Feeding You Lies Book Summary in Hindi – फ़ूड इंडस्ट्री के झांसों से निकलकर अपनी सेहत बनाइये

Feeding You Lies Book Summary in Hindi – ये किताब फूड इंडस्ट्री के फैलाए हुए उस जाल से आपको बाहर निकालती है जिसमें जाने अनजाने हममें से हर कोई फंसा हुआ है। तरह-तरह के लुभावने विज्ञापनों और झूठे दावों के दम पर आप जंक फूड को भी हेल्दी समझकर खा लेते हैं। ब्लॉगर Vani Hari इस जगमगाती दुनिया का काला सच आपके सामने रखती हैं। वे आपको ये भी बताती हैं कि आप इनके चंगुल से खुद को कैसे बचा सकते हैं।

क्या आप विज्ञापनों से प्रभावित होकर चीजें खरीद लेते हैं, क्या आप ऐसे लोगों में हैं जो डाइटिंग करके थक चुके हैं फिर भी उनका वजन कम नहीं हो रहा, क्या आप न्यूट्रीशनिस्ट है और हेल्दी डाइट पसंद करने वाले लोगो में से है तो ये बुक समरी आपके लिए है।

लेखिका

वाणी हरि एक फूड एक्सपर्ट हैं। इनको “The Food Babe” के नाम से भी जाना जाता है। हेल्दी ईटिंग हैबिट पर लिखे उनके ब्लॉग लोग बहुत शौक से पढ़ते हैं। उन्होंने The Food Babe Way नाम की किताब लिखीहै। इसमें अपनी डाइट को डी टॉक्सिफाई करने का 21 दिन का प्लान बताया गया है। वाणी ने Truvani के नाम से केमिकल और टॉक्सिन फ्री न्यूट्रीशनल सप्लीमेंट भी लॉन्च किए हैं।

Feeding You Lies Book Summary in Hindi – फ़ूड इंडस्ट्री के झांसों से निकलकर अपनी सेहत बनाइये

सोडा पीने से मोटापा बढ़ता है लेकिन कंपनियां बड़ी आसानी से ग्राहकों और कानून की आंखों में धूल झोंकते हुए इसे बेच देती हैं।

यूएस का हेल्थ डेटा निराशाजनक है। 16 और विकसित देशों के मुकाबले यूएस हेल्थ इंडेक्स में सबसे आखिरी पायदान पर आता है। जबकि यहां स्वास्थ्य सुविधाओं पर बाकी देशों से ढाई गुना ज्यादाखर्च किया जाता है। इसके बावजूद ऐसी कौन सी बात है कि यहां के लोगों का स्वास्थ्य इतना खराब रहता है? न्यूट्रीशन एक्सपर्ट वाणी हरि बताती हैं कि इसके पीछे बड़ी फूड कंपनियां जिम्मेदार हैं। इनको मिलाकर बिग फूड कहा जाता है। आपको सिर्फ एंड प्रोडक्ट पर इनके नाम नजर आते हैं लेकिन रॉ मटेरियल से लेकर प्रोडक्शन और मार्केटिंग तक हर जगह इनका ही दबदबा है।

ये कंपनियां अपने प्रोडक्ट्स के हेल्दी होने केदावे तो बड़े-बड़े करती हैं लेकिन सच ये है कि इनके प्रोडक्ट्स में तरह-तरह के additives, हद से ज्यादा चीनी और ढेरों रसायन मिले होते हैं। वाणी इनके झूठ से पर्दा उठाती हैं। आगे के लेसन्स में आप चीजों की न्यूट्रीशनल वैल्यू के बारे में पढ़ेंगे क्योंकि आज हम ज्यादातर चीजें खाने से पहले उनकी न्यूट्रीशनल वेल्यू देखना पसंद करते हैं।

इसके अलावा हम उन चालाकियों को भी समझेंगे जिनकी मदद से फूड कंपनियां जहर को भी दवा बताकर बेच देती हैं। इस समरी में आप जानेंगे कि लो कैलोरी फूड आइटम किसी भी तरह से फायदेमंद नहीं होते हैं। किस तरह कंपनियों ने सीरियल को एक हेल्दी ऑप्शन बनाकर पेश कर दिया और ऑर्गेनिक फूड के क्या फायदे हैं।

तो चलिए शुरू करते हैं!

