भगवान कौन

बहुत पहले की बात है एक गांव में नारायण नाम का एक युवा ब्राह्मण रहा करता था। नारायण नाम का वो ब्राह्मण, भगवान नारायण यानी भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था।

सोते, जागते, उठते, बैठते, नारायण के मुख में सदा भगवान नारायण का नाम रहता था। इस कारण गांव के सभी लोग उस ब्राह्मण नारायण का नाम लेने, और उसका दर्शन कर लेने से ही खुद को धन्य समझने लगते थे।

ब्राह्मण नारायण बचपन से ही भगवान् की भक्ति में दुबे हुए थे, इस कारण उसके मन का झुकाव भी बचपन से ही वैराग्य की तरफ बना हुआ था। परन्तु वो माता-पिता की अकेली संतान थे, इस कारण उनका वैराग्य का सपना अभी तक पूरा नहीं हो पाया था।

तीन बर्ष पूर्ब ही ब्राह्मण नारायण की माता-पिता ने उसका विवाह भी करवा दिया था।

विवाह के एक बर्ष बाद ही ब्राह्मण नारायण एक पुत्र के पिता भी बन गए।

जब ब्राह्मण नारायण का वो पुत्र एक बर्ष का हो गया था, तब नारायण को लगा कि अब उनका वैराग्य का समय आ गया है, क्यूंकि उन्होंने अपने माता-पिता के सहारे के लिए उनके पौत्र के रूप में अपना पुत्र दे दिया था।

इसीलिए वो अपने भगवान की तलाश करने के लिए वेरग्या लेने की योजना बनाने लगे थे।

ब्राह्मण नारायण का यह विचार, उसके माता-पिता तथा पत्नी तीनों को पता चल गया था, इसीलिए वो सभी अपने ढंग से नारायण को इस प्रकार समझाने लगे थे कि जिससे वो अपना वैराग्य का विचार त्याग दे।

परन्तु ब्राह्मण नारायण के ऊपर किसी के समझाने का कोई भी असर नहीं हुआ था।

एक रात ब्राह्मण नारायण अपनी शय्या पर सो रहे थे, कि अचानक मध्य रात्रि के समय उनकी नींद खुल गयी और उस समय उन्हें लगा कि आज ही वो समय है कि अपना घर-बार छोड़ कर अपने प्रभु की तलाश में निकला जाये।

इसीलिए ब्राह्मण नारायण अपने बिस्तर से उठ खड़े हुए और सदा के लिए अपना घर-बार त्यागने की तैयारी करने लगे।

जब ब्राह्मण नारायण की वैराग्य जाने की तैयारी पूरी होने लगी तब वो बिना किसी को बताये चुप-चाप घर त्याग कर जाने लगे।

तभी ब्राह्मण नारायण की मस्तिष्क में एक सवाल गूंज उठा कि “वो कौन था, जो इतने दिनों तक इस माया में मुझे झकरे हुए था” ये सवाल ब्राह्मण नारायण की आत्मा ने किया था।

इसी कारण उसके जवाब में धीमे से भगवान् की आवाज आयी कि “वो मैं था, जिसने तुम्हे माया में झकर रखा था”

परन्तु ब्राह्मण नारायण के कान तो शायद बंद थे, इसीलिए वो भगवान् कि वो आवाज नहीं सुन पाया था।

इसीलिए वो सवाल का जवाब तलाशने के लिए अपनी सोती हुई पत्नी के पास चला आया।

ब्राह्मण नारायण ने देखा कि उनकी पत्नी बिस्तर पर सुख की नींद सो रही है, और उसकी छाती से उसका बच्चा छठा हुआ है।

उसके बाद ब्राह्मण नारायण अपने माता-पिता के पास गए और उन्होंने देखा कि उनके माता-पिता भी अपनी शय्या पर सुख की नींद सो रहे थे।

ब्राह्मण नारायण चित्त में वेरग्या उत्पन हो चूका था। इस कारण वो अपने ही माता-पिता, पत्नी और पुत्र को नहीं पहचान पा रहे थे।

इसीलिए उसके मस्तिष्क में एक और सवाल गूंजा कि “ये कौन है, जो मुझे इतने समय तक मुर्ख बनाते चले आ रहे ?”

ब्राह्मण नारायण के इस सवाल पर भी भगवान की आवाज आयी कि “ये भगवान है”

किन्तु ब्राह्मण ने पहले की तरह ये जवाब भी नहीं सुना।

भ्रम में पड़ा ब्राह्मण नारायण अपना त्याग कर जाने लगा, तो उसका बच्चा सपने में जोड़ से रो पड़ा, और अपनी माँ से जोड़ से लिपट गया।तभी भगवान् की आवाज फिर से आयी।

उन्होंने ब्राह्मण नारायण से कहा “मुर्ख रुक जा, अपना घर मत छोड़”

ये आवाज ब्राह्मण नारायण को सुनाई पड़ी, परन्तु वो भ्रम में डूबा हुआ था, इस कारण भगवान् की उस आवाज को अनसुनी करके चला गया। तब भगवान की आवाज से एक आः सी निकली और वो बोले की “मेरा सेवक मुझे ही छोड़ कर, मेरी ही तलाश में क्यों जा रहा है ?”

दोस्तों इस कहानी से आप ये समझ ही गए होंगे कि भगवान हमारे आसपास ही होते है, आपके अपनों में ही होते है, बस हमे उन्हें पहचानने की जरुरत होती है।

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