पिक्सर एनिमेशन के प्रेजिडेंट एड कैटमूल अपनी सक्सेस स्टोरी शेयर करते है जिसमे वो बताते है कि कैसे हम एक क्रिएटिव वर्क एनवायरमेंट मेंटेन कर सकते है. और अपने पास्ट टीचर्स की तरह एक ट्रू लीडर बन सकते है, और वे ये भी बोलते है कि हमें अपनी मिस्टेक छुपानी नहीं चाहिए बल्कि उनसे कुछ लर्न करना चाहिए.
पार्ट 1 गैटिंग स्टार्टेड (Part I: Getting Started):
जब मै बच्चा था, अल्बर्ट आइनस्टीन (Albert Einstein) और वाल्ट डिज्नी मेरे चाइल्डहुड आइडल (childhood idols) हुआ करते थे. डिज्नी(Disney) का मतलब था कुछ न्यू इन्वेंट करना और आइनस्टीन (Einstein) का मतलब था जो पहले से एक्जिस्ट (exists) करता है उसको एक्सप्लेन करना.
फिजिक्स और आर्ट्स दोनों मुझे इंस्पायर करते थे लेकिन एनिमेशन सबसे ज्यादा अट्रैक्ट करता था क्योंकि ये मुझे ना जाने कौन-कौन सी दुनिया की सैर कराता था.
मै एक मिडल क्लास फैमिली में पला बढ़ा था. मेरे फादर का पास्ट काफी रफ था, वो स्कूल के टाइम में मैथ टीचर थे और समरटाइम में बिल्डिंग वगैरह बनाने का काम करते थे.
उन्होंने खुद अपने हाथो से हमारा घर भी बनाया था. तो आप खुद समझ सकते है कि एजुकेशन मेरे लिए कितनी इम्पोर्टेंट थी.
हमारे पेरेंट्स को मुझसे और मेरे भाई बहनों से यही एक्स्पेक्टेशन थी कि हम खूब मेहनत से पढ़ाई करे और कॉलेज अटेंड करे. लेकिन तब मुझे एनीमेटर बनने के बारे में कोई आईडिया नहीं था लेकिन मेरा साइंस में एक क्लियर विजन था.
और जब मै 1969 में यूनिवरसिटी ऑफ़ उताह (University of Utah) से दो-दो डिग्रीज लेकर ग्रेजुएट हुआ, एक फिजिक्स में और एक कम्प्यूटर साइंस में तो मेरे दिल में यही था कि मै ग्रेजुएट स्कूल के लिए कम्प्यूटर लेंगुएज डिजाईन करना सीखू, लेकिन ये बात मेरे माइंड में उस इंसान से मिलने से पहले थी जिसने मेरी लाइफ ही चेंज कर दी : इवान सूदरलैंड (Ivan Sutherland) इंटरेक्टिव कम्प्यूटर ग्राफिक्स के पायोनियर्स (pioneers ) में से एक.
कम्प्यूटर ग्राफिक्स है क्या? ये मशीन के थ्रू किसी भी नम्बर या डेटा से डिजिटल पिक्चर बनाने का तरीका है. मैंने ये प्रोग्राम ज्वाइन कर लिया और एक नया गोल सेट किया: मैंने पेन्सिल नहीं बल्कि कम्प्यूटर से ऐसी इमेज एनिमेट का तरीका डेवलप किया जिन्हें मूवीज में यूज़ किया जा सकता था. और 1973 में मेरी फर्स्ट शोर्ट एनिमेटेड मूवी जिसका नाम था हैण्ड, रिलीज़ हुई जिसने धूम मचा दी. आज से पहले किसी ने ऐसी कोई चीज़ नहीं देखी थी.
ये पहली फुल लेंग्थ फीचर थी जिसमे कम्प्यूटर जेनरेटेड एनिमेशन (computer-generated animation) यूज़ किया गया था. उसी साल के स्प्रिंग टाइम में प्रोफेसर सूदरलैंड (Professor Sutherland ) ने मुझे डिज्नी एक्जीक्यूटिवस (Disney executives) को एक एक्सचेज प्रोग्राम आईडिया सेल करने के लिए बुलाया जिसमे वो अपने एक एनिमेटर्स को न्यू कंप्यूटर टेक्नोलोजी सीखने के लिए उताह (Utah) भेजने वाले थे.
और यूनिवरसिटी (university) अपने एक स्टूडेंट को स्टोरी टेलिंग सीखने के लिए डिज्नी एनिमेशन भेजने वाली थी. सरप्राइज़ की बात तो ये थी कि उन्हें इस एक्सचेंज प्रोग्राम में ज़रा भी इंटरेस्ट नहीं था. क्योंकि उनके हिसाब से कम्प्यूटर और एनिमेशन का कोई मैच नहीं था.
मुझे 1974 में पी. एच डी. की डिग्री मिली. अपने साथ इन्वेंशंस की लिस्ट और माइंड में एक क्लियर विजन यानी एनिमेटेड फिल्म बनाने का गोल लेकर मै उताह (Utah) से लौट आया. लेकिन उन दिनों किसी और कंपनी या यूनिवरसिटी (universities) को मेरा इस गोल में कोई इंटरेस्ट नज़र नहीं आया. फिर नवबंर 1974, की बात थी, मेरे पास एक फोन आया जिसने मेरी पूरी लाइफ चेंज कर दी.
जब मै छोटा था तभी मैंने सीख लिया था कि तीन डिफरेंट स्टाइल वाले रेबेल्स के साथ कैसे मैनेज करना है. मेरा फर्स्ट बॉस, एलक्स स्चुरे (Alex Schure) (वो जिसके एक फोन कॉल ने मेरी लाइफ चेंज कर दी) का एक मिशन था कि वो एनिमेशन प्रोसेस की फील्ड में कंप्यूटर लाना चाहते थे. और इसके लिए उन्हें कोई ऐसा चाहिए था जो इस काम को संभाले, और फिर कुछ ही वीक्स में मै न्यू यॉर्क इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी (New York Institute of Technology) में अपने न्यू ऑफिस में मूव हो गया.
