111 Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral

अतिशय लोभ

दूर किसी जंगल के आश्रम में एक ऋषि रहते थे, जिन्हें ग्रहों-नक्षत्रों की स्थितियों का विशेष ज्ञान था। एक बार एक डाकू जंगल रास्ते जा रहे थे तभी वह उन ऋषि के आश्रम को देखा और उनके पास आया और चाकू दिखाकर ऋषि से धन मांगने लगा। उनके पास धन तो था नहीं पर उन्होंने डाकू से कहा कि वे आकाश से हीरों की वर्षा करवा सकते थे। ऋषि ने अपने तप के प्रभाव से आकाश से हीरों की वर्षा करवा दी। अब डाकू खुश और उसने हीरे इकट्ठे करके आश्रम से चला गया। अब रास्ते में उसकी मुलाकात डाकुओं के एक अन्य दल से हुई। उसने उन्हें ऋषि के विषय में बताया। हीरों के लोभ में पुरे डाकुओं का दल ऋषि के पास आए, पर तब तक नक्षत्रों की स्थिति बदल चुकी थी। ऋषि ने जब उन्हें समझाने की कोशिश की तो वे न माने। डाकुओं में आपस में ही लड़ाई हो गयी। अंत में बस दो डाकू बचे थे। दोनों ही पूरे हीरे लेना चाहते थे। अब जब एक डाकू भोजन लाने गया। तो दूसरे ने उसमें विष मिला दिया। उसके आते ही पहले वाले ने चाकू से उसे मार डाला और फिर विष भरे भोजन से उसका भी अंत हो गया।

सीख: अतिशय लोभ विनाश का कारण बनता है।

संगति का असर

दूर किसी राज्य में एक बार राजा दधिवाहन समुद्र यात्रा कर रहे थे। वापस लौटते समय उन्हें एक सुनहरा आम मिला। आम को उन्होंने खाया तो वह अत्यंत मीठा था। उसने सोचा कि इसका बीज लगा लेता हूँ अपने बगीचे में। तो आम खाकर उसका बीज उन्होंने अपने बगीचे में बो दिया। पेड़ उगा और 1 साल बाद उस पेड़ में सुनहरे आम फले। अब राजा बहुत खुश था, क्यूंकि उस तरह का सुनहरा आम उसके राज्य तो क्या आसपास के कई राज्य में नहीं मिलता है। अगर किसी को खाने का हो तो विदेश से मंगवाया जाता है। अब सुनहरे और मीठे फल के कारण अन्य राजा दधिवाहन से ईर्ष्या से जल उठे थे। उन्होंने राजा दधिवाहन के माली को कुछ सोने का सिक्का देकर अपनी ओर मिलाया और आम को किसी भी प्रकार से खराब करने को कहा।

अब माली ने आम के पेड़ के चारों ओर नीम तथा कड़वी बेलें लगा दीं। धीरे-धीरे आम की मिठास कड़वाहट में बदल गई और मीठा आम कड़वा हो गया। राजा आश्चर्यचकित था। उसने माली से पूछताछ करने के लिए कहा। माली सजा पाने के भय से रातों-रात वहां से भाग गया। अब राजा खुद अपने बगीचे में जाकर आम के कड़वाहट का पता लगाया, तो राजा ने सभी कड़वी बेलों तथा नीम के पेड़ को उखड़वा दिया। फिर से किसी नई माली के द्वारा आम के पेड़ की अच्छी देखभाल की गई। समय के अंतराल में आम के पेड़ में पुनः ढेरों फल लगे। पर अब वे सुनहरे आम पुष्ट और मीठे रस भरे थे। अब राजा दधिवाहन इतने खुश थे कि उन्होंने यह घोषणा कि अब से यह सुनहरा आम सिर्फ राज परिवार के लिए नहीं है बल्कि आसपास के सभी प्रजाजनों के साथ भी बांटा जायेगा। और देखते ही देखते पुरे राज्य में और पास के राज्य में भी उसी सुनहरे आम के पेड़ों से भर गए।

सीख: संगति का बहुत असर होता है।

धोखेबाज साधु

दूर किसी गाँव में एक धोखेबाज, एक साधु के वेष में रह रहा था। एक धनवान व्यक्ति उस साधु का पक्का अनुयायी था। धनवान व्यक्ति साधु के लिए सब कुछ उपलब्ध करवा देता था। उसने साधु के लिए एक कुटिया भी बनवा दी थी। धनवान व्यक्ति ने अपने धन को उसी कुटिया में गड़वा दिया था। साधु के अलावा इसका पता किसी को नहीं था। साधु तो था ही धोखेबाज, तो उसकी कुटिल बुद्धि में आया कि पूरा धन हड़प लिया जाये। उसके प्लान के मुताबिक जब धनवान व्यक्ति किसी दूसरे राज्य में व्यापार करने गए, तो एक दिन साधु ने खोदकर सारा धन निकाला और कुटिया के बाहर दूसरी जगह गाड़ दिया। अब धनवान व्यक्ति व्यापार करके आये और उसके ही कुछ दिनों के बाद साधु ने धनवान व्यक्ति से अपने तीर्थ यात्रा पर जाने की बात बताई। जब साधु जा रहा था तब एक दूसरे सौदागर ने उसे देख लिया। उसे कुछ शंका हुई। उसने धनवान व्यक्ति को बताया। उस धनवान व्यक्ति तुरंत कुटिया में आया और उसने अपने गाड़े हुए धन को गायब देखा। सबने मिलकर साधु का पीछा किया और अंततः उसे पकड़ लिया। उसकी खूब धुनाई हुई। पूछने पर उसने उस जगह का पता बताया जहाँ उसने धन छिपा रखा था।

