एक बार की बात है, एक classroom के अंदर एक बहुत ही नालायक बच्चा होता है, पढाई-लिखाई नहीं करता और उसकी जो teachers होती है वो भी उसे कोसती है की ये तो कुछ करता ही नहीं है, जिंदगी में कुछ करेगा भी नहीं और कुछ बनेगा भी नहीं।
और उस लड़के को भी ऐसे ही लगता है की भाई मैं किसी काबिल नहीं हूँ, कुछ कर नहीं सकता, मेरा पढाई में मन नहीं लगता।
तो एक बार वो school से वापस जा रहा होता है अपने घर की तरफ, उसे प्यास लगती है, बहुत तेज प्यास लगती है,
तो वो रुक जाते है एक कुएँ के पास, तो नीचे बाल्टी डालता है रस्सी से, और पानी को बाहर निकालता है।
But जब वो पानी को बाहर निकाल रहा होता है वो क्या देखता है की एक रस्सी है उसमें छोटे छोटे रेशे है और वो रस्सी इस कुएँ के साथ रगड़ रगड़ के (कुआ जो है वो पत्थर से बना हुआ है) इस रस्सी ने इस कुएँ के जो पत्थर है इसके ऊपर निशान छोड़ दी है, इसकी ऊपर अपनी छाप छोड़ दी है, अपनी पहचान छोड़ दी है, और पत्थर को घिस रही है सिर्फ एक रस्सी।
रस्सी शायद उतनी मजबूद नहीं है, जितना ये पत्थर है। but बार-बार-बार-बार जब इस पत्थर पे रस्सी की चोट पड़ रही है, तो ये अपनी पहचान छोड़ रही है, चाहे कितनी भी कमजोर हो इस पत्थर से।
but actual में रस्सी पत्थर को घिस रही है।
अब उस बच्चे को लगता है की हो सकता है मैं नालायक हूँ, मैं किसी काबिल नहीं हूँ, लोग मुझसे बहुत बेहतर हो, वो पत्थर की जैसे हो, और मैं वो रस्सी हूँ।
अगर मैं लगा ही रहूँगा, जैसे ये रस्सी लगी होती है तो मैं अपनी पहचान, अपनी छाप जरूर छोडूंगा,
और होता क्या है बाद में वो जो नालायक बच्चा होता था वो एक बहुत बड़ा महात्मा, बहुत बड़ा ज्ञानी इंसान बन सुका होता है और लोगों की जिंदगी पर परिवर्तन लेकर आता है।