Deep Work Book Summary in Hindi – अपने काम में Focused कैसे रहें ?
इस समरी को पढके आप क्या सीखने वाले है ?
ये समरी पढके आपको ये पता चलेगा कि कैसे आज कल प्रोफेशनल लोग क्वालिटी से ज्यादा क्वांटिटी पर जोर देते है, और कैसे ये चीज़ आज के यंग प्रोफेशनल को किसी पपेट्स की तरह बना रही है जो एक साथ मल्टीपल इमेल्स और प्रोजेक्ट्स निपटाने के चक्कर में मल्टी टास्किंग करने लगते है जिससे उनके काम में वो क्वालिटी जिसे “डीप वर्क” कहते है नहीं आ पाती.
डीप वर्क का मतलब बिना किसी डिसट्रेक्शन के पूरे फोकस के साथ काम करने से है. जिसका ये मतलब भी है कि आजकल के प्रोफेशनल लोगो को अपनी प्रायोरिटीज़ सेट करनी चाहिए.
Cal Newport जो की MIT से पढ़े है और इस बुक के author है, ये भी क्लेम करते है कि कोरपोरेट रेस से खुद को बचाने का सबसे बढ़िया तरीका है कि कुछ टाइम के लिए टेक्नोलोजी और सोशल मीडीया से एक ब्रेक लिया जाए और खुद को कुछ क्वालिटी टाइम दिया जाए जिससे आपको अकेले में सेल्फ एक्जामिनेशन का मौका मिले. आप अपनी कमियों और इम्प्रूव्मेंट्स पर गौर कर सके.
डीप वर्क इम्पोर्टेंट है ना सिर्फ इसलिए कि डिसट्रेक्शन एक बुरी आदत है बल्कि इसलिए भी कि ये आपको मिनिमम टाइम में पॉइंट A से पॉइंट B की तरफ लेकर जा सकता है.
पार्ट वन: द आईडिया
चैप्टर वन: डीप वर्क वेल्युबल क्यों है ?
अगर आप सोसाइटी में अपना एक सिग्नीफिकेंट जगह बनाना चाहते है तो आपको ये दो चीज़े करनी पड़ेगी :
1 – मुश्किल चीजों को लर्न करने की एबिलिटी
2 – किसी भी इम्पोर्टेंट टास्क को क्वालिटी और स्पीड के साथ फिनिश करने की एबिलिटी
हाई क्वालिटी वर्क अचीव करने के लिए हम एक इक्वेशन लेते है जो कुछ इस तरह है:-
हाई क्वालिटी वर्क प्रोड्यूसड = (टाइम स्पेंट) x (इन्टेसिटी ऑफ़ फोकस)
यानी अगर आपको high quality का काम करना है तो या तो उसपर ज्यादा time लगाओ या अपना focus increase करो।
वेल रेकोगनाइज्ड स्कूलों के टॉपर स्टूडेंट्स को आलरेडी ये इक्वेशन मालूम है जिससे वे अपना फोकस इनक्रीज करके कम टाइम में ही क्वालिटी वर्क प्रोड्यूस करते है.
लेकिन कोई भी फोकस्ड वर्क करने के लिए हमें जरूरत है कि हम मल्टीटास्किंग से बचते हुए डीपली उस काम को करे. हालाँकि हमारी आजकल की लाइफ में मल्टीटास्किंग करना एक रूटीन सा बन गया है.
सोफी लीरॉय जो की एक researcher है, वो ये प्रूव करती है कि “अटेंशन रेजिड्यू” नाम की एक चीज़ होती है.
टास्क A फिनिश किये बिना जब आप टास्क A से टास्क B की तरफ मूव करते है तो होता ये है कि हमारा दिमाग उस वक्त भी टास्क A के बारे में ही सोच रहा होता है. और ये रेजिड्यू जितना इंटेंस होगा उतना ही खराब आप टास्क B पर परफॉर्म करेंगे.
तो जब आप डीपवर्क की टेक्नीक सीखंगे (जो कि इस समरी में दी गयी है ) और उन्हें अपनी लाइफ में अप्लाई करेंगे तब आप कम टाइम में भी आप हाइएस्ट क्वालिटी का वर्क प्रोड्यूस कर पाएंगे.
चैप्टर टू: डीपवर्क रेयर होता है
टॉम कोह्र्रेन ने देखा कि हर रोज़ उनका डेढ़ घंटा तो सिर्फ इमेल्स पढने और उनका रिप्लाई देने में निकल जाता है. तो उन्होंने सोचा कि इसका कंपनी पर क्या इफेक्ट पढता है और एक इंडिविजुअल का उसकी कंपनी में क्या कोंट्रीब्यूशन होता है.
