Complete Shri Krishna Katha – जन्म से लेकर गोलोक धाम तक

जरासंध का आक्रमण

काल्यवन के अंत के पश्चात् कृष्ण मथुरा लौटे। काल्यवन की सेना ने मथुरा को चारों ओर से घेर रखा था। दोनों सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। बड़ी बहादुरी से कृष्ण और बलराम ने पूरी शक्ति से लड़कर सम्पूर्ण सेना का नाश कर दिया। तत्पश्चात् मथुरा का धन लेकर वे द्वारका जाना चाहते थे। काल्यवन और उसकी सेना के विनाश का हाल सुनकर जरासंध अपना आपा खो बैठा। उसने विशाल सेना लेकर मथुरा पर हमला कर दिया। बार-बार के युद्ध से तंग आकर बलराम और कृष्ण धन छोड़कर भाग खड़े हुए। जरासंध ने उनका पीछा किया। कृष्ण और बलराम प्रवर्षण पर्वत पर चले गए। जरासंध ने उन्हें ढूँढने की बहुत चेष्टा करी पर जब उन्हें ढूँढ नहीं पाया तब उसने पूरे पर्वत पर आग लगवा दी जिससे दोनों उस आग में भस्म हो जाएँ और फिर वह वापस लौट गया। इधर कृष्ण और बलराम छिपते-छिपाते, आग से बचकर द्वारका पहुँच गए थे।

बलराम रेवती विवाह

द्वारका के राजा ककुदमी अपनी पुत्री रेवती के लिए सुयोग्य वर की तलाश में थे। दुर्भाग्यवश, उन्हें धरती पर कोई भी सुयोग्य वर नहीं मिला। उन्होंने जाकर ब्रह्मा से सलाह मांगी। ब्रह्मा संगीत का आनंद ले रहे थे। राजा ककुदमी को प्रतीक्षा करनी पड़ी। ब्रह्मा ने बताया कि ब्रह्मलोक का कुछ पल धरती के हज़ार वर्ष के बराबर है। राजा जब धरती पर वापस लौटे तब सब कुछ बदल चुका था। वे किसी को नहीं जानते थे। ब्रह्मा ने कृष्ण के बड़े भाई बलराम के साथ रेवती का विवाह करने की सलाह दी जो उसी युग में थे। ब्रह्मा की सलाह पर राजा ककुदमी ने बलराम से रेवती के साथ विवाह करने का आग्रह किया। बलराम रेवती को देखना चाहते थे पर वह बहुत लंबी थी। रेवती का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए उन्होंने हल से उसके सिर और कंधे पर थपथपाया । थपथपाते ही रेवती छोटी हो गई। बलराम ने रेवती से विवाह कर लिया। राजा ककुदमी ने द्वारका द्वीप यादवों को उपहार में दे दिया।

कृष्ण रुक्मिणी विवाह

रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थीं। अपने पुत्र रुक्मी के दबाव में आकर भीष्मक ने शिशुपाल के साथ रुक्मिणी का विवाह निश्चित कर दिया। रुक्मिणी के माता-पिता कृष्ण से विवाह करना चाहते थे पर पुत्र के समक्ष असहाय थे। रुक्मिणी ने एक पत्र द्वारा इस बात की सूचना कृष्ण को भेजी और उन्हें विदर्भ बुलाया । रुक्मिणी विवाह के पहले गौरी की पूजा करने मंदिर गई थी। तभी कृष्ण आए और रुक्मिणी को अपने साथ लेकर द्वारका जाने लगे। वस्तुतः बिना किसी खून-खराबे के वे इस समस्या का हल चाहते थे। जब वे रुक्मिणी को लेकर जाने लगे तब रुक्मी ने आकर रास्ता रोका। युद्ध हुआ। कृष्ण रुक्मी को मारने ही वाले थे पर रुक्मिणी ने उसे प्राणदान का अनुरोध किया। कृष्ण ने उदारता दिखाते हुए उसके सिर के बाल काटकर उसे छोड़ दिया। पीछे से बलराम भी कृष्ण की सहायता के लिए आ गए थे। द्वारका में दोनों का धूम-धाम से स्वागत हुआ और दोनों ने विवाह कर लिया।

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