Aryabhatta
Aryabhatta प्राचीन काल के एक महान गणितज्ञ और एस्ट्रोनॉमर थे जिन्होंने मॉडर्न साइंस से लगभग 1500 साल पहले अपनी कैलकुलेशन और इंटेलिजेंस से एस्ट्रोलॉजी में महारत हासिल की और उनके द्वारा की गयी खोज मॉडर्न साइंटिस्ट के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
Aryabhatta के जन्म को लेकर कई बातें सामने आती है लेकिन किसी के पास उनके जन्म को लेकर स्ट्रोंग एविडेंस नहीं हैं, लेकिन कई जगहों पर उनके बारे में पढ़कर ये पता चलता है कि उनका जन्म 476 AD में पटना (पाटलिपुत्र) के पास कुसुमपुर गाँव में हुआ था और रिसर्च के अनुसार उनकी पढ़ाई भी नालंदा यूनिवर्सिटी में हुई थी। Aryabhatta ने कई मैथेमैटिकल और एस्ट्रोनॉमिकल ग्रंथ लिखे हैं लेकिन उनमें से जो मैन है और जिसकी वजह से लोग उन्हें जानते है, उसका नाम Aryabhatiya है, जिसमें मैथ्स और एस्ट्रोनॉमी से रिलेटेड जानकारी को कविता के रूप में लिखा गया है। उन्होंने यह ग्रंथ 23 की उम्र में लिखा था और इसी ग्रंथ की वजह से राजा Buddhagupta ने उन्हें नालंदा विश्वविद्यालय का प्रमुख बना दिया।
सबसे पहले Aryabhatta ने ही ये सिद्ध किया और बताया कि पृथ्वी गोल है और इसकी परिधि का अनुमान 24835 मील है, ये एक धुरी पर घूमती है जिसकी वजह से दिन और रात होते हैं। इसके साथ-साथ उन्होंने सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होने के भी कारण बताए। Aryabhatta ने बहुत से ग्रंथ लिखे है लेकिन आज के समय में 4 ग्रंथ ही मौजूद है बाकी के ग्रंथ अस्तित्व में नहीं है, उन 4 ग्रंथों का नाम आर्यभट्ट, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट्ट सिद्धांत है। आर्यभट्ट उनमें से सबसे लोकप्रिय ग्रंथ है जिसमें कुल 121 श्लोक है और उन 121 को भी अलग-अलग भागों में लिखा गया है –
- गीतिका पद – इसमें 13 श्लोक है और इसमें सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों के बारे में बताया गया है।
- गणित पद – इसमें अंकगणित, बीजगणित और ज्यामिति के बारे में बताया गया है।
- काल क्रिया पद – इसमें हिन्दू टाइम पीरियड और ग्रहों की दशा के बारे में बताया गया है ।
- गोल पद – इसमें स्पेस, साइंस और एस्ट्रोलॉजी के बारे में बताया है।
इसके अलावा आर्यभट्ट ने हमें कई सिद्धांतों के बारे में बताया है जिसमे शंकु यंत्र ( Gnomon), छाया यंत्र (shadow instrument), बेलनाकार यस्ती यंत्र (cylindrical instrument), छात्रा यंत्र (umbrella device) और भी कई यंत्रो के बारे में उन्होंने अपने ग्रंथ में बताया है। आर्यभट्ट ने मैथ में जो योगदान दिया है वो पीयरलेस है, उन्होंने ट्रायंगल और सर्किल के क्षेत्रफल निकालने के जो सूत्र 1500 साल पहले दिए वो सही साबित हुए। उन्होंने जो PI का मान दिया 3.14 वो भी सही साबित हुआ, उन्होंने PI का मान अपनी गणितपद में कुछ इस तरह दिया कि 100 में 4 जोड़े 104 फिर उसे 8 से गुणा करे और उसमें 62000 जोड़े और उसमें 20000 का भाग देंगे तो PI का मान आ जाता है।
[(4 + 100) × 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832
62,832 / 20,000 = 3.1416
