When Breath Becomes Air Book Summary in Hindi – जिंदगी की सच

When Breath Becomes Air Book Summary in Hindi – Hello दोस्तों ये है Paul Kalanithi की बेस्ट सेल्लिंग बुक When breath becomes air Book की Summary. दोस्तों इस बुक में इस धरती में इंसान के बारे में जो सच है उसको एक कहानी के रूप में बताये गए है, अगर आप सब चीजों से डरते है तो ये article मत पढ़े। ये कहानी किसी के लिए बिलकुल डरावना हो सकता है, क्यूंकि इसमें जीवन मरण का सच बताया गया है, अगर फिर भी इस सच को जानना चाहते है तो ये बुक समरी जरूर पढ़े।

When Breath Becomes Air Book Summary in Hindi



Prologue


 मैंने सीटी स्कैन देखा. ट्यूमर सारे फेफड़ो में फ़ैल चूका था और स्पाइनल कॉर्ड भी बुरी हालत में थी. लीवर का एक लोंब पूरी तरह खराब हो गया था. ज़ाहिर था कि कैंसर ने पूरे शरीर को अपनी चपेट में ले लिया था.



 मै अपने न्यूरोसर्जन की पढ़ाई के आखिरी साल में था. पिछले छेह सालो से मैं इसी तरह स्कैन चेक करके अपने मरीजों को ठीक करने का कोई प्रोसीजर सोचता रहता था. मगर आज मै किसी मरीज़ का नहीं बल्कि खुद का ही सीटी स्कैन देख रहा था.



 मेरी बीवी लूसी मेरे साथ थी. मैंने डॉक्टर के सफ़ेद कोट की जगह मरीज वाला गाउन पहन रखा था. मै अपने सीटी स्कैन को गौर से देख रहा था, शायद कहीं कोई उम्मीद की किरण नज़र आ जाए.



 करीब छेह महीने पहले मैंने खुद में कुछ बदलाव महसूस किया. अचानक से मेरा वजन घटने लगा था और कमर में भी भयंकर दर्द उठ रहा था. मैंने अपने डॉक्टर को दिखाया था. मै अभी 35 का ही था और इस उम्र में इन सब बातो का एक ही मतलब बनता था कि ये कैंसर के लक्षण है.



 एक्स-रे रिजल्ट मेरे सामने थे. इनमे साफ़-साफ मेरी बीमारी का पता चल रहा था. कमर का दर्द दूर करने के लिए मैने एक ब्रुफीन ले ली. शायद ज्यादा काम करने की वजह से ये सब लक्षण दिख रहे थे. मै वापस अपने काम पर लग गया था. मै हॉस्पिटल में रेजिडेंट डॉक्टर था.



 मेरे पास ग्रेजुएशन तक बस एक साल का टाइम था. कई सारे युनिवेसिटीज से मुझे जॉब ऑफर मिल रहे थे. अभी मेरे सामने पूरा फ्युचर पड़ा था.



 मगर कुछ ही हफ्तों बाद मुझे छाती में जानलेवा दर्द उठने लगा था. मेरा वजन 80 kg से घटकर 65 kg तक पहुच गया था और खांसी थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.



 इस बात में कोई शक नहीं बचा कि मुझे कैंसर था. फिर भी मैंने लूसी से कुछ नहीं छिपाया, हमारे रिश्ते में पहले से ही खटास थी, उसे लगता था कि मै उसे वक्त नहीं देता हूँ.



 मेरा काम ही कुछ ऐसा था कि मुझे बिलकुल भी फुर्सत नहीं होती थी. लूसी और मै कई दिनों तक एक दुसरे से मिल नहीं पाते थे. मुझे हमेशा लगता था कि एक बार रेजीडेंसी पूरी हो जाए फिर लूसी और मेरे बीच सब ठीक हो जाएगा.



 अगले 36 घंटे तक मै ऑपरेशन रूम में था. मेरे सामने एन्युरसिम्स और बाईपास जैसे मुश्किल केस आये थे. एक minute का भी आराम नहीं था. उसके बाद मैंने एक और एक्स-रे किया..



 कुछ दिन बाद मेरे डॉक्टर ने मुझे फ़ोन करके बताया कि मेरे चेस्ट के एक्स-रे साफ़ नहीं थे. वो बहुत धुंधले आये थे. हम दोनों ही इस बात का मतलब अच्छी तरह जानते थे.



