दोस्तो यह कहानी एक कछुए के जोड़े की है जिनके सारे बच्चों को एक जंगली बिल्ली खा देती है तो आइये जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी।
चारों ओर खेत ही खेत थे। इन खेतों का सिलसिला दूर-दूर तक फैला हुआ था। उत्तर-पश्चिम में बहुत दूर मस्तपुरा की पहाड़ी श्रृंखला हल्के-हल्के जामुनी रंग में बहुत सुंदर नजर आती थी। इन खेतों में कहीं-कहीं किसान भी नजर आ जाते। जो सिर झुकाए अपने काम में व्यस्त होते थे। मीलों तक फैले हुए इन खेतों में थोड़ी थोड़ी दूरी पर चारों और अनगिनत पेड़ थे। इन पेड़ों को देखकर लगता था जैसे खड़े हुए अपने चारों ओर फैली खेतों की रखवाली कर रहे हों। इन्हीं खेतों के बीच में बहुत दूर पहाड़ों से कोई दो कोस इधर एक जगह एक प्राकृतिक झील थी। झील बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थी। उसका पानी हमेशा साफ और ताजा रहता था। झील के दक्षिण में दूर तक दलदली जमीन थी। इसलिए यहां खेती-बाड़ी नहीं होती थी।
उत्तर का क्षेत्र कुछ दूर तक रेतीला और बंजर था, इसलिए यह क्षेत्र भी खेती के लिए बेकार ही था। कहने का मतलब यह कि चारों ओर फैले खेतों के बीच में यह पूरा क्षेत्र सूना और वीरान दिखाई देता था। झील के किनारे बंजर जमीन की ओर एक बड़ा सा पीपल का पेड़ था। पेड़ का कुछ भाग झील के ऊपर छतरी की तरह फैला हुआ था, और कुछ भाग दलदली जमीन की और छाया किए हुए था। बचा हुआ भाग रेतीली जमीन की तरह फैला हुआ था।
जो भाग झील के ऊपर था उसकी टहनियां झील के पानी से कुछ फीट ऊपर रही होंगी। दूर रहने वाले पक्षी भी उड़ते हुए इधर आ निकलते थे। झील के ऊपर वाली टहनियों पर कुछ देर आराम करते और फिर झील का ठंडा मीठा पानी पीकर उड़ जाते। किसान झील से दूर ही रहते। क्योंकि दलदली जमीन खतरनाक भी हो सकती थी। वे अपने पालतू जानवरों को भी उधर नहीं जाने देते थे। यही कारण था कि झील और उसके आसपास का क्षेत्र सुनसान रहता था। इसी झील में बहुत दिनों से कछुओं का एक जोड़ा रहता था। मादा ने कई बार अंडे दिए लेकिन अपने बच्चों को झील में तैरने, झील केकिनारे चलने, आसपास की हरियाली खाने, और फिर झील के तल में जाकर उनके साथ खेलने, की उसकी इच्छा एक सपना बनकर रह गई थी।
मादा आज बहुत उदास थी उदास तो नर कछुआ भी था, लेकिन वह अपनी भावनाओं को मन में ही छुपाए था। आज फिर दोनों ने मन को उदास करने वाला दृश्य देखा था। आज फिर उनके दिल के टुकड़े को वह दुष्ट झपट कर ले गई थी आज तो मादा की जान ही निकल गई थी। उस दुष्ट ने उनके दिल के टुकड़े को तो झपटा ही था, नर कछुए पर भी छलांग लगाई थी। वह तो बस कछुए का सौभाग्य था कि वह किसी तरह झील में तैरने में सफल हो गया था। अगर नर कछुए को कुछ हो जाता तो मादा का तो जीवन ही बोझ बन कर रह जाता। एक पल के लिए वह कांप कर रह गई। मादा झील के किनारे रेतीले भाग में अंडे देती थी। वह अपने अंडों को रेत के नीचे पास पास दबा देती।
वह इन अंडों को इस तरह रेत के नीचे दबाती कि वे बिल्कुल गायब होकर रह जाते। इस दौरान उसका अधिक समय अंडों के आसपास ही बीतता था। फिर कुछ दिनों के लिए वह अंडों के निकट आना छोड़ देती थी। वह झील के किनारे आकर बैठ जाती और अंडों से बच्चों के निकलने की प्रतीक्षा करती। जब कोई बच्चा उन अंडों से निकलता तो वह उसे प्यार से झील की तरफ बुलाती। ताकि वह झील के गहरे पानी में आकर सुरक्षित हो जाए। आज उसके लिए बड़ी खुशी का दिन था। उसका पहला बच्चा अंडे से निकला था। वह उसे देख देख कर खुश हो रही थी।
मगर यह खुशी ज्यादा देर न रह सकी। वह अपने बच्चे को पूछ कर कर झील की और बुला रही थी। कि एकाएक जंगली बिल्ली दौड़ती हुई आई और बच्चे को अपने मुंह में दबाकर भागती चली गई फिर कुछ दूर जाकर वह कछुए के बच्चे को खाने लगी। मादा तो डर के मारे झील में कूद गई। मगर नर कछुआ जो जमीन पर बैठा हुआ था, सब कुछ अपनी आंखों से देखता रहा। फिर जब मादा सतह पर दिखाई दी तो नर ने उसे अपनी और बुला लिया और वह दर्दनाक दृश्य उसे भी दिखाया। दोनों अपने लाडले की इस तरह मौत पर बहुत रोए।
फिर नर कछुए ने मादा को तसल्ली देते हुए कहा – चुप हो जा ! सब्र कर। चुप हो जा!