उन्होंने पृथ्वी की परिधि के बारे में भी अपने ग्रंथ में बताया, उन्होंने बिना किसी डिवाइस से अपनी कल्पना से पृथ्वी की परिधि को 49968.05 किलोमीटर बताया जो असल परिधि से 0.2% कम है और मॉडर्न साइंस के लिए आज भी सरप्राइज़िंग है कि उस टाइम बिना किसी GPS और एकदम कम से कम डिवाइस के साथ ये कैलकुलेशन कर पाना कैसे पॉसिबल है। ज़ीरो की खोज भी आर्यभट्ट ने की।
एकं च दश च शतं च सहस्रं तु अयुतनियुते तथा प्रयुतम्। कोट्यर्बुदं च वृन्दं स्थानातू स्थानं दशगुणं स्यात् ॥२॥
इस श्लोक से मतलब निकलता है कि अगर आप “0” को किसी भी चीज़ के आगे लगाते हो तो उसका मान 10 गुना बढ़ जाता है। आर्यभट्ट ने त्रिकोणमिति और बीजगणित के बारे में भी अपने ग्रंथ के गणित पद में लिखा है। इसके अलावा आर्यभट्ट ने सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के बारे में जो जानकारी दी है वो भी बिल्कुल सटीक निकली, सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होने के रीज़न भी बताए, इसके साथ-साथ उन्होंने ये भी बता दिया था कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती है और उसकी वजह से अंतरिक्ष मे तारों की पोजीशन में हमें फ़र्क नज़र आता है।
ये सब बातें आर्यभट्ट ने आज से लगभग 1500 साल पहले बता दी थी और आज के मॉडर्न ज़माने में उनकी बातों और बताई गई जानकारी पर रिसर्च की गई तो उसमें पता चला कि उनकी सभी जानकारी लगभग परफेक्ट है, उसी से उनके इस अद्भुत नॉलेज के बारे में हमें पता चलता है। उनके बारे में जितनी जानकारी मौजूद है उसके मुताबिक साल 550 में 74 की उम्र में आर्यभट्ट का निधन हो गया। आर्यभट्ट के नाम से भारत ने अपना पहला उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़ा, जिसे 19 अप्रैल 1975 को लॉन्च किया गया । उनकी पर्सनल जानकारी के कोई भी स्ट्रोंग एविडेंस आज अवेलेबल नहीं है लेकिन हम उनकी इंटेलिजेंस का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
Leonardo Da Vinci
Leonardo Da Vinci को वैसे तो एक पेंटर के रूप में ज़्यादा जाना जाता है लेकिन वो एक इंटेलेक्चुअल इंसान थे और पेंटिंग के साथ-साथ और भी कई चीज़ों में एक्सपर्ट थे। आज Vinci अपनी बनाई गई वर्ल्ड फेमस पेंटिंग मोनालिसा से ज़्यादा जाने जाते हैं। उनकी लाइफ़ बहुत ही रहस्यमयी रही है जिस पर आज भी रिसर्च जारी है और उनके द्वारा दुनिया के लिए किए गए काम 600 साल बाद आज भी लोगों के लिए एक इंस्पिरेशन है।
Leonardo Da Vinci का जन्म 15 अप्रैल 1452 को इटली के Vinci शहर हुआ था, उनके पिता एक लॉयर थे, उनकी माँ ने Leonardo के जन्म के बाद दूसरी शादी कर ली और Leonardo के पिता ने 4 शादियाँ की थी और Leonardo उनमें से सबसे पहले बेटे थे और वो अपने पिता के साथ ही बड़े हुए। 1469 में जब Leonardo 17 साल के थे तब उनके पिता फ्लोरेंस चले गए और उनका मूर्ति बनाने में इंटरेस्ट को देखकर उनके पिता ने उन्हें Andrea Del Verrocchio नाम के एक फ़ेमस आर्टिस्ट से मिलवाया, जिनसे उन्होंने आगे मूर्ति बनाने का काम भी सीखा।
