Lionel Messi
पूरे स्पोर्ट्स की दुनिया में वैसे तो कई लोग है जिनके नाम लिए जाते है लेकिन Lionel Messi का नाम उस लिस्ट के टॉप प्लेयर्स में आता है, कम उम्र से फुटबॉल की दुनिया में अपना जादू दिखाने वाले Messi को अपनी जनरेशन का सबसे बेस्ट प्लेयर माना जाता है, जिनकी लाइफ़ किसी डिमोटिवेट इंसान को मोटीवेट करने के किये काफ़ी है।
Lionel Messi का जन्म 24 जून 1987 को Rosario, Argentina में हुआ था। उनके पिता का नाम Jorge Messi और माँ का नाम Celia Cuccittini है, उनके पिता एक स्टील कंपनी में काम करते थे। Messi को उनके पिता ने ही फुटबॉल खेलने के लिए मोटिवेट किया, जब वो 11 साल के थे तब उन्हें ग्रोथ हार्मोन डेफिशियेंसी नाम की बीमारी होने का पता लगा, जिससे उनकी ग्रोथ होनी रुक गयी थी। उस टाइम उनको ह्यूमन ग्रोथ हार्मोन की दवाइयों की ज़रूरत पड़ी, जो काफ़ी महँगी होने के कारण एक टाइम ऐसा आया कि उनका इलाज सही से करवाने में भी वो एबल नहीं थे।
Messi ने इस बीमारी के होने के बाद भी फुटबॉल खेलना नहीं छोड़ा, 13 साल की उम्र में Messi के परफॉर्मेन्स को देखते हुए Barcelona के कोच Carles Rexach ने Messi को एक नैपकिन पर कॉन्ट्रैक्ट लिख कर दिया कि वो उनके ट्रीटमेंट का सारा खर्चा उठायेंगे, Messi अर्जेंटीना की जूनियर नेशनल टीम के लिए भी खेलने लग गए थे। 16 की उम्र में Messi FC Barcelona टीम में पहली बार खेले और 1 मई 2005 को Messi ने Barcelona के लिए अपना पहला गोल किया जो उनके लेजेंडरी करियर की सिर्फ़ एक शुरुआत हुई, वो Barcelona के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी थे जिसने गोल किया था।
जब मैच के बाद Messi ड्रेसिंग रूम में गए तो सब उनकी हाइट देखकर दंग रह गए क्योंकि उनकी हाइट बहुत कम थी, लोगों ने उन्हें काफ़ी अंडरस्टिमेट किया लेकिन उन्होंने सभी को ग़लत साबित कर दिखाया। उसी बीच उनका ट्रीटमेंट भी चल रहा था और हर 7 दिन में बारी-बारी से उनके पैरों में इंजेक्शन भी लग रहे थे, लेकिन उनको देखकर कभी लगा नहीं कि उन्हें कोई बीमारी भी है। देखते ही देखते Messi Barcelona टीम के सबसे फ़ेमस प्लेयर बन चुके थे। 2009 में वो और फ़ेमस हो गए जब उन्होंने चैंपियन लीग में La Liga और स्पेनिश सुपर कप का खिताब जीता और उसी साल उन्होंने अपना पहला फ़ीफ़ा वर्ल्ड प्लेयर ऑफ़ दी ईयर का अवार्ड Ballon D’Or की तरफ से जीता।
Messi की परफॉर्मेंस को देखकर फाइटबॉल दिग्गज़ अर्जेंटीना टीम से रिटायर्ड Diago Maradona ने उनकी तारीफ़ की और उन्हें अपना उत्तराधिकारी बना दिया और कहा कि उनकी जगह अब Messi ने ले ली है। Messi ने कई मैचों में Barcelona टीम को जीत दिलाई और धीरे-धीरे वो बाकी प्लेयर्स से कई ज़्यादा आगे होते जा रहे थे। Messi ने अपनी स्किल से 2008-09 में Barcelona को तीसरी बार चैंपियन बनाया और साल 2012 में Messi ने सबसे ज़्यादा गोल किये और उनका नाम Guinness Book Of World Record में दर्ज हुआ। उस साल Messi ने 91 गोल किये थे, 25 की उम्र में Messi ने रेगुलर 4 फ़ीफ़ा अवार्ड्स जीतकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया और वो 3 यूरोपियन गोल्डन अवार्ड्स जीतने वाले पहले प्लेयर बन गए।
16 फ़रवरी 2013 में Barcelona टीम के लिए खेलते हुए 300 गोल पूरे किये और स्पेनिश La Liga के लिए 300 गोल करने वाले पहले प्लेयर बन गए। 2014 के फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप में Messi ने अर्जेंटीना टीम को अपनी कैप्टेंसी से फ़ाइनल तक पहुँचाया और Messi को उनकी परफॉर्मेंस के लिए गोल्डन बॉल दी गई। 2009 में Messi को दुनिया के हाईएस्ट पेड एथलीट्स की लिस्ट में 127 मिलियन के साथ फ़र्स्ट पोजीशन पर रखा गया। Messi एक वर्ल्ड क्लास प्लेयर के साथ-साथ एक अच्छे इंसान भी हैं, 2007 में उन्होंने ग़रीब बच्चों की मदद के लिए Leomessi Foundation भी खोला जिसे वो ग़रीब बच्चों की किसी बीमारी के इलाज के लिए चलाते है। उन्होंने अपनी ग़रीबी को ध्यान में रखते हुए ही चैरिटेबल ट्रस्ट खासकर बच्चों के लिए खोला।
