कर्ण का वध
द्रोणाचार्य की मृत्यु के पश्चात् कर्ण कौरवों का सेनापति बना। युद्ध का सत्रहवां दिन था। कर्ण भयंकर युद्ध कर रहा था। पाण्डवों की सेना घबरा रही थी। चारों ओर मार-काट मच रहा था। कर्ण युद्धक्षेत्र में अर्जुन को ढूंढकर उससे युद्ध करना चाहता था। कर्ण को रोकने के लिए अर्जुन उसके सामने आया। दोनों के बीच भीषण युद्ध होने लगा। अचानक कर्ण के रथ का चक्का मिट्टी में धँस गया। आज का युद्ध निर्णायक था। शल्य सारथी थे। उन्होंने नीचे उतरकर चक्का निकालने से मना कर दिया फलतः कर्ण को रथ से नीचे उतरना पड़ा। उसे निहत्था देख अर्जुन वार करने में हिचकिचाया। कृष्ण ने तुरंत अर्जुन को कौरवों की निर्दयता और अभिमन्यु वध की घटना की याद दिलाई। कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने अपना दिव्यास्त्र चलाकर कर्ण का वध कर दिया। परशुराम का श्राप फलीभूत हुआ और उसका अंत हो गया।
अर्जुन के रक्षक कृष्ण
अठारहवें दिन कुरुक्षेत्र के युद्ध का अंत हुआ। पाण्डव विजयी हुए थे। जीत के पश्चात् सभी लोग अपने-अपने खेमों में जश्न मनाने लौट रहे थे। युद्ध क्षेत्र से वापस लौटकर अर्जुन रथ पर ही बैठा था। वह कृष्ण के रथ से उतरने की प्रतीक्षा कर रहा था। रोति के अनुसार सारथी के उतरने के पश्चात् ही रथी उतरता है। अर्जुन स्वयं को अत्यंत कुशल धनुर्धर समझता था। उसे अपने बाहुबल पर विजयी होने का बहुत गर्व था। वह रथ पर बैठा कृष्ण के रथ से उतरने की प्रतीक्षा करता रहा। जब काफी देर तक कृष्ण रथ से नहीं उतरे तब वह नीचे उतरा। उसके उतरने के बाद कृष्ण भी नीचे उतरे। ज्योंही कृष्ण नीचे उतरे रथ धू-धू कर जल उठा। अर्जुन अचंभित रह गया। तब उसे समझ में आया कि कृष्ण के कारण ही वह सुरक्षित था और युद्ध में उसे विजय कृष्ण के कारण मिली थी न कि उसके कुशल धनुर्धर होने से उसे विजयश्री प्राप्त हुई थी। हर पल कृष्ण ने ही उसकी रक्षा की थी।
कृष्ण ने भीम को सचेत किया
युद्ध समाप्त हो गया था। पाण्डव विजयी हुए थे। कृष्ण ने पाण्डवों को धृतराष्ट्र और गाधारी का आशीर्वाद लेने की सलाह दी। धृतराष्ट्र को अपने सौ पुत्रों को खोने का अत्यधिक दुःख था इसलिए कृष्ण ने भीम को सावधान रहने के लिए कहा। धृतराष्ट्र ने सभी को आशीर्वाद दिया और फिर भीम को गले लगाने के लिए बुलाया। कृष्ण के सावधान करने के कारण भीम ने एक लोहे का स्तम्भ धृतराष्ट्र के समक्ष बढ़ा दिया। स्तम्भ को भीम समझकर धृतराष्ट्र ने इतने ज़ोर का दबाया कि स्तम्भ ही चूर हो गया। भीम बच गया था। गांधारी ने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखकर सबको आशीर्वाद दिया पर नेत्रों से अविरल अश्रु बहते रहे। आँख पोंछने के लिए जब उसने अपनी आँखों की पट्टी खोली तब अचानक उसकी दृष्टि युधिष्ठिर के अंगूठे पर पड़ी जो तुरंत नीला हो गया। यह उसके नेत्रों के तेज का प्रभाव था।