अगर आप सही जगह आपकी intelligence इस्तेमाल नहीं करते तो आपका आई क्यू (IQ) लेवल हाई होने का कोई फायदा नहीं है. अगर आपके इमोशंस ही आपके कण्ट्रोल में नहीं है तो फिर जीनियस होने के बावजूद आप लाइफ में फेल हो जायेंगे.
ऐसे भी लोग है जिनका आई क्यू बड़ा हाई था फिर भी वो सेम मिस्टेक रीपीट करते रहते थे. यूजवली इसमें उनकी पर्सनल लाइफ इन्वोल्व रहती है.
विन्सेंट वेन गोह(Vincent Van Gogh) एक फेमस एक्जाम्पल है कि कैसे एक जीनियस भी बड़े इमोशनल इंटेलीजेन्स से अफेक्टेड हो सकता है. वैसे सब जानते है कि वो बड़ा ग्रेट पेंटर था, बड़ा टेलेंटेड, फिर भी लाइफ टाइम वो मेंटल इलनेस का शिकार रहा. इंटेलीजेंट होते हुए भी वो जिंदगी भर अपनी फीलिंग्स कण्ट्रोल करने के लिए स्ट्रगल करता रहा.
इसीलिए तो डैनियल गोलमेन का मानना है कि ईआई यानि इमोशनल इंटेलीजेंस “कैन मैटर मोर देन आईक्यू” (can matter more than IQ”). जबकि एवरेज आई क्यू और गुड ईआई वाले लोग लाइफ में ज्यादा बैटर परफॉर्म कर पाते है, वही हाई आई क्यू और लो ईआई (low EI ) वाले लोग ऑलमोस्ट फेल ही होते देखे गए है.
इससे पहले कि आप अपने बैड लक का रोना रोये, आपको एक बात बता दे – ईआई यानि इमोशनल इंटेलीजेंस इम्प्रूव की जा सकती है. ये गोलमेन की बुक का एक मोस्ट इम्पोर्टेंट गोल है – सबसे पहले ईआई के कांसेप्ट को थोरोली डिसक्राइब किया जाये और फिर आपको अपने इमोशनल इंटेलीजेंस को इम्प्रूव करने में हेल्प की जाए.
Emotional Intelligence Book Summary in Hindi
ईआई क्या है ? What is EI?
ऑथर ने इस काम्प्लेक्स कांसेप्ट को 5 डिस्टिंक डोमेन्स (distinct domains) में डिवाइड किया है :
1. नोइंग वंस इमोशंन्स (अपने इमोशंस को पहचाने) Knowing one’s emotions –
ईआई सेल्फ रिफ्लेक्शन से स्टार्ट होता है, अगर आप सच में अपना इमोशनल स्टेट जानना चाहते है तो सबसे पहले अपना माइंड शांत रखे – कुछ टाइम खुद को रोजमर्रा के शोरशराबे से दूर रखे. एक बार जब आप ऐसा कर लेंगे तो सेम चीज़ माइंड के साथ भी करे. जो भी फालतू की बाते है (जैसे कि: “अरे! कल मै स्टोर जाना भूल गया) अपने माइंड से हटा दे. इस तरह फिर आप अपनी इमोशनल लाइफ को बैटर तरीके से फील कर पायेंगे और समझ पायेंगे.
2. इमोशनल मैनेजमेंट (Emotional management) –
कुछ इमोशंस को कण्ट्रोल करने के लिए 10 सेकंड रुल सबसे बेस्ट है जैसे कि एंगर कण्ट्रोल करने के लिए. इसकी एकसरसाइज़ करने के लिए सबसे पहले तो एंगर के सिम्पटम्स क्या है ये जान लो, जैसे कि गुस्से में हमारी मसल्स टेन्श हो जाती है, और जब आपको ऐसा लगे तो आराम से बैठ जाओ और स्लोली 10 तक काउंटिंग करो. ये बेशक आपको काफी कॉमन सी एक्सरसाइज़ लगेगी लेकिन है ये बड़ी इफेक्टिव. कई सारे साइकोथेरेपिस्ट इसे अपनी डेली प्रैक्टिस में खुद यूज़ करते है और दूसरो को भी बोलते है.
3. मोटीवेट योरसेल्फ (Motivate yourself) –
“फ्लो” बुक में: साईंकोलोजी ऑफ़ ऑप्टीमल एक्सपिरिएंश में गोल सेटिंग के बारे में काफी कुच बताया गया है. आपकी मोटीवेशन क्या है, ये काफी हद तक आपके गोल्स पर भी डिपेंड करता है जो आप चूज़ करते है. क्योंकि जो गोल्स आप चूज़ करते है अटेंनेबल (attainable,) क्लियर और रियलस्टिक होने चाहिए. और फाइनली, जब भी आप कुछ अच्छा करे तो खुद को रिवार्ड ज़रूर दे, और उसके उलटे कुछ स्टुपिड करने पर खुद को पनिशमेंट भी दे.