2019 में Messi ने फ्री किक गोल करके अपने करियर के 600th गोल स्कोर किया, जिनमें से 539 गोल्स उन्होंने Barcelona के लिए किए और 61 गोल्स अर्जेंटीना के लिए किए। दुनिया के सबसे पॉवरफुल खिलाड़ी के रूप में उन्होंने अपने 14 साल के करियर में ओवरऑल 747 मैचेस खेले और उनके माइलस्टोन को टच करना किसी दूसरे खिलाड़ी के लिए बहुत मुश्किल साबित होगा। Messi एक बड़े खिलाड़ी होने के बाद भी उनकी लाइफ़ बहुत प्राइवेट और मामूली है, वो हमेशा Rasario, जहाँ उनका जन्म हुआ था उस शहर से जुड़े रहते है, Messi यूनिसेफ़ के गुडविल एम्बेसडर भी हैं।
Messi को हमेशा बड़े बजट ऑफ़र के साथ दूसरी टीम ने अपनी टीम में शामिल होने के ऑफ़र दिए लेकिन वो हमेशा Barcelona टीम को लेकर ईमानदार रहे हैं। वो दुनिया की टॉप की कंपनीज़ Adidas, Pepsi EA Sports के कमर्शियल फ़ेस भी है।
Dalai Lama
वर्ल्ड पीस के लिए लगातार अपना योगदान देने वाले Dalai Lama पूरी दुनिया के लिए आज सबसे बड़ा एक्ज़ाम्पल है। वर्ल्ड पीस के लिए Dalai Lama ने कई काम किये हैं जिसके लिए उन्हें दुनिया का सबसे बड़ा अवार्ड नोबेल पीस प्राइज़ से सम्मानित किया गया है, Dalai Lama तिब्बत के 14 वे धर्मगुरु हैं।
Dalai Lama का रियल नाम Lhamo Thondup है। उनका जन्म 6 जुलाई 1935 को Taktser, China में एक किसान फ़ैमिली में हुआ था। जब Lhamo Thondup दो साल के थे तभी बुद्ध धर्म के लोगों ने उन्हें Dalai Lama नाम के अवतार के रूप में पहचान लिया था और चार साल के होने से पहले उन्हें गद्दी पर बैठा दिया था। माना जाता है कि जितने भी Dalai Lama हुए उन्होंने विश्व शांति के लिए पुनर्जन्म में ही कसम खाई थी और Lhamo Thondup भी उनमें से एक हैं।
Lhamo Thondup ने अपनी एजुकेशन 6 साल की उम्र से शुरू की, उन्होंने संस्कृत, मेडिकल, बौद्ध धर्म, एस्ट्रोलॉजी की पढ़ाई की। 24 साल की उम्र तक उन्होंने बौद्ध दर्शन की शिक्षा ली, जिसे बुद्धिस्ट फिलोसोफी में डॉक्ट्रेट के समान माना जाता है। 1950 में चीन और तिब्बत के बीच आपसी मतभेद के कारण चीन कई बार तिब्बत पर हमला करते रहते थे।दिन व् दिन तिब्बत के लोगों पर अत्याचार बढ़ गए थे और यही कारण था कि तिब्बत के लोगों ने Dalai Lama को पॉलिटिक्स में आने के लिए फ़ोर्स किया। लेकिन पॉलिटिक्स में आने से पहले Dalai Lama चीन गये ताकि वो शांति से सबके हित में बात कर सके लेकिन बात कुछ बनी नहीं।
1959 में लोगों के अंदर गुस्सा पैदा होने लगा और चीन तिब्बत पर कब्ज़ा करना चाहता था और Dalai Lama की वजह से चीन तिब्बत पर कब्ज़ा नहीं कर पा रहा था। जिसके कारण Lama को चीन के सैनिकों द्वारा विद्रोह का सामना भी करना पड़ा और Lama की ज़िन्दगी पर खतरा आने लगा, जिसके कारण मार्च 1959 को Dalai Lama तिब्बत छोड़कर भारत के लिए पैदल ही निकल गए। 31 मार्च को वो भारत की सीमा में एंटर हुए और हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में आकर रहने लग गए और Dalai Lama के भारत आने के दौरान उनके साथ 80 हज़ार तिब्बती भी उनके साथ आये थे।
चीन ने उनके ख़िलाफ़ इतने रुथलेस बिहेवियर के बाद भी Dalai Lama चीन के प्रति दया भाव रखते हैं। चीन ने जब तिब्बत पर हमला किया तब People’s Republic Of China के अंदर सॉवरेन तिब्बत की स्थापना की उम्मीद में कई एक्शन लिए। 1963 में चीन ने Lama के इतने प्रयासों के बाद एक कॉन्ट्रैक्ट साइन किया जिसमें डेमोक्रेसी को लेकर कई सुधार किए गए। सितंबर 1987 में Dalai Lama ने चीन की सरकार के साथ यूनियन बनाने और वहाँ की कंडीशन में सुधार करने की पहल की और तिब्बत के लिए पंचसूत्री शांति योजना (Five-Point Peace Plan) बनाई ताकि तिब्बत को एक सैंक्चुअरी के रूप में कन्वर्ट किया जा सके, ताकि वहाँ के लोग शांति से वहाँ रह सके और वहाँ के एनवायरनमेंट को सेफ़ रखा जा सके।