 मै लूसी के साथ घर में बैठा था. मैंने उसे सारी बात बताई. सुनकर उसने मेरे काँधे पर अपना सर टिका दिया. उस एक पल में हमारे बीच की सारी कडवाहट घुल गयी. मैंने उसके कान में धीरे से कहा “मुझे तुम्हारी ज़रुरत है”




“मै तुम्हे छोड़कर कभी नहीं जाउंगी” उसने जवाब दिया.



 हमने हॉस्पिटल के अपने एक डॉक्टर दोस्त को फ़ोन किया. मैंने उससे पुछा कि क्या वो मुझे एडमिट करेगा. किसी पेशेंट की तरह मैंने भी हॉस्पिटल का गाउन और प्लास्टिक के ब्रेसलेट पहन लिए. मै उसी कमरे में एडमिट हुआ जहाँ मैंने पिछले छे सालो में ना जाने कितने ही मरीजों का इलाज़ किया था।




रुको मत जब तक साँसे है

 लूसी और मै हॉस्पिटल के बेड पर बैठे रोये जा रहे थे. हम अभी भी उस सीटी स्कैन को देख रहे थे. उसने मुझसे कहा था कि वो मुझसे बहुत प्यार करती है और मैंने भी रोते हुए कहा कि “मै अभी मरना नहीं चाहता”. फिर मैंने उससे कहा कि वो दूसरी शादी कर ले. मै नहीं चाहता था कि वो मेरे बाद अकेली रह जाए.


 इतने सालो तक मै पूरे जी-जान से अपना फ्यूचर बनाने में लगा रहा. मगर अब इस सबका कोई मतलब नहीं था. मेरे पास अब कुछ बचा नहीं था. अगर मै डॉक्टर नहीं बना होता तो ना जाने क्या बनता? आज मै महसूस कर सकता हूँ कि मौत के मुंह में जाते हुए मेरे मरीजों को कैसा लगता होगा.



 मुझे सुबह डिस्चार्ज कर दिया जायेगा. उसके बाद मुझे अपने ओंकोलोजिस्ट(oncologist) एम्मा हेवार्ड (Emma Hayward) से मिलना था. वो देश की सबसे मशहूर लंग कैंसर डॉक्टर थी.



 मेरे माता-पिता और भाई भी आ गए थे. एम्मा बोली “मुझे बहुत दुःख हुआ आपकी बिमारी के बारे में जानकर. आप सब के लिए मुझे दुःख हो रहा है”. उसने लैब में मेरे ट्यूमर का सैंपल टेस्ट करवा लिया था. अब मुझे जो ट्रीटमेंट दिया जाएगा वो रिजल्ट्स के ऊपर था. मैंने उससे पुछा कि मेरे पास कितना वक्त बचा है तो उसने बताने से मना कर दिया.



 एक डॉक्टर होने के नाते मुझे ये जानने का पूरा हक था. मगर एम्मा ने कहा “नहीं, हम बाद में थेरेपी के बारे में बात कर सकते है. हम तुम्हारे ठीक होने के बाद काम पर वापस जाने के बारे में भी बात कर सकते है अगर तुम चाहो तो ?”



 उसने ये भी कहा कि मेरी कीमोथेरेपी की दवाईया भी बदली जा सकती है. एक सर्जन होने के नाते मुझे मालूम था कि इन दवाइयों का असर मेरे नर्वस सिस्टम पर नहीं पड़ना चाहिये. तो सिस्प्लेटिन(cisplatin) के बदले मुझे कार्बोप्लेटिन(carboplatin) दिया जाएगा.



 मै अपने मन में सोच रहा था वापस काम पर ? ये क्या बोल रही है ? क्या वो सपने में बोल रही है?



 एम्मा अपना कार्ड छोड़कर चली गयी. दो दिन बाद मुझे फिर उससे मिलना था.



 मुझे एम्मा ने बताया कि दो रास्ते है मेरे इलाज़ के. पहला तो कीमोथेरेपी, जो बहुत आम ट्रीटमेंट होता है और ज़्यादातर अमल में लाया जाता है. इसमें कैंसर सेल्स (Cells) को खत्म किया जाता है मगर उसके साथ ही शरीर के हेल्दी सेल्स भी निशाना बनते है जो बॉन मैरो, आंतो, बालो के फोल्लीस्ल्स (hair follicles) और बाकी जगह होते है. दूसरा तरीका है नयी डेवेलप हुई थेरेपीज़ जिसमे मॉलिक्यूलर लेवल पर ही कैंसर सेल्स को मार दिया जाता है.