एलेक्स के पास एनिमेशन में कंप्यूटर के यूज़ को लेकर कमाल का विज़न था, उन्हें लगता था कि इस फील्ड में कंप्यूटर का इनक्रेडिबल यूज़ हो सकता है, और उनका ये विज़न ग्राउंडब्रेकिंग था. अपने लिए एक टीम एसेम्बल (assemble) करने के दौरान मै अल्वी रे स्मिथ (Alvy Ray Smith) से मिला जो मुझे उस काम के लिए अपने से ज्यादा कवालीफाईड लगा जो मै करता था.
लेकिन मैंने उस फिर भी सेलेक्ट कर लिया. बाद में अल्वी (Alvy) मेरा सबसे क्लोज फ्रेंड बन गया था जो मेरा मोस्ट ट्रस्टेड कोलाब्रेटर्स (trusted collaborators) था और तब से मैंने डिसाइड किया कि मै उन्ही लोगो को हायर करूँगा जो मुझसे ज्यादा स्मार्ट हो. एक प्रोब्लम जिसका सोल्यूशन कंपनी के पास नहीं था वो ये थी कि हम बेशक कंप्यूटर के थ्रू कोई स्टोरी बना सकते थे लेकिन हमारे पास कोई स्टोरीटेलर नहीं था.
मुझे और अल्वी (Alvy) को ये लिमिटेशन फील होती थी तो हमने डिसाइड किया कि हम ऐसी किसी जगह का पता करेंगे जो हाईटेक्नोलोजी के साथ फिल्ममेकिंग इन्वोल्व करने को रेडी हो–लेकिन ये सरप्राईजिंग (surprising) था कि ये चीज़ किसी के लिए कोई प्रायोरिटी थी ही नहीं.
लेकिन फिर एक इंसान ने स्टार वार मूवी से इस थिंकिंग को चेंज कर दिया. 1977 में स्टार वार्स रिलीज़ हुई. मेरा सेकंड बॉस, ज्योर्ज लुकास (George Lucas) डायरेक्टर और राइटर था जिसने उन्ही दिनों अपनी कंपनी लुकासफिल्म स्टार्ट की थी. ज्योर्ज(George) ने मुझे बताया कि उसने मुझे मेरी आनेस्टी((honesty) क्लेरिटी ऑफ़ विज़न(my clarity of vision) और कंप्यूटर में मेरे बीलीफ(belief ) की वजह से हायर किया था.
मैंने अल्वी (Alvy) को ग्राफिक्स ग्रुप का चार्ज दे दिया जहाँ हाईली स्पेशलाईजड कंप्यूटर (highly specialized computer ) डिजाईन किये गए जो फिल्म स्कैन कर सकते थे और स्पेशल इफेक्ट्स भी एड कर सकते थे और इतना ही नहीं ये कंप्यूटर फाइनल रिजल्ट को वापस फिल्म में रिकोर्ड भी कर सकते थे.– इस सबमे चार साल लगे और हमने इसे पिक्सर इमेज कंप्यूटर नाम दिया.
उन दिनों लुकाफिल्म (Lucasfilm) बड़े डायरेक्टर्स के लिए किसी मेग्नेट की तरह था. मुझे एक पर्टिकुलर (particular) विजिट याद है जब डिज्नी एनीमेटर्स का एक ग्रुप टूर पे आया थाऔर तब में जॉन लुस्सेटर (John Lasseter) से मिला. उसके पास एक फिल्म का आईडिया था जिसे डिज्नी में उसके सुपरवाईजर्स ने रिजेक्ट कर दिया था और उसे काम से निकाल भी दिया था.
लेकिन मेरी उसकी कुछ मंथ्स बाद मीटिंग हुई और मैंने उसे इमीडीएटली (immediately) हायर कर लिया. यही टाइम था जब उन्होंने एक शोर्ट मूवी”द एडवेंचर्स ऑफ़ एंडरे एंड वैली बी पर काम किया. ये मूवी का प्रीमियर एक एनुअल कांफ्रेसं में किया गया था हालाँकि इस मूवी में कई सारे फ्लाव्स (flaws) थे फिर भी जिन लोगो ने इसे देखा, किसी ने भी इतना नोटिस नहीं किया.
और इस तरह के फेनोमेनन(phenomenon) से ये मेरा फर्स्ट एनकाउंटर (encounter)था जहाँ मैंने सीखा कि अगर स्टोरी राईट हो तो आर्टिस्टिक विजुअल पोलिश(artistic visual polish) ज्यादा मैटर नहीं करती है. 1983 में ज्योर्ज (George)और उसकी वाइफ अलग हो गए और तब उसकी फाईनेंशियल स्टेबिलिटी की वजह से कंपनी को बिकना पड़ा. सिर्फ यही नहीं बल्कि हमारे गोल्स भी दो डिफरेंट डायरेक्शन में बंट गए थे और इस तरह लुकाफिल्म (Lucasfilm) में मेरा टाइम ओवर हुआ.
मेरे थर्ड बॉस थे द ग्रेट स्टीव जॉब्स. अल्वी (Alvy) और मेरी उनसे एक मीटिंग हुई थी लेकिन उसके 2 मंथ्स बाद तक हमे कोई जवाब नहीं मिला. फिर हमे इस रीजन भी पता चल गया जब हमने न्यूज़ पेपर्स में पढ़ा कि स्टीव जॉब्स और एप्पल के सीईओ जॉन स्कुल्ले (John Sculley) के बीच कुछ डिफरेंसेस हो गए थे. स्टीव जॉब्स दुबारा हमारे पास आये एक नए एडवेंचर के साथ लेकिन वो मेरी जॉब लेना चाहता था.
