Conscious Business Book Summary in Hindi – अपने वैल्यूज से कंपनी की कीमत बढ़ाइए

Conscious Business Book Summary in Hindi – कान्शियस बिजनेस (Conscious Business) में हम देखेंगे कि एक कंपनी को कामयाब बनाने के पीछे उसके वैल्यूज़ की क्या अहमियत होती है। यह किताब हमें बताती है कि क्यों अपनी कंपनी को आप बिना वैल्यूज़ के ज्यादा दूर तक नहीं लेकर जा सकते। यह किताब हमें बताती है कि हम किस तरह से अपने कर्मचारियों में इन वैल्यूज़ को डाल सकते हैं।

क्या आप एक बिजनेस संभालते हैं, क्या आप अपने कर्मचारियों को अच्छे से मैनेज करना सिखना चाहते हैं या फिर आप एक बिजनेस में वैल्यूज़ की अहमियत को जानना चाहते हैं तो ये बुक आपके लिए है।

लेखक

फ्रेड कोफमैन (Fred Kofman) गूगल के डेवेलपमेंट डिपार्टमेंट में सलाहकार हैं। वे माँन्टेर्रे इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी में कान्शियस लीडरसिप सेंटर के डाइरेक्टर हैं। वे एक लेखक भी हैं और साथ ही साथ कान्शियस बिजनेस सेंटर इंटरनेशनल के फाउन्डर और प्रेसिडेंट हैं।

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Conscious Business Book Summary in Hindi – अपने वैल्यूज से कंपनी की कीमत बढ़ाइए

यह किताब आपको क्यों पढ़नी चाहिए

क्या आपको याद है कि आप ने आखिरी बार अपने कर्मचारियों से किस बारे में बात की थी? क्या आपको भी है कि आपके कर्मचारी मिल जुल कर काम नहीं कर पा रह हैं?

अक्सर ही होता है कि एक कंपनी के मैनेजर्स और सीईओ बस कंपनी के फायदे के बारे में सोचते हैं और वे इसी बारे में अपने कर्मचारियों से बात करते हैं। इसका नतीजा यह हो हो रहा है कि आज बहुत सी कंपनियों का कल्चर खराब हो रहा है। कर्मचारी वहाँ पर सबके साथ मिलकर काम नहीं कर पाते और ना ही कंपनी अपने ग्राहकों का भरोसा जीत पाती है।

यह किताब हमें बताती है कि अपनी कंपनी में वैल्यूज़ डालने से आप किस तरह से इस तरह की समस्याओं से निपट सकते हैं। यह किताब हमें बताती है कि किस तरह से आप फायदों के बारे में ना सोचकर भी बहुत ज्यादा फायदे कमा सकते हैं।

  1. खिलाड़ी बनने का मतलब क्या होता है?
  2. सबके नजरिए को अपनाना क्यों जरूरी है?
  3. अच्छे से बात करने का मतलब क्या होता है?

एक कामयाब कंपनी बनने के लिए आपको वैल्यूज़ की कीमत को जानना होगा।

एक कंपनी को कामयाब बनाने के पीछे उसके कर्मचारियों का और उसके लीडर का हाथ होता है। अगर आपके कर्मचारियों के अपने कुछ उसूल नहीं हैं तो जाहिर सी बात है कि वे कंपनी से पहले अपने फायदे के बारे में सोचेंगे।

अगर आपके कर्मचारियों के पास उसूल नहीं होंगे, तो वे किसी भी काम की जिम्मेदारी लेने से भागेंगे। उन्हें हर वक्त यह लगेगा कि जो कुछ भी गलत हो रहा है उसमें उनका कोई हाथ नहीं है। इसलिए वे कंपनी को ले डूबते हैं। दूसरी तरह एक काबिल और अच्छा कर्मचारी कंपनी के लिए अपने काम को समझता है और यह जानता है कि इसे कामयाब बनाने का काम उसका है। वो जिम्मेदारी लेता है और हर गलती को सुधार कर दिखाता है।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी कंपनी के कर्मचारियों को काम पर रखने से पहले यह देखें कि क्या उनके उसूल कंपनी के उसूलों से मेल खाते हैं या नहीं। क्या वे जिम्मेदारी लेकर काम को पूरा कर सकते हैं या फिर अपनी नाकामी का इल्जाम किसी दूसरे के सिर पर डाल देते हैं?