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डायबिटिक्स, डाइजेस्टिव एंड किडनी डिजीज के 2017 में जारी आंकड़े अमेरिका की दो-तिहाई से ज्यादा आबादी को मोटापे का शिकार बताते हैं। हालांकि असलियत इससे भी डरावनी है जिसके बारे में पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट पहले से जानते हैं।

अमेरिका में मोटापा एक महामारी की शक्ल लेता जा रहा है। और सोडा इसकी प्रमुख वजहों में से एक है। यहां 66% बच्चे दिन में कम से कम एक बॉटल सोडा पीते हैं और बाकी कम से कम दो बॉटल पी लेते हैं। जबकि इससे उनकी सेहत को बहुत नुकसान पंहुचता है।

2009 में क्लीनिकल न्यूट्रीशन के जर्नल में छपी एक रिपोर्ट कहती है कि रोजाना एक कैन सोडा पीने से दिल के दौरे का खतरा 20% बढ़ जाता है। वहीं सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल का मानना है कि ज्यादा सोडा पीने से टाइप 2 डायबिटीज, अस्थमा, किडनी और लिवर की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

इन सबके बावजूद अमेरिकन बेवरेज असोसिएशन (ABA) इस बात से साफ इन्कार कर देता है कि इससे सेहत पर कोई बुरा असर पड़ सकता है। और तो और वो बड़ी चालाकी से इस बहस का रुख एक्सरसाइज की तरफ मोड़ देते हैं। जबकि ये जाना माना फैक्ट है कि वजन पर एक्सरसाइज से कहीं ज्यादा डाइट का असर होता है।

कोका कोला जो कि ABA का ही एक सदस्य है उसने तो कैलोरी गिनने के लिए “Work It Out” नाम का एप ही लांच कर दिया। इसके पीछे भी मार्केटिंग पॉलिसी ही थी ताकि कंपनी डाइट कोक और कोक जीरो जैसे अपने लो कैलोरी प्रोडक्ट बेच सके। जबकि सच तो ये है कि इनमें और रेग्युलर ड्रिंक्स में रत्ती भर अंतर नहीं है।

ये तरीके पब्लिक हेल्थ के लिए काम कर रही संस्थाओं की मेहनत को खुली चुनौती दे देते हैं। वे लोगों को जागरूक करने की जितनी भी कोशिश करती हैं उस पर पानी फिर जाता है। शुगर असोसिएशन भी कम नहीं है। अपने फायदे के लिए ये भी तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। नेताओं को बड़ी डोनेशन देते हैं ताकि अपने मनमाफिक सरकारी नीतियां बनवा सकें।

2009 से अब तक कोका कोला, पेप्सिको और ABA ने मिलकर 67 मिलियन डॉलर सिर्फ इस बात पर खर्च कर दिए कि न कोई शुगर टैक्स लागू हो और न ही ऐसी पॉलिसी बन जाए जिससे उनको अपने प्रोडक्ट्स पर हेल्थ वार्निंग लिखना जरूरी हो जाए।

इससे भी बड़ी चिंता की बात ये है कि इन संस्थाओं का सरकारी कामकाज में इतना दखल है कि पॉलिसी बनाते हुए सरकारी एजेंसियां इन्हीं से सलाह मशवरा करती हैं। जैसा कि डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज ने अपनी गाइडलाइंस जारी करते हुए ABA से सलाह लेकर किया था।

बड़ी फूड कंपनियां अपनी ताकत और पैसे के दम पर रिसर्च के नतीजे भी बदलवा देती हैं।

इस बात पर कोई दो राय नहीं है कि हर कोई स्वस्थ रहना चाहता है और इसका सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने खान-पान का ध्यान रखें। लेकिन हेल्दी डाइट को लेकर न जाने कितनी थ्योरीज चली आ रही हैं। इसके लिए भी बिग फूड ही जिम्मेदार है। बिग फूड दशकों से फूड एंड हेल्थ पर हो रही रिसर्च को प्रभावित करके लोगों तक अपने प्रोडक्ट्स की कड़वी सच्चाई पंहुचने से रोक रहा है।

