महाजन का झूठ
एक बार, एक व्यापारी ने अपने लोहे के तराजू को एक महाजन के पास गिरवी रखा। थोड़े समय बाद पैसे देकर व्यापारी अपना तराजू वापस लेने गया। लालची महाजन ने कहा कि तराजू तो चूहा खा गया। व्यापारी ने महाजन को शिक्षा देने का निश्चय किया। उसे एक युक्ति सूझी उसने महाजन से सहायता मांगते हुए कहा कि वह स्नान के लिए जा रहा था, थोड़ी देर के लिए वह अपने पुत्र को भेज दे। व्यापारी ने महाजन के पुत्र को ले जाकर एक गुफा में छिपा दिया। फिर महाजन से उसने कहा कि एक चील उसके पुत्र को उड़ाकर ले गई। महाजन ने व्यापारी को राजा के दरबार में ले जाने की धमकी दी। व्यापारी ने कहा, “हाँ, ठीक है। मैं राजा से कहूंगा कि यदि चूहा लोहे का तराजू खा सकता है तो चील एक बालक को क्यों नहीं ले जा सकती है?” क्षमा मांगते हुए महाजन ने तराजू लौटा दिया और अपने पुत्र को साथ ले चला गया।
सीख: बुद्धि ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ मित्र है।
धर्मबुद्धि और पापबुद्धि
धर्मबुद्धि और पापबुद्धि नामक दो मित्रों ने शहर जाकर अच्छा धन कमाया। वापस आकर उन्होंने धन को सुरक्षित रखने के लिए जमीन में गाड़ दिया। एक रात पापबुद्धि के मन का चोर जागा और उसने सारा धन चुरा लिया। चोरी का दोष धर्मबुद्धि पर मढ़ दिया। न्याय के लिए वे राजा के पास गए। पापबुद्धि ने कहा कि जंगल के राजा ने धर्मबुद्धि को चोरी करते देखा था। अगले दिन राजा का न्याय होना था। पापबुद्धि ने अपने पिता से कहा, ‘आप बड़े पेड़ के पीछे छिप जाएँ और जब पूछा जाए कि चोरी किसने की तो धर्मबुद्धि का नाम लें।’ अगले दिन दोनों मित्र और राजा उस गड्ढे के पास गए जहाँ धन गाड़ा था। “चोरी किसने की”, राजा के पूछने पर आवाज आई, “धर्मबुद्धि”। धर्मबुद्धि को संदेह हुआ और उसने पेड़ के पीछे छिपे हुए पापबुद्धि के पिता को बाहर निकाल लिया। राजा ने पापबुद्धि को सजा दी।
सीख: छल कभी फलीभूत नहीं होता है।
राजा और बंदर
बहुत पुरानी बात है… एक राजा जानवरों को बहुत पसंद करता था। उसके पास एक पालतू बंदर था जो उसकी सेवा किया करता था। बंदर का सेवक होना राजा के मंत्रियों को पसंद नहीं था। वे सदा राजा को सचेत किया करते थे पर उनके मना करने पर भी राजा मंत्रियों की बात नहीं सुनते थे। एक दिन दोपहर में राजा विश्राम कर रहे थे। उन्होंने बंदर से यह ध्यान रखने के लिए कहा कि कोई भी भीतर न आए और उनकी नींद में विघ्न न डाले। कुछ देर बाद एक मक्खी आकर राजा के पास भिनभिनाने लगी। बंदर उसे बार-बार भगाता पर वह बार-बार आ जाती थी। आखिरकार थककर बंदर ने मक्खी को पाठ पढ़ाना चाहा। राजा का छुरा लेकर उसने मक्खी को जोर से मारा। मक्खी तो उड़ गयी पर राजा घायल हो गये। बंदर बेचारा हक्का बक्का रह गया। वह समझ ही नहीं पाया कि ऐसी गलती कैसे हो गया।
सीख: मूर्ख को अपना सेवक नहीं रखना चाहिए।
लोमड़ी और सारस
एक दिन एक चतुर लोमड़ी की मुलाकात एक सारस से हुई। उसने सारस को मित्र बनाकर रात्रि में भोजन के लिए निमंत्रित किया। लोमड़ी ने दो छिछली प्यालियों में सूप परोसा। पतली और लंबी चोंच होने के कारण सारस सूप नहीं पी सका। वह भूखा बैठा लोमड़ी को देखता रहा और लोमड़ी ने सारा सूप पी लिया। सारस भूखा ही लौट आया पर उसने लोमड़ी को पाठ पढ़ाने का निश्चय किया। एक दिन सारस ने लोमड़ी को निमंत्रित किया। इस बार सारस ने पतली गर्दन वाली सुराही में खाना परोसा। सारस ने अपनी लंबी चोंच से खाना खा लिया पर लोमड़ी कुछ भी न खा सकी। सुराही की पतली गर्दन में उसकी थूथनी जाती भी तो कैसे… लोमड़ी को अपनी भूल का अहसास हो गया और वह चुपचाप वापस लौट आई।
सीख: अपने साथ जैसा व्यवहार चाहते हो वैसा ही दूसरे के साथ करो।
खरगोश और कछुआ
एक खरगोश सदा अपने तेज दौड़ने की डींग हाँका करता था। गर्व से भरे हुए खरगोश ने एक दिन सबको अपने साथ दौड़ लगाने की चुनौती दी। एक कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। जंगल के सभी जानवर कछुए की खिल्ली उड़ाने लगे। पर कछुए ने हिम्मत नहीं हारी। अगले दिन सभी जानवर दौड़ देखने के लिए निश्चित स्थान पर इकट्ठे हुए। दौड़ शुरु होते ही खरगोश कछुए को छोड़कर काफी आगे निकल गया। रास्ते में उसे पत्तागोभी का खेत दिखाई दिया। वहाँ रुककर उसने जमकर पत्तागोभी खायी। उसे नींद आने लगी तो उसने सोचा थोड़ा विश्राम कर लेता हूँ। वह लेटकर सो गया। कछुए ने हिम्मत नहीं हारी और धीरे-धीरे चलता हुआ अंतिम रेखा तक पहुँच गया। अचानक खरगोश जागा और भागा पर तब तक कछुआ दौड़ पूरी कर चुका था।
सीख: सतत प्रयास से जीत अवश्य मिलती है।
सजग हिरणी
एक समय की बात है… एक खूबसूरत जंगल था। वह पहाड़ों और झरनों से घिरा हुआ था। जंगल की ओर एक नदी बहती थी उस जंगल में एक सुंदर कानी हिरणी रहती थी। कानी होकर भी वह अत्यंत प्रसन्न, साहसी और सजग थी। पहाड़ की ऊँची चोटियों पर चरती थी। सभी जानवर उसके मित्र थे। उस चतुर हिरणी ने कई जानवरों को शिकारियों से बचाया था। एक दिन एक चोटी पर वह घास चर रही थी। एक शिकारी पीछे की ओर से नाव पर सवार होकर आया और उसी चोटी के पास गया जिस पर हिरणी चर रही थी। हालांकि हिरणी घास खाने में व्यस्त थी पर उसके कानों को खतरे का आभास हो गया। शिकारी उस पर निशाना साध ही रहा था कि वह अचानक से मुड़ी। इधर तीर छूटा और उसने तेजी से जंगल में भागकर अपनी जान बचा ली।
सीख: सजगता मुसीबतों से रक्षा करती है।