इसके बाद आपको अपनी कंपनी के तीन जरूरी पहलुओं पर खास ध्यान देना होगा। सबसे पहला होता है इंपर्सनल। इसका मतलब फायदे, प्रोडक्ट की क्वालिटि और उन दूसरी चीजों से है जो एक कंपनी के लिए जरूरी तो हैं, लेकिन उनमें जान नहीं होती।

इसके बाद आता है इंटरपर्सनल जिसका मतलब कंपनी के अलग अलग लोगों के बीच के रिश्तों से है।

आखिर में आता है पर्सनल, जो यह देखता है कि क्या कंपनी का हर एक कर्मचारी खुश है या क्या उसे काम करने में कोई समस्या तो नहीं आ रही है।

ज्यादातर कंपनियां सिर्फ पहले पहलू पर ध्यान देती हैं। उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि उनके कर्मचारी किस तरह से एक दूसरे से पेश आ रहे हैं या उन्हें काम करने में क्या परेशानी आ रही है। उन्हें सिर्फ इससे मतलब होता है कि उनकी कंपनी कितना फायदा कमा रही है। इस तरह की कंपनी कभी कामयाब नहीं हो सकती। अगर वो कामयाब है, तो वह कुछ सालों में गिर जाएगी।

एक खिलाड़ी बनकर अपने काम की जिम्मेदारी लीजिए।

हर कोई अपने बारे में अच्छा सोचता है। हर कोई सोचता है कि वो अपनी पिच्चर का हीरो है और एक हीरो चाहे चोर की क्यों ना हो, वो कभी गलत नहीं हो सकता। यही वजह है कि बहुत से लोग खुद को इस वहम में डाल लेते हैं कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं बहुत अच्छे से कर रहे हैं और अगर इसके बाद भी कोई गलती होती है तो वह उनकी गलती नहीं है।

इस तरह के लोग हमेशा जिम्मेदारी लेने से पीछे भागते हैं। जब भी कुछ गलत होगा तो उन्हें लगेगा कि अब वे कुछ नहीं कर सकते। दूसरी तरफ एक खिलाड़ी वो होता है जो यह जानता है कि अगर कुछ गलत हुआ है जिसकी वजह से उसे उसे परेशानी झेलनी पड़ रही है, तो वो गलती चाहे जिससे हुई हो, उसे ठीक करने की जिम्मेदारी वो खुद लेता है

एक खिलाड़ी यह जानता है कि बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिसे वो काबू नहीं कर सकता है। वो उन चीज़ों पर ध्यान देता है जो उसके हाथ में हैं और इस तरह से वो समय के साथ अपने काम में बेहतर बन जाता है। जबकि दूसरी तरफ वे लोग जो काम से भागते हैं, वे काम ना करने के अलग अलग बहाने खोज लाते हैं और कभी बिगड़े काम की ज़िम्मेदारी खुद पर नहीं लेते

अगर आप चाहते हैं कि आप भी एक खिलाड़ी बने तो सबसे पहले आपको एक खिलाड़ी की भाषा सीखनी चाहिए। यह कहना छोड़ दीजिए कि यह काम नहीं किया जा सकता। बल्कि कहिए कि यह काम होगा तो जरूर, बस मुझे पता नहीं है कैसे होगा। आप यह कहना छोड़ दीजिए कि मेरी इसमें कोई गलती नहीं थी, बल्कि यह कहिए कि गलती चाहे जिसकी भी रही हो, इसे ठीक करने की जिम्मेदारी मेरी है। इस तरह के शब्द आपको यह एहसास दिलाते हैं कि आप जिम्मेदार व्यक्ति हैं। इस तरह से ही आप खिलाड़ी बन सकते हैं।

किसी काम को करते वक्त उससे फायदा ना देखकर काम पर ध्यान दीजिए।

हम में से हर कोई किसी भी नौकरी को करने से पहले यह जानने की कोशिश करता है कि उसमें हमें सैलरी कितनी मिल रही है। हम यह नहीं देखते कि हमें उस काम में मजा आएगा या नहीं। यहाँ तक कि सबसे पहले हम यह जानने की कोशिश भी नहीं करते कि कंपनी हम से क्या काम करवाना चाहती है। हम सबसे पहले अपने फायदे को देखते हैं।

आज हर कोई कामयाबी के पीछे भाग रहा है। वे उसे हासिल करने के पीछे इतने उलझ गए हैं कि वे यह नहीं देखते कि वे काम क्या कर रहे हैं। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि आज के समाज में किसी को इस बात से मतलब नहीं होता कि आप कितने मेहनती हैं। लोग सिर्फ यह देखते हैं कि आपके नतीजे क्या हैं। एक बच्चे को कभी उसकी मेहनत के लिए शाबाशी नहीं मिलती। उसे उसके रिजल्ट के लिए शाबाशी मिलती है।