और फिर हमें ये क्लियर हो गया कि उन्हें हमारे गोल से कोई मतलब नहीं था. उन्हें कोई एनिमेशन स्टूडियो नहीं बल्कि नेक्स्ट जेनरेशन होम कंप्यूटर बनाना चाहते थे ताकि वो एप्पल से कॉम्पीट (compete ) कर सके. लेकिन हमारा लक अच्छा था क्योंकि कुछ मंथ्स बाद ही हमने ट्रेड शो में एक बूथ लगाया जहाँ हमने अपना पिक्सर इमेज कंप्यूटर (Pixar Image Computer) शो किया था और तभी स्टीव जॉब्स वहां से गुज़रे. तब तक वो आलरेडी (already)अपनी पर्सनल कंप्यूटर कम्पनी नेक्स्ट (NeXT) शुरू कर चुके थे और उन्हें अब कुछ और प्रूव नहीं करना था. फिर कुछ मंथ्स बाद ही स्टीव हमारे साथ एक डील करने को तैयार हो गए थे. और फाइनली 1986 में अल्वी (Alvy) मै और स्टीव के कमरे में साथ बैठे थे और इस तरह हमारी कम्पनी पिक्सर का जन्म हुआ.
1986 में मुझे एक नयी हार्डवेयर कंपनी का प्रेजिडेंट बनने का मौका मिला जो पिक्सर इमेज कंप्यूटर(Pixar Image Computer) बेचती थी.. बात ये थी कि स्टीव, अल्वी रे(Alvy Ray), जॉन लास्सेटर (John Lasseter) और मुझे कोई आईडिया नहीं था कि हम कर क्या रहे है.
पिक्सर(Pixar) के प्रेसिडेंट के तौर पे मेरा फर्स्ट बिजनेस था लोगो को ढूंढना और हायर करना और फिगर आउट करना कि हमारी मशीन के लिए कितना चार्ज करना है. मुझे प्राइसिंग एड्वाइस (pricing advice) मिली कि मुझे हाई प्राइस से स्टार्ट करना है ताकि हम जब चाहे प्राइस रिड्यूस कर सके. लेकिन ये एक बड़ी मिस्टेक थी क्योंकि जल्दी ही हमारी रेपुटेशन एक हाई प्राइस वाले ब्रांड की बन गयी. और 1980 लास्ट इयर्स में हमारी अभी तक कुछ शोर्ट फिल्म्स ही पब्लिश हुई थी जिनमे से एक थी लुक्सो जूनियर (LuxoJr) ये एक शोर्ट फिल्म थी जिसका स्टार एक लैंप(lamp)था जो पिक्सर (pixar) का लोगो भी बना और फिल्म को जॉन ने डायरेक्ट किया था.
खैर, जो भी था लेकिन हमे अभी भी पैसे की प्रोब्लम थी – हमने अब तक सिर्फ 300 कंप्यूटर्स ही बेचे थे और नए प्रोडक्ट्स डिजाईन करने के लिए हमारे पास पैसे नहीं थे. स्टीव फ्रस्ट्रेट हो रहा था, हमें लगा शायद हमें हार्डवेयर बेचना बंद करना पड़ेगा. यही वो टाइम थे जब स्टीव ने कंपनी को बेचने की कोशिश की (तीन बार)लेकिन हमे किसी कंपनी से ऐसा कोई ऑफर नहीं मिला जो स्टीव को सही लगता.
हम ऑलमोस्ट डूब रहे थे कि एक बड़ी फनी बात हुई – इतने सालो में स्टीव और मेरी दोस्ती नहीं हो पाई थी मगर अब हमने धीरे-धीरे एक दुसरे को समझना स्टार्ट कर दिया था. फिर चीज़े भी धीरे-धीरे ठीक होने लगी और फिर एक दिन डिज्नी ने हमें एक कोलाब्रेशन ऑफर किया, लेकिन उनकी एक कंडीशन भी थी : और कंडीशन ये थी कि वो फिल्म के ओनर होंगे और डिस्ट्रीब्यूट भी वही करेंगे.
और तब जॉन को टॉय स्टोरी का आईडिया आया. उसने तुरंत एक टीम बनाई और इस पर काम स्टार्ट कर दिया. प्लाट और केरेक्टर्स कई बार इवोल्व हुए और काफी चेंजेस भी किये गए लेकिन एक दिन ऐसा भी आया जिसे पिक्सर में हमेशा ब्लैक फ्राईडे के नाम से जाना जाएगा: जब वूडी द टॉय को एक डार्क, मीन और ट्विस्टेड पर्सनेलिटी (twisted personality) के रूप में प्रजेंट किया गया.
लेकिन डिज्नी ने ये आईडिया रिजेक्ट कर दिया और टेमप्रेरली(temporarily) प्रोडक्शन को शट ऑफ करने का डिसीजन लिया. हमारे लिए ये न्यूज़ बड़ी टेरीफाइंग(terrifying) थी लेकिन हमने हार नहीं मानी और सब कुछ ठीक करके ही दम लिया. और फाइनली 1995 में टॉय स्टोरी पब्लिश हुई और इसे ह्यूज़ सक्सेस मिली. और अब हमारी नेक्स्ट सेकंड फिल्म का टाइम आया: अ बग’स लाइफ (A Bug’s Life
अ बग्स लाइफ (A Bug’s Life) के प्रोडक्शन के साथ ही डिज्नी के एक्जीक्यूटिवस(executives ) एक रिक्वेस्ट लेके आये: कि टॉय स्टोरी 2 को डायरेक्ट टू वीडियो रिलीज़ (direct-to-video release )बनाई जाए, जिसका मतलब होगा कि ये थियेटर्स में रिलीज़ नहीं की जाएगी. उस टाइम पे ये बात समझी जा सकती थी क्योंकि उन दिनों मोस्ट मूवी सेकुएल्स(sequels) फर्स्ट मूवी की तरह उतने सक्सेसफुल नहीं होते थे.
हालांकि ये मूवी की क्वालिटी को अफैक्ट कर सकता था और अपना एम (aim ) कैसे कम रखे ये हमें समझ नहीं आ रहा था. और इसने वर्किंग कल्चर पर भी एक नेगेटिव इम्पैक्ट डाला था क्योंकि जो डायरेक्टर्स अ बग्स लाइफ में काम कर रहे थे उन्हें टॉय स्टोरी 2 वाले डायरेक्टर्स से ज्यादा प्रायोरिटी दी जा रही थी.