15 जून 1988 को Dalai Lama ने फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में यूरोप की पार्लियामेंट के मेंबर को एड्रेस करते हुए चीन और तिब्बत के बीच बात करने का प्रस्ताव रखा, लेकिन 1991 में Lama के स्ट्रासबर्ग में रखे प्रस्ताव को इनवैलिड बताया गया। Dalai Lama ने अपनी पूरी ज़िंदगी मानव धर्म के फ़ेवर के लिए दे दी। उन्होंने कई किताबें लिखी और दुनिया की बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी में जाकर पीस और एनवायरनमेंट के लिए कई सेमिनार और वर्कशॉप की और विश्व शांति के लिए लगभग सभी देशों से मुलाक़ात की। एक इफेक्टिव पब्लिक स्पीकर के रूप में पहचाने जाने वाले Lama ने हमेशा दो देशों के बीच प्रेम और एक-दूसरे को बेहतर समझ कर साथ रहने को लेकर जोर दिया।
1989 में Lama को तिब्बत को फ्री करने के लिये उनके द्वारा किये गए प्रयासों के लिए नोबेल पीस प्राइज़ से सम्मानित किया जो दुनिया का सबसे बड़ा पुरुष्कार है। 10 मार्च 2011 को तिब्बत ने ये डिक्लेअर किया कि वो तिब्बत के पॉलिटिशियन के रूप में अब कभी सामने नहीं आयेंगे। चीन के इतने बुरे बिहेवियर के बाद भी Lama ने आज तक चीन के खिलाफ एक शब्द नहीं कहा और आज 85 की उम्र में भी वो दुनिया की शांति के लिए शांतिपूर्ण तरीके से लड़ाई लड़ रहे हैं। Dalai Lama के महान विचारों के कारण आज दुनिया भर में उनके करोड़ों चाहने वाले हैं, जो Dalai Lama के प्रति गहरी आस्था रखते हैं और वो अपनी शांति के प्रचारक की छवि के साथ-साथ बेहद पेशेंस वाले इंसान हैं, जिनके शब्द जीवन के प्रति नज़रिया बदल देने वाले और आपस में प्रेम भाव रखने के लिए प्रेरित करते हैं।
Nelson Mandela
अफ्रीका के महात्मा गाँधी कहे जाने वाले Nelson Mandela को Peacemaker के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने रंगभेद के खिलाफ लड़ने में अपनी पूरी लाइफ़ दे दी, जिनका काम इतना प्रभावशाली था कि उनके जन्मदिन 18 जुलाई को मंडेला दिवस के रूप में जाना जाने लगा।
Nelson Mandela का जन्म 18 जुलाई 1918 को Mwezo, साउथ अफ्रीका में हुआ। उनके पिता का नाम में Henry Mphakanyiswa था जो Mwezo टाउन के लोकल चीफ़ और काउंसिलर थे। Mandela उनके पिता के 13 बच्चों में से तीसरे नंबर पर थे, उनके नाम के आगे Mandela उनके दादा जी के नाम से आया।
Mandela ने अपनी स्टार्टिंग की पढ़ाई वहाँ के स्थानीय मिशनरी स्कूल से कम्पलीट की और जब Mandela 12 साल के थे तो उनके पिता की डेथ हो गयी। Mandela ने तीन शादियाँ की जिससे उन्हें कुल 6 बच्चे हुए, अक्टूबर 1944 को उन्होंने उनके फ्रेंड और एक्टिविस्ट Walter Sisulu की बहन Evelyn Mese से शादी कर ली। 1958 में Mandela ने अपनी दूसरी शादी Winnie Madikizela से की और तीसरी शादी Graca Machel से 80 साल की उम्र में कई ।
1943 में अपनी BA की डिग्री पूरी करने के बाद Mandela अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में कार्यकर्ता के रूप में काम करने लग गए। 1944 में ANC लीग के को-फाउंडर बने, उसके बाद Mandela अपने दोस्त Oliver Tambo के साथ जोहानिसबर्ग अपनी लॉ की पढ़ाई करने चले गए और वहाँ जाकर रंगभेद के खिलाफ आवाज़ भी उठाई और इसी क्रम से 1956 में Mandela और उनके साथ 155 कार्यकर्ताओं के खिलाफ मुकदमा भी चलाया गया, जो चार सालों बाद क्लोज़ किया गया। 1960 में उनकी पार्टी ANC पर प्रतिबंध लग गया, लेकिन वो अकेले ही अपने काम में लगे रहे और वित्तीय संकट को लेकर अभियान चलाया और 5 अगस्त 1962 को वहाँ के स्थानीय मजदूरों को स्ट्राइक के लिए उकसाने के लिए उन्हें अरेस्ट कर लिया गया।