तो उन्होंने कुछ डिटेल्स जमा की जैसे सारे सेंट इमेल्स, टाइपिंग की स्पीड, रीडिंग स्पीड और एम्प्लोयीज़ की सेलेरी. उन्होंने एनालिटिकल सिस्टम से इसे निकाल कर देखा तो पता चला कि हर इमेल को पढ़ना labour के हिसाब से 95 सेंट्स का पड़ता था.
बहुत सारी कंपनीज़ जैसे फेसबुक वगैरह “द हॉल” का कांसेप्ट अडॉप्ट कर रही है, जिसमे एक ओपन स्पेस ऑफिस रहता है और हर employee को कोई अलग से cabin ही दिया जाता ताकि वो आपस में इंटरएक्ट कर sake और अपने आईडिया शेयर कर सके. लेकिन ये उन्हें डिसट्रेक्ट भी करता है क्योंकि ये उनके डीप वर्क ज़ोन से बाहर रखता है.
अक्सर लोग बिजिनेस को प्रोडक्टीविटी से कनफ्यूज़ करते है. अपनी जॉब में वेल्युब्ल होने और प्रोडक्टिव बनने के बारे में कोई क्लियर नॉलेज ना होने की वजह से बहुत सारे नॉलेज़ेबल वर्कर्स वही गलती करते है जो प्रोडक्टीवीटी दिखाने का इंडस्ट्रियल इंडिकेटर है: यानी एक साथ बहुत सारी चीज़े करना.
ऐसा बहुत सारे एम्प्लोयीज़ करते है. वे अपने सामने पड़े किसी भी काम को करने लगते है ताकि उन्हें लगे की वो बहुत काम करते है, और साथ ही जैसा आजकल ट्रेंड है जो काम इंटरनेट से रीलेटेड है वो तो प्रोडक्टिव माना ही जाएगा.
इन्ही सब वजहों से डीप वर्क रेयर होता जा रहा है जो एक तरह से आपके लिए अच्छी खबर है क्योंकि जो डीप वर्क कर सकता है वो किसी से भी कम्पटीट कर लेगा और अपने साथ काम करने वालो को आसानी से पीछे छोड़ देगा.
चैप्टर थ्री: डीपवर्क मीनिंगफुल है
रिक फ्यूरर एक ब्लैक स्मिथ है. वो एनशियेंट और मेडीडेविल मेटल working प्रेक्टिस में स्पेशलिस्ट है जिन्हें वो बड़ी मेहनत से अपने शॉप में create करता है.
अगर उसे एक तलवार बनानी है तो उसे ये हाथ से बनाने में पूरे 8 घंटे लगेंगे और हर बार हथोड़े की चोट ब्लेड के एक खास पॉइंट पर ही पड़नी चाहिए. इस तरह के काम में बहुत ज्यादा कोंशनट्रेशन चाहिए और किसी भी तरह की डिसट्रेक्शन नहीं होनी चाहिए. और आपको जानकार हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस आदमी का कोई फेसबुक अकाउंट क्यों नहीं है.
किसी भी चीज़ के ऊपर अपना अटेंशन फोकस करने की एबिलिटी आपकी लाइफ की क्वालिटी को बहुत बड़े लेवल पर अफेक्ट करती है और ये आपका एक्स्पीरियंश लेवल भी बढाती है.
लौरा कार्सटेंशेंन अपने पेशेंट की ब्रेन एक्टीविटी जांचने के लिए एम्आरआई स्कैंनर यूज़ करती है. वो जानना चाहती है की ब्रेन का एक हिस्सा जिसे एमिगडेला कहते है, पोजिटिव और नेगेटिव इमेजेस पर कैसे इमोशनल रिएक्ट करता है. उसने देखा कि छोटे पेशेंट दोनों पिक्चर से अफेक्टेड होते है जबकि बड़े पेशेंट सिर्फ पोजिटिव इमेजेस से अफेक्ट हुए थे.
लेकिन इससे ये बात प्रूव नहीं होती कि बड़े लोग बहुत सुखी थे इसलिए उन्हें पोजिटिव इमेजेस ज्यादा अच्छी लगी बल्कि इसलिए क्योंकि उनका ब्रेन इस तरह (re-wired) रीवायर्ड हो गया था जो उन्हें नेगेटिव के बजाये पोजिटिव चीजों को एप्रीशियेट करने की इंस्पिरेशन देता था. अपने अटेंशन को इस तरह से मैनेज करके इन लोगो ने अपने लिए ये दुनिया थोड़ी सी इम्प्रूव कर ली थी, और ये सब सिर्फ विचारो को बदल कर किया था, न की कोई बाहरी बदलाव से।
और ये बात भी प्रूव हुई है कि छोटी- छोटी चीज़े जो पोजिटिव लगती है जैसे इमेल या फिर किसी ओल्ड फ्रेंड से मिलना या ऑफिस पॉलिसीज पर बात करना – ये सब मिलकर आपके दिमाग में एक इमेज बिल्ड अप कर लेती है जिससे लगेगा कि आपकी लाइफ कितनी स्ट्रेस फुल है, फ्रस्टरेटिंग और डिप्रेसिंग है और वो इसलिए कि इन सब छोटी-छोटी चीजो पर आपका डिवाइडेड अटेंशन रहता है. तो अपना टारगेट हमेशा केयरफुली चुने और फिर उस पर अपना पूरा फोकस लगा दे. इन शोर्ट कहे तो आपको एक फोकस्ड लाइफ जीने की कोशिश करनी चाहिए जोकि सबसे बेस्ट है.