और क्रू(crew) बी लेवल के वर्क के लिए रेडी नहीं था. तो इसलिए इस प्रोजेक्ट्स के कुछ मंथ्स बाद ही मैंने डिज्नी के साथ एक मीटिंग की. मैंने उनके सामने एक चेंज प्रोपोज किया कि टॉय स्टोरी 2 को थिएटर्स में रिलीज़ किया जाये. हैरानी की बात थी कि वे लोग मेरी बात पे रेडी हो गए. ये फर्स्ट टाइम था जब हम दो बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे थे इसलिए हमारे लिए एफोर्ट्स बेलेंस करना थोडा मुश्किल हो रहा था.
लेकिन अ बग्स लाइफ की रिलीज़ के बाद जॉन को फाइनली थोडा टाइम मिला ये देखने का कि टॉय स्टोरी के डायरेक्टर्स ने आखिर अब तक किया क्या है. और जब उसने देखा तो पता चला कि ये मूवी के नाम पर डिजास्टर बनी थी. हमने डिसाइड किया कि इसे दुबारा बनायेंगे. हमने सिर्फ 9 मंथ्स के अंदर ही सब कुछ फिर से फिक्स किया.
काम बड़ा मुश्किल था, हेक्टिक था, सारे वर्कर्स को स्ट्रेस इंजरीज(stress injuries) फेस करनी पड़ी लेकिन हमने कुछ ऐसा क्रियेट किया था जो लोगो को हमसे उम्मीद नहीं थी. हमे अपने प्रोसेस पे पूरा ट्रस्ट था और क्वालिटी ही हमारी प्रायोरिटी थी. लेकिन की ये है कि ये ट्रस्ट अपने माइंड में कभी ना बिठाए कि हर चीज़ अपने आप हो जायेगी.
Part II: Protecting the New (पार्ट II: प्रोटेक्टिंग द न्यू)
टॉय स्टोरी 2 के बाद तो हमारा प्रोडक्शन प्रोग्रेस बड़ी तेज़ी से एक्सपेंड होने लगा था. अचानक से हमारी झोली में ढेर सारे प्रोजेक्ट्स आ गए थे और जिन 5 लोगो ने टॉय स्टोरी 2 पे काम किया था, इन सारी फिल्म के प्रोडक्शन के लिए काम नहीं कर सकते थे. हमारे पास मॉन्स्टर्स इंक (Monsters Inc.) फाइंडिंग नीमो, (Finding Nemo) और द इनक्रेडीब्लस(The Incredibles), ये सारी मूवीज प्रोसेस में थी.
इतने सालो में पिक्सर ने एक की मैकेनिज्म(key mechanism) किया था :ब्रेनट्रस्ट(Braintrust) जिसमे हमने सारे स्मार्ट और पेसियेनेट(passionate) लोग एक रूम में भर दिए थे जो प्रॉब्लम्स आईडेंटीफाई करके उन्हें सोल्व कर सके. ब्रेनट्रस्ट(Braintrust) के पास 4 इंग्रीडीयेंट्स(ingredients) थे : फ्रेंक टाक (frank talk), स्प्रीटेड डिबेट (spirited debate), लव(love), और लाफ्टर (laughter) जिसकी वजह से ये तीन मज़ेदार और सक्सेसफुल था.
और यही वो चीज़ थी जो इसे किसी भी तरह के फीडबैक मेकैनिज्म (feedback mechanisms) से डिफरेंट बनाती थी. ब्रेनट्रस्ट ही वो तरीका था जो ओनेस्टी (honesty) और कैंडोर(candor) प्रोवाइड करा सकता था जो पिक्सर के प्रेजिडेंट्स डे वन से ही एक दुसरे को प्रोमिस करते आ रहे थे. सच बोलना काफी मुश्किल काम है लेकिन एक क्रिएटिव कंपनी में एक्सीलेंस(excellence) को मेंटेन रखने का यही बस एक मेथड है.
ब्रेनट्रस्ट इस आईडिया पर चलता था कि हर नोट एक कॉमन गोल सर्व करने के लिए है: बैटर मूवीज बनाने के साथ-साथ हम एक दुसरे को सपोर्ट करे और हेल्प करे. और एक बार पे मै स्ट्रेस करना चाहूँगा कि ब्रेनट्रस्ट के लिए ज़रूरी नहीं कि आप पिक्सर में ही काम करे, अपने लेवल के लोगो से मिलो, उनके साथ मिलकर एक टीम बनाओ और अपना बेस्ट दो.
वो क्या है जो सबसे पहले आपकी माइंड में आता है जब आप फेलियर वर्ड सुनते है ? मै शर्त लगा के बोल सकता हूँ कि शेम और फियर यही दो वर्ड आपके माइंड में आते होंगे. क्योंकि हम सब इसी सोच के साथ बड़े हुए है जहाँ फेल होना काफी बुरा माना जाता है. लेकिन हमे इस मिसकांसेप्टशन (misconception) को चेंज करना होगा.
फेलियर(Failure) को अगर सही ढंग से अप्रोच किया जाए तो ये हमें ग्रो करने का चांस दे सकती है. एक फियर बेस्ड, फेलियर अगेंस्ट कल्चर में लोग रिस्क लेने से डरते है. लेकिन जब आप फियरलेस कल्चर क्रियेट करेंगे तो फिर लोग न्यू आईडियाज और न्यू एरियाज़ एक्सप्लोर करने में हेजिटेंट(hesitant) फील नहीं करेंगे.
ऑफ़ कोर्स कुछ जॉब्स में फेल होना काफी फेटेल(fatal) प्रूव हो सकता है जैसे कि कमर्शियल फ़्लाइंग में) लेकिन बात अगर क्रिएटिव एडवेंचर्स की हो तो जीरो फेलर का कांसेप्ट ही बेकार है. लेकिन क्या करे अगर हम फेल हो जाए तो ? हम अपनी फेलियर का कैसे पूरा बेनिफिट ले?