2007 में PLOS मेडिसिन जर्नल में डॉक्टर Lenard Lesser का एक आर्टिकल छपा था। इसमें बताया गया था कि इंडिपेंडेंट रिसर्च की तुलना में फूड कॉर्पोरेशन की तरफ से स्पांसर की जाने वाली रिसर्च के नतीजे ज्यादातर इनके पक्ष में ही निकलते हैं। स्नैक्स बनाने वाली कंपनी Kraft ने एकेडमी ऑफ न्यूट्रीशन को ही अपनी तरफ करके 51% चीज वाले Kraft Singles को हेल्दी स्नैक की कैटेगरी में रखवा दिया।

जब लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठाई तब उनको अपना स्टेटमेंट वापस लेना पड़ा। बड़े शैक्षिक संस्थान भी इनकी पंहुच में हैं। एक बड़ी फूड कंपनी ने तो हार्वर्ड जैसे नामी इंस्टीट्यूट को ही अपने फेवर में कर लिया था। Frederick Stare हावर्ड यूनिवर्सिटी के न्यूट्रीशन डिपार्टमेंट के चेयरमैन थे।

अपने कार्यकाल में वो हमेशा इस बात की वकालत करते रहे कि ज्यादा चीनी खाने से दिल की बीमारी या डायबिटीज का कोई लेना देना नहीं है। 1952 से 1956 के दौरान वहां ऐसे 30 रिसर्च पेपर छपे जो इसी बात का समर्थन करते थे। साल 2012 में Mother Jones में छपें एक आर्टिकल ने ये सच सबके सामने रखा कि Stare ने अपने करियर के दौरान कोका कोला और केलॉग्स जैसी कंपनियों से पैसे लिए थे।

जनरल फूड्स लिमिटेड ने तो न्यूट्रीशन डिपार्टमेंट की नई बिल्डिंग बनवाने का खर्च भी उठाया था। इस तरह के लालच में आजाने वाले और भी बहुत से लोग थे। 1967 में न्यू इंग्लैंड जर्नल में ऑफ मेडिसिन में एक आर्टिकल छपा था। इसमें कहा गया था कि अगर आप खाने में फैट हटाकर कार्बोहाइड्रेट शामिल करें तो दिल की सेहत के लिए अच्छा रहेगा।

सालों बाद ये बात सामने आई कि इसे लिखने वाले तीनों लोग जो हार्वर्ड से ही थे उनको शुगर इंडस्ट्री की तरफ से 50,000 डॉलर दिए गए थे। इस झूठ को आज भी बहुत लोग सच ही समझते हैं। ये घटना साबित करती है कि किस तरह से बिग फूड लोगों के दिमाग के साथ खेलकर अपना उल्लू सीधा करता है।

बड़ी कंपनियां ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स को भी आगे नहीं बढ़ने देतीं। अमेरिका में ऑर्गेनिक फूड का मार्केट शेयर लगभग 5% है। ये प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। जाहिर है कि इस बात ने फूड कंपनियों के माथे पर चिंता की लकीर खींच दी है। अगर लोग हेल्दी भोजन को अपना लेंगे तो उनके बनाए जंक फूड कौन खरीदेगा? आगे बढ़ने से पहले जरा ऑर्गेनिक फूड को अच्छी तरह समझ लेते हैं कि इनके हेल्दी होने के दावों में कितना दम है।

साल 2014 में ब्रिटिश जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन में एक स्टडी आई थी। इसमें लिखा था कि ऑर्गेनिक टमाटरों में आम टमाटरों से ज्यादा विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट और फ्लेवोनॉइड होते हैं। फ्लेवोनॉइड लिवर में डीटॉक्सिफिकेशन की प्रोसेस को तेज करते हैं।