Mandela पर उस केस पर आखिरी सुनवाई 1964 में हुई जिसमें उन्हें मौत की सज़ा सुनाई गई और बाद में अपना डिसीज़न बदलकर उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गयी और इसी के चलते उन्हें अपने देश मे रंगभेद के खिलाफ लड़ते हुए अपनी लाइफ़ के 27 साल जेल में बिताने पड़े। उनको 1990 तक जेल में रहना पड़ा और जेल में बाकी कैदियों की तरह उन्हें मज़दूरी का काम करना पड़ा, उस वक़्त वो अपने जीवन पर एक बुक भी लिख रहे थे और वो बुक Mandela के जेल से बाहर आने के चार साल बाद 1994 में पब्लिश हुई जिसका नाम “Long Walk To Freedom” है।
27 साल जेल में रहने के बाद भी उनके इरादे नहीं बदले थे, उनके दिमाग़ में सिर्फ़ देश मे रंगभेद के खिलाफ अहिंसा के साथ लड़ना था। जेल से आने के बाद Mandela ने अफ्रीका के कई देशों की यात्रा की और गोरों की सरकार से समझौता करके डेमोक्रेटिक अफ्रीका की नींव रखी, अंत में 10 मई 1994 को Mandela अपने देश के पहले प्रेज़िडेंट बने। महात्मा गाँधी की अहिंसा की विचारधारा ने Mandela पर काफ़ी असर डाला था और वो अपने जीवन मे गाँधी के प्रभावक विचारों की बात किया करते थे। 2007 में नई दिल्ली में हुए सम्मेलन में उन्होंने बताया कि अफ्रीका को अश्वेत लोगों से आज़ाद और रंगभेद खत्म करने में गाँधीजी की विचारधारा का अहम रोल है और उनकी वजह से ही इन समस्या का सॉल्यूशन हो सका है, शायद इसीलिए उन्हें दुनिया के दूसरे गाँधी के रूप में जाना जाता है।
5 दिसंबर 2013 को 95 साल की उम्र में लंग्स में इम्फेक्शन के कारण उनके रेज़ीडेंस जोहानिसबर्ग में उनकी डेथ हो गयी। Mandela ने अफ्रीका के लोगों के लिए अपनी ज़िंदगी के 67 साल दे दिए और उनमें से 27 साल जेल में बिताए। उसके बाद भी अपने विचारों को इतना तीव्र और हिंसा का सहारा न लेकर उन्होंने वहाँ की पब्लिक के लिए वो कर दिखाया जो आज़ादी के बाद किसी ने नहीं किया। उनके इस काम के लिए उन्हें 1993 में नोबेल पीस प्राइज़ से सम्मानित किया गया जो दुनिया का सर्वोच्च पुरुष्कार है। उन्हें अमेरिका में प्रेज़िडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम से भी नवाज़ा गया और 1990 में उन्हें भारत रत्न दिया गया, Mandela दूसरे नॉन इंडियन है और पहले अफ्रीकन है जिन्हें भारत रत्न से नवाज़ा गया, जो भारत का सबसे बड़ा पुरुष्कार है।
Arnold Schwarzenegger
एक इंसान अपनी ज़िन्दगी में कितना कुछ हासिल कर सकता है इसका जीता जागता एक्ज़ाम्पल Arnold Schwarzenegger है। एक छोटे से देश Austria जिसमें Arnold ने बॉडीबिल्डिंग, एक्टिंग और पॉलिटिक्स तीनों में बड़ी सफ़लता हासिल की है, जितना बड़ा उनका करियर रहा है उनकी जर्नी भी उतनी ही इंटरेस्टिंग रही है।
Arnold (बॉडी बिल्डर, एक्टर, पॉलिटिशियन, फिलॉन्ट्रोपिस्ट, एक्टिविस्ट, इन्वेस्टर, ऑथर) का जन्म 30 जुलाई 1947 को Thal, Austria में हुआ था। Arnold के पिता का नाम Gustav था जो पुलिस में थे, उनके पिता काफ़ी स्ट्रिक्ट थे, जिनको Arnold का बॉडीबिल्डिंग करना पसंद नहीं था क्योंकि वो Arnold को आर्मी जॉइन करवाना चाहते थे। लेकिन Arnold ने अपनी बॉडीबिल्डिंग का पैशन नहीं छोड़ा और अपने पेरेंट्स से छुप-छुपकर बॉडीबिल्डिंग किया करते थे। 2004 को फार्च्यून मैगज़ीन के इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उनके पिता ने उनके साथ ऐसा बर्ताव किया जिसे आज के टाइम में बाल शोषण (Child Abuse) कहते हैं।