जब दूसरे बच्चे निकलेंगे तो हम उन्हें झील में छुपा देंगे। उन्हें बाहर नहीं निकलने देंगे। उन्हें अपनी झील की सैर कराएंगे और जब खूब बड़े हो जाएंगे तब उन्हें अपने साथ झील में तैरने लाएंगे।
नर कछुआ इसी तरह मादा को तसल्ली देता रहा। इस हादसे के बाद 3 दिन दुख में बीत गए, चौथे दिन उन्होंने देखा कि उनका एक दूसरा बच्चा खोल तोड़ने के बाद अपने ऊपर की रेत हटाकर बाहर निकलकर अंगड़ाई ले रहा है। नर और मादा दोनों खुश होकर उसे देखने लगे। मादा प्यार से दो कदम आगे बढ़ गई और फिर बच्चे को पुकार कर अपनी और बुलाने लगी।
बच्चा अपनी आंखों को मटकाता हुआ धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा। अभी वह झील से दो-तीन फुट दूर ही था कि वही जंगली बिल्ली फिर कहीं से मौत की आंधी की तरह आ पहुंची और पलक झपकते ही बच्चे को उठाकर ले गई। मादा की दर्द भरी चीख निकल गई। इस तरह एक, दूसरे, तीसरे दिन अंडों से बच्चे निकलते रहे और जंगली बिल्ली का पेट भरने के काम आते रहे।
उन कछुओं ने झील से बाहर निकलना भी लगभग बंद कर दिया था। वह अलग कभी झील की सतह आते भी थे तो दलदली जमीन की तरफ ही रहते थे । अंडों से निकलने वाला एक भी बच्चा जीवित झील तक न पहुंच सका। कुछ महीने बाद मादा ने फिर रेतीली जमीन पर कुछ अंडे दिए और उन्हें रेत के नीचे दबा के चली आई। वह देर तक झील की सतह पर तैरती रही या फिर झील के किनारे बैठकर घंटों रेत की तरफ देखती रही। इस दौरान उस बिल्ली का कहीं पता नहीं था। वह एक बार भी झील के आसपास कहीं दिखाई नहीं दी। दिन गुजरते रहे और फिर उन अंडों से बच्चे निकलने शुरू हो गए।
मगर अभी पहला बच्चा अंडे को तोड़कर अंगड़ाई लेकर सीधा खड़ा हुआ ही था। उसने लड़खड़ाते कदम बढ़ाए ही थे और चलना शुरू किया ही था, कुछ कदम चला फिर रुक गया काफी देर बाद फिर चला इस तरह उसने मुश्किल से चंद फुट का रास्ता तय किया होगा, कि वही बिन बुलाए मुसीबत आ पहुंची और बच्चे को मुंह में दबाकर भागती चली गई।
अब उसका नियम बन गया था। वह हर दूसरे – तीसरे दिन आती कछुओं का बच्चा जो झील की तरफ जा रहा होता उसे पकड़ती और छलांग मारती नजरों से ओझल हो जाती। यह तीसरी बार था कि मादा ने अंडे दिए और उसका एक भी बच्चा जीवित नहीं रह सका और नही झील तक पहुंच सका था। बल्कि इस बार जंगली बिल्ली ने नर पर भी झपट्टा मारा था। अब नर कछुआ कुछ खोया खोया रहने लगा था। वह हर पल किसी गहरी सोच में डूबा रहता । कोई आँधी थी जो उसके दिमाग में चल रही थी।
आखिर एक दिन उसने मादा से कहा – इस दुष्ट से छुटकारा जरूरी है।
मादा बोली – हम कर भी क्या सकते हैं? किस तरह पीछा छुड़ाएं?
नर बोला – कुछ ना कुछ तो हम कर ही सकते हैं।
मैं आपको कोई ऐसा कदम नहीं उठाने दूंगी जिसमें आप की जान को खतरा हो, मादा तड़प कर बोली।
खतरा तो मोल लेना ही पड़ेगा। जुल्म को खत्म करने के लिए खतरा मोल लेना ही पड़ता है।
लेकिन आप करेंगे क्या?