लेकिन हमें नतीजों से ज्यादा काम पर ध्यान देना चाहिए। जब आप अपने काम पर ध्यान देंगे तो नतीजे अपने आप ही उभर कर सामने आ जाएंगे। लेकिन अगर आप काम पर ध्यान ना देकर सिर्फ नतीजों पर ही लगे रहेंगे, तो नतीजे आप से दूर भागते रहेंगे।

जब आप अपने काम पर ध्यान देते हैं, तब आप अपनी वैल्यूज़ बनाते हैं। आप उस समय अपना फायदा नहीं देख रहे होते, आप उस वक़्त खुद्गरजी को खुद से दूर रखते हैं और इसी बीच आपको पता लगता है कि वैल्यूज़ का असली मतलब क्या होता है। इस तरह से आप लोगों का भरोसा जीत पाते हैं।

सबका नजरिया जुदा होता है, हमें उनके नजरिए से सीखने की कोशिश करनी चाहिए।

एक बार कुछ दोस्त जंगल के रास्ते से हो कर अपने घर जा रहे थे। तभी सामने से एक हिरन ने उनका रास्ता काटा। एक दोस्त ने कहा वो देखो, एक हिरन हमारे रास्ते से हो कर गुजरा। तभी दूसरे दोस्त ने जवाब दिया- यह जंगल उनका घर है, ना कि हमारा इस हिसाब से हिरन हमारे रास्ते से नहीं, हम उसके रास्ते से हो कर गुजर रहे हैं।

इस बात से हमें सीखने को यह मिलता है कि हम में से हर किसी का नजरिया अलग अलग हो सकता है। हमें जरूरत है कि हम उन्हें अपना कर उन से सीखने की कोशिश करें। स्कूल में शायद एक सवाल का एक ही सही जवाब होता होगा, लेकिन असल जिन्दगी में एक सवाल के बहुत सारे जवाब हो सकते हैं, और सारे जवाब अपनी अपनी जगह सही होते हैं।

ज्यादातर कंपनियों में लोगों के काम करने के तरीके अलग अलग होते हैं। कुछ मैनेजर्स को यह बात बिल्कुल नहीं पसंद कि कोई कर्मचारी उनके हिसाब से काम ना करे। इस तरह के हालात से कंपनी में तनाव का माहौल पैदा हो जाता है। जब हालात और खराब होते हैं तो इससे कंपनी का नुकसान होने लगता है।

इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप अपनी कंपनी में कुछ इस तरह का माहौल बनाएँ कि एक व्यक्ति दूसरे के नजरिए को समझ सके और उसे अपना सके। जैसा कि पहले ही कहा गया, हर कोई अपनी जगह पर सही हो सकता है।

इस समस्या से आज बहुत सी कंपनियाँ परेशान हैं। सिर्फ कर्मचारी ही नहीं, ग्राहकों के नजरिए भी अलग अलग होते हैं जिसकी वजह से उन्हें एक ही प्रोडक्ट अलग अलग डिजाइन के पसंद आते हैं। इस तरह की समस्याओं को सुलझा लेने से आप अपनी कंपनी को बहुत आगे तक ले जा सकते हैं।

बातचीत करते वक्त वही कहिए जो आप असल में कहना चाहते हैं।

यह तो हम सिर्फ तीन साल में सीख लेते हैं कि हमें कैसे बोलना है, लेकिन कैसे नहीं बोलना है, इसे सीखने में हमें कई साल लग जाते हैं। यह बात बिल्कुल सही है कि हम में से बहुत से लोगों को आज भी अच्छे से बात करना नहीं आता है। हम में से ज्यादातर लोग बोलते वक्त सिर्फ अपनी बात पर जोर देते रहते हैं और यह नहीं सुनते कि सामने वाला असल में क्या कहना चाहता है।

बात तीन लेवेल पर हो सकती है। पहले लेवेल पर बात तब होती है। जब आप किसी समस्या को लेकर किसी से बात कर होते हैं। दूसरे लेवेल पर बात तब होती है जब आपका सामने वाले से कोई रिश्ता हो और तीसरे लेवेल पर बात तब होती है जब आप खुद से अपने बारे में बात करते हैं।

सबसे पहले आपको खुद से बात करना सीखना चाहिए। अक्सर यह होता है कि हम खुद पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करने लगते हैं और ऐसे में हम सामने वाले की बात को सुनने से पहले ही उसे गलत ठहरा देते हैं। इसलिए अगर आप खुद से बात करना नहीं सीखेंगे तो आप किसी से भी बात नहीं कर पाएंगे।