4. एमपेथी (Empathy) –
इमोशनल इंटेलीजेंस के डोमेन्स में शायद एमपेथी (empathy) मोस्ट इम्पोर्टेंट है. बाकि डोमेन्स में भी कुछ एक्सटेंट तक एमपेथी इन्क्ल्यूड है. जैसे कि अगर आप खुद के साथ ही एमपेथी नहीं रखते तो खुद के इमोशंस कैसे समझ पायेंगे? हाँ, आपने सही सुना, आप खुद से एमपेथी रख सकते है, ख़ासकर जो लोग काफी लो सेल्फ रिस्पेक्ट फील करते है उनके लिए तो ये बहुत ज्यादा इफेक्टिव होती है. माइंडेडनेस साइकोथेरेपी (mindedness psychotherapy) में तो ये एक मोस्ट इम्पोर्टेंट कांसेप्ट है.
5. पे अटेंशन टू योर रिलेशनशिप्स (Pay attention to your relationships) –
ये आपका फाइनल और मोस्ट इम्पोर्टेंट टेस्ट होगा. जो कुछ आपने अब तक सीखा है, उसे अपनी पर्सनल लाइफ के डोमेन में इम्प्लीमेंट करना होगा. एक बार फिर से बता दे कि मोस्ट इम्पोर्टेंट चीज़ है एमपेथी (empathy). बहुत बार ऐसा होता है कि हम इतने हाईली डिफेंसिव पोजीशन में आ जाते है कि हम अपने दोस्तों और डियर वंस को अपनी पर्सनल लाइफ से दूर कर देते है. और ये तब होता है जब एमपेथी (empathy) नहीं होती. ऐसे में हम कुछ भी सोचने समझने से इंकार करने लगते है. लेकिन हमे ये बात समझनी होगी कि हमारे आस-पास वाले लोग कभी कोई चुभने वाली बात भी बोल सकते है लेकिन उसका ये मतलब बिलकुल नहीं कि वो सच में ऐसा सोचते है. लेकिन अगर वो हमारे बारे में कुछ बुरा सोचते भी है तो क्या फर्क पड़ता है? हमारी लाइफ में ऐसे कई मौके आते है जब हम अपनों से ही दुश्मनी निभाने लगते है, क्योंकि हमारे अन्दर एमपेथी की कमी होती है. और यही वो सिचुएशन है जहाँ एमपेथी काम आती है. तब आप खुद से बोल सकते है: “वेट! मै बड़े दिनों से अपनी गर्लफ्रेंड को इग्नोर कर रहा हूँ, उसे तो बड़ा बुरा लग रहा होगा, चलो मै उसे कॉल ही कर लेता हूँ”.
पे अटेंशन टू योर टेम्परामेंट (Pay attention to your temperament)
हेल्दी इमोशनल इंटेलीजेंस अचीव करना इतना ईजी नहीं होगा, आपके रास्ते में काफी सारी मुश्किलें आ सकती है. जैसे एक्जाम्पल के लिए आपके जींस, जो आपका टेम्परामेंटल टाइप डीटरमाइन(determine) करते है और जो आपके बिलकुल भी कण्ट्रोल में नहीं है. शोर्ट में बोले तो आप अपने सराउंडिंग वर्ल्ड में इसी तरीके से रिएक्ट करते है. कुछ लोग अपने में ही रहते है, कुछ एक्स्ट्रीमली एक्टिव होते है तो कुछ लोग सेंसिटिव.
ओल्ड ग्रीक लोगो ने भी ये चीज़ नोटिस की थी इसीलिए तो उन्होंने लोगो को 4 डिस्टिंक टेम्परामेंटल टाइप्स में (4 distinct temperamental types) डिवाइड किया था जो आज के टाइम में भी काफी रेलेवेंट है. और ये टाइप्स है :
1. कोलारिक (Choleric) –
इस टाइप के लोग एक्सट्रीमली एक्टिव होते है और इमोशनल भी काफी होते है.ये जल्दी कूल डाउन नहीं हो पाते और इसीलिए कई बारे काफी फ्रस्ट्रेटेड भी हो जाते है. शोर्ट में बोले तो इन लोगो के साथ डील करना ईजी नहीं है लेकिन फिर भी लोग इन्हें पसंद करते क्योंकि इनका एनेर्जी लेवल काफी हाई रहता है.
