिंग बना सकते हैं.
लेकिन इतना याद रखें कि आप जो भी जरिया इसतेमाल कर रहे हों वो लेखक के बताये BBB (बेसिक, बोल्ड और बिग) के रुल को फॉलो करने वाले हो. तो बस इन बातों का ध्यान रखें और अपने कम्युनिकेशन स्किल में नया निखर लायें.
लेखक कहते हैं कि अगर आपको पता हो कि आपकी ऑडियंस क्या सुनना चाहती है तो आप अपनी स्पीच को उसके अनुसार डिजाईन कर सकते हैं.
ऐसा करने के लिए सबसे पहले आप अपने आप से ये 3 सवाल पूछे कि आपकी टारगेट ऑडियंस कौन है कैसी है? वो आपसे क्या सुनना चाहते हैं? और उन्हें पहले से कितना और क्या पता होगा? इन तीनों सवालों के जवाब आपको अपनी स्पीच फ्रेम करने में मदद करेंगे.
इस बात को और अच्छे से समझने के लिए लेखक के द्वारा बताये हुए इस उदहारण को देखते हैं, जैसे कि मान लें कि आपकी टारगेट ऑडियंस एक छोटे से बिज़नेस के निराश एम्प्लोयी हैं जो जानते हैं कि उनकी वेबसाइट विसिटर्स को नहीं लुभा पा रही और साथ ही साथ उन्हें ये भी नहीं पता कि आगे क्या किया जा सकता है.
ऐसी सूरत में आप उन्हें सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन के फायेदे बता सकते हैं कि कैसे वो थोड़ी सी ऑप्टिमाइजेशन से अपनी वेबसाइट पर विसिटर्स की संख्या बढ़ा सकते हैं. आपकी इस स्पीच को वो सब बहुत ध्यान से सुनेंगे क्यूंकि ये उनकी जरुरत के बारे में है.
लेखक आगे कहते हैं कि जब आपने स्पीच का सब्जेक्ट चुन लिया और आप लोगों से अपने द्वारा बताया गया एक्शन करवाना चाहते हैं तो जरुरी है कि अपनी स्पीच को एक सही पॉइंट ऑफ़ व्यू दें जैसे कि इस उदहारण में आपका पॉइंट ऑफ़ व्यू हो सकता है ‘आप लोग बिको इसके लिए जरुरी है पहले दिखो’.
एक बार ऑडियंस के दिमाग में आपका पॉइंट ऑफ़ व्यू क्लियर हो गया फिर उसके बाद आप स्पस्ट और मजबूत शब्दों में उन्हें एक्शन करने के लिए कह सकते हैं. यही वो समय होगा जब आप उन्हें अपनी सर्विसेज या प्रौक्ट्स के बार में बता सकते हैं और अपनी सेल्स बढ़ा सकते हैं.
जब आपको ये पता चल गया कि आपकी ऑडियंस कैसी है और आपको क्या बोलना है उसके बाद जरुरत है अपनी स्पीच को सही स्ट्रक्चर देने की ऐसे में डेकर ग्रिड आपकी बहुत मदद कर सकता है.
डेकर ग्रिड में 20 बॉक्सेस होते हैं जो की 4 कॉलम्स और 5 रोव्स से मिल कर बने होते हैं. ये बॉक्सेस एक टेम्पलेट की तरह होते है जो आपको अपने मेन पॉइंट्स और थीम्स को सही क्रम में जोड़ने में आपकी मदद कर सकते हैं.
तो आईये इस बात को उदाहरण के जरिये समझते हैं, जैसा की आपको पता है कि आपको अपने सर्च इंजन ऑप्टिमाइजेशन से रिलेटेड सर्विसेज के बारे में बोलना है तो पहले बॉक्स में आप अपने इंट्रोडक्शन के साथ लेखक द्वारा बताये गए SHARP’s का इसतेमाल कर सकते हैं.