Arnold ने 15 साल की उम्र से अपनी बॉडी पर काम करना शुरू कर दिया था और 1965 में 18 साल की उम्र में उन्होंने ऑस्ट्रियन आर्मी एक साल के लिए जॉइन की क्योंकि उस टाइम में आदमियों को आर्मी जॉइन करना ज़रूरी होता था। आर्मी जॉइन के दौरान उन्होंने Mr. Europe जूनियर का ख़िताब जीता जिसके लिए उन्होंने आर्मी की सर्विस बीच में छोड़ दी जिसकी वजह से उन्हें 7 दिन तक आर्मी जेल में रहना पड़ा। उसके बाद 1967 में 20 साल की उम्र में Mr. Universe का खिताब अपने नाम किया। 1968 में Arnold अमेरिका चले गए तब उन्हें इंग्लिश बहुत कम आता था जिसके चलते स्टार्टिंग में उन्हें कम्युनिकेशन में काफ़ी तक़लीफ़ आई लेकिन उन्होंने अपना फ़ोकस बॉडीबिल्डिंग पर बनाये रखा।
1969 में न्यूयॉर्क में हो रहे Mr. Olympia कंपटीशन में हिस्सा लिया और सेकंड नंबर पर आए। उनके दिमाग़ में सिर्फ़ एक ही सपना था दुनिया का सबसे बेस्ट बॉडीबिल्डर बनना, मतलब उन्हें Mr. Olympia बनना था। 1970 में वो फिर से पूरे जोश के साथ आये और Mr. Olympia का खिताब जीता, उस टाइम उनकी उम्र 23 साल थी, जिससे उन्होंने सबसे कम उम्र के Mr. Olympia के रिकॉर्ड अपने नाम किया, जो आज तक कायम है, उसके बाद उन्होंने रेगुलर 6 Mr. Olympia के खिताब अपने नाम किये।
बॉडीबिल्डिंग के बाद Arnold एक्टिंग को अपना करियर बनाना चाहते थे, 1970 में Mr. Olympia जीतने के बाद Hercules In New York नाम की मूवी में उन्हें काम मिल गया। बॉडी ज़्यादा होने की वजह से उनकी आवाज़ सही से नहीं आ पा रही थी तो उस मूवी में उनकी वौइस् डबिंग किसी ओर ने की थी। उसके बाद 1973 में उन्होंने The Long Goodboy और 1976 में Stay Hungry में काम किया जिसके लिए उन्हें गोल्डन ग्लोब अवार्ड भी मिला। Arnold को हॉलीवुड में अच्छे मुक़ाम पर 1977 में आई उनकी फ़िल्म Pumping Iron ने पहुँचाया और उसके बाद हॉलीवुड में एक एस्टाब्लिश एक्टर के रूप में उनका करियर चल पड़ा।
1983 में उन्हें अमेरिका की सिटीज़नशिप मिली और अप्रैल 1986 को Arnold टेलीविज़न रिपोर्टर Maria Shiver से मिले जिनसे बाद में उन्होंने शादी कर ली, जिनसे उन्हें चार बच्चे गया। हुए, 2011 को उनका किसी कारण डिवोर्स हो गया। Arnold अपनी स्टार्टिंग की फ़िल्म्स में काम करके एक्टर तो बन गए लेकिन उन्हें स्टार उनकी फ़िल्म Canon The Barbarian ने बनाया जो 1982 में रिलीज़ हुई थी और ब्लॉकबस्टर साबित हुई। जिसके बाद में Sequel बना और उसमे भी उन्होंने काम किया। 1984 में आई फ़िल्म The Terminator में उनके रोल को पूरी दुनिया ने पहचान लिया और उसके बाद Arnold ने हॉलीवुड में पीछे मुड़कर नहीं देखा।
इसके बाद उन्होंने Commando 1985, Raw Deal 1986, The Running Man 1987, Predator 1987 और Red Heat 1988 जैसी सुपर हिट फ़िल्म्स में अपनी एक्टिंग का जादू दिखाया और अपने आप को हॉलीवुड का बड़ा सुपरस्टार बनाया। 1990 में उन्हें Total Recall मूवी के लिए 10 मिलियन डॉलर मिले और फ़िल्म की पूरी कमाई में से 15% भी मिला। Terminator 2- Judgement Day 1991 और Terminator 3- Rise Of The Machines, Arnold के करियर की सबसे सफल फ़िल्म साबित हुई है, Terminator 3 ने 433 मिलियन का बिज़नेस किया था। 2005 में उन्होंने Liberty Kids नाम की सिरीज़ में अपनी आवाज़ (Dubbing Artist) भी दी।
पहले बॉडीबिल्डिंग फिर हॉलीवुड करियर में अपना नाम कमाने के बाद Arnold अब राजनीति में अपना हाथ जमाने वाले थे, पॉलिटिक्स में आने के टाइम उन्हें काफ़ी लोगों ने सक्सेस न होने की बात कही लेकिन एक बार फिर से उन्होंने उन लोगों को ग़लत साबित किया। Arnold 2003 से 2011 तक कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर पद पर रहे, पॉलिटिक्स में आने के बाद उनकी पॉपुलैरिटी और भी बढ़ गयी, उनके रिज़ाइन देने के बाद वो अभी भी – हॉलीवुड फ़िल्म में आते रहते हैं और आज हर कोई उन्हें अपना आइडियल मानता है। 1977 में Arnold की बायोग्राफी Arnold-The Education Of Bodybuilder पब्लिश हुई जिसे बहुत सफ़लता मिली।