(Chick-san-mehaaye) Csikszentmihalyi, एक फेमस साइकोलोजिस्ट है जिन्होंने ईसीएम् (एक्स्पेरियेंश सेम्पलिंग मेथड), (एक टेक्नीक जो किसी ख़ास मूमेंट पर आपकी फीलिंग रिकॉर्ड करती है) से ये प्रूव किया है कि बेस्ट मोमेंट आमतौर पर तब होते है जब किसी इंसान का माइंड और बॉडी किसी डिफिकल्ट और कीमती चीज़ को हासिल करने के लिए खुद ब खुद पूरी तरह से focused हो जाता है और इसी state में वो सबसे खुश हो सकता है, और इस mental state को “फ्लो” कहा जाता है जिस पर book भी लिखी जा चुकी है.
पार्ट टू: द रूल्स
रूल #1: वर्क डीपली
युडोमोनिया मशीन एक ग्रीक कांसेप्ट है जो कि एक रूम के बारे में है जहाँ इंसान अपनी फुल पोटेंशियल और एक extreme focused state तक पहुँच सकता है. ये एक ऐसा स्पेस है जहाँ आप डीप वर्क कर सकते है. ये 5 कमरों वाला स्पेस है जो आपस में कनेक्टेड है, और कमरा नम्बर 5 में पहुंचने के लिए आपको पहले रूम नम्बर 4,3,2,1 से गुज़रना पड़ेगा.
तो आप मशीन के किसी भी स्टेज को बाईपास नहीं कर सकते है. फर्स्ट रूम आपको हल्का सा stress दिया जाता है ये बताके की आप जो काम करने वाले हो वो important है.
सेकंड रूम में आपके अंदर काम related curiosity जगायी जाती है की ताकि आप उनके बारे में सोचने लग जाओ.
थर्ड रूम में आपको सारे रेकोर्ड्स मिलेंगे जो आपका काम पूरा करने के लिए जरुरी है ताकि जब आप काम शुरू करो तो उसे बीच में छोड़ के ना जाना पड़े.
फोर्थ रूम में आप अपने काम से related सारे आईडियाज़ को एक कागज़ पर लिखते है, और फिफ्थ रूम साउंड प्रूफ है और सबसे अलग ताकि उसे काम करते वक़्त कोई भी disturb न करे. यही वो रूम है जहाँ डीपवर्क होता है. आप नाइनटी मिनट कंसंट्रेट करते है और नाइनटी मिनट का ब्रेक लेते है जिससे आपको ह्युमन ब्रेन का मैक्सिमम फायदा मिलता है.
बदकिस्मती से ये विजन हमारी करंट रियेलिटी से अभी कोसो दूर है. इसके बजाये हम अभी भी खुद को ओपन स्पेस ऑफिसेस में पाते है जहाँ इन्बोक्स के मैसेज और emails नेगलेक्ट नहीं किये जा सकते है और लगातार मीटिंग्स चलती रहती है- ये ऐसी सेटिंग होती है जहाँ colleagues कलीग्स बेस्ट पॉसिबल रिजल्ट के बदले आपसे अपने इमेल्स का क्विक रीस्पोंड चाहते है. और इस बुक के हिसाब से माने तो आप एक तरह से शेलो वर्क यानी की अकेला काम करने के लिए मजबूर हो जाते है.
लेकिन अगर आप रूल्स फोलो करते है तो अपने काम में वही सेम इफेक्ट पा सकते है जैसे कि आप किसी युडोमोनिया मशीन के अन्दर हो.
डीप वर्क की हैबिट डेवलप करने का सीक्रेट है कि गुड इंटेंशन से आगे निकला जाए (डीप वर्क की स्टेट में आने की कोशिश करना )और अपने डेली वर्किंग लाइफ में वो रूटीन्स और steps add करे जो इस तरह डीजाइन किये गए है कि आपके विल पॉवर को मिनिमाइज़ अमाउंट में यूज़ करके आपको एक ऐसे स्टेट ऑफ़ माइंड में रखे जिसमे आपका concentration टूटे नहीं. क्योंकि विल पॉवर तो एक मोबाइल बैटरी की तरह ही है जो टाइम के साथ कम होता जाता है.