 मुझे बताया गया कि अगर मेरे शरीर में ईजीऍफ़आर (EGFR) कैंसर म्यूटेशन होगा तो मुझे टारसीवा नाम की दवाई दी जायेगी और मुझे कीमोथेरेपी भी नहीं करानी पड़ेगी.



 एम्मा को यकीन था कि मै अपनी सर्जन की ड्यूटी पर वापस जा सकूंगा. उसने सिसप्लेटिन की जगह कार्बोप्लेटिन पर जोर दिया अगर किमो की ज़रुरत पड़ी तो.


 मुझे पता था कि एम्मा तो बताएगी नहीं इसलिए मैंने अपने तरीके से खुद ही रिसर्च करने का फैसला किया ये जानने के लिए कि मै कितने दिन और बचूंगा.


 पिछले कुछ दिनों से मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ से शुरू करू. मगर जब से मुझे ये इजीऍफ़आर म्यूटेशन वाली बात पता चली है तो मुझे मालूम है कि मेरे बचने के उम्मीद ज्यादा है.


 लूसी और मैंने तय किया था कि मेरी रेज़ीडेंसी पूरी हो जाने के बाद हम बच्चे पैदा करेंगे.



 मगर अब मुझे खुद नहीं पता कि मै कब तक रहूँगा तो इस बारे में सोचना बेमानी था. दुसरे दिन हम दोनों स्पर्म बैंक गए.


 एक रेज़ीडेंट सर्जन होने के नाते बहुत बार मैने मरीजो और उनके परिवार के साथ उनकी मुश्किल घडी में बैठकर उन्हें दिलासा देने की कोशिश की है. ये किसी भी डॉक्टर के लिए एक मुश्किल काम होता है. अगर 94 साल का कोई बुज़ुर्ग (dementia) डीमेंटीया से जूझ रहा हो तो कोई बड़ी बात नहीं मगर एक 36 साल के जवान इंसान के लिए टर्मिनल कैंसर होना बहुत दुःखदाई है. ऐसे में क्या कहकर दिलासा दिया जाए समझ नहीं आता.



 लूसी और मै जब घर पहुंचे तो फ़ोन आया कि मुझे ट्रीटेबल कैंसर म्यूटेशन ईऍफ़जीआर है जिसका इलाज़ हो सकता है. अब मुझे किमो की ज़रुरत नहीं थी. बस मुझे टारसीवा की छोटी सी सफ़ेद गोली लेने की ज़रुरत थी. ये खबर सुनकर मेरी हिम्मत बड गयी, मुझे अब उम्मीद की किरण नज़र आ रही थी.



 अगले हफ्ते से मैंने अपने खाने की खुराक बड़ा दी. मेरा थोडा सा वजन भी बढने लगा था. मेरे चेहरे पर एक फुंसी भी निकल गयी जिससे पता चलता था कि टारसीवा की दवाई का असर हो रहा था. लूसी मेरे चेहरे को देखकर बोली “चाहे मेरा पूरा चेहरा फोड़े-फुंसी से भर जाए वो मुझे फिर भी प्यार करती रहेगी.”



 मै अपनी इस बिमारी को दो तरह से देख रहा था. एक डॉक्टर और मरीज़ के तौर पर मुझे अपनी मौत नज़र आ रही थी मगर मेरे अन्दर का फिजिशियन जानता था कि सच का सामना कैसे किया जाए. मुझे ट्रीटमेंट के बारे में सब कुछ पता था. इसके क्या कोम्प्लिकेशंस हो सकते है और कैसे मेडीकल केयर करनी है ये भी पता था. आजकल लंग कैंसर ऐसा है जैसा कैंसर 80 के दशक में एड्स था. ये बीमारी बहुत खतरनाक है मगर इसके इलाज की नयी-नयी थेरेपीज आ रही है.



 मै स्टेज 4 का मरीज था इसलिए मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मै बस यही सोच रहा था कि क्या लूसी और मुझे एक बच्चे को जन्म देना चाहिए या नहीं ? अगर बच्चा हो भी गया तो उसे पालेंगे कैसे जबकि मेरी खुद की जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं है. क्या मेरा करियर आगे चलेगा ? क्या मुझे अपने सपनो के बारे में सोचना चाहिए ये जानते हुए भी कि मेरे पास वक्त नहीं है.