एक बच्चा जिसके पिता ने उसके साथ बचपन में शोषण किया, बिना सपोर्ट के अपने सपने को छुप-छुपकर पूरा किया, अपने सपनों के खातिर आर्मी जेल में रहे, इंग्लिश अच्छी तरह न आने के बाद भी अमेरिका गए, जैसे-तैसे करके लोगों से कम्युनिकेशन किया और वहाँ अपार सफ़लता हासिल की। Arnold का जीवन काफ़ी परेशानियों से भरा होने के बाद भी अपने आप को 7 बार Mr. Olympia बनाया और एक सफ़ल पॉलिटिशियन भी जिनके पास 400 मिलियन डॉलर की संपत्ति है और सैकड़ो अवार्ड्स भी है। आज हर बॉडी बिल्डर के लिए Arnold उनके आइडियल पर्सन है और एक लिविंग लीजेंड भी है।
Thomas Alva Edison
अमेरिका के फ़ेमस इन्वेंटर और बिज़नेसमैन Thomas Alva Edison को आप सभी जानते होंगे, जिनकी बदौलत आज हमारी ज़िंदगी में रोशनी आयी, जी हाँ जिन्होंने बल्ब का अविष्कार किया था और साथ ही 1093 पेटेंट्स अपने नाम करवाये, अपने पेटेंट्स और इन्वेंशन की बदौलत आज उनका नाम दुनिया के टॉप इंवेंटर्स में लिया जाता है।
Thomas Alva Edison का जन्म 11 फरवरी 1847 को Ohio स्टेट के मिलान सिटी में हुआ, वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थे इसलिये वो अपनी माँ के बहुत करीब थे। स्कूल के शुरुआती दिनों में उन्हें स्कूल से मंदबुद्धि बताया गया और 3 महीने स्कूल में बिताने के बाद Thomas की माँ ने उन्हें घर पर ही पढ़ाना शुरू किया, उन्होंने घर रहकर सिर्फ़ 10 साल की उम्र में डिक्शनरी ऑफ साइंस की पढ़ाई कम्पलीट कर दी थी।
ऐसा कहा जाता है कि Thomas Edison को बचपन से ही Scarlet Fever नाम की बीमारी हुई थी जिससे उनको कम सुनाई देता था और बचपन में सही से इलाज न मिलने की वजह से उनकी ये बीमारी सही समय पर ठीक न हो सकी और एन्ड टाइम में वो पूरी तरह से बहरे हो चुके थे। हालांकि उनकी मेहनत और डेडिकेशन के आगे ये बीमारी कभी नज़र नहीं आयी।
बचपन में उन्हें काफ़ी स्ट्रगल से गुज़रना पड़ा क्योंकि उनके बचपन के टाइम उनके परिवार की फाइनेंसियल कंडीशन ठीक नहीं थी, जिसकी वजह से वो अपनी फ़ैमिली की हेल्प के लिए घर-घर जाकर न्यूज़पेपर बाटते थे और नज़दीकी रेलवे स्टेशन पर चॉकलेट और कैंडी भी बेचते थे। उसी दौरान का उनका एक किस्सा भी काफ़ी फ़ेमस है जब वो रेलवे स्टेशन पर कैंडी बेचने का काम करते थे तब उन्होंने रेल ट्रैक पर घूम रहे एक तीन साल के बच्चे की जान भी बचाई थी और उस तीन साल के बच्चे के पिता ने ही Thomas को टेलीग्राफी सिखाई थी।
जब Thomas के सुनने की शक्ति कम होती गयी तो वो सीखी गयी टेलीग्राफी उनके बहुत काम आयी और उसके बाद उन्हें टेलीग्राफी में जॉब भी मिल गयी। 1866 में Thoma Louisville, केंटकी चले गए जहाँ उन्होंने प्रेस ब्यूरो में काम भी किया, Thomas वहाँ नाईट ड्यूटी करते थे ताकि दिन में उन्हें अपने एक्सपेरिमेंट्स के लिए टाइम मिल सके और उसी ऑफिस में बैटरी के साथ एक एक्सपेरिमेंट के दौरान एसिड फ्लोर पर गिर जाने की वजह से उन्हें वहाँ से नौकरी से निकाल दिया। वहाँ से निकलकर 1968 में Thomas ने इलेक्ट्रिक वोट रिकॉर्डर बना कर अपनी इन्वेंशन की जर्नी का पहला पेटेंट अपने नाम करवा दिया, जिसे बाद में जाकर किसी ने नहीं खरीदा। लेकिन उस बात से वो निराश होने की बजाय अपने नए इन्वेंशन में लग गए, उसके बाद उन्होंने यूनिवर्सल स्टॉक प्रिंटर बनाया और उन्होंने इसे 3 हज़ार डॉलर में बेचा, इसके बाद 1870 से 1876 तक उन्होंने कई इंवेंशन्स किये।
उसी दौरान 1871 में जब Thomas 24 साल के थे तब उनकी शादी 16 की Mary Stilwell से हुई और उनसे उन्हें 3 बच्चे भी हुए लेकिन शादी के 13 साल बाद Mary की किसी बीमारी की वजह से डेथ हो गयी, उसके 2 साल बाद Thomas ने Mina Miller से 1886 में शादी की, जिनसे उन्हें 3 और बच्चे हुए। 1877 में Thomas ने फोनोग्राफ़ मशीन का इन्वेंशन किया जिसके कारण उन्हें काफ़ी फ़ेम मिला और 1878 के बाद Thomas अपने फ़ेमस इन्वेंशन बल्ब को बनाने में लग गए, Thomas ने बल्ब बनाने में 1000 से ज़्यादा एक्सपेरिमेंट्स किये लेकिन वो इन सब मे असफ़ल रहे, फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी।