Verrocchio के साथ Leonardo ने अपने काम को इतना तराश लिया था कि वो Verrocchio के बनाये गए आर्ट को भी मात देने लग गए थे, 20 साल की उम्र तक Leonardo, Verrocchio की आर्ट स्कूल के सबसे बेस्ट आर्टिस्ट बन गए थे और फ्लोरेंस सिटी में एक अच्छी रेपुटेशन भी बना दी। 1476 में Leonardo पर एक औरत के साथ ग़लत संबंध बनाने के आरोप भी लगे, जिससे फ्लोरेंस सिटी में बनाये गए उनके नाम पर काफ़ी ग़लत प्रभाव पड़ा। वो केस कोर्ट के अनुसार झूठा हुआ, उसके 2 साल बाद तक Leonardo ने क्या काम किया, उसका कोई रिकॉर्ड अभी तक किसी के पास नहीं है। 1481 में 29 साल की उम्र में उन्हें एक वॉल पेंटिंग Adoration Of The Magi का काम मिला जो आज भी वर्ल्ड फ़ेमस है।
Leonardo 30 की उम्र तक फ्लोरेंस सिटी में रहे और मूर्ति कला पर काम किया उसके बाद वो इटली के मिलान शहर के शासक Ludovico Sforza की सेना में इंजीनियर के तौर पर रहे, जहाँ उन्होंने बहुत-सी मशीनरी डेवलप की जिसमें हेलीकॉप्टर के डिज़ाइन, म्यूज़िकल इंस्ट्रूमेंट्स, पैराशूट, एरोप्लेन और भी कई मशीनों के डिज़ाइन तैयार किये और साथ-साथ अपनी कला का भी प्रदर्शन किया। “The Last Supper” नाम की फ़ेमस पेंटिंग भी उन्होंने मिलान में ही बनाई थी, Leonardo सिविल इंजीनियरिंग में भी बहुत माहिर थे, सेना में रहने के दौरान उन्होंने एक नदी के ऊपर हैंगिंग ब्रिज भी बनाया और दीवारों को अलग-अलग तरीके से डिज़ाइन किया ताकि दुश्मन सेना के अटैक से बचा जा सके।
1499 में Leonardo वेनिस आ गए और एक साल वहाँ रहने के बाद 1500 में Leonardo फिर से फ्लोरेंस आ गए और 1503 से 1506 के बीच उन्होंने अपनी सबसे फ़ेमस पेंटिंग मोनालिसा बनाई, ये पेंटिंग उन्होंने 51 साल की उम्र में बनाना शुरू किया था। मोनालिसा फ्लोरेंस शहर के एक सिल्क मर्चेंट Francesco Del Giocondo की वाइफ़ थी, जो पेंटिंग बनाने के दौरान रोजाना Leonardo के स्टूडियो में आती थी, इस पेंटिंग की सबसे खास बात ये है कि कोई भी इस पेंटिंग को देखकर मोनालिसा के एक्सप्रेशन अच्छे से नहीं बता सकता कि एक्ज़ेटली मोनालिसा खुश है या दुखी है।
मोनालिसा की पेंटिंग का काम पूरा करने के बाद Leonardo फिर से इटली के शहर मिलान चले गए और अगले 7 सालों तक मिलान के शासक के वहाँ रहे, जहाँ वो अपने आर्ट का प्रदर्शन करते थे, Leonardo ने इस पीरियड के दौरान “The Virgin And The Child And St. Anne” नाम की फ़ेमस पेंटिंग बनाई। 1517 में Leonardo रोम आ गए और वहाँ के राजा Francis 1st के यहाँ गेस्ट बनकर रहने लगे, जहाँ से उनको पेंशन भी मिलती थी, Leonardo ने वहाँ 3 साल गुज़ारे और 1519 में Leonardo की डेथ हो गयी। Leonardo की लाइफ़ मिस्ट्री से भरी हुई है क्योंकि उनकी लाइफ़ के कई साल काफ़ी गुप्त तरीके से गुज़रे हैं, आज तक किसी को नहीं पता हैं कि Leonardo उस समय में किस जगह थे और क्या कर रहे थे और किसी भी पेपर्स में उस समय का उनका कोई रिकॉर्ड भी नहीं हैं।