यहाँ हम आपको चार ऐसी स्ट्रेटेटीज़ बता रहे है जो माइंड को “डीप वर्क” की स्टेज में लेकर जा सकती है:
1: MONASTIC APPROACH
ये स्ट्रेटेज़ी केवल इस बात पर बेस्ड है कि लाइफ की हर डिसट्रेक्शन से खुद को आइसोलेट रखा जाये. इस अप्रोच में आप किसी मोंक/पुजारी की तरह ही होते हो जो खुद को किसी भी तरह की डिसट्रेक्ट करने वाली चीज़ से दूर रखता है.
जैसे कि आप किसी आईएएस एक्जाम की तैयारी कर रहे हो और अपने पेरेंट्स के अलावा आपका किसी के साथ कोई कोंटेक्ट नहीं है.
अब जैसे हम डोनाल्ड नुथ का एक्जाम्पल लेते है. कंप्यूटर साइंस में अपने कई सारे इनोवेशन के लिए वे बहुत फेमस है खासतौर पर (analyzing algorithm performance) ऐनालाइज़िंग एलगोरिथम परफोर्मेंस के डेवलपमेंट के लिए जो बहुत मुश्किल अप्रोच है.
जब आप स्टैंडफोर्ड में उनकी वेबसाईट चेक करेंगे तो वहां आपको उनका कोई इमेल एड्रेस नहीं मिलेगा हाँ एक नोट ज़रूर होगा जिसमें लिखा है “1 जनवरी 1990 से मै काफी खुश हूँ, जबसे मेरा कोई इमेल एड्रेस नहीं है. मैं 1975 तक इमेल यूज़ किया था और मुझे लगता है कि लाइफ के 15 साल बहुत होते है इमेल यूज़ करने के लिए. इमेल उन लोगो के लिए बड़े काम की चीज़ है जिनकी लाइफ का रोल टॉप में रहना होता है लेकिन मेरे लिए नहीं क्योंकि मेरा रोल चीजो के बॉटम में है. और इसका यूज़ ना करके मुझे मिलता है अनइंटररपटेड कोंनसंट्रेशन और बहुत सारा टाइम जिसमे मै स्स्टडी कर सकता हूँ.”
बेशक उन्होंने खुद को दुनिया से अलग-थलग नहीं रखा था. क्योंकि उन्होंने अपना पोस्टल एड्रेस दिया था. उनका कहना था कि उनका अस्सिटेंट लैटर्स को छांट कर रखता है और जो इम्पोर्टेन्ट लैटर्स होते है उनका वे रिप्लाई देते है.
मोनास्टिक फिलोसफ़ी की प्रेक्टिस करने वाले लोगो का एक वेल डीफाइंड और हाइली वेल्युड प्रोफेशनल गोल होता है जिसे वे पूरी तरह से फॉलो करते है और उनकी प्रोफेशनल सक्सेस का ज़्यादातर क्रेडिट इसी एक चीज़ को बहुत बढ़िया ढंग से फॉलो करने को जाता है.
दूसरी Strategy: Bimodal Approach
ये स्ट्रेटेजी उनके लिए है जो खुद को पूरी तरह दुनिया से अलग नहीं रख सकते. रेवोल्यूशनरी साइकोलोजिस्ट और थिंकर कार्ल जंग ने यही स्ट्रेटेजी अपनाई थी. वे सुबह कुछ घंटे अपने कमरे में बंद होकर लिखते रहते थे और फिर फारेस्ट में वाक़ करते हुए जो लिखा होता उस पर सोच विचार करते थे. और फिर उन्हें बाद में अपने लेक्चर्स अटेंड करने भी जाना होता था और पैसे कमाने के लिए क्लिनिक भी.
इस फिलोसफी के हिसाब से आपको अपना टाइम डिवाइड करना है, जिसमे से कुछ टाइम स्लॉट सिर्फ उन कामो को देना है जो आपके लिए सबसे ज्यादा इम्पोर्टेंट है और बाकी टाइम में अपने दुसरे कामो को दीजिये. अपने डीप टाइम में बिमोडल वर्कर मोनेस्टिकली काम करता है – वो अपना सेल फोन ऑफ करके हर चीज़ से दूर रहेगा..
जैसे कि आप अपने रूम में 2 घंटे के लिए पढने चले गए और आपका फोन भी बंद है जिससे आपको कोई डिसट्रेकशन नहीं होगी, और फिर आप रूम से बाहर आकर 1 घंटे के लिए फिर से नार्मल लाइफ जी रहे है.
ये बिमोड्ल फिलोसफी इस बात पे बीलीव करती है कि डीप वर्क से एक्सट्रीम प्रोडक्टीवीटी लाई जा सकती है लेकिन तभी जब इसे करने वाला मेक्सिमम concentration से काम करे एक ऐसा स्टेट है जहाँ रियल में ब्रेकथ्रू होता है.