बात करते वक्त अपनी बात को बिल्कुल साफ साफ रख दीजिए और यह देखिए कि क्या आप दोनों लोग एक ही मुद्दे पर बात कर रहे हैं या नहीं। इसके लिए आप बोलने से पहले सुनना सीखिए और यह देखिए कि सामने वाला क्या वही बोल रहा है जो आप समझ रहे हैं।

इसके बात बोलते वक्त आप जानकारी दीजिए, ना कि फैसला सुनाइए। एक्ज़ाम्पल के लिए आप यह बताइए कि कमरा बिखरा पड़ा है, आप यह बताइए कि कमरा क्यों बिखरा है और उसे सुधारने के लिए हम क्या कर सकते हैं।

मतभेद को अन्देखा करना आपकी कंपनी के लिए बहुत नुकसानदायक हो सकता है।

किसी को भी यह नहीं पसंद कि कोई उनके विचार को या उनके काम करने के तरीके को गलत ठहराए। साथ ही साथ हर किसी के काम करने का तरीका अलग अलग होता है जिसकी वजह से एक कंपनी के कर्मचारियों के बीच अक्सर मतभेद पैदा हो जाते हैं। यह बहुत जरूरी है कि हम मतभेद को कुछ इस तरह से सुलझाएँ कि हर कोई संतुष्ट हो सके।

मतभेद होने पर जो सबसे पहला काम हम करते हैं वो है अन्देखा करना। हम इस तरह से बर्ताव करते हैं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं। जब एक बीमारी को आप ज्यादा देर तक छिपाएँगे तो वो लाइलाज बनकर आपको मौत तक लेकर जा सकती है। ठीक इसी तरह से अगर आप यह समझें कि मतभेद है ही नहीं, तो यह आपकी कंपनी के लिए एक लाइलाज बीमारी बन सकती है।

इसके बाद, बहुत से लोग नजरअंदाज़ करते हैं। वे सब कुछ सहते हुए भी कुछ नहीं बोलते। कोई भी जाकर अपने बॉस को असल बात नहीं बताता कि आफिस में लोग सारा दिन एक दूसरे की शिकायत करते रहते हैं। इस तरह से आफिस का माहौल खराब हो जाता है और कोई सुबह सुबह उठकर काम पर नहीं आना चाहता।

मैनेजर्स अक्सर इस तरह की बातों को टालते रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें एक ग्रुप को जीतना होगा और दूसरे को हारना होगा। उन्हें लगता है कि अगर हम कोई समझौता भी कर के किसीतरह से मतभेद को खत्म कर दें, तो वो समझौता किसी को पसंद नहीं आएगा और ऐसे में दोनों लोग हार जाएंगे।

लेकिन अगर हम अच्छे से मोल भाव करें तो हम एक ऐसा हल निकाल सकते हैं जिससे कर्मचारियों के बीच का मतभेद कम हो सके और वे एक साथ काम करना सीख सकें। आपको अपने आफिस का माहौल कुछ इस तरह का बनाना होगा कि हर एक कर्मचारी एक दूसरे से सीखने की कोशिश कर सके।

अपने बिजनेस को कामयाब बनाने के लिए आपको अपनी भावनाओं पर काबू पाना होगा।

भावनाएं हमारे लिए बहुत जरूरी होती हैं। बिना उनके हम यह कभी नहीं तय कर पाएंगे कि हमें आग में कूदना चाहिए या नहीं, क्योंकि डर हमें ऐसा करने से रोकता है। बिना भावनाओं के हम कभी हँस नहीं पाएंगे। लेकिन फिर भी, भावनाएं कभी कभी हमारा काम बिगाड़ देती हैं।

इसके लिए सबसे पहले आपको खुद को अपनाना सीखना होगा। इसका मतलब यह है कि खुद को हर बात के लिए कोसना बंद कर दीजिए और अपनी कमियों को अपना लीजिए। खुद को अपनी पिछली गलतियों के लिए माफ कर दीजिए और अपने अंदर के गुस्से और तनाव को जाने दीजिए।

खुद को अपनाने का मतलब यह होता है कि आप इस बात को समझ लें कि आप अपनी भावनाओं को काबू नहीं कर सकते, लेकिन उन भावनाओं के पैदा होने पर आप जो काम करते हैं, आप उसे काबू कर सकते हैं। अगर कोई आपको गाली दे रहा है तो आप बुरा मानने से खुद को नहीं रोक सकते, लेकिन उसे गाली ना देकर आप अपनी जबान गंदी करने से रोक सकते हैं।