क्योंकि हम कुछ टाइम से एक के बाद एक फेलियर ही फेस कर रहे थे, हम ज्यादा मूवी रिलीज़ करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन डायरेक्टर्स को लोस पे लोस हो रहा था और हम आगे मूव नहीं कर पा रहे थे. मार्च 2011 में जिम मोरिस (Jim Morris)पिक्सर के जेर्नल मैनेजेर ने एक मीटिंग बुलाई और उसने कहा कि नेक्स्ट दो दिनों में हमें ये फिगर आउट करना है कि क्या मिसिंग है और हम कैसे इसे ठीक करे.
हमारी टीम में किसी ने भी किसी दुसरे को ब्लेम नहीं किया बल्कि हर कोई खुद को इस प्रोब्लम का रिस्पोंसिबल मानकर चल रहा थे और इसका सोल्यूशन सोच रहा था और मुझे इस बात का प्राउड था. फेलियर और इसके इफेक्ट्स डिस्कस करने से प्रोब्लम को बैटर ढंग से समझा जा सकता है और अपने रास्ते की किसी भी रुकावट जैसे फियर को हटाया जा सकता है.
फियर का इलाज़ ट्रस्ट है. दूसरो पर ट्रस्ट करने का ये मतलब नहीं कि वे मिस्टेक नहीं करेंगे बल्कि इसका मतलब है कि अगर कोई मिस्टेक हो जाती है तो वे इसे सोल्व करने में हेल्प करेंगे. इस पूरे एक्स्पिरियेंश(experience ) ने मुझे ये सिखाया कि मिस्टेक प्रिवेंट करने के बजाये हमें ये सोचना चाहिए कि सब अच्छी इंटेंशन के साथ प्रॉब्लम सोल्व करना चाहते है.
लोगो को रिस्पोंसीबिलिटी (responsibility) दो,उन्हें मिस्टेक भी करने दो ताकि यो खुद ही उस मिस्टेक को फिक्स करना सीखे. एक मैनेजेर की जॉब रिस्क प्रिवेंट करना नहीं है बल्कि उस मिस्टेक से रिकवर होने की एबिलिटी बिल्ड करना है.
1994 से 2010 तक डिज्नी की ऐसी कोई भी एनिमेटेड फिल्म नही थी जो बोक्स ऑफिस में नंबर वन रही हो. मुझे इसका रीज़न जानने की बैचेनी थी क्योंकि मुझे लगा अगर हम इसी तरह सक्सेसफुल रहे तो जो कुछ भी डिज्नी एनिमेशन में हो रहा है, वो एक दिन हमारे साथ भी ज़रुर होगा.
ओरिजिनेलीटी (Originality) बड़ी फ्रेजाइल(fragile)और ख़ूबसूरती से बड़ी दूर होती है. इसीलिए मैं अपने एर्ली आईडियाज और मूवी स्क्रिप्ट को” द अगली बेबी(the ugly baby) बोलता था. और जहाँ तक बीस्ट की बात है तो ये उतना भी ग्रीडी और कंट्रोल से बाहर नहीं था जितना कि लोगो को लगता था.
लेकिन बेबी और बीस्ट दोनों के लिए सीक्रेट यही थे कि दोनों साथ में रहे, जिसके लिए बेलेंस का होना बड़ा ज़रूरी था. हमारा जॉब था न्यू को प्रोटेक्ट करना जोकि इस केस में बेबीज़ थे, लेकिन प्रोटेक्शन से मेरा मतलब आइसोलेशन (isolation) बिलकुल नहीं था.
एक पॉइंट पर न्यू को कंपनी की कुछ नीड्स के साथ एंगेज रखना था और उसमे से एक बीस्ट भी था. और सेम टाइम पर हमें बीस्ट को टेम करने के लिए उसकी नीड्स भी पूरी करनी थी. हम बीस्ट को लगातार फीड नहीं कर सकते थे, क्योंकि हमारे इंटेंशन के बावजूद कभी न कभी ये सेन्ट्रल फोकस में आ ही जायेगा.
इसलिए बेलेंस बनाने के लिए मैनेजेर्स को ध्यान रखना ही पड़ेगा. हमें पता होना चाहिए कि कब नए को प्रोटेक्ट करना है और कब बीस्ट के साथ एंगेज रहना है. ये सारे छोटे-छोटे फैक्टर्स पिक्सर को एक सक्सेसफुल कंपनी बनाते थे और बनाते आये है. मुझे आज भी “रेटाटूइल”(Ratatouille)मूवी के ईगो(Ego) के वर्ड्स याद आते है जो उसने रेस्ट्रोरेन्ट के बारे में रिव्यू(review) में लिखे थे जिसे चूहा रेमी(Remy) चलाता था :
“कभी ऐसा भी होता है कि क्रिटिक्स किसी चीज़ के लिए सच में रिस्क लेते है और और चीज़ होती है एक नयी डिस्कवरी या किसी एकदम नयी चीज़ को डिफेंस करना क्योंकि ये दुनिया अक्सर न्यू टेलेंट, न्यू क्रिएशन को एक्सेप्ट नहीं करती. इसलिए हर नयी चीज को किसी दोस्त की ज़रूरत पड़ती है”
2006 में हमने डिज्नी को पिक्सर बेचने का डिसीज़न लिया और एम्प्लोयीज़ इस चेंज से उतने खुश नहीं लगे जितना कि मै चाहता था. जब भी हम कुछ नया ट्राई करते थे, लोग कम्प्लेंट्स (complaints) करने लगते थे ये बोलकर कि मैंने प्रोमिस किया था कि पिक्सर कभी चेंज नहीं होगा.
और जब ये कंटिन्यू होने लगा तो मैंने ये फील किया कि बहुत से वर्कर्स किसी भी चेंज को पिक्सर के लिए एक थ्रेट की तरह देखते है. लोग उन्ही चीजो को पकड कर रखना चाहते थे जो काम करती है, जो सक्सेसफुल है इसलिए वो चेंज को इतनी ईजिली एक्सेप्ट नहीं कर पाते है.