सीख: सच सामने आ ही जाता है।

योग्य शिष्य

दूर किसी देश में एक आश्रम में अपने पांडित्य के लिए एक गुरु अत्यंत प्रसिद्ध थे। उनके कई शिष्य थे। दूर दूर से उनके पास हज़ारों शिष्य शिक्षा ग्रहण के लिए आते थे। गुरु का एक पुत्री थी। और अपनी पुत्री के विवाह योग्य होने पर उन्होंने किसी एक योग्य शिष्य से उसके विवाह का निश्चय किया। इसके लिए उन्होंने अपने उन सभी शिष्यों की परीक्षा लेनी चाही। एक दिन उन्होंने अपने सभी शिष्यों को बुलाकर कहा, “अपनी दीनता के कारण विवाह में दी जाने वाली वस्तुएँ मैं अपनी पुत्री को नहीं दे सकता। आप लोग अपने-अपने संबंधियों के घर से चुपचाप कुछ कपड़े ले आयें, उन्हें पता नहीं चलना चाहिए। मैं तुमलोगों को एक दिन का मुहूरत देता हूँ।”

अगले दिन उसी समय एक को छोड़कर सभी शिष्यों ने वैसा ही करा, जैसा गुरु ने कहा था। सभी ने अपने-अपने संबंधियों के घर से कुछ कपड़े चुराकर ले आये। तब उस एक शिष्य ने खाली हाथ आकर गुरूजी से क्षमा याचना करते हुए कहा, “गुरूजी मुझे माफ़ कर दीजिये, मैं आपका आज्ञा पालन नहीं कर सका। गुरूजी, हालांकि किसी ने मुझे देखा नहीं पर आपका दिया हुआ ज्ञान और मेरी आत्मा ने मुझे ऐसा करने की अनुमति नहीं दी।” गुरु शिष्य की ईमानदारी से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने सभी को परीक्षा लेने की बात बताई और लाया हुआ सामान वापस करने के लिए कहा। उन्हें योग्य शिष्य मिल गया था। और गुरु जी उस योग्य शिष्य के माता-पिता को बुलाया और सभी के सहमति से धूम-धाम से उन दोनों गुरु पुत्री और योग्य शिष्य का विवाह सम्पन्न हुआ।

सीख: गलत व्यवहार किसी भी कारण से किया जाय उसे कभी भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।

अंधा गिद्ध और बिल्ली

एक अंधा बूढ़ा गिद्ध एक पेड़ के कोटर में रहता था और पेड़ पर रहने वाले पक्षियों के बच्चों की रक्षा भी करता था। एक बिल्ली की नजर बच्चों पर थी। उसने गिद्ध के पास आकर उसकी तारीफ करी और कहा कि वह महान ज्ञानी है। अपनी ज्ञान भरी बातें उसे भी बताए। गिद्ध उसकी बातों में आ गया। बिल्ली प्रतिदिन आती, एक-एक कर बच्चों को खाती, गिद्ध की बातें सुनती और हड्डियाँ कोटर में डाल जाती। प्रतिदिन बच्चों को गायब होता देख पक्षी सशंकित हुए। वे गिद्ध को अपनी चिंता बताने गए। कोटर के भीतर उन्हें हड्डियों का ढेर मिला। उन्होंने गिद्ध को ही दोषी समझकर उस पर हमला कर दिया। दूर बैठी बिल्ली यह सारा दृश्य देख रही थी। वह चुपचाप वहाँ से भाग गयी।

सीख: झूठी प्रशंसा सुनकर किसी की बातों में नहीं आना चाहिए।

नासमझ मित्र

एक गाँव में चार मित्र रहते थे। उनमें से तीन शिक्षित थे पर उन्हें समझ नहीं थी। चौथा मित्र शिक्षित न होते हुए भी समझदार था। एक दिन वे चारों एक जंगल से होकर जा रहे थे तभी उन्हें शेर का एक कंकाल दिखाई दिया। तीनों शिक्षित मित्रों ने उस शेर को जीवनदान देने का निर्णय किया। एक ने कहा, “मैं हड्डियों को व्यवस्थित करूँगा।” दूसरे ने कहा, “मैं उस पर रक्त और माँस डालूंगा।” तब तीसरे ने कहा, “मैं उसमें प्राण डालूंगा।” इसके परिणाम से चौथे मित्र ने उन्हें सावधान कराया पर उन्होंने उसकी एक न सुनी। उसने पेड़ पर चढ़ने तक उन्हें रुकने के लिए कहा। तीनों मित्र ने मिलकर शेर को पुनः जीवित किया। जीवित होते ही वह तीनों पर कूद पड़ा। उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। चौथे मित्र ने कहा, “ईश्वर का बहुत-बहुत धन्यवाद दिया।”

सीख: शिक्षित होना अच्छा है पर समझदारी आवश्यक है।

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