Leonardo Da Vinci जीवहत्या और हिंसा के बिल्कुल ख़िलाफ़ थे इसलिए वो वेजीटेरियन भी थे और हिंसा के ख़िलाफ़ होने के बावजूद भी उन्हें युद्ध के हथियार डिज़ाइन करने पड़े। हमेशा सिचुएशन ऐसी बनी रही कि उनके आधे से ज़्यादा स्कल्पचर, पेंटिंग और मशीनरी डिज़ाइन अधूरी ही रह गयी। उनके द्वारा बनाये गए नदी के डिज़ाइन, बाँध और वाटर कंज़रवेशन को लेकर किये गए डिज़ाइन भी पेपर में ही रह गए लेकिन Leonardo की मौत के बाद साइंटिस्ट और डिज़ाइनर ने Leonardo को अपना आइडियल माना और उनके बनाये गए डिज़ाइन पर काम करके उन्हें असली रूप दिया। आज से 600 साल पहले उन्होंने हेलीकॉप्टर, एरोप्लेन, टैंक पंडुपी, स्पाइरल स्टैर्स और भी कई डिज़ाइन को इमेजिन किया और पेपर पर बनाया था और आज हम डिज़ाइन और इनोवेशन देख रहे हैं, उनकी डिज़ाइन और Leonardo की बनाई डिज़ाइन्स काफ़ी मिलती जुलती है।
एक तरीके से देखा जाए तो उनकी इमेजिनेशन हमें इस टाइम में देखने को मिल रही है जो उन्होंने आज से 600 साल पहले सोची थी। Leonardo Da Vinci जैसे महान लोग दुनिया में बहुत कम ही जन्मे हैं, जिनको शायद अपने जीते-जी तो इतना फ़ेम नहीं मिल सका लेकिन उनकी असली अहमियत उनके जाने के 500-600 साल बाद आज भी लोगों को पता चलती है।
Colonel Sanders
लगातार प्रयास करने के बाद भी सफलता हाथ न लगने और अपनी बढ़ती उम्र के कारण परेशान रहने वाले लोगों को Colonel Sanders की ये शॉर्ट बायोग्राफी बहुत इंस्पायर करेगी, जिन्हें सैकड़ों बार फैलियर का सामना करने के बाद 65 कि उम्र में सफलता मिली। सफ़लता भी ऐसी मिली कि अंत में जाकर वो बिलेनियर बने, जिनके सफ़लता का स्वाद दुनिया भर के लोग चखते ही नहीं बल्कि बड़े चाव से कहते हैं, Colonel Sanders वही इंसान हैं जिन्होंने KFC को जन्म दिया।
Colonel Harland David Sanders का जन्म 9 सितंबर 1890 को Henryville Indiana में हुआ। वे एक बहुत ग़रीब फ़ैमिली से बिलोंग करते थे, उनके पिता एक कसाई थे और उनकी माँ एक हाउस वाइफ़ थी, Sanders अपने तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े थे और जब वो 5 साल के थे तब उनके पिता की डेथ हो चुकी थी जिसके कारण उन्हें बचपन से ही मुश्किलें देखनी पड़ी। उनके पिता की डेथ के बाद उनकी माँ ने एक टोमेटो कैचअप कंपनी में नौकरी की, तब Harland की उम्र काफ़ी कम थी। कुछ टाइम बाद उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली और अपने सभी बच्चों के साथ Indiana रहने चली गयी, जब उनकी माँ काम पर जाती थी तो वो अपने छोटे भाई-बहनों का ध्यान रखते थे क्योंकि उनके भाई-बहन उस टाइम बहुत छोटे थे।
जब वो 7th क्लास में थे तब पैसों की कमी के कारण उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी और अपनी ज़िंदगी चलाने के लिए नौकरी करनी पड़ी। जब Colonel 15 साल के थे तब उन्होंने बस में कंडक्टर की नौकरी की और 1906 में 16 साल की उम्र में आर्मी में जॉइन कर लिया और नौकरी की वजह से क्यूबा चले गए, कुछ टाइम आर्मी में नौकरी करने के बाद वो एक लोहार के यहाँ हेल्पर के तौर पर नौकरी पर लग गए, 2 महीने की नौकरी के बाद Colonel ने रेलवे के पार्ट्स को साफ़ करने की नौकरी की। उसके बाद उन्होंने स्टीम इंजन स्टॉकर की नौकरी की, जो एक स्थायी जॉब थी और Sanders वहाँ 1910 तक रहे, उसी जॉब के दौरान उन्होंने Josephine King से शादी कर ली।