Third Technique: RHYTHMIC PHILOSOPHY
जैसा कि इसे कुछ लोग कहते है द चेन मेथड. इस मेथड को अप्लाई करने के लिए हर दिन कोई एक खास एक्टिविटी करने के लिए एक खास टाइम चूज़ किया जा सकता है. और हर रोज़ जब भी आप अपना वो टास्क खत्म कर ले आपको केलेंडर पर एक बड़ा सा रेड क्रोस लगाना है. ये तब तक करते रहे जब तक कि आप रेड क्रोसेस की चेन बढती हुई ना देख ले. बस ध्यान रहे कि ये चेन कटनी नहीं चाहिए.
Fourth Strategy : Journalistic Approach
जब आप पूरा दिन बहुत बीजी होते है तो इस अप्रोच को फॉलो कर सकते है. इसमें आप किसी जर्नलिस्ट की तरह एक्ट कीजिये. जैसे ही आपको फ्री टाइम मिले भले ही आधा घंटा भी तो आप डीप वर्क करे. इसका मतलब है कि अगर आपको पता है कि आप 5 से 5:30 फ्री रहने वाले है तो अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दे और किसी आइसोलेट जगह पे अपने इम्पोर्टेंट टास्क पूरे करने बैठ जाए.
Rituals यानी actions क्या ले
अपनी बुक (on the origin of species) “ओंन द ओरिजिन ऑफ़ स्पीसिज़” के दौरान चार्ल्स डार्विन के वर्किंग लाइफ का बड़ा स्ट्रिक्ट स्ट्रक्चर रहा था. जैसा कि उनके बेटे फ्रेंसिस ने बाद में बताया था. चार्ल्स डार्विन सुबह सात बजे उठकर एक शोर्ट वाक् लेते थे फिर अकेले बैठकर अपना नाश्ता करते थे और आठ से साढ़े नौ के बीच स्टडी करने चले जाते थे.
अगले एक घंटे तक वे एक दिन पहले के लैटर्स चेक करते थे जिसके बाद वे साढ़े दस से दोपहर तक वापस स्टडी करते थे. इस सेशन के बाद वे अपने ग्रीन हाउस से अपनी सारी प्रॉपर्टी का एक गोल चक्कर लेते हुए उन आईडियाज पर जो उन्हें चेलेंजिंग लगते थे गहराई से सोच विचार किया करते थे.
जब तक कि उन्हें अपनी थिंकिंग से सेटिसफेकशन नहीं होती थी उनकी वाक् चलती रहती थी. उसके बाद ही वे अपने उस दिन के काम को फिनिश डिक्लेयर करते थे.
बेशक हम ये नहीं कहते कि आप भी यही सब करे, लेकिन कुछ चीज़े आपको ज़रूर कंसीडर करनी चाहिए.
– आप कहाँ काम करेंगे और कितनी देर इसके बारे में पहले से सोच के रखिये, क्योंकि आपको कोई एक लोकेशन तो चूज़ करनी ही पड़ेगी जहाँ आप डीप वर्क कर सके और effort दे सके.
– एक बार जब आप स्टार्ट करेंगे तो कैसे उस पर काम करेंगे इसके बारे में भी पहले से ही सोचिये. इसके लिए आपको रूल्स और प्रोसेस चाहिए कि आपके एफोर्ट्स स्ट्रक्चर्ड हो पाए. जैसे इंटरनेट ऑफ करना वगैरह. ताकि डीप वर्क करते वक्त आपका टाइम वेस्ट ना हो और ताकि ये सब सोचने से आपकी विल पॉवर बैटरी खत्म ना हो जाए.
– आप कैसे आपने वर्क को सपोर्ट करेंगे? आपको इसके लिए एनश्योर करना पड़ेगा कि आपके ब्रेन को हाई लेवल डेप्थ तक जाने के लिए सपोर्ट मिल सके. एक्जाम्पल के लिए आप अपनी शुरुवात एक कप कॉफ़ी के साथ कर सकते है. और साथ में पहले से सब कुछ सोच के रखिये, जिससे आपकी मेंटल एनेर्जी ये सोचने में बर्बाद ना हो कि उस मोमेंट पर आपकी क्या ज़रुरत है..
Make Grand gesture
जे. के. रोवलिंग हैरी पॉटर सीरीज़ की अपनी लास्ट बुक घर पे फिनिश नहीं कर पाई थी. कुत्तो के भौकने, बच्चो के शोर शराबे और यहाँ तक कि विंडो क्लीनर के शोर की वजह से उनका डीप कोंसंट्रेशन नहीं लग पा रहा था.