आखिरकार 21 अक्टूबर 1879 को अपनी 1 साल की मेहनत और 1000 से ज़्यादा प्रयासों के बाद Thomas बल्ब बनाने में सफ़ल हो गए और लगातार 40 घंटे तक चलने वाला बल्ब दुनिया के सामने लाया। आज भी मार्केट में पुराने टाइप के दिखने वाले जो बल्ब मिलते हैं, जो फिलामेंट्स और ग्लास से बने होते है उन्हें Edison बल्ब भी कहा जाता है, X-Ray, रेडियोग्राफि के लिए Thomas ने Fluoroscope का अविष्कार किया और 100 साल बाद आज भी इस तकनीक का यूज़ किया जाता है।
1900 तक Thomas अपनी लाइफ़ के सभी मेजर इंवेंशन्स कर चुके थे और अब वो एक बिज़नेसमैन बन चुके थे जो अपने बनाये गए पेटेंट्स का प्रोडक्शन करते थे। Thomas Edison ने अपनी लाइफ़ के लगभग 50 साल अपने ऑरेंज कारखाने में दे दिए और अपने नाम से 1093 पेटेंट्स किये। 18 अक्टूबर 1931 को वर्ल्ड के इस महान साइंटिस्ट ने आखिरी साँस ली, जिनके किये गए इन्वेंशन की आज भी तारीफ की जाती हैं। Thomas Alva Edison की कुछ नया करने की चाह को फाइनेंसियल कंडीशन नहीं रोक सकी, उन्होंने सब्जी और न्यूज़पेपर बेच कर उन पैसों को अपने इंवेंशन्स में इन्वेस्ट किया, आज बहुत से लोगों को नहीं पता कि उन्हें कम सुनाई देता था लेकिन उनकी ये तक़लीफ़ उनके किये गए कामों के सामने फीकी लगती है, इसी कारण उनकी ये कमी कभी सामने नहीं आयी, बचपन में मंदबुद्धि बताकर स्कूल से निकाले गए वही Edison एक दिन दुनिया के एक महान साइंटिस्ट बनकर सामने आए।
Nikola Tesla
Nikola Tesla को कौन नहीं जानता! Nikola Tesla एक ऐसे साइंटिस्ट थे जिन्होंने अल्टरनेटिंग करंट (AC) का आविष्कार किया और साथ में कई आविष्कार किये, आज हम हमारे घर में जिस लाइट का यूज़ कर रहे है वो भी Nikola Tesla की ही देन है, एक ऐसे वैज्ञानिक जिन्होंने अपनी लाइफ़ में कभी फ़ेम नहीं देखा और हमेशा क्रिटिसाइज़ हुए लेकिन उनके इन्वेंशन ने आज 21वी सदी में उतना ही फ़ेम दिया जो उन्हें उस वक़्त मिलना चाहिए था।
Nikola Tesla का जन्म 10 जुलाई 1856 को Croatia में हुआ था। उनके पिता का नाम Milutin Tesla और माँ का नाम Duk Mandic था, उनके पिता एक चर्च में प्रीस्ट थे। Tesla पाँच भाई-बहनों में से चौथे नंबर पर थे और जब वो पाँच साल के थे तब उनके भाई की डेथ हो गयी थी। Tesla ने हमेशा अपने बुद्धिमान होने का श्रेय अपनी माँ को दिया, उनके पिता चाहते थे कि वो भी उनकी तरह ही चर्च में प्रीस्ट का काम करे लेकिन उनका जीवन तो साइंस के लिए बना था।
Tesla पढ़ाई में इतने इंटेलिजेंट थे कि उनके टीचर के द्वारा दी गयी इकुएशन को अपने माइंड में ही सॉल्व करके उसके जवाब टीचर्स को देते थे, जिस पर यकीन कर पाना टीचर्स के लिए मुश्किल होता था। उन्होंने अपनी इंटेलीजेंस से अपनी चार साल की ग्रेजुएशन तीन साल में ही कम्पलीट कर ली थी। वो सर्बियन और इंग्लिश के साथ-साथ जर्मन, और फ्रेंच जैसी कुल आठ लैंग्वेज को बोलना और लिखना जानते थे।
1873 में जब Tesla 17 साल के थे तब वो हैजा की बीमारी से पीड़ित हो गए थे, वो इतने ज़्यादा बीमार हुए की उनकी मौत होने वाली थी लेकिन 9 महीने तक बीमारी से लड़ने के बाद वो फिर से स्वस्थ हो गए। बीमारी के टाइम उनके पिता ने उन्हें खुश करने के लिए कहा कि अगर वो ठीक हो गए तो उनका एडमिशन किसी बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में करवा देंगे। 1875 में Tesla ने ऑस्ट्रिया के Graz में एक पॉलिटेक्निक कॉलेज में एडमिशन लिया।