जैसे कोई कोट या अपने पुराने क्लाइंट की सक्सेस स्टोरी. अगले बॉक्स में आप अपना पॉइंट ऑफ़ व्यू रखें. उसके बाद के बॉक्सेस में आप एस.इ.ओ. के बेनेफिट्स बता सकते हैं और गूगल एनालिटिक्स और मेगाट्रेंड्स के बारे बारे में भी बता सकते हैं. और ये सब बताते हुए आपकी ऑडियंस का ध्यान आपकी तरफ ही रहे इसके लिए बीच बीच में SHARP’s का इसतेमाल कर सकते हैं.
अंत में किसी सफल वेबसाइट ओनर जैसे मार्क जकरबर्ग का कहा हुआ कोई इन्स्पीरेशनल कोट बता सकते हैं और अपने प्रेजेंटेशन को एक्शन पॉइंट पर ला के ख़तम कर सकते हैं. ये एक्शन पॉइंट होगा कि आज ही हमारी एस.इ.ओ. सर्विसेज का लाभ उठाएँ और आपको डिस्काउंट मिल सकता है और आपकी वेबसाइट का ट्रैफिक चंद दिनों में बढ़ सकता है.
एक अच्छा कम्यूनिकेटर होने का मतलब बस अपनी बात और अपने पॉइंट को रखना ही नहीं है. बल्कि एक अच्छा कम्यूनिकेटर अपनी बातों से लोगों के समझने और करने की क्षमता को बदल सकता है. इसलिए हम कह सकते हैं की एक अच्छा कम्यूनिकेटर एक पावरफुल इन्फ्लुएंसर भी होता है.
परन्तु ऐसा बनने के लिए जरुरत होती है अपने विचारों को खुला करने की. अपनी सोच को बन्धनों में बांध कर हम अपनी ग्रोथ को खुद ही रोक देते हैं.
तो अपने विचारों से सारी बाधायों, सीमायों और डर को मिटा कर आगे बढे और एक सफल कम्यूनिकेटर बनें.जिम कॉलिंस ने अपनी किताब ‘गुड टू ग्रेट में कहा है कि सारी बड़ी और सफल कंपनियों में एक ही खास बात है के उनके लीडर्स खुले विचारों के धनी थे.
एक हम्बल और कॉंफिडेंट कम्यूनिकेटर लोगों के शशक्तिकरण और फायदे के लिए बोलता है, ना की बस ऊँची आवाज़ से उन्हें डोमीनेट करने के लिए. आप इतिहास के किसी भी इन्फ्लुएंसर को ले लें चाहे नेल्सन मंडेला हो या महात्मा गाँधी दोनों के चेहरे पर एक स्माइल होती थी जो की हम्बल कॉन्फिडेंस को दर्शाती है.
दोनों में से कोई भी कभी ऐरोगंट या सेल-प्रेसिंग बातें नहीं की बल्कि अपनी काँफिडेंट और बेहतरीन भाषण से लोगों की सोच को बदला जिसका नतीजा ये हुआ कि लोगों ने उन्हें सुना, उनके बताये रस्ते पर चले और इतिहास में बदलाव लाया.
तो अब आपकी बारी है कि आप कैसे अपनी बातों से दुनिया पर अपनी छाप छोड़ते हो.
आपकी ऑडियंस को किसी एक्शन के लिए प्रेरित करने के लिए जरुरी है उनसे एक इमोशनल कनेक्शन का होना. अपनी आवाज़ में मिठास, चहरे पर स्माइल और बातों में सच्चाई और इमोशन को मिला कर हम ये कनेक्शन बना सकते हैं.डेकर ग्रिड की मदद से हम अपनी बात को एक वेल-अरेंज्ड और प्रभावशाली अंदाज़ में पेश कर सकते हैं.
लेखक कहते हैं कि जहाँ तक हो सके तो अपनी स्पीच या प्रेजेंटेशन को रिकॉर्ड करें ताकी उसे सुन कर आपको पता चले की कहाँ सुधर की गुंजाईश है. अपनी आवाज़ को गले से नहीं दिल से निकालें ताकी लास्ट रो में बैठे व्यक्ति को भी सुनाई दे. और सबसे जरुरी बात की अपना मेसेज ऑडियंस की तरफ देख कर बोलें जमीन की तरफ नहीं.