हम कमजोर, वह ताकतवर, हम रेंगते हैं वह आंधी की तरह दौड़ती आती है। हम भला किस तरह उसका मुकाबला कर सकते हैं। मादा बोली।
बस तुम देखती जाओ। लेकिन अभी बहुत काम करना है। वह दुष्ट अंडों से बच्चे निकलने तक इधर का रुख नहीं करेंगी। और इसी बीच मुझे सब कुछ करना है। नर जैसे सपने में अपने आप से बातें कर रहा था। फिर उसने मादा से कहा – चलो झील की तह में चलते हैं। इतना कहकर वह मादा के साथ झील में डूबता चला गया।
सारा दिन, सारी रात और उसके बाद एक और दिन, रात वह मादा के साथ ही रहा। वे दोनों झील में तैरते रहे। पानी में मिलने वाली खाद्य सामग्री से अपने पेट की आग बुझाते रहे। एक बार वे झील की सतह पर भी आए और झील के आसपास की हरियाली भी खाई और फिर झील में तैरने लगे।
तीसरे दिन कछुआ सुबह सवेरे झील की सतह पर उभरा और धीरे-धीरे करते हुए दलदली जमीन की ओर गया। वहां ठहर कर आंखें नचा नचा कर उसने चारों ओर देखा। कुछ देर बाद वह फिर पानी में कूद गया। इस बार तैरकर वे रेतीली जमीन की ओर आया और रुक गया। उसने दो तीन कदम आगे बढ़ाए और फिर रुक कर चारों ओर देखने लगा। थोड़ी देर बाद में खेतों की ओर चल पड़ा । कछुआ चलता रहा , चलता रहा। यहां तक कि रेतीली जमीन खत्म हो गई और खेत शुरू हो गए। वह चलता रहा। बहुत ज्यादा चलने और रास्ता तय करने के बाद वह एक बबूल के पेड़ के पास जाकर रुका।
बबूल के पेड़ के चारों और उसकी कुछ टूटी हुई टहनियां बिखरी पड़ी थी। बबूल की टहनियों पर हजारों सफेद चमकदार नुकीले कांटे चमक रहे थे। ज्यादातर किसान बबूल की टहनियों को बरसात के शुरू में छाप दिया करते हैं। जब उनकी फसल पकने लगती है और उस फसल को जानवरों से खतरा होने लगता है। तो किसान बबूल की टहनियों को खेतों के चारों ओर खड़ा करके कांटों की बाड़ लगा देते हैं।
कछुआ कुछ देर तक बबूल को ध्यान से देखता रहा फिर रेंगता हुआ एक टूटी हुई टहनी के पास गया। उसे मुंह में दबाया और घसीटना शुरू किया। बबूल की कांटेदार टहनी को खींचते खींचते झील की तरफ बढ़ने लगा। वह जिस रास्ते से यहां तक आया था । वापसी पर उसने वह रास्ता नहीं लिया। कछुआ बबूल की टहनी को अभी थोड़ी ही दूर लेकर चला होगा कि एक मैना उड़ती हुई आई और उसके पास बैठ गई। कछुए ने एक बार आंखें घुमा कर उसे देखा जरूर लेकिन रुका नहीं। मैंना कुछ देर उसे देखती रही फिर बोली – आलसी कछुए क्या हो रहा है।
कछुआ नहीं बोला मैंना फिर बोली – तो श्रीमान कछुए मैं पूछ रही हूं यह क्या हो रहा है ,और आज तुम अपनी झील छोड़कर इतनी दूर कैसे निकल आए। इस पर भी कछुए ने कुछ नहीं कहा वह खामोशी से कांटों को घसीट रहा था। मैना खुद आती हुई उसके साथ आगे बढ़ती रही।
थोड़ी देर बाद मेंना फिर बोली – कुछ ले ही जाना था तो नरम रसीले हरे पत्ते ले जाते बुद्धू कहीं के। यह कांटे तुम्हारे क्या काम आएंगे। मुझे काम करने दो जाओ मुझे तंग ना करो। कछुआ बोला वही तो पूछ रही हूं कि तुम क्या क्या कर रहे हो। मैंना बोली अच्छा तुम अपना काम करो मैं तो चली। कहती हुई मैंना दूर तक खुद उडती हुई चली गई और कुछ ही देर में नजरों से ओझल हो गई। शाम होते-होते कछुआ बबूल के कांटों को खींचकर झील के किनारे पीपल के पेड़ के पास तक ले आया। उसने एक खास जगह पर उस टहनी को घसीट कर रख दिया। उसने कई बार अपना सिर उठाकर बबूल की टहनी को ध्यान से देखा और फिर झील की तरफ बढ़ गया। मादा उसके इंतजार में झील के किनारे बैठी हुई थी । कछुआ थका हारा उसके पास पहुंचा। दोनों झील के पानी में तैरने लगे और फिर झील की तह में जा बैठे। कछुए के दोनों जबड़े बहुत दुख रहे थे।