1878 में Tesla कॉलेज पूरा होने के बाद Maribor गए और वहाँ ड्राफ्ट्समैन की जॉब पर लग गए और एक साल बाद उनके पिता की डेथ के बाद वो फिर से Gospic आ गए और वहाँ अपने पुराने स्कूल में टीचर की नौकरी करने लग गए।1881 में Tesla बुडापेस्ट, हंगरी में Tivadar Puskas (इन्वेंटर ऑफ टेलीफोन एक्सचेंज) के अंडर में टेलीग्राफ़ कंपनी में काम करने लग गए, लेकिन उन्हें वो कंपनी ठीक न लगने की वजह से वो बुडापेस्ट में फिर से ड्राफ्ट्समैन की नौकरी करने लग गए। एक साल बाद 1882 में Tivadar Puskas ने उन्हें पेरिस में कॉन्टिनेंटल एडिसन कंपनी में नौकरी दिलवा दी, जहाँ Tesla ने इलेक्ट्रिक पॉवर से रिलेटेड काफ़ी नॉलेज लिया और जब मैनेजमेंट को Tesla के पोटेंशियल का पता चला तो वो Tesla को फ्रांस और जर्मन में प्रोब्लेम्स को ट्रबलशूट करने भेजते थे।
1884 में Tesla, Edison के मैनेजर के साथ एडिसन मशीन वर्क्स न्यूयॉर्क में गए, जहाँ उनकी मुलाकात इन्वेंटर/बिज़नेसमैन Thomas Alva Edison से हुई, कुछ टाइम बाद Edison को ये बात पता चल गयी थी कि Tesla के साथ काम करने से उन्हें कितना फ़ायदा हो सकता है। Edison Tesla को जाने नहीं देना चाहते थे लेकिन Tesla को उनके AC करंट के आईडिया पर काम करना था इसलिए उन्होंने एडिसन मशीन वर्क्स से रिज़ाइन कर दिया।
एडिसन मशीन वर्क्स के बाद Tesla अपने AC करंट के आईडिया को इम्प्लीमेंट करने लग गए और Robert Lane और Benjamin Vali नाम के इन्वेस्टर्स ने Tesla के इस आइडिया पर इन्वेस्ट किया और Tesla ने खुद की कंपनी Tesla Electric Light And Manufacturing बना दी। उसके बाद Tesla ने AC इंडक्शन मोटर और टेस्ला कॉइल पर भी काम किया। Tesla ने अपने इन्वेंशन और रिसर्च के बेस पर कई प्रेडिक्शन की, जो आज सच साबित हो रही है। उन्होंने कहा था कि एक दिन हम सिर्फ़ सिग्नल की मदद से मैसेज और बात कर सकेंगे और इस डिवाइस के उन्होंने पॉकेट टेक्नोलॉजी का नाम दिया।
सेंचुरी के अंत में Tesla ने उनके इन्वेंशन टेस्ला कॉइल का पेटेंट करवाया, जो वायरलेस टेक्नोलॉजी पर आधारित था और आज बहुत-सी एडवांस टेक्नोलॉजी इस पर आधारित है। इन्ही सब इन्वेंशन के दौरान 1891 में Tesla को अमेरिका की सिटीज़नशीप मिल गयी थी। Tesla और Edison के किस्से आज पूरी दुनिया में फ़ेमस है, Tesla को Edison के मुकाबले इतना नाम नहीं मिला और उनकी मौत भी गुमनामी और ग़रीबी के बीच हुई थी। Tesla चुप-चाप रहने वाले साइंटिस्ट थे, अपनी अकेले रहने की इस आदत से शायद वो एक बिज़नेसमैन नहीं बन सके और उन्हें ग़रीबी में जीवन जीना पड़ा।
Edison ने Tesla को 50 हज़ार डॉलर ऑफर किये थे ताकि वो उनकी DC मोटर को और भी ज़्यादा बेहतर बना सके, Tesla ने उनकी मोटर को और भी बेहतर तरीके से डिज़ाइन किया लेकिन बाद में Edison अपने 50 हज़ार डॉलर के वादे से मुकर गए और उसे अमेरिकन ह्यूमर नाम के मज़ाक का नाम दे दिया। Tesla के आख़िरी साल बहुत अकेले और ग़रीबी में गुज़रे थे, वो अपने अंतिम दिनों में अपने कमरे में अकेले अपने कबूतरों के साथ रहते थे, 7 जनवरी 1943 को उनकी मौत भी एक होटल में हुई जहाँ वो बिल्कुल अकेले रहते थे। उन्होंने अपनी लाइफ़ साइंस के नाम कर दी और अपनी इंटेलिजेंस का राज़ अपना ब्रह्मचारी होना बताया था शायद यही वजह थी कि उन्होंने कभी शादी नहीं की, उनके अंतिम समय में लोग उनका बिहेवियर देखकर उन्हें पागल भी बताते थे।
Tesla ने अपने जीते जी कभी फ़ेम नहीं देखा और उनके जाने के लगभग 60 साल बाद अब उनकी की गई प्रिडिक्शन सच साबित होने लगी तब जाकर उनके काम काफ़ी आगे आने लगे हैं, उनके किये गए इन्वेंशन आज भी न्यू टेक्नोलॉजी का आधार है। उनके टाइम में उनके इन्वेंशन इतने ज़्यादा एडवांस थे कि उन्हें कोई समझ नहीं सका, लेकिन अब जाकर ये समझ आ रहा है कि वो असल में पागल नहीं बल्कि एक बुद्धिजीवी थे, जिनको समझ पाना नॉर्मल इंसान के बस की बात नहीं थी, शायद यही वजह है लोगों के द्वारा उनको पागल ठहराये जाने की।
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.