कुछ दिनों बाद Sanders का उनके कलीग के साथ झगड़ा होने की वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया। नौकरी जाने के साथ-साथ उनकी बीवी भी उन्हें छोड़कर अपने पेरेंट्स के साथ रहने चली गयी, Sanders ने अपनी रेलवे की नौकरी के दौरान Law का कोर्स भी किया था और नौकरी जाने के बाद उन्होंने लॉयर के तौर पर प्रैक्टिस करना शुरू किया, लेकिन कहीं भी उन्हें सक्सेस हाथ नहीं लगी लेकिन फिर भी वो हमेशा नए-नए काम में अपने हाथ आज़माते थे।
उसके बाद उन्होंने इंश्योरेंस बेचने का काम किया, कई दुकानों में सेल्समैन का काम किया, टायर बेचने का काम किया, Ohio River में स्टीम बोट चलाने का काम भी किया लेकिन सक्सेस दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आयी लेकिन फिर भी उन्होंने अपने प्रयास करने नहीं छोड़े। 40 की उम्र तक आते-आते उन्होंने सैकड़ो जगहों पर काम किया लेकिन उन्हें कहीं पर भी सफ़लता हासिल नहीं हुई और 1930 में Shell Oil Company ने उन्हें एक सर्विस स्टेशन ऑफ़र किया और Sanders ने कॉर्बिन, केंटकी में अपना सर्विस स्टेशन खोला।
कुछ टाइम सर्विस स्टेशन चलाने के बाद उन्हें ये अहसास हुआ कि सर्विस स्टेशन चलाने से उन्हें कुछ खास इनकम नहीं हो रही है तो उन्होंने सर्विस स्टेशन की जगह पर चिकन बनाना शुरू कि और सर्विस स्टेशन के पास बने क्वार्टर में रहने वाले लोगों को डूअर टू डूअर सर्विस दिया। उसके बाद एक रेस्टोरेंट खोला जहाँ वो आने वाले ट्रक ड्राइवर्स को अपनी सीक्रेट रेसिपी से बनाये हुए फ्राइड चिकन सर्व करते थे और लोगों को उनके हाथ का बना चिकन पसंद आने लगा। 1935 में केंटकी के गवर्नर वहाँ से गुज़र रहे थे तभी उन्हें Sanders का रेस्टोरेंट दिखा और उन्हें वहाँ का चिकन इतना पसंद आया कि उन्होंने Sanders का नाम Colonel रख दिया।
1950 में उनकी लाइफ़ में फिर से मुश्किल आयी जब उनका रेस्टोरेंट चलना बन्द हुआ, क्योंकि उनका रेस्टारेंट फ्लोरिडा हाईवे पर था और वहाँ से आने जाने वाले लो उनके मैन कस्टमर थे लेकिन उस टाइम फ्लोरिडा जाने के लिए एक नया हाइवे बनना शुरू हुआ और उस रोड़ पर लोगों का आना-जाना कम होने लगा और Sanders के रेस्टारेंट पर पड़ने वाली भीड़ दिन-व-दिन कम होती गई। लेकिन मुश्किल आने के बाद भी Sanders चुप बैठने वाले कहाँ थे, 65 साल की उम्र में होने के बावजूद उन्हें अपनी चिकन रेसिपी पर बहुत भरोसा था इसलिए उन्होंने अपनी रेसिपी का नाम Kentucky Fried Chicken (KFC) रख दिया और उसकी फ्रैंचाइज़ी लोगों को बेचना शुरू कर दिया, एक बार उन्होंने बताया था कि उनकी रेसिपी को 1009 बार रिजेक्ट किया गया, लेकिन हार न मानने की वजह से 12 साल की मेहनत के बाद 600 फ्रैंचाइज़ी सेल कर चुके थे।