दूसरे दिन कछुआ सवेरे ही अपने काम पर निकल पड़ा। इस बार भी उसने वही रास्ता लिया जिस पर चलकर वह 1 दिन पहले बबूल के पेड़ तक पहुंचा था। वहां जाकर उसने फिर एक टहनी को चुना। टहनी को जबड़ों में दबाया और वापस चल पड़ा। कुछ दूर चल कर उसने अपना रास्ता फिर बदल दिया। इस बार वह एक ऐसे रास्ते से जा रहा था जो थोड़ा लंबा था। वह बबूल के कांटों को खींचता हुआ चलता रहा। अभी कुछ दूर ही पहुंचा था कि फिर से वही मैना पास आ गई।
कछुए ने नजर घुमा कर उसे देखा, मगर रुका नहीं। मना ने उससे पूछा आखिर यह काँटे तुम क्यों और कहां ले जा रहे हो। कछुए ने उत्तर दिया – देखो मैना दीदी ज्यादा तंग मत करो, मुझे बहुत काम है। वही तो मैं पूछ रही हूं, तुम इन काँटों का क्या करोगे। फिर कभी बताऊंगा, कछुए ने छोटा-सा जवाब दिया। उसने दोबारा टहनी को मुंह में पकड़ा ही था कि मैंना बोली – जान बचाओ, भागो- भागो, देखो बहुत दूर एक कुत्ता आ रहा है।
कहां किधर है? कछुआ डर गया। मैना अपनी जगह से उड़ी और फिर से बैठ गई और कछुए से बोली बहुत दूर है अभी। तुम उसे देख नहीं सकोगे ,जब वह नजदीक आ जाएगा तभी तुम उसे देख पाओगे।
कछुआ टहनी को छोड़कर खेत में उतर गया और फसलों के बीच में घुसता चला गया। फसल भी इस तरह और फैली हुई थी कि वह उस में छुप कर रह गया। मैना उसे देखती रही। आने वाला भी बहुत पास आ गया था, कछुआ उसके पैरों की धमक अपने सीने पर महसूस कर रहा था। मैना बोली मैं तो चली और शोर करती हुई आसमान में उड़ गई। थोड़ी ही देर में वह बहुत दूर जाकर आंखों से ओझल हो गई। आने वाला कोई कुत्ता नहीं था बल्कि लकड़बग्घा। लकड़बग्घा शोर करता और आसमान की तरफ देखता हुआ तेज गति से दौड़ता हुआ आगे बढ़ गया। कुछ देर बाद उसका कहीं कोई पता नहीं था। मगर कछुआ डर के मारे छुपा रहा। काफी देर बाद उसे फिर मैना की आवाज सुनाई दी। मैना उससे कह रही थी। ओ आलसी कछुए निकल आओ, मुसीबत जा चुकी है।
कछुआ रेंगता हुआ बाहर निकला। उसने देखा कि मैना बबूल के कांटों से थोड़ी दूर बैठी थी। जब वह पास पहुंचा तो मैना ने कहा लो यह कांटे उठाओ और अपनी राह लगो। इससे पहले कि फिर कोई मुसीबत आ जाए अपना काम पूरा कर लो। कछुए ने आभारी होकर उसे देखा और बोला मैना दीदी बहुत-बहुत धन्यवाद।
धन्यवाद कैसा? आज अगर आप ना होती तो मैं तो गया था। छोड़ो इन बातों को जंगल के रहने वाले हम भी अगर अपनों के काम ना आए तो।तो खैर छोड़ो इन बातों को मैं तो चली। मैं तो सिर्फ तुम्हें बताने यहाँ वापस आई थी।मैना बोली। कछुए ने एक बार फिर उसका धन्यवाद किया और टहनी को जड़ों में दबाकर घसीटने लगा।
वह चलता रहा, यहां तक कि सूरज बिल्कुल सिर पर आ गया भूख और प्यास के मारे उसका बुरा हाल हो गया था। मगर उसने भी कैसे जान की बाजी लगाने की ठान ली थी । वह कांटों को खींचता रहा, जबड़े दुखते रहे, उसे कमजोरी महसूस होने लगी थी। लेकिन वह अपने काम में लगा रहा और शाम होते होते हुए फिर पीपल के पेड़ के नीचे जा पहुंचा। दूसरी कांटेदार टहनी को भी उसने पहली वाली टहनी के बराबर लगा कर रख दिया। अपना काम करके थके कदमों से चलता हुआ मादा की तरफ बढ़ गया। मादा उसे देखते ही बोली – आखिर क्या हो गया है आपको ,और फिर उसकी तरफ बढ़ी। दोनों साथ-साथ पानी में तैरने लगे। तह में जाकर मादा ने कछुए के हाथ पैर दबाए।उसे पानी में मिलने वाले खाद्य पदार्थ दिए।दोनों ने चुपचाप खाना खाया। खाना खत्म करके थका हारा कछुआ आराम करने लगा था।