 मौत तो मुझे हर हाल में आनी थी. मगर उससे पहले बची-खुची जिंदगी को भरपूर कैसे जिया जाए, ये सोचना था. मै ठीक होकर काम पर जा भी पाऊंगा या नहीं मुझे नहीं मालूम था मगर फिर भी क्या मैं जीने की कोई वजह ढूंढ सकता हूँ ?



 अब लगभग हर दिन मेरी फीजिकल थेरेपी होने लगी थी. बहुत मुश्किल थे ये मेरे लिए. जब आप खुद एक डॉक्टर होते हो तो आपको बीमार होने का मतलब अच्छे से पता होता है लेकिन आप जब तक खुद बीमार नहीं पड़ते तब तक इसे महसूस नहीं कर सकते. ये ऐसा ही है जैसे किसी बच्चे को पालना या प्यार में पड़ना.



 जब मुझे IV(Intravenous Injection) लगता तो मेरी जुबान नमकीन हो जाती थी.मेरे मरीज़ मुझे ऐसा कहते थे मगर अब मै खुद ये महसूस कर रहा था. .



 थेरेपी के दौरान मै बस थोड़ी सी टाँगे उठाने की कोशिश करता था. मै कोई ज्यादा वजन नहीं उठा रहा था फिर भी मेरी जान निकल जाती थी. मै थककर चिडचिड़ा होने लगा था. दिमाग चल रहा था मगर शरीर बहुत कमज़ोर हो गया था. मुझे लगता था कि जैसे मै कोई और इंसान हूँ..



 मै कभी मैराथन दौड़ा करता था. पर अब, ये जानलेवा कमरदर्द, उलटी सा महसूस होना, सर घूमना ये सब मुझे बिस्तर से उठने ही नहीं देता था. ये बिमारी मुझे कुछ और ही बना रही थी.



 हर दिन मै हिम्मत जुटाकर फिजिकल थेरेपी के लिए तैयार होता था. मैंने अपने रूटीन में रेप्स(Reps), मिनट्स और वेट शामिल कर लिया था. जब तक उलटी ना लगे तब तक करता रहता था.



 एक रात जब हम सो रहे थे तो लूसी ने पुछा” तुम किस चीज़ से सबसे ज्यादा डरते हो ? तुम्हे क्या उदास करता है ?




“तुम्हे छोड़कर जाने से” मैंने कहा. हमारा प्यार अब और भी गहराhota जा रहा था. इस जानलेवा बिमारी से लड़ते हुए लूसी का प्यार ही था जो मुझे जीने की हिम्मत दे रहा था.



 हमने बच्चे के बारे में बहुत सोचा. अगर मै नहीं रहा तो उसके लिए अकेले बच्चे को पालना बहुत मुश्किल होगा. मरते वक्त अपने बच्चे को आखिरी बार गुडबाई बोलना मेरे लिए वाकई बहुत मुश्किल होगा. मगर वो मौत ही क्या जो आसान हो”.



 हमने जान लिया था कि जिंदगी का दूसरा नाम ही दर्द है. इससे बचा नहीं जा सकता. हमारा बच्चा होगा तो हमारे रिश्ते को एक नयी पहचान मिलेगी. हमने अपना ये फैसला परिवारवालों को सुनाया. लूसी और मैंने IVF यानी इन vitro fertilization का रास्ता चुना, जिसमें बच्चा sex से नहीं होता बल्कि आदमी के sperms को औरत के cells के साथ एक lab में मिलाया जाता है। और बाद में वो fertilized egg वापस औरत की Fallopian tubes में डाला जाता है।



 टारसीवा का मुझ पर कितना असर हो रहा है ये जानने के लिए मेरा एक और सीटी स्कैन करवाया गया. मुझे ये गोली लेते हुए छेह हफ्ते हो चुके थे. पहले वाले सीटी स्कैन में मेरे लंग्स में बहुत सारे टयुमर्स दिख रहे थे मगर नए वाले स्कैन से पता चला कि अब सिर्फ एक ट्युमर बचा था. मेरी स्पाइन भी ठीक हो रही थी. मुझ पे वाकई में टारसीवा का असर हो रहा था.