आज 145 देशों में 24000 से भी ज़्यादा आउटलेट्स हैं और तब से आज तक KFC दुनिया की सबसे सक्सेसफुल फ़ूड चैन में से एक है। 16 दिसंबर 1980 को Sanders 90 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया लेकिन आने वाले समय में लोगों के लिए कई सिख दे गए। लोग कम उम्र में होने के बाद भी रिजेक्शन से हार मान लेते हैं उनके लिए Colonel Sanders एक मिसाल है, जिनकी पूरी लाइफ़ संघर्ष और चुनोतियों से भरी थी, जिन्हें बचपन में पिता के जाने के बाद रिजेक्शन का सामना करना पड़ा था और हज़ार से ज़्यादा रिजेक्शन के बाद रिटायर होने की उम्र में उन्होंने आखिरकार एक सफ़ल बिज़नेसमैन बनकर दुनिया को दिखा दिया, आज शायद ही कोई ऐसा इंसान होगा जो KFC फ़ूड चैन के बारे में नहीं जानता होगा।
Usain Bolt
Usain Bolt दुनिया के सबसे तेज़ दौड़ने वाले व्यक्ति हैं, जिन्होंने ओलिंपिक और बाकी चैंपियनशिप में 21 बार हिस्सा लेकर 19 में गोल्ड मेडल जीता है। उनकी इस जीत ने उन्हें दुनिया का सबसे तेज़ और महान स्प्रिंटर बना दिया।
Usain Bolt का जन्म 21 अगस्त 1986 को Montego Bay Jamaica में हुआ था। उनके पिता Jamaica में एक छोटे से गाँव में एक ग्रोसरी स्टोर चलाते हैं, वो अपनी जवानी के टाइम लोकल क्रिकेट टीम में फ़ास्ट बॉलर थे। वो बचपन से फुटबॉल टीम में जाना चाहते थे लेकिन उनके कोच ने कभी उन्हें रेस ट्रैक से दूर हटने ही नहीं दिया। उन्होंने अपनी सबसे पहली रेस 2002 वर्ल्ड जूनियर चैंपियनशिप में की और 200 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीता और दुनिया के यंगेस्ट मेल वर्ल्ड जूनियर चैंपियन बन गए उस टाइम उनकी उम्र 15 साल थी। Bolt जब 16 साल के हुए तब उन्होंने अंडर 19 में 200 मीटर की रेस में रिकॉर्ड बनाया जो 20.13 सेकंड था। 17 की उम्र में 19.93 सेकंड का रिकॉर्ड बनाया और वो 200 सेकंड का रिकॉर्ड तोड़ने वाले दुनिया के पहले टीनएजर बन गए।
2004 में एथेंस ओलंपिक में वो अपने पैर की चोट के कारण आगे नहीं आ सके और 2005 में वर्ल्ड ट्रैक-एंड-फ़ील्ड चैंपियनशिप में सबसे लास्ट आये लेकिन उनकी इस चोट से उनके करियर के प्रति डेडिकेशन में ज़रा भी कमी नहीं आयी। रेस के फ़ील्ड में एक अवधारणा थी कि लंबा स्प्रिंटर एक रेस को अच्छे से शुरू नहीं कर पाता और Bolt की हाइट भी लंबे स्प्रिंटर में आती है लेकिन उन्होंने इस अवधारणा को तोड़ दिया और अपनी प्रैक्टिस के दम पर वर्ल्ड चैंपियनशिप में 200 मीटर रेस में सिल्वर मेडल जीता। उससे पहले बोल्ट 200 मीटर की रेस में ज़्यादा हिस्सा लिया करते थे लेकिन फिर उन्होंने अपने कोच को 100 मीटर की रेस करने के लिए मना लिया और प्रैक्टिस शुरू कर दी उन्होंने अपनी पहली प्रोफेशनल रेस में 100 मीटर की रेस 10.03 सेकंड में कम्पलीट की,
और 3 मई 2008 को उन्होंने 100 मीटर की रेस को 9.76 सेकंड में पूरा कर दिखाया हालांकि उन्होंने 10 सेकंड बैरियर तोड़ दिया था लेकिन उन्होंने अभी भी फ़ास्टेस्ट पर्सन का रिकॉर्ड नहीं तोड़ा था (10 सेकंड बैरियर एक माइंड बैरियर था कि 100 मीटर की रेस को 10 सेकंड से कम समय में पार नहीं किया जा सकता)। फ़ाइनली उसके 4 हफ़्तों बाद Bolt ने वर्ल्डस फ़ास्टेस्ट पर्सन का रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया, उन्होंने 100 मीटर की रेस 9.72 सेकंड में पूरा करके वर्ल्ड चैंपियन Tyson Gay को हरा दिया। फ़ाइनली 2008 ओलंपिक गेम्स के दौरान Bolt अमेरिका के Carl Lewis के बाद पहले व्यक्ति बन गए थे जिन्होंने 100 मीटर (9.69 seconds), 200 मीटर (19.30 seconds) और 4×100 मीटर (37.10 seconds) में दौड़ कर एक वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। उनका 200 मीटर की रेस जीतने का मार्जिन 0.66 का था जो आज तक का सबसे बड़ा विनिंग मार्जिन है।