मादा उसके पास ही बैठ गई। कुछ देर बाद बोली – इतना परेशान क्यों हो रहे हो? उचित यह रहेगा कि हम अपने रहने की जगह ही बदल दें। मादा की बात पूरी होने से पहले ही कछुआ गुस्से से चीखता हुआ उठ बैठा।उसकी आंखें लाल अंगारे जैसी हो गई थी। बोला अब ऐसी बात जुबान से मत निकालना। अत्याचार, अत्याचार है और अत्याचारी से डर कर भागना उससे भी बड़ा अत्याचार है। तुम बस मेरी सुरक्षा और सफलता की प्रार्थना करो बस। मादा कुछ नहीं बोली। कुछ देर बाद दोनों सो गए। अगले दिन सुबह कछुए की आंख जरा देर से खुली।
दर्द के कारण उसका सारा शरीर टूट रहा था। वह जबड़ों में भी बड़ी पीड़ा अनुभव कर रहा था। फिर भी कछुआ तैयार होकर झील की सतह पर उभरा, किनारे पर आया और अपने काम पर चल दिया। इस बार उसने बबूल की टहनी अपने जबड़ों में दबाई। वह पहले वाली टहनियों के मुकाबले कुछ ज्यादा मोटी और भारी थी। उसमें से कई छोटी-छोटी टहनियां इधर-उधर निकली हुई थी। हर कहीं पर सफेद नुकीले कॉटे दिखाई दे रहे थे। कछुआ इस बार उसी रास्ते से वापस आया जिस रास्ते से वह गया था।
टहनी के मोटी और भारी होने के कारण उसे बहुत ज्यादा दिक्कत का सामना करना पड़ रहा था। कछुआ बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। थोड़ी ही देर में सूरज की किरणें उसके ऊपर पड़ने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे सूरज से तीर निकल रहे हो और उसके शरीर के पार होते जा रहे हो।
कछुआ टहनी को खींचता हुआ बहुत दूर निकल आया। उसे आज मैना की प्रतीक्षा थी पर वह अभी तक नहीं आई थी। वह मायूस हो गया ।मगर अपना काम तो करना ही है यही सोच में डूबा वह आगे बढ़ रहा था कि उसे अपने ऊपर हवा का झोंका महसूस हुआ। मैना आ गई थी, वह आकर कछुए के बिल्कुल पास बैठ गई। बड़ी लंबी उम्र है दीदी तुम्हारी, अभी मैं तुम्हारे ही बारे में सोच रहा था। कछुए ने टहनी छोड़कर उससे कहा।
अच्छा आलसी कछुए चलो यह तो मालूम हुआ कि तुम कुछ सोच भी लेते हो। मैना ने आखें नचा कर कहा । कछुए ने उसकी बात का जरा भी बुरा नहीं माना, बस थोड़ी देर उसकी ओर देखता रहा फिर बोला मैना दीदी अभी बहुत रास्ता तय करना है इसलिए मैं अपना काम करता रहता हूं। तुम बातें करती हुई मेरे साथ चलती रहो।
बोलो ठीक है और वह बढ़कर कांटो भरी टहनी को अपने जबड़ों में पकड़कर खींचने लगा। मैना ने गर्दन घुमा कर उसकी तरफ देखा। उसे कछुए पर बहुत तरस आया। कछुए के जबड़ों में से खून बहने लगा था। वह बोली कछुए भाई आखिर बताते क्यों नहीं, तुम यह क्या कर रहे हो। देखो तुम्हारे मुंह से खून निकल रहा है। कछुआ रुका टहनी छोड़कर उसने धीरे से कहा – अगर तुम मेरी मदद करने का वादा करो तो बताऊंगा। लेकिन समय आने पर ठीक है। मैं वादा करती हूं। लेकिन अब तो तुम पर तरस आने लगा है, मैना उसे चीढाती हुई आगे बढ़ी। बोलो तुम मुझसे क्या मदद चाहते हो। आज ही बता दो शायद मैं तुम्हारे काम आ सकूं।
कछुए ने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और फिर चलना शुरू कर दिया। अभी वह कुछ ही दूर गए होंगे कि दूसरी मैना भी उनके पास आकर बैठ गई। मैना भी अब उनके साथ ही फुदक रही थी मैना कछुए को टहनी घसीटते हुए बड़ी हैरत से देख रही थी। कुछ देर बाद उसने पहले वाली मैना से पूछा। यह कछुआ इन कांटों को कहां ले जा रहा है। देखो तो उसका मुंह लहूलुहान हो रहा है। पहली मैना बोली यह तो मैं भी नहीं जानती पर यह मुझसे मदद चाहता है।अगर तुम्हें कोई काम ना हो तो चलो थोड़ी देर इसके साथ चलते हैं। दूसरी मैना बोली मुझे क्या काम चलो जहां तुम वहां में।