लेकिन हमारे चाहने ना चाहने से क्या होगा, चेंज तो आके रहेगा, लाइफ में रेंडम नेस रहेगी और यही ब्यूटी ऑफ़ लाइफ है. इसी दौरान, हमारी टेंथ मूवी “अप” प्रोडक्शन में थी. अप को अपने हार्ट तक पहुँचने के लिए काफी चेंजेस से गुजरना पड़ा था. और जो लोग इस मूवी में काम कर रहे थे उन्हें ये चेंज के साथ चलना ज़रूरी था.
और जहाँ तक रेंडमनेस की बात है तो हम इस दुनिया में पैटर्न्स, साइट्स और इवेंट्स देखने के लिए पैदा हुए है लेकिन ये हमें कभी भी आल्टरनेटिव्स (alternatives) के बारे सोचने का मौका नहीं देता. क्रिएटिव एंडेवर्स(creative endeavors) में हमें उन चीजों को फेस करना ही पड़ता है जो हमारे लिए अननॉन(unknown)है.
रेंडमनेस सिर्फ इवेंट्स(events)में ही नहीं है बल्कि ह्यूमन पोटेंशियल(human potential) में भी है. कोई भी पास्ट से चिपक कर क्रिएटिव सक्सेस (creative success )अचीव नहीं कर सकता है. हमें रेंडमनेस को एक्सेप्ट करना ही होगा क्योंकि अपना गुड लक जानना और खुद से ये एक्स्पेट ना करना कि हर वो चीज़ हो हमने बनाई वो सिर्फ हमारी जिनियेसनेस (geniusness) का रिजल्ट नहीं है, तो मोर रियेलिस्टिक एसेसमेंट (realistic assessments)क्रियेट करे और डिसीज़न ले जिसके लिए मेरा व्यू हमेशा कुछ ऐसा होगा: वर्किंग विद चेंज इज व्हट क्रिएटिविटी इज आल अबाउट. (working with change is what creativity is all about)
हार निश्चित है, आप इसे अवॉयड नहीं कर सकते और जो भी इस सच को झुठलायेगा, फेल होगा. हम सबको लाइफ में कभी ना कभी तो फेलियर फेस करना ही होगा लेकिन कब और कैसे ये हम नहीं जानते, और इसीलिए हमें हिडन प्रोब्लम्स के लिए रेडी रहना चाहिए. अपनी सारी हिडन प्रोब्लम्स को लाईट में लाना इम्पोर्टेंट है लेकिन आप चाहे या ना चाहे कुछ प्रोब्लम्स फिर भी हिडन रहेंगी. लेकिन इस सबके बावजूद आप एक बैटर मैनेजेर रहेगे.
अब हम 3 लेवल के हिडननेस के बारे में बताते है : लेवल नम्बर वन है क्योंकि मै एक मैनेजर हूँ, तो लोग मेरे सामने अपने वर्ड्स और एक्शन को लेकर ज्यादा केयरफुल रहेंगे. इवेनच्युली (Eventually) उनका बेड बिहेवियर सामने से हट जाएगा – सिर्फ मेरे सामने से. लेवल नंबर टू है जब बहुत से लोग अपनी पोजीशन इवेल्यूट (evaluate) करना शुरू करते है, अपनी एनर्जी अपवार्ड मैनेज करने के लिए फोकस करते है, जबकि वे अपने से नीचे लेवल को लोगो को पूअरली(poorly) ट्रीट करते है.
हायर पोजीशन पर बैठे लोगो को लगता है कि वे लोअर पोजीशन में बैठे लोगो से ज्यादा क्लियर देख सकते है. थर्ड लेवल पर जो लोग डेली फिल्म प्रोडक्शन में इन्वोल्व रहते है, काम्प्लेक्स प्रोसेस(complex processes) में एंगेज रहते है. प्रोब्लम ये है कि अगर उनके डायरेक्शन में कोई क्राईसिस आती है तो वे कभी भी उसी टाइम हमें रिपोर्ट नहीं करते.
उन्हें लगता होगा कि शायद अपर लेवल के मैनेजर्स को इतनी जल्दी इन्वोल्व नहीं करना चाहिए और इसीलिए प्रोब्लम्स वही हिडन रहती है. और जब हम हिडन प्रोब्लम्स को एकनोलेज्ड (acknowledge) नहीं करते है तो आगे जाकर नुकसान हमारा ही होगा.
हमे क्रिएटिविटी में कई सारे हिडन बेरियर्स (hidden barriers)फेस करने पड़ते है लेकिन केंडोर(candor), रिसर्च (research), सेफ्टी (safety), सेल्फ एस्सेमेंट (self-assessment), और प्रोटेक्शन ऑफ़ न्यू, ये सारे मैकेनिज्म (mechanisms) यूज़ करके हम फियर को काफी हद तक दूर कर सकते है. ये कॉन्सेप्ट्स चीजों को ईज़ियर बना देंगे, ऐसा ज़रूरी नहीं है लेकिन ये हमे हिडन प्रोब्लम्स को अनकवर करने में हेल्प कर सकते है जिससे कि हम उन्हें फेस कर सके.
पार्ट III : बिल्डिंग एंड ससटेनिंग
कुछ स्पेसिफिक मेथड्स है जो हमने पिक्सर पर अप्लाई किये है, अपने कोलाब्रेशन(collaboration) को हमारे क्लाउडेडी व्यूज़ से प्रिवेंट करने के लिए.
पूरी टीम जब एक साथ बैठकर प्रोब्लम्स पर डिस्कस करके उसे सोल्व करने की कोशिश करती है तो हर एक को सीखने का मौका मिलता है और सब एक दुसरे को इंस्पायर करते है.
मेरे ओपिनियन से जब लोग रिसर्च ट्रिप पे जाते है तो हमेशा उनमे एक चेंज आता है. जो एक्स्पिरियेंश उन्हें मिलता है, वो फिल्म की डेवलपमेंट के लिए फ्यूल की तरह होता है, और इसीलिए कॉपी करने के बजाये हम कुछ क्रिएटिव करते है.