तो उन्होंने एक ग्रांड जेस्चर रखा और सीधे एक होटल में रहने चली गयी जो महंगा तो था मगर वहां जाकर वो शांति से डीप वर्क में आसानी से जा सकती थी. जब आप इस स्टेट में जाने के लिए इन्वेस्ट करते है तो इसका आपको फायदा मिलता है क्योंकि आप इससे कुछ अचीव ही करेंगे और टाल-मटोल से भी बचे रहेंगे.
क्या आपको अकेले काम करना चाहिए ?
कोलाब्रेशन नए आईडियाज़ और इनोवेशन को जन्म देता है. हालांकि इसकी वजह से आपका कोंसंट्रेशन डिस्टर्ब नहीं होना चाहिए. बेशक दुसरो से इंस्पायर हो मगर डीपली सोचने के लिए अकेले ही रहे. हाँ अगर कोई आपके साथ आपकी ही तरह सोचने वाला हो तो बात दूसरी है. तब तो सक्सेस मिलेगी ही मिलेगी.
किसी बॉस की तरह एक्ज़ीक्यूट करे
Intel जैसी बड़ी कंपनी ने एक पब्लिश्ड रिसर्च पर बेस्ड वर्किंग स्ट्रेटेज़ी अपनाई है. और रीसर्च के लेखक ने सीईओ को डिसक्रराइब करके ये बताया है कि क्या करना है, ये नहीं कि कैसे करना है. और इन दोनों सवालों के ज़वाब में काफी डिफ़रेंस है.
और इसे 4 disciplines ऑफ़ एक्जीक्यूशन से समझाया गया है. और यही सेम प्रिंसिपल डीपवर्क के लिए भी अप्लाई किये जा सकते है.
डिस्प्लीन#1: वाइल्डली इम्पोर्टेन्ट पर फोकस करे
छोटे-छोटे कई सारे गोल्स अचीव करने से ज्यादा इजी रहेंगा कि आप सिर्फ डीप वर्क पर ज्यादा ध्यान दे, और इसमें मोटीवेशन से काफी डिफ़रेंस आता है.
डिसपलीन #2: लीड मेजर्स पर एक्ट करे
किसी भी फील्ड में इम्प्रूव करने के लिए आपको एक तरह का फीडबैक चाहिए. दो तरीके है जिनसे आप अपनी परफोर्मेंस मेजर कर सकते है. ये है (lag)लेग मेजर्स और लीड मेजर्स. चलो इसे एक्जाम्पल से समझते है कि लेग मेजर्स और लीड मेजर्स क्या है.
जैसे मान लो आप एक स्टूडेंट हो और आपका मोक टेस्ट होने वाला है. तो टेस्ट में जो आपके मार्क्स आते है वो लेग मेजर्स है. अब क्योंकि आप एक्जाम दे चुके है तो आप अपने मार्क्स तो चेंज नहीं कर सकते मगर ये आपको एक इम्पोर्टेंट फीडबैक देगा, और अपने मोक टेस्ट के रिजल्ट के हिसाब से अगर आप अपने वीक सब्जेक्ट को 1 घंटा रोज़ देते है तो ये लीड मेजर्स है क्योंकि इस टेक्नीक से आपकी फ्यूचर परफोर्मेंस में काफी इम्प्रूवमेंट आएगा. तो किसी एक सर्टेन एरिया में इम्प्रूव करने के लिए आपको लेग मेजर्स और लीड मेजर्स दोनों की ज़रुरत है.
डिस्प्लीन #3: एक कम्पेलिंग स्कोर बोर्ड रखे
इस step के मुकाबले आपको और ज्यादा सक्सेस पाने के लिए और कोम्प्टीटिवनेस बढाने के लिए अपनी प्रोग्रेस का रिकॉर्ड रखना होगा.
डिसप्लीन #4: अकाउंटेबल बने
खुद को मोटीवेट बनाये रखने के लिए हर वीक अपना स्कोर चेक करते रहे, इसे अपनी रेगुलर हैबिट बना ले.
क्यों लेज़ी बनना भी हमारे लिए अच्छा है ?
हमेशा खुद को मौके दे कि आप कुछ देर के लिए सब कुछ बंद करदे ताकि काम में आप अपना बैटर आउटपुट दे सके, जिसका मतलब है रेस्ट करना.
रीज़न #1: जब आप रेस्ट करते है तो आपकी परफोर्मेंस भी इम्प्रूव होती है.
जब भी आप रेस्ट मोड में होते हो तो आपका unconscious माइंड कोम्प्लेक्स और ज्यादा बड़ी इन्फोर्मेशन को बेहतर ढंग से टैकल कर पाता है बजाये तब जब आपका कांसस माइंड एक्टिव रहता है. जिससे आपकी प्रोब्लम सोल्विंग और डीसीजन मेकिंग एबिलिटीज़ इम्प्रूव होती है.