 मुझे ये जानकार बहुत सुकून मिला. मेरा कैंसर अब स्टेबल था. अब मै आगे क्या करू? साइन्टिस्ट बनू या राइटर या टीचर? या फिर पहले की तरह एक न्यूरोसर्जन जैसा कि एम्मा बोलती थी. या फिर एक स्टे एट होम फादर(Stay at home father)?



 कैंसर जिंदगी को बदल कर रख देता है. अब मुझे सही में लगता है कि मेरे मरीज़ कैसा महसूस करते होंगे. मौत को face करना कैसा होता है ये मै नहीं जानता था, कितना मुश्किल, कितना पागल करने वाला. मेरा फ्यूचर हमेशा अँधेरे में रहेगा. मै जहाँ भी रहू मौत की परछाई मेरे सर पर मंडराती रहेगी.



 एक सुबह जब मै उठा तो पूरा बदन दर्द से टूट रहा था. मुझे लगा अब नही बच पाऊंगा. मगर मै जैसे-तैसे बिस्तर से उठा. मैंने एक कदम उठाया फिर दूसरा. मैंने खुद को ही दिलासा दी कि जो भी हो मुझे जिंदा रहना है,



 और उस पल मैंने तय किया कि मै अपनी न्यूरोसर्जन की ड्यूटी पर वापस जाऊँगा. मै फिर से ऑपरेटिंग रूम में काम करना चाहता था भले ही मै कैंसर से लड़ रहा था. मुझे पता था कि मै ये कर सकता हूँ तभी मैंने ये सोचा. क्योंकि “ अगर मै मौत की कगार पर खड़ा हूँ फिर भी जब तक मौत नहीं आती तब तक तो मै जिंदा हूँ “



 मैंने ऑपरेटिंग थियेटर में लौटने की तैयारी कर ली. मैंने अपनी फिजिकल थेरेपी में थोड़े बदलाव किये. आखिर मुझे इस काबिल तो होना चाहिए कि मै छोटे ओब्जेक्ट्स उठा सकू और देर तक खड़ा रह सकू. मेरा एक और सीटी स्कैन हुआ. जो ट्यूमर बचा था वो अब पहले से और छोटा हो गया था.अगर ये इसी तरह छोटा होता रहा तो मै अगले दस साल और जिंदा रह सकता था ये मुझे एम्मा ने बताया. एम्मा का एक मरीज़ 7 सालो तक टारसीवा लेता रहा और उसे कोई परेशानी नहीं आई..



 मैंने प्रोग्राम डायरेक्टर को कहा कि मै वापस आ रहा हूँ. एक और रेसिजेंट डॉक्टर मुझे ओपरेशन में अस्सिट करने वाला था. मुझे हर दिन बस एक केस निपटाना था.. और मै जब चाहे तब उपलब्ध नहीं होंगा और ना ही ओपरेशन थियेटर के बाहर काम करूँगा.



 मेरे पहले ओपरेशन में मुझे एक टेम्पोरल लोबेक्टोमी करनी थी. एपिलेप्सी आमतौर पर डिफेक्टिव हिप्पोकैंपस की वजह से होता है मुझे मरीज़ के ब्रेन के टेम्पोरल लोब से हिप्पोकैंपस निकालना होता था. कुल मिलाकर ये ओपरेशन सफल हुआ.



 कुछ हफ्तों बाद ही मैंने खुद को पहले से ताकतवर महसूस किया. मेरी टेक्नीक्स और फ़्ल्युएन्सी बेहतर हो रही थी. मेरी मसल मेमोरी भी अच्छे से काम कर रही थी. मैंने कुछ और केस हाथ में लिए. एक ही महीने के बाद मेरे पास भरपूर काम था.



 जब मै हॉस्पिटल से घर आता तो बहुत थक जाता था. मेरा सर चकराता था और साथ ही बदन दर्द और उल्टी महसूस होती थी. मुझे दिन में बहुत काम होता था इसलिए मै एंटी-इन्फ्लेमेटोरी दवाईया और दर्द की गोलिया ले रहा था. मै ये दवाईया ओपरेशन से पहले और बाद में लिया करता था. इसी सब के दौरान लूसी हमारे पहले बच्चे की माँ बनने वाली थी.



