111 Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral

Hello दोस्तों, पंचतंत्र संस्कृत की वह प्रसिद्ध ग्रन्थ है जिसमें पांच प्रकरण में विभाजित मानव जीवन से संबंधित उपदेशात्मक और नैतिक कहानियाँ हैं। इस विश्वविख्यात कथा ग्रन्थ पंचतंत्र की रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा है। यह ग्रन्थ को भारतीय पशुकथाओं के ग्रन्थ के नाम पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। पंचतंत्र के इन कहानियों में पशु-पक्षियों के साथ-साथ मनुष्य को भी कई बार पात्र बनाया गया है। पंचतंत्र की हर एक कहानियों में शिक्षाप्रद बातें बताई जाती है। इस आर्टिकल में पंचतंत्र के छोटी-छोटी रोचक कहानियों का संग्रह किया गया है।

तो चलिए शुरू करते हैं –

Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral

महान घुड़सवार

एक बार एक राजा शिकार खेलने के लिए अपने सैनिकों के साथ जंगल में पहुंचा, तो उनके शत्रुओं ने चारों तरफ से उन्हें घेर लिया उनके सारे सैनिकों को मार गिराया और जैसे तैसे करके राजा ने शत्रुओं को मार गिराया। वह घुड़सवार यानी राजा अकेला ही शत्रुओं से घिरकर बहुत बुरी तरह से घायल भी हो गया था। शत्रुओं से बचने के बाद उन्होंने आसपास देखा तो उन्हें कुछ ही दूर में एक गाँव दिखा। वह धीरे धीरे ऐसे-वैसे करके उस गाँव तक पहुंचा।

जब वह पास के गाँव वालों के पास पहुंचा तो उन्होंने उसका उपचार कर उसे बचाया। किसी को भी यह नहीं पता था कि वह घुड़सवार वहाँ का यानी उस राज्य का राजा था। क्यूंकि गाँव वाले थे तो राजा तक कभी उनका पहुंच ही नहीं था। कभी गाँव वालों ने राजा को देखा ही नहीं था। गाँव के एक परिवार ने उसे अपने घर में रखकर उसकी सेवा की थी, बिना यह जाने कि वह राजा है। अंततः कुछ ही दिन में राजा स्वस्थ हो गया। गाँव से जाते समय उसने अपना नाम महाश्वरोहा बताया था।

गाँव छोड़कर जाते समय जिसके घर वह रहा था उससे महाश्वरोहा ने कहा, “जब तुम शहर आओगे तब पहरेदार को मेरा नाम बताना, वह तुम्हें मुझ तक अवश्य पहुँचा देगा।” कई महीनों बाद राजा ने अपने राज्य में कर बढ़ा दिया। गाँव वालों ने परेशान होकर उस व्यक्ति से जाकर कहा कि उसने जिसकी सेवा और उपचार किया था वह हमारा राजा ही था। सबके कहने पर वह जाकर राजा से मिला और कर के बोझ की बात करी। राजा ने उसका स्वागत किया और उस व्यक्ति के कहने पर कर हटाने पर राजी हो गया।

अगले दिन ही राजा ने सभा बुलाकर उस व्यक्ति के बारे में सभी मंत्रिओं को बताया और कर को कम करने के लिए बोला और उस दिन कर भी कम हो गया और राजा ने उस व्यक्ति को कुछ दिन अपने महल में रुकने को कहा और चार दिन बाद बहुत सारे धन देकर उसको विदा किया और राजा ने यह भी कहाँ की उस गाँव में स्कूल, अस्पताल वगैरह जैसे सभी सुविधा कुछ ही महीनों में उपलब्ध कराया जायेगा।

सीख: सेवा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।

चोरों की गठरी में गुठली

जंगल के सुनसान रास्तों से ज्ञानचंद और ध्यानचंद नामक दो शातिर चोर जा रहे थे यह चोर इतने शातिर थे कि जो तीर ये दूसरों के लिए फेंकते वो उल्टा इन्ही को आकर लगता फिर भी किसी मजबूरी नें इन्हें चोर बना दिया। ध्यानचंद “अब जो होना था वो हो गया आगे के घटनाक्रम पर ध्यान दें तो बेहतर होगा” ज्ञानचंद “हाँ, बीते हुए बुरे वक्त को जल्दी भूल जाने से मन शांत हो जाएगा” यह बातें चल ही रही थी कि एक फल का व्यापारी गुजरता हुआ दिखाई दिया। अब होना क्या था? व्यापारी को लूटने की तैयारी शुरू करने लगे लेकिन दोनों ही सीधे जाकर उससे भिड़ना नहीं चाहते थे हो सकता है कि पीछे कोई ऐसी घटना घटित हुई होगी जिसके कारण वो ऐसा कर रहे थे।

