कृष्ण का जन्म
अंततः रात्रि के ठीक बारह बजे कृष्ण ने देवकी के गर्भ से जन्म लिया। यह देवकी की आठवीं संतान थी। आकाशवाणी इसी संतान के विषय में थी जो कंस को मारने वाला था। चारों ओर गहरी शांति और घोर अंधकार था। तभी एक तेज से भरपूर ज्योतिपुंज दिखाई दिया और आकाशवाणी हुई। उस आकाशवाणी ने वसुदेव से बालक को गोकुल पहुँचाकर यशोदा की बगल में लिटा देने के लिए कहा और यशोदा की नवजात कन्या को लाकर देवकी की बगल में सुलाने के लिए कहा। वसुदेव तुरंत शिशु को एक टोकरी में रखकर गोकुल के लिए चल पड़े। आश्चर्यजनक रूप से उनकी हथकड़ियां अपने आप खुल गई थीं, कारागार के द्वार खुल गए थे और सभी सिपाही गहरी निद्रा में चले गए थे। मूसलाधार बारिश हो रही थी । यमुना नदी बाढ़ के कारण उफान पर थी। वसुदेव ने टोकरी अपने सिर पर रखी हुई थी। यमुना में रहने वाले शेषनाग ने शिशु को बारिश से बचाने के लिए अपने फनों का छाता फैला दिया था। यमुना ने भी शांत होकर वसुदेव को रास्ता दे दिया और वह गोकुल पहुँच गए।
गोकुल में कृष्ण
घनघोर बारिश में भी वसुदेव यशोदा के घर सुरक्षित पहुँच गए थे। चारों ओर गहरा अधकार था और पूर्ण सन्नाटा था। यशोदा गहरी निद्रा में थी और एक नवजात कन्या उसकी बगल में सो रही थी। वसुदेव ने सावधानीपूर्वक कन्या को उठाया और टोकरी के बालक को वहीं सुला दिया। कन्या को टोकरी में रखा और दबे पाँव चुपचाप जिस मार्ग से आए थे उसी से वापस लौटने लगे। सिर पर टोकरी रख सावधानीपूर्वक उन्होंने यमुना पार किया और कारागार में लौट आए। कारागार में वापस आते समय भी सभी पहरेदार गहरी निद्रा में सोए हुए थे। न तो किसी ने उन्हें बाहर जाते देखा और न ही किसी ने उन्हें भीतर आते देखा था । अपनी कोठरी में आकर चुपचाप शिशु को उन्होंने देवकी की बगल में सुला दिया। उनकी हथकड़ियां अपने आप फिर से उनके हाथ और पैरों में लग गई। पहरेदार जग गए। नन्हें शिशु के रोने की आवाज़ से चारों ओर अफरातफरी मच गई। वसुदेव के आश्चर्य का ठिकाना न था।
असहाय कंस
नवजात कन्या को गोकुल से वापस लेकर आते ही वसुदेव पुनः जंजीरों में बंध गए थे। देवकी की बगल में लेटी हुई कन्या रोने लगी थी। रोना सुनते ही पहरेदारों की आँख खुल गई। आधी रात का समय था। उन्होंने तुरंत कंस को शिशु जन्म की सूचना दी। कंस तुरंत भागा आया। वसुदेव के हाथों से उसने शिशु को झपट लिया और बाहर लेकर चला गया। देवकी अपनी सात संतानो को खो चुकी थी। वह कंस से कन्या के प्राणों की भिक्षा मांगने लगी। निर्मम कंस ने बाहर जाकर शिशु को धरती पर पटकना चाहा। शिशु के रूप में वह योगमाया थीं। कंस के हाथों से छूटते ही उन्होंने अपना दिव्य रूप लिया और साज-सज्जा से परिपूर्ण अपने आठों हाथों में अस्त्र धारण किए हुए प्रकट हो गई। कंस को देख उन्होंने अट्टहास किया और कहा कि उसे मारने वाले का कहीं और जन्म हो चुका है। कंस असहाय सा खड़ा उन्हें देखता ही रह गया। उसे देवकी और वसुदेव की सात संतानों को मारने का पश्चात्ताप था। उसने देवकी और वसुदेव को कारागार से मुक्त कर दिया।