 ग्रेजुएशन का वक्त अब नजदीक आ चूका था. जल्द ही मै अपनी रेज़िडेंसी पूरी करने जा रहा था. फरवरी में विस्कांसिन में मेरा सर्जन साइन्टिस्ट की जॉब के लिए एक इन्टरव्यू था. मुझे बहुत अच्छा ऑफर मिला था. सेलेरी अच्छी मिल रही थी और रिसर्च के लिए फंडिंग भी मिल रही थी. वहां का माहौल भी खुशनुमा था और साथ ही लूसी को भी जॉब मिल रही थी.



 इतना बहुत था मेरे लिए. इतने सालो से मै इसीलिए इतनी मेहनत कर रहा था. मगर ये सब एक ख्वाब जैसा था. मेरा कैंसर समीकरण बदल रहा था. पिछले कुछ महीनो से मैंने खुद को वापस पुराने रूप में देखना शुरू कर दिया था. मै खुद से ही इंकार करने लगा था कि मुझे कैंसर है. 



 काम पर लौटे हुए मुझे सात महीने होने को आये थे. अब मैंने एक और सीटी स्कैन करवाया. ग्रेजुएशन और बाप बनने से पहले ये मेरा आखिरी स्कैन था. रिजल्ट देखने से पहले मैंने अपनी दिन भर के सारे काम निपटाए. मैंने रात के 8 बजे अपनी रिपोर्ट चेक की. पुराना ट्यूमर वैसा ही था कुछ भी नया नहीं था. फिर मैंने दुबारा चेक किया तो मुझे कुछ नज़र आया.



 मेरे दाए लंग में एक बड़ा सा ट्यूमर फैला हुआ था. पिछले स्कैन में ये उतना साफ़ नहीं दिखाई दिया था. मगर अब ये पूरी तरह उभर कर आ रहा था.



 अब शायद मुझे किमोथेरेपी, बायोप्सी और बाकी टेस्ट भी करवाने पड़े. और मै जानता था कि इस बार ट्रीटमेंट पहले से मुश्किल होगा.



 ये गुरुवार का दिन था. मैंने अपना आखिरी ओपरेशन निपटाया. उसके बाद मैंने अपनी सारी चीज़े समेटी. अपनी कार स्टार्ट करते हुए मै रो पड़ा. घर पहुंचकर मैंने अपना सफ़ेद कोट और आईडी कार्ड निकाला. मैंने अपने साथी रेज़ीडेंट को कॉल करके बताया कि मै अब सोमवार से काम पर नहीं आ सकूँगा. शायद अब मै कभी भी काम ना कर पाऊ.



 उसने कहा” तुम्हे पता है ? मुझे बुरे सपने आ रहे थे कि एक ना एक दिन ये होगा. मुझे नहीं पता कि तुमने अब तक ये कैसे संभाला?



 सोमवार से मेरी किमोथेरेपी शुरू हो गयी. दवाई को मेरी नसों में पूरी तरह घुलने में 4 घंटे लगते थे. इस दौरान लूसी और मेरी माँ मेरे साथ रहती थी. हर तीन हफ्ते में मुझे किमो करवाना पड़ता था.



 इसके नतीजे दुसरे दिन सुबह दीखते थे. मुझे अपनी हड्ड्यों में कमजोरी लगती थी सारा दिन मुझे थकान रहती थी.मेरी भूख मर चुकी थी. हर चीज़ जो मै खाता था नमकीन लगती थी. मै टीवी देखकर सारा दिन गुजारता था. मुझे जबरदस्ती खाना खिलाया जाता था.



 शनिवार को मेरी ग्रेजुएशन सेरेमनी होनी थी. मै तैयार हो रहा था कि मुझे उलटी महसूस हुई. किमो के बाद अक्सर ऐसा होता था मगर आज ये कुछ अलग था. मेरी उल्टी का रंग हरा था. मुझे इसके बाद डाइरिया भी हो गया.



 लूसी और मै हॉस्पिटल भागे ताकि मुझे हाईड्रेट रखने के लिए INTRAVENOUS INJECTION चडाया जा सके. मुझे कमजोरी महसूस हो रही थी. मेरा मुंह इतना सूख गया था कि मुझसे ना तो थूक निगला जा रहा था ना ही मै बोल पा रहा था. मेरी किडनीया फेल हो गयी थी. मुझे आईसीयू में ले जाया गया.