खेर अब तय ये हुआ की दोनों एक साथ जाकर पता करेंगे कि व्यापारी के पास धन है या नहीं? और यदि हैं तो कितना हैं? लोगों की मानसिकता इन चोरों के बारे में जो भी रही हो लेकिन ये अपने आप को कोटिल्य से कम नहीं समझते हैं। अब इन विद्वान चोरों के मन में विचार आया कि व्यापारी से मुलाकात व्यापारी बनकर की जाए तो उसकी संपूर्ण जानकरी हाथ लग जाएगी। अब होना क्या था? बदल दिया भेष और पहुँच गए मिलने। संपत्ति की जानकारी लेने के लिए चोरों ने व्यापारी से झूठा जातीय रिश्ता बनाकर स्वयं को जातिगत भाई बताया। व्यापारी ने अपनी और अपने व्यापार के बारे में बातें की व साथ ही रात होती देख व्यापारी ने दोनों चोरों को भोजन हेतु आमन्त्रित किया। वक्त की नजाकत को समझते हुए दोनों चोरों ने हामी भर दी।

अब खाना बनाने से पहले दिन भर की यात्रा से हुई थकान दूर करने के लिए व्यापारी ने आराम करने का निश्चय किया। अभी तक व्यापारी को निंद नहीं आई थी कि चोरों की बातें शुरू हो गई | ज्ञानचंद “खाना खाने के बाद जब ये सो जाएगा तब हम माल को समेट लेंगें” ध्यानचंद “हाँ, हमें भी खाना खा लेना चाहिए रात को चलना जो है” उनकी सारी बातें व्यापारी ने सुन ली और मन ही मन घबराहट सी होने लगी, इतने में एक विचार मन में आया व सारी चिंता गायब सी हो गई। इसके बाद व्यापारी ने खाना बनाया और तीनों नें भोजन कर लिया।

व्यापारी ने चोरों से पूछा “अच्छा तो तुमने अपने गाँव का नाम नहीं बताया ? भाई” ज्ञानचंद (हड़बड़ाता हुआ) “जी जिवंत नगर” व्यापारी “अरे वाह! वहाँ के सेठ सागरमल को जानते ही होंगे ? बहुत बड़े जागीरदार है वो” ज्ञानचंद (चोर) “अरे! उन्हें तो गाँव का बच्चा – बच्चा पहचानता हैं हमारे तो वो वर्षों से मित्र हैं” व्यापारी “अच्छा! अब तो आपको मेरा काम करना ही होगा” ध्यानचंद (बीच में) “कैसा काम व्यापारी जी?” व्यापारी “दरअसल मैं अपनी महिने भर की सारी कमाई सेठ के पास जमा करवाता हूँ ताकि डकैती से बच सकूँ और आवश्यकता पड़ने पर सेठ से धन वापस ले सकूँ” ज्ञानचंद “इसमें हमारा क्या काम व्यापारी जी?” व्यापारी “ऐसा हैं कि आप गाँव तो जा ही रहे हो तो इस धन की गठरी को मेरे नाम से जमा करवा देना अब आपने मुझे भाई का दर्जा दिया है तो भाई का इतना काम तो करना ही पड़ेगा”

ज्ञानचंद “लेकिन आप वहाँ जा तो रहे हो” व्यापारी “आप समझे नहीं यदि यह धन मैं आपको देकर अभी अपने गाँव चला जाऊँ तो कल पूरे दिन व्यापार कर सकूंगा और वैसे भी आप पर क्या वहम करना? आप तो अपने हैं।” इतना सुनते ही चोरों को यह अवसर ‘सोने में सुहागा’ सा प्रतीत हुआ और तुरंत हामी भर दी। व्यापारी ने अपनी चाल के मुताबिक उनसे छुटकारा पाने के लिए एक थैली जिसमें बैर की गुठलियां थी जो किसी किसान नें खेती के लिए मंगवाए थे को चोरों के हाथों में देकर सेठ के हाथों गठरी खुलवाने का निवेदन करते हुए अपनी बैलगाड़ी को वापस दौड़ा दी। दोस्तों हमेशा याद रखना विपदा के समय पर हमेशा से ही बुद्धि से काम लेना चाहिए। बल से नहीं, हाँ ऐसा भी है की आपको देखना पड़ेगा की उस विपदा में बच कैसे सकते हैं बुद्धि से या बल से! अगर आपके सामने शत्रु बहुत ही बलशाली है तो आपको बुद्धि से काम लेना चाहिए और अगर देखा की आपके सामने शत्रु कमजोर है फिर भी अगर आप बुद्धि से वहां से निकल सकते हैं तो क्या जरुरत की आप बल का प्रयोग करो।

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