ऑर्गेनिक मीट और डेयरी प्रोडक्ट में आम प्रोडक्ट्स से 50% तक ज्यादा ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। यूरोपियन पार्लियामेंट ने एक रिसर्च को स्पांसर किया था जिससे ये पता चला कि ऑर्गेनिक फूड न सिर्फ ज्यादा पोषण देते हैं बल्कि सुरक्षित भी होते हैं।

नॉन ऑर्गेनिक चीजों में तरह-तरह के पेस्टीसाइड डाले जाते हैं जिनसे ADHD, बच्चों में 1Q का कम होना, कैंसर, टाइप 2 डायबिटीज और कई तरह की एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है। ऑर्गेनिक फार्मों को सख्त नियमों का पालन भी करना होता है। वहां सिर्फ उन पेस्टीसाइड का इस्तेमाल किया जा सकता है। जिनकी इजाजत यूएस एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट देता है।

इनकी मात्रा भी 25% से ज्यादा नहीं हो सकती। जबकि नॉन ऑर्गेनिक फार्म 900 से भी ज्यादा सिंथेटिक पेस्टीसाइड का जमकर इस्तेमाल करते हैं। यानिऑर्गेनिक फूड हर हाल में बेहतर हैं। लेकिन इस तरह तो पेस्टीसाइड कंपनियों की हालत भी खराब हो जाएगी। यही वजह है कि ये कंपनियां भी ग्राहकों को भटकाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं।

मोनसेंटो जो कि एक बड़ी केमिकल कंपनी है वो नॉन ऑर्गेनिक फार्मों को लाखों के पेस्टीसाइड सप्लाई करती है। इनका एक वीड किलर बहुत पॉपुलर है जिसे Roundup के नाम से जाना जाता है। इसे मक्का और सोया जैसी मुख्य फसलों में छिड़का जाता है। इसका मेन केमिकल glyphosate होता है। Glyphosate को पानी के पाइपों मे जमे मिनरल की सफाई के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये केमिकल celiac disease, irritable bowel syndrome (IBS) और कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है।

लोगों को इस तरह की जानकारी न मिल पाए इसके लिए कंपनियां किसानों, न्यूट्रीशनिस्ट और वैज्ञानिकों का संगठन बनाकर अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कर देती हैं। ये ग्रुप लोगों को प्रभावित कर देते हैं। Crop Life, मोनसेंटो का बनाया ऐसा ही ग्रुप है जो कि एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी को ये यकीन दिलाने में कामयाब रहा कि glyphosate नुकसानदायक नहीं होता है। जबकि WHO भी इसे कैंसर पैदा कर सकने वाले केमिकल की लिस्ट में रखता है।

फूड लेबलिंग में नियमों की धज्जियां उड़ा दी जाती हैं।

खाने के पैकेटों पर जो भी जानकारी लिखी होती है उसे शायद मुट्ठी भर लोग भी समझ नहीं पाते होंगे। ऐसा लगता है जैसे ये कोई कोड लैंग्वेज हो जिसमें से शायद दो-चार शब्द आप डीकोड कर लेते होंगे। ये जानबूझकर किया जाता है ताकि आपको ये समझ ही ना आए कि किसी पैकेट में कौन सी चीजें मिली हुई हैं। Crab stick असल में स्टार्च और फिश से बनाया जाता है। Peanut नाम से तो nuts की तरह लगता है पर ये legumes की कैटेगरी में आता है। अमेरिकन चीज एक पूरी चीज slice नहीं बल्कि एक cheese product है बस।

आपमें से कितने लोग हैं जो rhinitis का मतलब जानते हैं? ये मामूली सर्दी-जुकाम के लिए मेडिकल शब्द है। ये ट्रिक्स अपना काम करती हैं ऊपर से FDA नाम की जिस संस्था को इन मामलों के लिए बनाया गया है उसकी हैसियत रबर स्टैम्प से ज्यादा कुछ नहीं है। अमेरिकन फूड इंडस्ट्री पर इसका कोई प्रभाव नहीं है। वो सेल्फ रेग्युलेटेड मोड में अपना काम करती रहती है।