2009 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में उन्होंने 100 मीटर की रेस 9.58 सेकंड में पूरा करके अपना ही बनाया हुआ रिकॉर्ड तोड़ दिया और उसके 4 दिन बाद 200 मीटर की रेस में 0.11 सेकंड के अंतर से अपना ही 200 मीटर का पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया।
- 2011 की वर्ल्ड चैंपियनशिप में सबसे ज़्यादा पसंद किए जाने वाले स्प्रिंटर Usain Bolt ही थे, हालांकि वो किसी कारण से 100 मीटर की रेस से बाहर हो गए थे लेकिन उन्होंने 200 मीटर और 4×100 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल पर कब्ज़ा कर लिया।
- 2013 में उन्होंने 100 मीटर, 200 मीटर और 4×100 मीटर को तीनों रेस में गोल्ड मेडल जीता।
- 2015 वर्ल्ड चैंपियनशिप में Bolt ने फिर से 100, 200 और 4×100 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीता।
- 2016 Rio De Janeiro ओलंपिक गेम्स में उन्होंने अपने आपको दुनिया का सबसे बेस्ट ओलंपिक स्प्रिंटर बना दिया क्योंकि उन्होंने उससे पहले हुए 2 ओलंपिक में भी गोल्ड मेडल जीता था और 2016 में उन्होंने 3rd बार गोल्ड मेडल जीता था।
अपनी मेहनत के बल पर एक ग़रीब परिवार से आने के बाद भी अपने आप एक वर्ल्ड चैंपियन बनाया, 2010 में Bolt ने “My Story: 9:58 The Worlds Fastest Man” लिखी जिसे 2012 में “The Fastest Man Alive : The True Story Of Usain Bolt” नाम से दुबारा निकाला गया। उन्हें अपने करियर और काबिलियत को देखते हुए Fastest Man Alive का दर्जा दिया गया, 2017 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में 100 मीटर की रेस में उन्होंने ब्रॉन्ज़ मेडल जीता और वो उनके करियर की आखिरी रेस थी उसके बाद उन्होंने रेस से सन्यास ले लिया।
Che Guevara
Che Guevara एक मार्क्सवादी (supporter of theories of Karl Marx’s) क्रांतिकारी थे, जिनका क्यूबा की क्रांति के दौरान एक मैन रोल था। Che Guevara ने अपनी पढ़ाई के दौरान साउथ अमेरिका की ग़रीबी को देखकर उन्होंने अपनी पुरी लाइफ़ राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दी, जिन्हें लोगों के हित में लड़ते हुए एक दर्दनाक मौत मिली।
Che Guevara का जन्म 14 जून 1928 Rosario, Argentina में एक मिडिल क्लास फ़ैमिली में हुआ था, बचपन में वो अस्थमा से पीड़ित थे, लेकिन फिर भी वो अपने आप को एक एथेलेट के रूप में दुनिया के सामने लाये और अपनी जवानी से ही उन्होंने पॉलिटिक्स में इंटरेस्ट लेना शुरू कर दिया और एक पॉलिटिक्स ग्रुप में शामिल हो गए जो Juan Perón के ख़िलाफ़ था। अपनी हाईस्कूल में आनर्स की पढ़ाई के करने के बाद Che ने University Of Buenos Aires में मेडिसिन्स की पढ़ाई की। 1951 में Che ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और अपने दोस्त के साथ साउथ अमेरिका टूर पर चले गए, साउथ अमेरिका में लोगों की ग़रीबी और उनकी बुरी हालत देखकर उन्होंने कॉलेज डिग्री कम्पलीट करने की ठान ली ताकि वो डॉक्टर बनकर लोगों की मदद कर सके और 1953 में उन्होंने फिर से कॉलेज जॉइन की और अपनी डिग्री कम्पलीट की।
