Complete Shri Krishna Katha – जन्म से लेकर गोलोक धाम तक

कृष्ण और दुर्योधन की झड़प

सबों की सहमति से शांति दूत कृष्ण ने हस्तिनापुर आकर कौरवों और पाण्डवों के बीच समझौता करवाने की भरसक चेष्टा की। विदुर ने उन्हें अपने घर ठहराया। धृतराष्ट्र और पाण्डु के भाई होने के पश्चात् भी विदुर अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करते थे। शांति की वार्ता को दुर्योधन ने बिल्कुल नकार दिया। जब विदुर ने युद्ध की भयावहता का वर्णन किया तब दुर्योधन ने विदुर को अपना शत्रु करार कर दिया और विदुर को अपमानित करने लगा। जब दुर्योधन का अपमान विदुर के लिए असह्य हो उठा तब विदुर ने अपना धनुष बाण उठा लिया। कृष्ण ने तब बीच बचाव करते हुए दुर्योधन को समझाना चाहा कि ऐसा करने से विदुर तुम्हारा साथ नहीं देंगे। हठी दुर्योधन ने कहा, “मुझे उनकी आवश्यकता नहीं है।” यह सुनकर कुशल धनुर्धर विदुर ने घोषणा करी, “कृष्ण, आप सही हैं। मैं युद्ध में दुर्योधन का साथ नहीं दूँगा।”

कृष्ण और कुंती

कृष्ण शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए थे। उन्होंने दुर्योधन को आधा राज्य और इन्द्रप्रस्थ पाण्डवों को लौटाने के लिए समझाया पर उसने साफ मना कर दिया। कृष्ण ने देखा कि दुर्योधन अपनी जिद पर अड़ा हुआ है, उसे समझाने का कोई लाभ नहीं है और अब युद्ध अवश्यंभावी है तब लौटने से पहले कृष्ण अपनी बुआ कुंती से मिलने गए। कुंती ने अपने कक्ष में कृष्ण का स्वागत किया और कृष्ण से दरबार में हुई वार्ता के सारे विवरण को जाना। कुती तनिक भी उदास या विचलित नहीं हुई वरन् आत्मविश्वास से भरपूर कुंती ने कृष्ण से कहा, “कृपया जाकर मेरा यह संदेश मेरे पुत्रों को अवश्य देना। उनसे कहना कि वे निराश न हों और दुर्योधन की धमकियों में न आएं। एक क्षत्रिय माँ जिस लिए अपने पुत्रों को जन्म देती है अब वह समय आ गया है। वे एक योद्धा हैं और जो उनका है उसके लिए लड़ना उनका धर्म है। उन्हें अपना सिर सदा गर्व से ऊँचा रखना चाहिए। छोटी पर इज्जतदार जिंदगी, अपमान भरी लंबी जिंदगी से कहीं अच्छी है। मेरा आशीर्वाद सदा उनके साथ है।”

कृष्ण और कर्ण

सभी प्रयत्नों के बाद भी जब दुर्योधन पाण्डवों को उनका राज्य देने के लिए राजी नहीं हुआ तब कृष्ण ने कौरवों की शक्ति कम करने का सोचा। वह कर्ण से मिले और कहा, “कर्ण, तुम्हें पता है, पाण्डवों को उनकी भूमि नहीं लौटाकर दुर्योधन अधर्म कर रहा है। यदि तुम दुर्योधन का युद्ध में साथ नहीं दोगे तो संभव है युद्ध टल जाए। “नहीं कृष्ण, यह उचित नहीं होगा। यदि मैंने दुर्योधन का साथ नहीं दिया तो मैं अपने प्रति अधर्म करूँगा… वह मेरा मित्र है…” कर्ण ने कहा। कृष्ण ने पुनः कहा, “किन्तु कर्ण, क्या तुम जानते हो कि तुम अपने सगे भाइयों के विरुद्ध युद्ध करोगे?” कर्ण यह सुनकर हैरान और विह्वल हो उठा। अभी तक उसे इस विषय में कुछ पता नहीं था कि कुती उसकी जन्मदातृ थी। फिर भी तुरंत स्वयं को संयत कर उसने कहा, “फिर भी मैं मित्र का साथ नहीं छोडूंगा जिसने समय पड़ने पर मेरा साथ दिया था। उस माँ के लिए कभी नहीं जिसने मुझे जन्म देते ही छोड़ दिया था… मैं दुर्योधन को धोखा नहीं दूँगा।”

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