शिशुपाल वध
जन्म के समय शिशुपाल की तीन आँखें और चार हाथ थे। यह देख माता-पिता चिंतित हो उठे। तभी आकाशवाणी हुई कि किसी विशेष व्यक्ति की गोद में बैठते ही उसके शरीर के अनावश्यक अंग समाप्त हो जाएंगे पर वही व्यक्ति भविष्य में उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। एक बार जब शिशुपाल अपने चचेरे भाई कृष्ण की गोद में बैठा तब उसका तृतीय नेत्र और भुजा गायब हो गई। तभी से यह विश्वास हो गया था कि शिशुपाल का अंत कृष्ण के ही हाथों होना है। शिशुपाल की माता ने कृष्ण से अपने पुत्र के लिए जीवन दान मांगा। कृष्ण ने कहा कि वे शिशुपाल को उसकी भूलों तथा अनादर के लिए सौ बार क्षमा कर देंगे। युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय पाण्डवों ने कृष्ण को विशिष्ट अतिथि के रूप में निमंत्रित किया था। शिशुपाल ने इसका विरोध किया और फिर भरी सभा में कृष्ण का निरादर करता रहा। कृष्ण अपने दिए हुए वचन के कारण शांत थे पर एक सौ एक गलती होते ही उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से उसका अंत कर दिया।
कृष्ण ने पाण्डवों का मनोबल बढ़ाया
इधर हस्तिनापुर में चौपड़ खेला जा रहा था और उधर कृष्ण दन्तवक्र और शाल्व के साथ युद्ध कर रहे थे। कृष्ण की दिव्य शक्तियों के सामने उनकी पराजय हुई। युद्ध समाप्त होते. ही कृष्ण को हस्तिनापुर में घटित घटनाओं का पता चला। पाण्डव तथा द्रौपदी के वनगमन का भी पता चला। कृष्ण उनसे मिलने तुरंत वन की ओर चल दिए। पाण्डवों का मनोबल टूटा हुआ था। कृष्ण को देखते ही उनमें नए जीवन का संचार हुआ। कृष्ण और पाण्डव गले मिले। द्रौपदी ने रोते हुए अपना दुखड़ा कृष्ण को सुनाया जिसे धैर्यपूर्वक कृष्ण ने सुना। कृष्ण ने द्रौपदी को सहायता का वचन देकर पाण्डवों से कहा, “हिम्मत हारने का या दुःखी होने का यह समय नहीं है। इस समय का सदुपयोग कर आप लोग दिव्यास्त्र प्राप्त करें। कौरव बिना युद्ध के आपको आपका राज्य नहीं देंगे।” कृष्ण की सलाह मानकर अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्ति के लिए हिमालय जाकर शिव की तपस्या में लीन हो गया।
अक्षय पात्र
अपने वनवास के समय पाण्डवों को अपना पेट भरना कठिन हो रहा था। ऐसे में अतिथि का आना और भारी पड़ता। अतिथि को कैसे मना किया जा सकता था… एक दिन द्रौपदी ने कृष्ण से कहा, “वासुदेव, यदि मैंने अतिथि को भोजन नहीं कराया तो वह बहुत बड़ा पाप होगा पर इतने कम भोजन में मैं अपने धर्म का कैसे पालन करूँगी? भोजन तो हमारे लिए भी पूरा नहीं पड़ता है। ” कृष्ण ने कहा, “द्रौपदी, सूर्यदेव की अराधना करो। वही तुम्हें आशीर्वाद देंगे।” द्रौपदी ने पूरे मन से सूर्यदेव की आराधना करी । सूर्यदेव प्रकट हुए। द्रौपदी ने उन्हें अपनी चिंता बताई। सूर्यदेव ने उसे ‘अक्षय पात्र’ दिया और कहा, “यह एक विशेष पात्र है। इससे तुम अनगिनत लोगों को खिला सकती हो। इसके भीतर भोजन तब तक नहीं समाप्त होगा जब तक तुम सबको खिलाकर खा नहीं लोगी।” द्रौपदी उसी पात्र की सहायता से पाण्डवों की तथा आगंतुकों की क्षुधा शान्त किया करती थी।