किसी भी क्रिएटिव काम में फीचर्स और इफेक्ट्स की एक लम्बी सी लिस्ट होती है जो आप अपनी फिल्म को ग्रेट बनाने के लिए इन्क्ल्यूड(include) करना चाहते है लेकिन लिस्ट की हर चीज़ को अप्लाई करना इम्पोसिबल है तो इसलिए आपको एक डेडलाइन सेट करनी पड़ती है.
और फिर ये चीज़ एक डिलेमा(dilemma) क्रियेट करती है कि लिस्ट में कौन सी चीज़ ज्यादा इम्पोर्टेंट है ये डिसाइड करना बड़ा मुश्किल हो जाता है. मेरा पास इसका सोल्यूशन ये है कि जब भी हम लिमिट्स रखते है, हमें खुद से पूछना चाहिए कि इससे हमारे लोगो की क्रियेटिविटी पर क्या इफेक्ट पड़ेगा, क्या वो उतने ही क्रिएटिव रह पाएंगे, अगर ज़वाब है नहीं तो तो लिमिट इम्पोज(impose) नहीं की जानी चाहिए .
आर्ट टेक्नोलोजी को चैलेंज करता है, टेक्नोलोजी आर्ट को इंस्पायर (inspire) करती है. अगर हम कोंसटेंटली (constantly) आर्ट की खोज में टेक्नोलोजी के यूज़ से अपने मोडल्स को चेंज और इम्प्रूव करते रहे तो हम खुद को फ्रेश रख सकते है.
जब आप एक एक्सपेरिमेंट करने निकलने है तब आपको पता नहीं होता है कि आप कोई ब्रेकथ्रू अचीव कर पायेंगे या नहीं. चांसेस ज्यादा है कि आप शायद ना कर पाए. लेकिन फिर भी आपको कोई ना कोई पज़ल मिलेगा –एक झलक शायद अगर आप अननोन (unknown) की तलाश में निकले. हमारी शोर्ट फिल्म्स पिक्सर के एक्सपेरिमेंट का एक तरीका है और हम उन्हें इसी तरह की ग्लिम्पस(glimpses) पाने की होप में प्रोड्यूस करते है.
वैसे तो पिक्सर में कुछ लोग ड्रा (draw) करना जानते है, लेकिन ज्यादातर लोग आर्टिस्ट नहीं है लेकिन एक इम्पोर्टेंट प्रिंसिपल है जो ड्राइंग(drawing) के प्रोसेस से गुजरता है और हम चाहते है कि ये प्रोसेस सब देखे:और वो ये है कि प्रीकांसेप्शंस(preconceptions) बीच में लाये बगैर आप अपने ब्रेन को कुछ भी क्लीयरली ओब्ज़ेर्व करना सिखा सकते है.
हर मूवी के पूरी होने के बाद तुरंत बाद ये एक छोटी सी मीटिंग होती है जहाँ हम डिस्कस करते है कि क्या हुआ और क्या नहीं हुआ ताकि हम लेसन लेर्न कर सके.
एक कम्पोजर के तौर पर फिलिप ग्लास (Philip Glass ) ने एक बार कहा था, “रियल इश्यू ये नहीं है कि सही आवाज़ कैसे ढूढनी है बल्कि … ये है कि इस सही आवाज़ के कांसेप्ट से छुटाकारा कैसे पाना है” क्रिएटिवली (creatively) आगे बढ़ने के लिए हमें कुछ चीज़े छोडनी होंगी ताकि हम दूसरो के व्यूज़ को भी जगह दे सके, उन पर ट्रस्ट कर सके और उनके आईडियाज सुन सके.
फ्यूचर प्रेडिक्ट करने के बेस्ट तरीका है कि उसे इन्वेंट किया जाये. तो हम कैसे अनमेड(unmade) फ्यूचर क्रियेट करेंगे? अब यहाँ पर रियल कांफिडेंस काम आता है, वो कांफिडेंस जो हम साथ में फिगर आउट करेंगे.
हमे फ्यूचर इन्वेंट करने से एक ही चीज़ रोक सकती है और वो है अनसर्टेनिटी (uncertainty)और फियर. लेकिन मेरे पास ऐसे कई डिफरेंट मैकेनिज्म (mechanisms)है जो मुझे अनसर्टेनिटी से डील करने में हेल्प करते है. अननॉन (unknown) से डील करने के लिए या तो एक पोजिटिव एटीट्यूड अडॉप्ट करो या फिर ये सोचना छोड़ दो कि आपसे कोई मिस्टेक हो जायेगी.
क्योंकि अगर आप किसी चीज को ना करने के लिए बहुत ज्यादा फोकस करेंगे तो पक्का आप उसे कर बैठेंगे. गोल ये हो कि प्रोसेस के साथ कम्पेर्टबल (comfortable) होना है और इसे फ्लो करने दो. जैसे कि बायरन होवार्ड (Byron Howard)डिज्नी के हमारे डायरेक्टर्स में से एक, जो कहते थे इफ यू थिंक यू स्टिंक (if you think, you stink) मेंटली भी आप फ्यूचर इन्वेंट कर सकते है बजाये इससे डरने के.
अगर आप माइंडफुल है तो आप उन प्रॉब्लम पर फोकस कर सकते है जिन्हें आप सोल्व कर सकते हो, और जो प्रोब्लम्स आपके कण्ट्रोल में नहीं है उनके बारे में सोच कर आप खुद को परेशान नहीं करेंगे. इसका मतलब होगा कि जो सामने है सिर्फ उस पर पूरा ध्यान लगाए नाकि पास्ट और फ्यूचर पर. क्योंकि एंड में जो डिसीज़न हम लेते है वही हमारा फ्यूचर इन्वेंट करते है तो इसलिए हमे जो भी डिसाइड करना है सोच समझ कर करना है.