डिग्री के बाद उनका इंटरेस्ट मार्क्सवादी की और बढ़ने लगा और उन्होंने मेडिसिन का काम छोड़ दिया क्योंकि उनको अब तक ये लग चुका था कि सिर्फ़ क्रांति ही साउथ अमेरिका के लोगों को न्याय दिला सकती है और वो 1953 Guatemala एक यात्रा पर चले गए। 1955 में उनकी शादी Hilda Gadea से हुई और वो मैक्सिको रहने चले गए, जहाँ उनकी मुलाक़ात Fulgencio Batista की गवर्नमेंट गिराने का प्लान बनाने वाले क्यूबा के दो क्रांतिकारी भाई Fidel Castro और Raúl से हुई। 2 दिसंबर 1956 को Che और बाकी के क्रांतिकारी क्यूबा के लिए निकले तो उन पर हमला हुआ जिसमें बहुत लोगों की जान गई लेकिन Che बच गए, हमले के बाद उन्होंने Fulgencio Batista के ख़िलाफ़ हमला करने वाली उनकी गोरिल्ला आर्मी का नेतृत्व किया और उनके सलाहकार बनकर रहे।
जनवरी 1959 में Fidel Castro ने क्यूबा पर अपना कब्ज़ा कर लिया और Che को La Cabaña जेल का चार्ज दे दिया, जब Che उस जेल के इंचार्ज थे तब उन्होंने एक्स्ट्रा जुडिशल आर्डर से (खुद के दम पर फैसला लेना) 144 लोगों को मार दिया था। बाद में Che क्यूबा के नेशनल बैंक के प्रेज़िडेंट बने और अमेरिका के साथ जितने भी ट्रेड रिलेशन थे उन्हें सोवियत यूनियन में शिफ़्ट किया। 11 दिसंबर 1964 को Che ने यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली को संबोधित किया और Puerto Rico के लोगों के प्रति पूरा समर्थन दिखाया और गोरिल्ला वॉर के लिए लोगों को तैयार करने के लिए Congo देश की यात्रा की और लोगों को वॉर के लिए प्रशिक्षित किया।
लेकिन उनका ये प्रयास असफल रहा। 1960 के दशक में वो क्यूबा के एम्बेसडर भी थे ताकि वो दूसरे देशों की यात्रा कर सके। क्यूबा के रिलेशन दूसरे देशों के साथ अच्छे कर क्यूबा वापस आने के बाद 1966 में वो Bolivia के लिए अपने एक गोरिल्ला आर्मी के साथ लोगों को क्रांति के लिए उकसाने के लिए निकल गए लेकिन उसमें उन्हें ज़्यादा सक्सेस नहीं मिली क्योंकि उनके साथ बहुत कम सपोर्टर थे। 9 अक्टूबर 1967 को Che और उनकी गोरिल्ला आर्मी के कुछ लोगों को Bolivia आर्मी के द्वारा पकड़ लिया गया, उनको पकड़ने के बाद उनके दोनों हाथों को काट दिया गया और बहुत टाइम तक टॉर्चर करने के बाद उनकी हत्या कर दी गयी।
Che की मौत के बाद उन्हें एक लीजेंडरी पोलिटिकल फिगर माना गया, उनके नाम को हमेशा विरोध, क्रांति और समाजवाद के साथ जोड़ा जाता है, उन्होंने जेल में जिस तरह से 144 लोगों को मरवाया था उसके कारण वो कुछ लोगों के लिए बुरे व्यक्ति भी माने गए। हालांकि उनके कदम हिंसक और आक्रामक थे लेकिन Che ने अपने जीवन मे जो भी किया वो लोगों की आज़ादी और लोगों के हक़ के लिए किया, उनकी लाइफ़ के ऊपर कई मूवीज़ और बुक्स लिखी गयी, जिसमें से The Motorcycle Diaries काफ़ी फ़ेमस है।