कछुआ अपना काम करता रहा। दोनों मैना उसके साथ साथ फुदकती रही। कभी दोनों में से कोई एक आकाश में उड़ कर आसपास देख लेती और फिर जमीन पर उतर आती। शाम होने से पहले दोनों ने कछुए से फिर मिलने का वादा किया और उड़ गई। कछुए ने सिर्फ आंखें घुमा कर उन्हें देखा । मगर अपना काम नहीं रोका। चलता रहा चलता रहा। अब भूख और प्यास तो एक तरफ उसे टहनी को अपने मुंह में पकड़ना भी कठिन लग रहा था। उसका जबड़ा लहूलुहान हो चुका था मगर उसने हार नहीं मानी।
मैना अपनी जान की बाजी लगा देने पर तुला हुआ था। अंधेरा होते होते वह बबूल की टहनी को भी पहले लगाई हुई दोनों के बराबर लगाने में सफल हो गया। उस दिन के बाद में कछुआ कई दिनों तक झील की तलहटी में ही रहा उसे अब बहुत दर्द हो रहा था और उन में होने वाले दर्द के कारण कुछ खा पी भी नहीं सकता था।
इसलिए पहले दिन तो वह भूखा ही रहा। मादा कई बार उसके पास आई। आप कुछ खा तो लेते । लेकिन कछुए ने कहा किस तरह खाऊँ। मुंह चलाने की हिम्मत नहीं है लेकिन कोई बात नहीं दो 1 दिन में सब ठीक हो जाएगा।
कहकर कछुए ने आंखें बंद कर ली। मादा कुछ देर उसके पास बैठी रही फिर तैरकर एक और चली गई। दूसरे दिन शाम से थोड़ा पहले मादा पानी में मिलने वाले खाद्य पदार्थ मुंह में दबाए कछुए के पास आई। लो कुछ खा लो भूख जोरों की लगी है ,मगर खिलाओ कोशिश करता हूं, कहकर कछुआ खाद्य पदार्थों को मुंह में डालकर खाने लगा। धीरे-धीरे दिन बीतने लगे।
1 दिन नर और मादा दोनों तैरती झील की सतह पर उभरे और पानी में इधर-उधर चक्कर लगाने लगे। फिर कछुआ उस किनारे पर गया, जहां उसने कांटेदार बबूल की टहनी जमा कर रखी थी। जब कछुआ कांटों को देख रहा था तब मादा भी उसके पास आ गई। कभी निकले कांटों को देखे, तो कभी कछुए को देखे और बोली इनका क्या होगा। बस देखती जाओ अब मुझे बच्चों के निकलने का इंतजार है।
मादा ने कहा——- मगर अब आप करेंगे क्या? देखो मैं फिर कहती हूं जान जोखिम में मत डालिए अगर आप को कुछ हो गया तो? अच्छा बोलो, मुझे कुछ नहीं होगा। चिंता ना करो, थोड़ी देर बाद कछुआ फिर झील में तैरने लगा। मादा भी उसके साथ ही तैरते तैरते घूमने लगी।
कछुए ने देखा कि पेड़ की टहनियों पर बहुत सी मैनाएँ इधर-उधर घूम घूम कर देख रही हैं। उसकी नजर उस डाली की और उठ गई जो झील से बिल्कुल बीच में नीचे की ओर चली आई थी। एक महीना उसी के किनारे पर बैठी थी, कछुए ने उसे पहचान लिया।
वह तैरता हुआ ठीक उसी के नीचे आ गया। जिस शाखा पर वह मैना बैठी थी।। मादा भी उसके पास चली आई । मैना ने नीचे देखा और बोली —– आलसी कछुए क्यों ? बहुत दिन से तुम दिखाई नहीं दिए कछुए ने कहा
—— इस तरफ झील के किनारे आओ रेत पर बातें करेंगे। यह लो कहती हुई मैना उड़ी और झील के किनारे की सूखी रेत पर जा बैठी। कछुआ भी तैरता हुआ किनारे पर चला गया। क्या तुम्हारा काम खत्म हो गया? नहीं अभी बहुत काम करना है मुझे, कछुए ने उत्तर दिया। तो फिर तुम और कांटे लेने क्यों नहीं आए? और यह काटे तो वही है ना जो तुम खींचकर लाए थे! उन्हें यहां क्यों रख छोड़ा है? कछुए ने कहा बाद में बताऊंगा।
मेरे विचार में इतने कांटों में मेरा काम हो जाएगा। हां तुम्हें अपना वादा याद है ना ? उसने याद दिलाया। हां हां बिल्कुल याद है इसलिए तो आई हूं। तुम मुझसे मदद चाहते हो । बोलो मैं तुम्हारे लिए क्या करूं? मैना ने पूछा। इसी बीच दूसरी मैना भी वहां आ बैठी।