Part IV: Testing What We Know पार्ट IV: टेस्टिंग व्हट वी नो
अक्टूबर 2005 था जब स्टीव ने एक्जेक्ट(exact) सेम वर्ड्स कहे थे” मै पिक्सर डिज्नी को बेचने के बारे में सोच रहा हूँ” सरप्राइज वर्ड जॉन और मेरी फीलिंग को बताने के लिए अंडरस्टेटमेंट होगा. हालांकि स्टीव और माइकल एइस्नेर(Michael Eisner, जो उस टाइम पर डिज्नी का चेयरमेन और सीईओ थे, की ज़रा भी नहीं बनती थी लेकिन डिज्नी में हालत बदल चुके थे – एइस्नेर(Eisner)डिज्नी से बाहर हो चुके थे और उनकी जगह बॉब इगेर(Bob Iger) आ गए थे.
स्टीव के पास ये रीजंस थे:
1) पिक्सर को अपनी मूवीज दुनिया भर के थियेटर्स में चलाने के लिए एक मार्केटिंग और डिस्ट्रीब्यूटिंग पार्टनर की ज़रूरत थी।
2) स्टीव को लगता था कि मेर्जेर(merger) होने से पिक्सर को एक बड़ा स्टेज मिलेगा जिसका इसपर ज्यादा क्रिएटिव इम्पैक्ट (creative impact ) होगा.
जॉन और मुझे बॉब को अच्छे से जानने का मौका मिला और नवम्बर 2005 की एक रात को मेरे, स्टीव के और जॉन के बीच में एक एग्रीमेंट हुआ. और हुआ ये कि बहुत से फैक्टर्स थे जिसने इस डील को शेप किया था, और इनमे से एक फैक्टर था ट्रस्ट, और दूसरा था रीएस्योरेन्स(reassurance) कि पिक्सर जैसा है, हमेशा वैसा ही रहेगा, इसमें कोई चेंज नहीं होगा. फिर कांफ्रेंस अरेंज की गयी, हमने अपने एम्प्लोयीज़ को रीएश्योर(reassure) किया खासकर डिज्नी के लोगो को, उन्हें लगा जो डिज्नी उन्हें बचपन में पसंद थी शायद वो लौट आये.
और मुझे इस बात पर बड़ा प्राउड हुआ कि ये चेंज ला मै सकता हूँ. हमे अभी बहुत काम करना था एक हेल्थी, क्रिएटिव वर्क एनवायरमेंट प्रोवाइड कराने के लिए. जॉन और मेरे पास काफी काम था. खैर, हम एक स्ट्रेटेजी और सेन्स के साथ आगे बढे. हमें इतना सब बनाने में सालो लग गए लेकिन बहुत सारे आर्ग्यूमेंट्स और रेज़िस्टेंट के बाद आखिर हम डिज्नी एनिमेशन को शट डाउन करने के फैसले को बदल पाए.
हमने एक लम्बी लड़ाई लड़ी और जीते, स्टूडियो एक बार फिर अपने पैरो पर खड़ा हुआ था, हमारा काम स्मूदली चलने लगा था. डिज्नी एनिमेशन अब एक नए लेवल पर आके खड़ा हो गया था. जो स्टूडियो वाल्ट डिज्नी ने बनाया था वो एक बार फिर से उसके लायक बन गया था.
जनवरी 2013 में पिक्सर की लीडरशिप में हमें दो इश्यू नज़र आये और उन्हें सोल्व करने के लिए हमें कुछ करना था. पहला इश्यू था हमारी फिल्म मेकिंग की राइजिंग कोस्ट, और दूसरा इश्यू था पिक्सर के वर्क कल्चर में एक अनफोर्च्यूनेट शिफ्ट. हमने फील किया कि हमारे लोगो ने कई सालो तक स्कसेस एन्जॉय की है इसलिए शायद अब वे अंडर प्रेशर आ गए है कि कहीं फेल ना हो जाए.
तो हमने नोट्स डे क्रियेट किया. मुझे लगता था की कोई भी क्रिएटिव कंपनी खुद को इवोल्व (evolve) करने से नहीं रोक सकती और स्टैगनेशन(stagnation) अवॉयड करने के लिए ये हमारा लेटेस्ट अटेम्प्ट था. हम चाहते थे कि लोग स्माल और बिग इश्यू एक्सप्लोर करने के साथ-साथ हमें फीडबैक भी दे. नोट्स डे के साथ सजेशन बोक्स भी लाया गया जहाँ लोग वो टोपिक्स सजेस्ट कर सकते थे जिन्हें डिस्कस करके हम और भी ज्यादा एफिशिएंट बन सकते थे. नोट्स डे बड़ा सक्सेसफुल रहा, हमारे लोगो में से एक ने एक नोट छोड़ा जिसमे लिखा था
“नोट्स डे प्रूफ है कि पिक्सर अपने लोगो की उतनी ही केयर करती है जितनी कि अपने फाइनेंस की” हमारे फर्स्ट नोट्स डे के बाद जो एनेर्जी लोगो में आई वो देखने लायक थी और मै बड़ा खुश था. जो आईडिया उस दिन हमे आया था, पिक्सर को चेंज कर रहा था – मिनीगफूली और बैटर तरीके से. इस बुक में मेरा गोल लोगो को ये शो कराना नहीं है कि पिक्सर और डिज्नी ने कैसे मिलकर अपनी सक्सेस स्टोरी लिखी बल्कि ये बताना है कि हमने कैसे अपनी जर्नी कंटीन्यू रखी.
हमने खुद को कैसे बनाये रखा, और सच ये है कि आखिर कर क्रिएटिविटी रिलीज़ करने के लिए चैलेंजेस, मिस्टेक्स, रिस्क और ट्रस्ट इन सबकी ज़रूरत पडती है. आपके पास अगर ये सब है तो आपका काम ईजी नहीं हो जाता लेकिन फिर ईजी बल्कि एक्सीलेंस (excellence) हमारा गोल है.
तो दोस्तों आपको आज का हमारा ये Creativity INC. Book Summary in Hindi कैसा लगा नीचे कमेंट करके जरूर बताये और इस Creativity INC. Book Summary in Hindi को अपने दोस्तों के साथ शेयर भी जरूर करे।