2. सेंगुइन (Sanguine) –
एक तरह से ये लोग कोलारिक्स टाइप के ही होते है – क्योंकि ये भी उनकी तरह एक्टिव और एनेर्जी से भरपूर होते है. लेकिन ये जल्दी काम डाउन (calm down) हो जाते है. इनके इमोशंस भी उतने ही इंटेंस होते है जितने कि कोलारिक्स टाइप के लोगो के. लेकिन ये कूल डाउन भी उतनी ही जल्दी होते है.
3. मेलेंकोलिक (Melancholic) –
इस टाइप के लोग थोड़े ग्लूमी और उदास नेचर के होते है. और ये एक्टिव भी नहीं होते बल्कि एकदम पैसिव होते है लेकिन उनके अंदर इमोशंस को फील करने की स्ट्रोंग पॉवर होती है. ये लोग दुःख, उदासी और नेगेटिव इमोशंस को पहले ही फील करने लग जाते है इसलिए इन्हें मेलेंकोलिक बोला जाता है.
4. फ्लेगमेटिक (Phlegmatic) –
ये लोग वो होते है जिन्हें हम बोल सकते है “चिल” इन्हें कोई भी बात अपसेट या टेंश नहीं कर सकती. यहाँ तक कि मोस्ट स्ट्रेसफुल टाइम में भी ये कूल रहते है. और ये काफी पैसिव और इनएक्टिव होते है इसीलिए स्ट्रोंग इमोश्सं फील नहीं कर पाते है.
इन बेसिक टाइप के टेम्परामेंट को एक्स्पेलन करने के लिए हम इतनी डिटेल में क्यों गए ? क्योंकि कुछ टेम्परामेंट्स खासकर क्लोरिक और मेलेंकोलिकटाइप्स को अपने इमोशंस और इंटरपर्सनल रिलेशनशिप्स में काफी प्रॉब्लम आती है. ज्यादा स्पेशिफिकेली बोले तो ऐसे लोग काफी सेंसिटिव होते है और इमोशनल भी.
अगर आप एक कोलारिक टाइप है तो आपको छोटी-छोटी बातो पर गुस्सा आ जाता होगा भले ही बाद में आपको रीग्रेट हो लेकिन आप इतनी जल्दी सॉरी भी नहीं बोलेंगे. लेकिन आपको फर्स्ट स्टेप लेना होगा. ऐसे में हमने जो एक एक्सरसाइज़ पहले मेंशन की थी – 10 सेकंड रुल वाली – आपके बड़े काम आ सकती है. ये आपको फ्रस्ट्रेशन और एंगर कण्ट्रोल में हेल्प करेगी ताकि आप अपने साथ-साथ दूसरो को भी हर्ट ना करे. वही दूसरी तरफ मेलेंकोलिक हार्श मैनर में एक्ट नहीं करते है.
इसके एकदम उल्टा ये सारी फ्रस्ट्रेशन अपने अंदर ही रखते है और कभी कभी तो खुद पर ही निकाल लेते है. हालाँकि ये एक्स्ट्रीमली डिस्ट्रटिव बात हो सकती है. अगर इसचीज़ से बचना है तो मेलेंकोलिक लोगो को अपने इमोशंस एक्सप्रेस करने की आदत डालनी होगी. मेलेंकोलिक लोग अक्सर अकेले सबसे अलग-थलग दीखते है हालांकि उनके अंदर इमोशंस भरे पड़े होते है लेकिन वो शो नहीं करते. और शायद इसीलिए फ्रेंड्स और फेमिली के लोग उन्हें इमोशनली कोल्ड समझते है. इस चीज को अवॉयड करने के लिए उन्हें अपने इमोशंस एक्सप्रेस करने ही होंगे.
कनक्ल्यूजन (Conclusion)
हम इस समरी को एक कोट (quote) से फिनिश करेंगे: “वेल इमोशनल स्किल्स वाले लोग अपनी लाइफ में ज्यादा कंटेट और इफेक्टिव होते है, उनका अपने माइंड हैबिट्स में पूरा कण्ट्रोल होता है जो उनकी प्रोडक्टीविटी को और भी एन्हांस करती है. जो लोग अपनी इमोशनल लाइफ कण्ट्रोल नहीं कर पाते, उन्हें जिंदगी भर खुद से लड़ना पड़ता है जो उनकी काम करने की एबिलिटी और क्लियर थोट्स को सबोटेज कर देती है.
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Sir mujhe ye book Hindi language me Chahiye plz address dijiye
ye emotional intelligence by daniel goleman book abhi hindi mei avilable nhi hai, mere paas ek tha lekin ek viewers mujhe contact karke mangwaya to maine usko de diya. sorry.