कछुए ने कहा यह मैं समय आने पर बताऊंगा। क्या तुम इसी तरह मुझसे मिलती रहोगी? क्यों नहीं हम रोज इस पेड़ पर आती हैं। अच्छा अब हम जाएंगे, आज हमें अपने दोस्त तोते के घर भी जाना है। उसके बच्चों को एक शिकारी घोसले से निकाल कर ले गया है। बड़ा उदास है बेचारा तोता।
इस बात का मुझे बड़ा दुख हुआ कछुए ने कहा। अच्छा फिर मिलेंगे यह कहकर दोनों मैनाएँ उड़ गई और कछुए फिर झील में तैरने लगे। कुछ महीने बाद मादा ने फिर अंडे दिए और उन अंडों को रेत में दबा दिया।वह रोज अंडे देती और उन्हें रेत के नीचे दबा देती। इस तरह कई अंडे दूर तक फैली हुई बारीक रेत के नीचे छिप कर रह गए थे। इस दौरान कछुआ बड़ा खुश नजर आ रहा था।
दिन बीतते गए कछुआ और मादा रोज किनारे पर आकर उस और आंखें जमाए घंटों बैठे रहते थे। जहां अंडे दबे थे। एक दिन जब दोनों किनारे पर बैठे अंडों की तरफ नजर जमाए थे। मैनाभी वहां आकर बैठ गई। कछुए ने मैना से कहा अब मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत पड़ेगी। मैं तैयार हूं मेरे बस में जितना होगा मैं तुम्हारे काम आऊंगी मैंना बोली।
कछुए ने उस दिन उसे अपने ऊपर बीती सारी कहानी सुनाई और उसे बताया कि किस तरह उसके बच्चों को एक दुष्ट जंगली बिल्ली उठा ले जाती है। अपनी कहानी सुनाते सुनाते उसकी आंखों में आंसू आ गए। मादा तो फूट फूट कर रोने लगी। कछुए की दुख भरी कहानी सुनकर मैना की आंखें भी भीग गईगई।
उसने कहा ठीक है सब्र करो लेकिन मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूं ? कछुए ने कहा अब फिर अंडों से बच्चे निकलेंगे। रेत पर चलना शुरू करेंगे लेकिन बच्चे बहुत धीरे चलते हैं मैं चाहता हूं कि उनके रेत पर चलने से पहले। हां हां बोलो रेत पर चलने से पहले क्या ?
लेकिन कछुआ उसकी बात का उत्तर देने से पहले मादा की तरफ घूम गया और बोला अब तुम झील में चली जाओ, मैं अभी आता हूं। मगर आप! मादा कुछ कहना चाहती थी। कछुए ने उसकी बात काटकर कहा तुम जाओ जो कहता हूं करो। मादा झील में उतर गई और थोड़ी देर में पानी में गायब हो गई।
जब मादा गायब हो गई तो कछुए ने मैना से कहा——— मैंना दीदी मैं चाहता हूं कि बच्चे के रेत पर चलते ही तुम उसे उठाकर पेड़ की उस टहनी पर रख दो जो उन कांटों के बिल्कुल ऊपर है। मगर इससे क्या होगा ? मैना ने पूछा।यह मैं बाद में बताऊंगा। बोलो मेरा काम करोगी।
ये बड़ा मुश्किल काम है लेकिन ठहरो मैं अपने दोस्तों से पूछ लूं। तुमने मदद का वादा किया था कछुआ बोला। मैं अपने वादे पर टिकी हूं, लेकिन अगर तुम तैयार हो तो हम यह काम आसानी से कर सकेंगे मैना बोली। अच्छा पूछ लो लेकिन समय बहुत कम है। मैं कल ही आ जाऊंगी । अच्छा चलती हूं, कहकर मैना उड़ गई। कछुआ भी पलट कर झील में चला गया।
दूसरे दिन कछुआ बहुत सवेरे झील के किनारे आ बैठा। मैना का दूर-दूर तक कोई पता नहीं था, पेड़ पर बहुत सी चिड़िया बैठी शोर कर रही थी। एक चिड़िया उड़ती हुई आई और झील के किनारे बैठ कर पानी पीने लगी। जब वह पानी पी चुकी तो कछुए ने कहा तुम लोग इतना शोर क्यों कर रहे हो। चिड़िया बोली चुप रह आलसी कछुए हम शोर ना करें तो सूरज कैसे निकलेगा। चिड़िया फिर उड़कर पेड़ पर जा बैठी । अब सूरज धीरे-धीरे ऊपर उठने लगा था।
बहुत देर इंतजार करने के बाद कछुआ कुछ उदास हो गया था। तभी अचानक कहीं मैना उसके पास आ बैठी, उनमें एक तोता भी था। उन्हें देखकर कछुआ खुश हो गया, कछुए की दोस्त मैना आगे बढ़ी और बोली हम आ गए। धन्यवाद ! कछुआ मुस्कुराया। उसकी नजर फिर अंडों की तरफ झुक गई। उसने देखा कि एक जगह की रेत में हलचल हो रही है, उसने व्याकुलता से कहा——— देखो बच्चा निकल रहा है। बस यही समय है।
