अध्याय 8: राजा परीक्षित द्वारा पूछे गये प्रश्न
श्लोक 1: राजा परीक्षित ने शुकदेव गोस्वामी से पूछा कि नारद मुनि ने, जिनके श्रोता श्रीब्रह्मा द्वारा उपदेशित भाग्यशाली श्रोता हैं, किस प्रकार निर्गुण भगवान् के दिव्य गुणों का वर्णन किया और वे किन-किन के समक्ष बोले?
श्लोक 2: राजा ने कहा : मैं जानने का इच्छुक हूँ। अद्भुत शक्तियों से सम्पन्न भगवान् से सम्बन्धित कथाएँ निश्चय ही समस्त लोकों के प्राणियों के लिए शुभ हैं।
श्लोक 3: हे परम भाग्यशाली शुकदेव गोस्वामी, आप मुझे कृपा करके श्रीमद्भागवत सुनाते रहें जिससे मैं अपना मन परमात्मा, भगवान् श्रीकृष्ण में स्थिर कर सकूँ और इस प्रकार भौतिक गुणों से सर्वथा मुक्त होकर अपना यह शरीर त्याग सकूँ।
श्लोक 4: जो लोग नियमित रूप से श्रीमद्भागवत सुनते हैं और इसे अत्यन्त गम्भीरतापूर्वक ग्रहण करते हैं, उनके हृदय में अल्प समय में ही भगवान् श्रीकृष्ण प्रकट हो जाते हैं।
श्लोक 5: परमात्मा रूप भगवान् श्रीकृष्ण का शब्दावतार (अर्थात् श्रीमद्भागवत) स्वरूप-सिद्ध भक्त के हृदय में प्रवेश करता है, उसके भावात्मक सम्बन्ध रूपी कमल-पुष्प पर आसीन हो जाता है और इस प्रकार काम, क्रोध तथा लोभ जैसी भौतिक संगति की धूल को धो ड़ालता है। इस प्रकार यह गँदले जल के तालाबों में शरद ऋतु की वर्षा के समान कार्य करता है।
श्लोक 6: भगवान् का शुद्ध भक्त, जिस का हृदय एक बार भक्ति के द्वारा स्वच्छ हो चुका होता है, वह श्रीकृष्ण के चरणकमलों का कभी भी परित्याग नहीं करता, क्योंकि उसे भगवान् वैसी ही परम तुष्टि देते हैं, जैसी कि कष्टकारी यात्रा के पश्चात् पथिक को अपने घर में प्राप्त होती है।
श्लोक 7: हे विद्वान ब्राह्मण, दिव्य आत्मा भौतिक देह से पृथक् है। तो फिर क्या उसे (आत्मा को) किसी कारणवश या अकस्मात् ही देह की प्राप्ति होती है? आपको यह ज्ञात है, अत: कृपा करके मुझे समझाइये।
श्लोक 8: यदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्, जिनके उदर से कमलनाल बाहर निकला है, अपने माप के अनुसार विराट शरीर धारण कर सकते हैं, तो फिर भगवान् के शरीर तथा सामान्य जीवात्माओं के शरीर में कौन-सा विशेष अन्तर है?
श्लोक 9: ब्रह्माजी जो किसी भौतिक स्रोत से नहीं, अपितु भगवान् की नाभि से प्रकट होने वाले कमल के फूल से उत्पन्न हुए है, वे उन सबके स्रष्टा हैं, जो इस संसार में जन्म लेते हैं। निस्सन्देह भगवत्कृपा से ही ब्रह्माजी भगवान् के स्वरूप को देख सके।
श्लोक 10: कृपया उन भगवान् के विषय में भी बताएँ जो प्रत्येक हृदय में परमात्मा और समस्त शक्तियों के स्वामी के रूप में स्थित हैं, किन्तु जिनकी बहिरंगा शक्ति उनका स्पर्श तक नहीं कर पाती।
श्लोक 11: हे विद्वान ब्राह्मण, इसके पूर्व व्याख्या की गई थी कि ब्रह्माण्ड के समस्त लोक अपने-अपने लोकपालकों सहित विराट पुरुष के विराट शरीर के विभिन्न अंगों में ही स्थित हैं। मैंने भी यह सुना है कि विभिन्न लोकमंडल विराट पुरुष के विराट शरीर में स्थित माने जाते हैं। किन्तु उनकी वास्तविक स्थिति क्या है? कृपा करके मुझे समझाइये।
श्लोक 12: कृपा करके सृष्टि तथा प्रलय के मध्य की अवधि (कल्प) तथा अन्य गौण सृष्टियों (विकल्प) एवं भूत, वर्तमान तथा भविष्य शब्द से सूचित होने वाले काल के विषय में भी मुझे बताएँ। साथ ही, ब्रह्माण्ड के विभिन्न लोकों के विभिन्न जीवों यथा देवों, मनुष्यों इत्यादि की आयु की अवधि के विषय में भी मुझे बताएँ।
श्लोक 13: हे ब्राह्मणश्रेष्ठ, कृपा करके मुझे काल की लघु तथा दीर्घ अवधियों एवं कर्म की प्रक्रिया के क्रम में काल के शुभारम्भ के विषय में भी बतलाएँ।
श्लोक 14: इसके आगे आप कृपा करके बताएँ कि किस प्रकार भौतिक प्रकृति के विभिन्न गुणों से उत्पन्न फलों का आनुपातिक संचय इच्छा करनेवाले जीव पर अपना प्रभाव दिखाते हुए उसे विभिन्न योनियों में—देवताओं से लेकर अत्यन्त क्षुद्र प्राणियों तक को—ऊपर उठाता या नीचे गिराता है।
श्लोक 15: हे ब्राह्मणश्रेष्ठ, कृपा करके यह भी बताएँ कि ब्रह्माण्ड भर के गोलकों, स्वर्ग की चारों दिशाओं, आकाश, ग्रहों, नक्षत्रों, पर्वतों, नदियों, समुद्रों तथा द्वीपों एवं इन सबके विविध प्रकार के निवासियों की उत्पत्ति किस प्रकार होती है?