असल में FDA को additives पर बोलने का अधिकार ही नहीं दिया गया है। फूड कंपनीज ही FDA को इनमामलों पर गाइड करती हैं। कंपनियों ने अपने-अपने एक्सपर्ट रखे हुए हैं। अगर किसी एक्सपर्ट ने किसी आइटम को “generally recognized as safe” (GRAS) बोल दिया तो FDA उस पर अपनी सहमति की मुहर लगा देती है।

लेकिन आंकड़े सच बयान कर देते हैं। 1958 में FDA की स्थापना के वक्त लगभग 800 additives चलन में थे। आज इनकी गिनती 10,000 से भी ज्यादा है। और इनमें से कितने वाकई सेफ हैं इसका सही जवाब किसी के पास नहीं है। नेशनल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल की मानें तो अमेरिकन अपने भोजन में रोजाना ऐसे 1000 केमिकल खा लेते हैं जिनको लैब में टेस्ट भी नहीं किया गया है।

लेबलिंग में होने वाली धोखाधड़ी परेशानी को और बढ़ा देती है। न तो आप पैकेट पर लिखी न्यूट्रीशनल वैल्यू का भरोसा कर सकते हैं न ही रॉ मटेरियल के सोर्स पर। स्टारबक्स की Chai Tea Latte को ही ले लीजिए जिस पर “lightly sweetened” लिखा होता है। इस 473-milliliter के कप में 31 ग्राम चीनी होती है जो कि 28 Oreo cookies के बराबर है। क्या आपने कभी भी इतनी कुकीज एक साथ खाई हैं? शायद एक बार भी नहीं। और अब जरा सोचिए कि ये चाय आप कितनी बार पी चुके हैं?

इस तरह की गड़बड़ लगभग हर जगह मिलेगी। लेकिन नियम ही ऐसे हैं कि कुछ करना मुश्किल है। अमेरिकन कानून के मुकाबिक ऐसे किसी भी प्रोडक्ट को “lightly sweetened” कहा जा सकता है जिसमें चीनी की मात्रा 100 ग्राम तक हो।

अब एक शब्द “natural” की असलियत समझते हैं। किसी चीज पर नेचुरल पढ़कर हमारे दिल को तसल्ली मिल जाती है और हम आंख बंद करके उसे ले आते हैं। नेचुरल का असली मतलब सिर्फ इतना है कि इस पैकेट के अंदर जो कुछ भी है वो किसी एनिमल या प्लांट सोर्स से originally derive किया गया है।

इसका ये मतलब बिल्कुल नहीं होता कि इसमें कोई आर्टिफिशियल फ्लेवरिंग या एडिशन नहीं किया गया है। यानि जरूरी नहीं कि नेचुरल एप्पल फ्लेवर का मतलब होगा प्योर एप्पल जूस। इसमें 100 से भी ज्यादा केमिकल मिले हो सकते हैं। कानून के मुताबिक इस लेबल में कोई गल्ती भी नहीं है। ऐसे लचीले कानूनों की वजह से कंपनियां आसानी से सच छिपा लेती हैं। उदाहरण के लिए कैस्टोरियम जो कि आर्टिफिशियल वनीला फ्लेवर है उसे बीवर की एनल ग्लैंड से तैयार किया जाता है।

अगर जंक फूड में न्यूट्रिएंट मिला दें तो भी उसका कोई फायदा नहीं होता। खाने की चीजों में पोषक तत्व मिलाकर उनकी क्वालिटी बढ़ाना आज बड़ी आम बात है। इस प्रोसेस को fortification कहा जाता है। इसकी शुरुआत यूएस में 1924 से हुई। उस दौर में आयोडीन की कमी से पूरा देश जूझ रहा था। इसके लिए साधारण नमक में आयोडीन मिलाई जाने लगी। आज खाने की चीजों में जो कुछ भी एड किया जाता है वो लोगों की सेहत नहीं बल्कि मुनाफे को ध्यान में रखते हुए किया जाता है।

आपको पैकेटों पर बड़े-बड़े अक्षरों में नजर आने वाला ग्लूटेन फ्री, शुगर फ्री और फैट फ्री और कुछ नहीं बल्कि नजरों का धोखा है। क्योंकि हकीकत में इन तरीकों से फूड प्रोडक्ट हेल्दी नहीं बन जाते। फूड इंडस्ट्री की सबसे फेवरेट लाइन होगी “लो कैलोरी” या “फैट फ्री”।