रीज़न #2: ये आपको एनेर्जी रीचार्ज करने में हेल्प करती है जिससे कि आप डीपली वर्क कर सके.
रीज़न #3: ज़्यादातर काम करते वक्त आपकी मैक्सिमम एनेर्जी यूज़ हो जाती है जिससे आप थक जायेंगे और फिर आप शाम को अपना डीप वर्क नहीं कर पायेंगे. तो ये आपके लिए रेस्ट करने का बेस्ट टाइम है. हाँ वो बात अलग है की अगर आपने पूरा दिन गधो की तरह shallow work किया है तब तो आप नहीं थकेंगे.
रूल 2: बोरडम को गले लगाए
एक jewish आदमी था जो हर सुबह उठकर अपनी रिलीजीयस बुक पढता था. बार बार एक ही बुक को इस तरह पढने से उसका दिमाग इस तरह ट्रेंड हो गया था कि वो पूरी कोंसंट्रेशन के साथ हर रोज़ वो किताब पढता था. हां, कोंसनट्रेशन इसी तरह प्रेक्टिस करके अचीव की जा सकती है. हम सब में ये एबिलिटी है मगर हम ट्राई नहीं करना चाहते है.
लेकिन हमेशा ये ध्यान रखे कि फोकस करते हुए बीच बीच में ब्रेक लेते रहे. ना कि ब्रेक लेते हुए फोकस करे. ये ओबियस बात लगेगी मगर सच भी है कि इसलिए इज़ीली डिसट्रेक्ट हो जाते है.
पॉइंट#1: अगर आपके काम में इन्टरनेट का ज्यादा यूज़ होता है या आपको बहुत सारी इमेल्स का रिप्लाई करना पड़ता होगा तो भी ये स्ट्रेटेजी आपके काम आ सकती है.
पॉइंट #2: इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप अपने इन्टरनेट इंटरवल्स को कैसे शेड्यूल करते है मगर स्ट्रिक्टली आपको थोडा फ्री टाइम अपने लिए देना पड़ेगा जिसमे इन्टरनेट का बिलकुल यूज़ ना हो.
पॉइंट #3: अपने घर और ऑफिस में अगर आप ये fix कर लेते है की आप इन्टरनेट का यूज़ सिर्फ एक particular time में ही करेंगे तो आपकी कोंसंट्रेशन बहुत इम्प्रूव हो सकती है.
रूल #3: सोशल मीडिया छोड़ दे
Baratunde Thurston “बाराटुंडे थ्रस्टन” को उसके दोस्त “वर्ल्ड का सबसे ज्यादा कनेक्टेड इंसान” के नाम नाम से बुलाते थे. उसने 25 डेज़ के लिए अपनी ऑनलाइन लाइफ छोड़ने का फैसला किया. फर्स्ट वीक के बाद ही उसे इसकी आदत पड़ने लगी. उसके लाइफ की पेस स्लो डाउन हो गयी थी मगर फिर जब 25 डेज़ गुजर गए वो फिर से ऑनलाइन रहने लगा और इस बार पहले से भी ज्यादा.
तो, किसी भी चीज़ को एकदम छोड़ना पॉसिबल नहीं है और ना ही ये एक सोल्यूशन है. इससे अच्छा है कि आप इन्टरनेट को आज की लाइफ की ज़रुरत समझते हुए यूज़ करते रहे. कभी कभी इसका फायदा भी होता है, अब सोशल मिडिया को ही लीजिये. कई बार ये आपको लाइफ में कोई गोल हासिल करने में हेल्प करता है. और देखा जाए तो इसके एक नहीं ऐसे बहुत से फायदे है बजाये इसके नेगेटिव साइड को अगर आप देखे.
और फिर एक 80-20 रूल है कि आपके काम का 20% हिस्सा 80% रिजल्ट प्रोड्यूस करता है. तो ये श्योर कर ले कि इस 20% में आप अपना ज्यादा से ज्यादा टाइम इन्वेस्ट करे ताकि रिजल्ट्स ड्रास्टिक लेवल पर achieve हो.
30 दिन के लिए खुद को इन्टरनेट से दूर रखे और अगर आपको लगता है कि आपके ये 30 दिन इन्टरनेट यूज़ करके मज़े से गुजरते या फिर लोग आपको इतने दिन मिस करते रहे तो बेशक फिर से आप ऑनलाइन रह सकते है. और अगर ऐसा नहीं है तो इन्टरनेट से दूरी बनाये रखे. साइड नोट में लिख के रखे कि आप कुछ दिन ऑफलाइन जा रहे है.