 मै बार बार बेहोश हो जाता था.कितने ही स्पेशलिस्ट डॉक्टर मुझे चेक करने आये. लूसी 38 हफ्तों की प्रेगेंट थी फिर भी वो मेरे साथ रही. मुझे करीब हफ्ते भर से ज्यादा वहां रहना पड़ा..



 जब सारे टेस्ट नार्मल आये तो मुझे डिस्चार्ज कर दिया गया. मेरा वजन फिर से 8 kilo घट गया था. मेरा वजन अब उतना ही पहुँच चूका था जितना कि मेरा आठंवी क्लास में था. मै एक चलता फिरता एक्सरे लग रहा था…



 मुझे अपना सर उठाने के लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती थी. मै दोनों हाथ लगाता तब जाकर पानी का गिलास उठा पाता था.एम्मा के साथ मेरी अगली अपोइन्टमेंट में मेरी माँ मेरे साथ ही थी..



 मेरा पहले का इलाज़, मेरी दवाई टारसीवा कामयाब नहीं हो पाई. दूसरा इलाज़ कीमोथेरेपी मेरी जान ले रही थी. मै तीसरे ट्रीटमेंट की शुरुवात कर सकता था मगर एम्मा ने कहा कि पहले मै रिकवर हो जाऊ. मुझे खुद को मज़बूत बनाना था. मैंने उससे पुछा और उसने कहा” तुम्हारे पास पूरे पांच साल है अभी”.एम्मा से मिलने के बाद मुझे फ़ोन आया कि लूसी को लेबर पेन शुरू हो गया है. मेरे पिता मेरी व्हील चेयर को धक्का देते हुए मुझे ले गए. हम डिलीवरी रूम में पहुंचे.



 जब लूसी को कॉण्ट्रासेक्शन (contractions) हो रहे थे तो मैं उसके पास वही एक बेड पर लेट गया. मै कम्बल से ढका हुआ था. आधी रात के बाद नर्स ने मुझे जगाते हुए कहा “बच्चा बस होने ही वाला है” नर्स की मदद से मै एक कुर्सी पर बैठ गया.



 मैंने हमारे बच्चे को इस दुनिया में आते देखा. ओब्सट्रेशियन ने कहा “आपकी बेटी के बाल बिलकुल आप जैसे है”



 रात के 2 बजकर 11 मिनट पर कैडी (Cady) पैदा हुई थी. ये 4 जुलाई का दिन था. नर्स ने उसे कम्बल में लपेटकर मेरी गोद में दिया. मैंने उसे अपनी बाहों में लिया दुसरे हाथ से मैंने लूसी का हाथ थाम लिया था. मैंने कैडी की पहली मुस्कान देखी, उसकी पहली हंसी सुनी. मैं उसे गोद में लेकर उसे लोरी सुनाया करता था.




एपिलोग


Lucy आपसे कुछ कहना चाहती है


 कैडी आठ महीने की थी जब पॉल की मौत हुई. जब पॉल की तीसरी ट्रीटमेंट फेल हुई तो उस वक्त तब कैडी पांच महीने की हो चुकी थी. और पहले से और भी कमज़ोर हो चूका था. अपने दुःख को भुलाकर हम कोशिश करते थे कि उसके सामने हँसते मुस्कुराते रहे.


 उसने अपने आखिरी वकत में ये किताब लिखी थी. फरवरी में उसे सांस लेने के लिए ऑक्सीजन टैंक की ज़रुरत पड़ी. उसकी खुराक बहुत कम हो गयी थी. उसे हमेशा उलटी लगती थी.


 उसके एम्आरआई और सीटी स्कैन में कैंसर उसके पूरे लंग्स में फैला हुआ दिख रहा था. और तो और ट्यूमर उसके दिमाग में भी फ़ैल चूका था. एक न्यूरोसर्जन होने के नाते पॉल को इसका मतलब पता था. उसने मान लिया था कि वो अब जल्द ही मरने वाला है. मगर इस बात से ज्यादा उसे दुःख था कि कहीं उसकी मानसिक हालत न बिगड़ जाये. हम एम्मा के साथ मिलकर कोशिश कर रहे थे कि उसका दिमाग तब तक कमज़ोर ना पड़े जब तक कैंसर पूरी तरह उसे नष्ट नहीं कर देता.


 उसकी मौत से पहले आखिर शनिवार को पॉल का परिवार हमारे साथ था. हम अपने घर के लिविंग रूम में बैठे थे. कैडी पॉल की गोद में थी. वो उसे कुछ गाकर सुना रहा था और वो मुस्कुरा रही थी.