दोनों बच्चे को रेत से निकालकर वही पहुंचा दो जहां मैंने बताया था। मैना और तोते ने भी पलट कर देखा रेत हिल रही थी और तोता उड़ते उड़ते हुए वहां पहुंच गया।अपने पैरों से वहां की रेत हटाई, तो देखा कि एक बच्चा अंडे को तोड़कर बाहर निकल चुका है ,और ऊपर चढ़ने का प्रयास कर रहा है। तोते ने उसे अपने पंजों में दबाया और उड़ गया। उसके साथ दूसरे पक्षी भी उड़ गए । तोता बच्चे को लेकर आया और उस टहनी पर रख दिया जो ठीक कांटों के ऊपर थी। उसने धीरे से टहनी पर बच्चे को रख दिया।
कछुए के बच्चे को वहां फसाने में काफी दिक्कत हुई । ऐसा करने में कुछ समय भी लग गया। इस दौरान कछुआ और मादा झील में तैरते रहे और गर्दन उठा उठा कर उनका काम भी देखते रहे। कछुआ बड़ी मुश्किल से मादा को खामोश कर पा रहा था। तोता मैना और उसके साथी पक्षी बच्चे को टहनी पर रखकर हटे ही थे, कि उन्होंने देखा कि वही जंगली बिल्ली एक तरफ से दौड़ती चली आ रही है ।
पेड़ पर बैठी सारी चिड़िया जोर-जोर से शोर करने लगी । उनके साथ ही मैना और तोता भी उड़े। उनकी आवाज सुनकर बिल्ली ने सिर उठा कर ऊपर देखा। उसकी नजर पत्तों में फंसे कछुए के बच्चे पर पड़ी। उसके मुंह में पानी भर आया। वह पेड़ की तरफ लपक ली, और बहुत फुर्ती से लगभग दौड़ती हुई पेड़ पर चढ़ गई। और तमाम चिड़िया उड़ गई ।
मोटी टहनियों से होती हुई बिल्ली जब टहनी पर चढ़ रही थी तब उसकी गति बहुत कम हो गई। मैना और तोता दूसरी टहनियों पर जा बैठे, टकटकी बांधे बिल्ली को देख रहे थे।बिल्ली पतली टहनी पर बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। कछुए के बच्चे के बहुत पास जा पहुंची थी। बच्चे को दबोच लेने के लिए बेचैन हो रही थी। उसने चाहा कि लपक कर बच्चे को मुंह में भर ले, लेकिन उसका संतुलन बिगड़ गया । अचानक फिसल गई और सीधी उन कांटों पर जा गिरी। जो पेड़ के नीचे रखे थे।
जैसे ही बिल्ली गिरी, टहनी जोर से झटका खाकर ऊपर उठ गई। उस पर रखा बच्चा पत्थर की तरह हवा में उछल गया। मादा बच्चे को लेकर झील के तल में चली गई। बिल्ली के पूरे शरीर में कांटे घुस चुके थे। तो कुछ उसकी आंख में भी घुस गये।
बिल्ली की चीखें बहुत भयानक थी। एक पल के लिए कछुए का दिल दहलकर रह गया। लेकिन वह संभला और खुशी से चिल्लाया, “वो मारा”।
और सतह के नीचे तैर कर चला गया। थोड़ी देर बाद वह फिर से सतह पर उभरा। उसने देखा कि बिल्ली काँटों में फंसी तड़प रही है। दूसरे कांटे या तो उसे जख्मी कर रहे हैं या उसके शरीर मैं गढ़ जाते हैं। बिल्ली काँटों में फंसी चीखती चिल्लाती, तड़पती रही। उसकी आँख और शरीर से खून निकलकर बहता रहा। सब पक्षी उसे देखते रहे। शाम होते होते बिल्ली ने दम तोड़ दिया।
सारे पक्षी नीचे वाली टहनी पर चले आये। मैना और तोता झील के ऊपर झुकी टहनी पर आ गए। मैना ने कछुए को देखकर चीखते हुए कहा——-
“वाह रे आलसी कछुए , तुम तो बड़े बुद्धिमान निकले। “।
कछुआ बोला, “मैं किस तरह आपका धन्यवाद करूँ……. तोते भाई, मैं आपका उपकार कभी नहीं भूल सकता। ” कहते कहते कछुए की आँखें भीग गई।
तोते ने कहा, “कोई बात नहीं भाई। ” हमारा काम खत्म हुआ। अब हम चलते हैं। ”
कछुए ने कहा……. ” अच्छा लेकिन मिलते रहना…..। ‘
“जरूर जरूर…….. “, मैना बोली। और सब पक्षी वहाँ से उडकर आकाश में ओझल हो गए।
अब उस झील में बहुत सारे छोटे बड़े कछुए रहते हैं। जब रेतीली जमीन पर उनकी महफ़िलें सजती हैं, तो कोई न कोई कछुआ अपने परदादा कछुए की बहादुरी और बुद्धिमानी का किस्सा जरूर सुनाता है।