श्लोक 16: साथ ही कृपा करके ब्रह्माण्ड के बाहरी तथा भीतरी विशिष्ट विभागों, महापुरुषों के चरित्र तथा कार्यों और विभिन्न वर्णों एवं जीवन के चारों आश्रमों के वर्णीकरण का भी वर्णन करें।
श्लोक 17: कृपा करके सृष्टि के विभिन्न युगों तथा उन सबकी अवधियों का वर्णन कीजिये। मुझे विभिन्न युगों में भगवान् के विभिन्न अवतारों के कार्य-कलापों के विषय में भी बताइये।
श्लोक 18: कृपा करके यह भी बताइये कि मानव समाज के सामान्य धार्मिक सम्पर्क सूत्र क्या हों, धर्म में उनके विशिष्ट कर्तव्य क्या हों, सामाजिक व्यवस्था तथा प्रशासकीय राजकीय व्यवस्था का वर्गीकरण तथा विपत्तिग्रस्त मनुष्य का धर्म क्या हो?
श्लोक 19: कृपा करके सृष्टि के तत्त्वमूलक सिद्धान्तों, इन सिद्धान्तों की संख्या, इनके कारणों तथा इनके विकास और इनके साथ-साथ भक्ति की विधि तथा योगशक्तियों की विधि के विषय में भी बताइये।
श्लोक 20: महान् योगियों के ऐश्वर्य क्या हैं और उनकी परम गति क्या है? पूर्ण योगी किस प्रकार सूक्ष्म शरीर से विरक्त होता है? इतिहास की शाखाओं तथा पूरक पुराणों समेत वैदिक साहित्य का मूलभूत ज्ञान क्या है?
श्लोक 21: कृपा करके मुझे बताइये कि जीवों की उत्पत्ति, पालन और उनका संहार किस प्रकार होता है? भगवान् की भक्तिमय सेवा करने से जो लाभ तथा हानियाँ होती हैं, उन्हें भी समझाइये। वैदिक अनुष्ठान तथा उपवैदिक धार्मिक कृत्यों के आदेश क्या हैं? धर्म, अर्थ तथा काम के साधनों की विधियाँ क्या हैं?
श्लोक 22: कृपया यह भी समझाएँ कि भगवान् के शरीर में समाहित जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं और पाखंडीजन किस तरह इस संसार में प्रकट होते हैं? यह भी बताएँ कि किस प्रकार अबद्ध जीवात्माएँ विद्यमान रहती हैं?
श्लोक 23: स्वतन्त्र भगवान् अपनी अन्तरंगा शक्ति से अपनी लीलाओं का आस्वादन करते हैं और प्रलय के समय वे इन्हें बहिरंगा शक्ति को प्रदान कर देते हैं और स्वयं साक्षी रूप में बने रहते हैं।
श्लोक 24: हे भगवान् के प्रतिनिधिस्वरूप महर्षि, आप मेरी उन समस्त जिज्ञासाओं को जिनके विषय में मैंने आपसे प्रश्न किये हैं तथा उनके विषय में भी जिन्हें मैं जिज्ञासा करने के प्रारंभ से प्रस्तुत नहीं कर सका, उनके बारे में कृपाकरके जिज्ञासा शान्त कीजिये। चूँकि मैं आपकी शरण में आया हूँ, अत: मुझे इस सम्बन्ध में पूर्ण ज्ञान प्रदान करें।
श्लोक 25: हे महर्षि, आप आदि प्राणी ब्रह्मा के तुल्य हैं। अन्य लोग केवल प्रथा का पालन करते हैं जिस प्रकार पूर्ववर्ती दार्शनिक चिन्तक किया करते हैं।
श्लोक 26: हे विद्वान ब्राह्मण, अच्युत भगवान् की कथा के अमृत का, जो आपकी वाणी रूपी समुद्र से बह रहा है, मेरे द्वारा पान करने से मुझे उपवास रखने के कारण किसी प्रकार की कमजोरी नहीं लग रही।
श्लोक 27: सूत गोस्वामी ने कहा—महाराज परीक्षित द्वारा भक्तों से संबंधित भगवान् श्रीकृष्ण की कथाएँ कहने के लिए आमन्त्रित किये जाने पर शुकदेव गोस्वामी अत्यधिक प्रसन्न हुए।
श्लोक 28: उन्होंने महाराज परीक्षित के प्रश्नों का उत्तर देना यह कहकर प्रारम्भ किया कि इस तत्त्व ज्ञान को सर्वप्रथम स्वयं भगवान् ने ब्रह्मा से उनके जन्म के समय कहा। श्रीमद्भागवत उपवेद है और वेदों का ही अनुकरण करता है।
श्लोक 29: उन्होंने अपने आपको राजा परीक्षित द्वारा जो कुछ पूछा गया था उसका उत्तर देने के लिए तैयार किया। महाराज परीक्षित पाण्डुवंश में सर्वश्रेष्ठ थे, अत: वे उचित व्यक्ति से उचित प्रश्न पूछने में समर्थ हुए।