इसके बाद आपको खुद को जानना होगा। इसका मतलब होता है अपनी भावनाओं को जानना और उन्हें समझना। जब आप परेशान होते हैं और कहते हैं कि आप बहुत तनाव में हैं, तो आपके दिमाग का एक हिस्सा यह देखने का काम कर रहा है कि आप तनाव में हैं। यह हिस्सा इस तनाव को जानने की कोशिश कर रहा है।

ठीक इसी तरह से आप अपनी हर एक भावना को जान सकते हैं। एक बार आप समझ जाएं कि आपके अंदर यह भावना पैदा हो रही है तो आप वो काम करने से खुद को रोक सकते हैं जो वो भावनाएं आप से करवाना चाहती हैं। आप अपनी समझ का इस्तेमाल कर के वो काम कीजिए जो सही है।

फायदे कमाने की बजाय अपनी टीम को पहले से बेहतर बनाने पर ध्यान दीजिए।

हम में से हर कोई दिए गए चार स्टेज में से किसी एक पर रह कर काम करता है।

सबसे पहले स्टेज को हम ईगोसेंट्रिक कहते हैं। जब हम इस स्टेज पर काम करते हैं तो हम सिर्फ अपने फायदे के लिए काम करते हैं। हम दूसरों के बारे में कुछ भी नहीं सोचते।

इसके बाद के स्टेज को इथ्नोसेंट्रिक कहते हैं। इसका मतलब यह होता है कि हम अपने साथ साथ सभी का फायदा चाहते हैं। हम खुद को समाज का एक हिस्सा मानते हैं और यह मानते हैं कि अगर समाज खुश नहीं है तो हम भी नहीं खुश रह सकते।

तीसरे स्टेज को वर्ल्ड- सेंट्रिक कहते हैं। इसका मतलब यह होता है कि हम खुद को समाज से भी ऊपर उठकर, दुनिया का एक हिस्सा मानते हैं। हम पूरी दुनिया के बारे में अच्छा सोचते हैं और कोशिश करते हैं कि किसी को भी तकलीफ ना हो। दुनिया में शांति फैलाने के लिए काम करने वाले लोग इस स्टेज पर रहकर काम करते हैं।

चौथे स्टेज को स्पिरिट – सेंट्रिक कहते हैं। इस स्टेज पर काम करने वाले लोग मानते हैं कि प्रतियोगिता से भी हम एक साथ काम करना सीख सकते हैं। इस स्टेज पर रहने वाले लोग कभी हारने या जीतने के लिए नहीं खेलते। वे सिर्फ इसलिए खेलते हैं क्योंकि खेल खेलने के लिए ही बनाया गया है।

चौथे स्टेज पर काम करने वाले लोग ही बिजनेस का सही मतलब समझ पाते हैं। वे काम । इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें काम करना चाहिए। पैसे की चिंता वे नहीं करते, क्योंकि उन्हें पता है कि अगर वे अपना काम सही से करेंगे तो उसका फायदा उन्हें अपने आप मिल जाएगा।

इस तरह के लोग अपनी टीम को जिम्मेदार बनाते हैं। वे सभी को लाइन में लाकर एक काम करवाते हैं ताकि वे उस काम को कर सकें जो सही है और किया जाना चाहिए।

Conclusion

एक बिजनेस को आगे लेकर जाने के लिए सिर्फ फायदों के बारे में सोचना ही काफी नहीं है। हमें अपने वैल्यूज़ को अपनी कंपनी में डालना होगा और उसे कुछ खास तरह के उसूलों पर चलाना होगा। हमें कर्मचारियों के अलग अलग तरह के नजरिए को अपना एक उन्हें यह सिखाना होगा कि किस तरह से वे एक दूसरे से सीख सकते हैं। हमें उनके बीच के मतभेद को मिटा कर उनके बीच के रिश्तों को मजबूत बनाना होगा ताकि इसी मजबूती के साथ कंपनी के लिए काम कर सकें।

दोस्तों क्या आप भी एक बिजनेसमैन है, क्या आपको पता है कि मैं भी एक बिजनेसमैन हूँ ?

आप अपने बिज़नेस के लिए क्या क्या कर सकते हैं ?

क्या आप अपने बिज़नेस में 100% देते हैं ?

आपको आज का यह Conscious Business Book Summary in Hindi कैसा लगा ?

आज अपने क्या सीखा इस बिज़नेस लर्निंग बुक में ?

अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये।

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्तवाद,

Wish You All The Very Best.

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