आमतौर पर एक आदमी दिनभर में 8 घंटे काम करता है. जिसका मतलब है कि 16 घंटे वो फ्री होता है. तो ये टाइम सिर्फ इन्टरनेट पर सर्फिंग करने में वेस्ट क्यों किये जाए इससे तो अच्छा है कि सेल्फ डेवलपिंग एक्सपीरिएंस किया जाए. बोरडम से बचने के लिए पहले ही डीसाइड किया जा सकता है कि इस फ्री टाइम में आपको क्या करना है जिससे आप ज्यादा एफिशिएंट हो पायेंगे.
रूल #4: ड्रेन द शैलो
“37 सिग्नल्स” नामकी एक सॉफ्ट वेयर कंपनी ने अपने वर्किंग डेज़ 5 से 4 कर लिए थे और फिर भी उसके प्रोडक्शन में कोई फर्क नहीं आया. कुछ लोग आर्ग्यु करेंगे कि भला ऐसा कैसे हो सकता है ?
ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इस कंपनी के एम्प्लोयीज़ ने अपने काम फिनिश करने के लिए टाइम को बहुत इम्पोर्टेंस दी, उन्होंने अपने काम से शैलो वर्क को लगभग पूरी तरह एलीमिनेट करके रख दिया था. और जब आप शैलो वर्क को डीप वर्क से रीप्लेस करते है तो आप देखेंगे कि कैसे आपको एक्स्ट्राऑरडीनेरी रिजल्ट्स मिलते है.
बेशक आपको अपनी फिजिकल लिमिट तक पहुंचना है जैसा कि स्टडीज़ में देखा गया है कि डीप वर्क करने के लिए 4 घंटे मैक्सिमम टाइम है, हां, रेयर इंडीविजुएल्स की बात अलग है अगर आप deep work करते है तो आप 4 घंटे में ही वो अचीव कर लेंगे जो बाकी लोग 8 घंटे में achieve करते है.
तो शैलो वर्क आखिर होता क्या है ?
शैलो वर्क वो है जिसमें आपका brain ज्यादा use नहीं होता, जिसमे आप lazy होके काम करते हो, और जिन्हे करते हुए अब बार बार distract हो जाते हो. शैलो वर्क करने वाले दुनिया में ज्यादा कुछ वेल्यु एड नहीं करते और ये इज़ीली रीप्लेस किये जा सकते है.
शैलो वर्क अवॉयड करने के लिए आपको सबकी पहुँच से दूर रहना होगा. इसका मतलब है कि आपको इमेल्स भेजने वाला सेंडर — कोई भी इमेल भेजने से पहले आपके टाइम की वेल्यु करते हुए बड़े थोटफुल तरीके से सिर्फ वही मेल्स आपको भेजेगा जो बहुत इम्पोर्टेंट हो और जिनका रिप्लाई आप तभी देंगे जब आपको रिप्लाई देना सच में ज़रुरी लगे.
और अगर आपका रिप्लाई करना या इमेल चेक करना आपके वेल्युएबल टाइम के हिसाब से सूट नहीं करता तो पहली बात तो वो इमेल भेजने वाला आपको इमेल्स भेजेगा ही नहीं जिससे आप अननेसेसरी शैलो वर्क से बच जायेंगे.
और एक रीप्लाय्र्र के तौर पर जब आप क्या रिप्लाई करना है इस बारे में गहराई से सोचते है तो आपका ज़वाब घुमा फिरा कर नहीं बल्कि क्लियर होता है, उसमे कनक्ल्यूजन रहता है. दूसरा आप्शन है रिप्लाई ना करना अगर आपको लगता है कि :
– अगर इसमें कुछ भी साफ़ समझ नहीं आ रहा जिसका कोई जवाब आपसे देते नहीं बन रहा.
– अगर इसमें आपके मतलब का कोई सवाल या प्रोपोजल नहीं है.
– आपके “रिप्लाई” करने से कुछ ख़ास नहीं होने वाला और ना ही “रीप्लाई ना” करने से कुछ नुकसान होगा.
Conclusion –
तो आपने इस समरी से क्या सीखा ?
हमने इस समरी में जाना कि डीप और शैलो वर्क के बीच क्या डिफ़रेंस है. हमने इसमें डीपवर्क करने के चार तरीके भी सीखे जो है मोनेस्टिक अप्रोच, बिमोड्ल अप्रोच, Rhythmic अप्रोच, और जर्नलिस्टिक अप्रोच. और सबसे ज्यादा ज़रूरी बात जो हमने सीखी वो है कि हम सोशल मिडिया और इन्टरनेट के डिसट्रेक्शन से कैसे बचे. और अगर हम इस समरी के सारे रूल्स अप्लाई करे तो इस बात में कोई शक नहीं कि हम पहले से ज्यादा डीप वर्क करने के बावजूद अपनी फेमिली और फ्रेंड्स के साथ भी ज्यादा टाइम स्पेंड कर पायेंगे.
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