लेकिन असल में इस तरह के भोजन और हाई कैलोरी या हाई फैट भोजन में कोई खास अंतर नहीं है। बल्कि ये ज्यादा नुकसानदायक भी हो सकते हैं। क्योंकि इस तरह के डाइट फूड में aspartame जैसी सिंथेटिक मिठास मिलाई जाती है। Aspartame मेटाबॉलिज्म पर असर डालती है और इसकी वजह से डायबिटीज और स्ट्रोक का खतरा 34% बढ़ जाता है।

इसके अलावा कॉर्न सिरप का भी इस्तेमाल किया जाता है। ये भी एक आर्टिफिशियल रिफाइंड शुगर है जिसमें सेल्युलोस होता है। सेल्युलोस को ह्यूमन डाइजेस्ट नहीं कर पाते। इसकी वजह से पाचनतंत्र की बीमारियां और मोटापा बढ़ने लगता है।

लोग वजन कम करने के लिए डाइट फूड खरीदते हैं जबकि इसका नतीजा उल्टा निकलता है। उनका वजन और बढ़ जाता है। परेशान होकर वो और ज्यादा डाइट फूड खाने लगते हैं। इस तरह वो मोटापे और तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

पैकेटों पर fortified या enriched का लेबल लगाकर फूड कंपनीज और भी बड़ी धोखाधड़ी कर देती हैं। विटामिन या मिनरल से enriched ब्रेकफास्ट सीरियल लोग बड़े शौक से खरीद लेते हैं। क्योंकि विज्ञापनों में ये दावा किया जाता है कि इससे आपकी इन तत्वों की रोज की जरूरत पूरी हो जाती है।

लेकिन सही मायने में इनसे होने वाले नुकसान फायदों से कहीं ज्यादा हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये चालाकियां बच्चों या किसी खास एज ग्रुप को टार्गेट करते हुए की जाती हैं। विटामिन वॉटर नाम सुनकर ही आप इसे खरीदने के बारे में सोच लेंगे। लेकिन ऐसे हर पैक में विटामिन के साथ 32 ग्राम चीनी भी मिल जाती है।

मजे की बात तो ये है कि हमारा शरीर प्राकृतिक तरीकों से मिलने वाले विटामिनों को सिंथेटिक विटामिनों की तुलना में दो गुनी तेजी से एब्जार्ब करता है। यानि आपको इससे चीनी के अलावा और कुछ नहीं मिलता। बिग फूड का सच आपके सामने आ गया है। अब आप भी शॉपिंग और भोजन करते हुए अपनी आंखें और दिमाग खुला रखिए। ताकि आप पैसों के बदले सेहत खरीदें न कि बीमारियां।

Conclusion

बिग `फूड आपकी सोच से कहीं ज्यादा विशाल है। इनका दावा है कि ये देश का पेट भरते हैं लेकिन असल में ये लोगों को बीमार बना रहे हैं। पैसे और पावर के दम पर ये अपने झूठ को छिपा लेते हैं। चाहे फूड लेबलिंग में गड़बड़ी हो या जिम्म्दार संस्थाओं को चुप कराना ये हर तरह के दाव पेंच इस्तेमाल करते हैं। ताकि अपने बनाए जहर को भी अमृत कहतर बेच सकें।

क्या करें

सोडा पीना कम करिए। इसके नुकसान आप समझ चुके हैं। इसे छोड़ना इतना आसान भी नहीं होगा क्योंकि कैफीनेटेड सोडा पीने वालों को इसकी लत लग जाती है। इसलिए धीरे-धीरे इसमें कटौती करते जाएं। हर हफ्ते 25% कम कर दीजिए। इस तरह एक महीने में ही आपको इससे छुटकारा मिल जाएगा।

तो दोस्तों आपको आज यह Feeding You Lies Book Summary in Hindi कैसा लगा ?

आज आपने क्या सीखा ?

अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट में जरूर बताये।

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,

Wish You All The Very Best.

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