 आने वाले रविवार को हमने चर्च जाने की सोची और उसके बाद हम कैडी को पार्क में घुमाना चाहते थे. मगर सुबह जब मै उठी तो देखा पॉल बुखार से तप रहा था. हम उसे लेकर हॉस्पिटल भागे.


 उसे न्यूमोनिया हुआ था. उसे साँस लेने में बहुत तकलीफ हो रही थी. उसे साँसे लेने के लिए BiPAP लगाया गया.


 उसे अटेंड करने वाले डॉक्टर ने कहा कि पॉल को वेंटिलेटर या इनट्युबेशन पर रखा जाएगा ताकि उसे सांसे लेने में आसानी हो सके. मगर इस मदद के बजाये पॉल ने कम्फर्ट केयर चुना. उसने कहा “अगर मै ऐसे बच भी जाऊ तो मुझे नहीं लगता कि आगे मै कुछ बेहतर कर पाऊंगा.”


 हमने डॉक्टर से साफ कह दिया कि पॉल किसी भी तरह के तामझाम से नहीं गुज़ारना चाहता. सच तो ये था कि वक्त हमारे हाथ से निकल रहा था. पॉल अब घर जाना चाहता था मगर हम उसकी नाजुक हालत देखते हुए उसे घर नहीं ले जा सकते थे. हमारा एक दोस्त कैंडी को वही ले आया था. वो पॉल के पास ही खेलती रही मुस्कुराती हुई, अठखेलिया करती हुई.


 डॉक्टर ने बताया कि कैंसर की आखिरी स्टेज होने की वजह से ही उसे न्यूमोनिया हुआ था. मै पॉल के करीब गई. उसने अपना मास्क निकाला और धीरे से कहा “मै तैयार हूँ”


 उसका मतलब था कि वो ब्रीथिंग मशीन को ऑफ करने के लिए तैयार है. वो मोरफीन लेने के लिए तैयार है. वो अब मरने के लिए तैयार है.


 हम सब पॉल के करीब आ गए थे. उसके पेरेंट्स, उसके दोनो भाई, मै और कैडी. हमने उससे कहा कि हम उसे बहुत प्यार करते है.. उसकी आँखों में आंसू थे. उसने हमसे गुज़ारिश की कि उसके जाने के बाद हम उसकी किताब पब्लिश कराये. एक आखिर बार पॉल ने मुझे कहा कि वो मुझे बहुत प्यार करता है.


 मोर्फिन पॉल की नसों में दौड़ने लगी. उसका मोनिटर और मास्क पहले ही उतारे जा चुके थे. उसने अपनी आँखे बंद कर ली थी और वो बेहोशी में चला गया था.. हम पूरे नौ घंटो तक उसके पास ही रहे. रोती हुई आँखों के साथ उसे चुटकुले और किस्से सुनाते हुए.


 जब शाम गहराई तो पॉल की साँसे धीमी हो चली थी.. मैंने उसे और कैडी के लिए एक लोरी गाई.रात के 9 बजते बजते उसकी साँसे उखड़ने लगी थी. उसके होंट खुले हुए थे. उसका शरीर शांत पड़ चूका था. और पॉल ने अपनी आखिरी साँस ली. .


 पॉल अपनी कहानी दुनिया को सुनाना चाहता था, और जहाँ भी जाता अपना लेपटोप साथ रखता था. हालांकि कैंसर की वजह से उसकी कहानी ज्यादा लम्बी नहीं हो पाई. मगर अपनी कहानी से वो अपने रीडर्स को यही सन्देश देना चाहता था कि जब तक जियो खुलकर जियो. जीने का कोई मकसद ढूढो. ऐसी जिंदगी जियो जो मायने रखती हो, चाहे तुम मौत से ही क्यों न लड़ रहे हो. सबसे जरुरी बात तो ये है की जो इस nature का सच है उनको मानके चलो……



 तो दोस्तों आपको आज का हमारा यह कहानी When Breath Becomes Air Book Summary in Hindi कैसा लगा नीचे कमेंट करके जरूर बताये और इस When Breath Becomes Air Book Summary in Hindi को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करे।

आपका बहुमूल्य समय देने के दिल से धन्यवाद,
 
Wish You All The Very Best.

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