svg

111 Panchatantra Short Stories in Hindi with Moral

कहानी1 year ago90 Views

चींटी और टिड्डा

एक दिन एक टिड्डा एक पेड़ के नीचे विश्राम कर रहा था। उसने एक चींटी को मक्के का दाना उठाकर ले जाते हुए देखा। टिड्डे ने बड़ी उत्सुकता से चींटी से पूछा, “चीटी बहन, यह दिनभर तुम काम क्यों करती रहती हो? मैंने तुम्हें कभी भी आराम से बैठकर मस्ती करते नहीं देखा है।” चींटी ने कहा, “टिड्डे भाई, मैं सर्दियों के लिए खाना इकट्ठा कर रही हूँ। तुम्हें भी ऐसा ही करना चाहिए।” टिड्डे ने चींटी की सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया। सर्दी आई। टिड्डे को भूख लगी पर उसके पास तो खाने के लिए कुछ भी नहीं था। उधर चींटी आराम से थी और उसके पास इकट्ठा किया हुआ भोजन भी था। उसे देखकर चींटी ने कहा, “टिड्ड भाई, गर्मी भर मैं काम करती थी और तुम मुझपर हँसते थे। अब देखो, मेरा पेट भरा हुआ है और तुम भूखे हो काश! तुमने भी काम किया होता…।” उदास टिड्डा चला गया।

सीख: जैसा बोओगे वैसा पाओगे।

शांडिली और तिल

शांडिली अपने ब्राह्मण पति के साथ एक छोटे से घर में रहती थी। वे बहुत गरीब थे। एक दिन बाहर जाते समय उसके पति ने कहा कि किसी भी याचक को खिलाना अवश्य। शांडिली ने खिलाने के लिए तिल के लड्डू बनाने का निश्चय किया। उसने तिल को साफ कर उसका छिलका उतारा और फिर उन्हें धोकर सूखने के लिए धूप में रख दिया। पर कहीं से एक कुत्ते ने आकर उसे झूठा कर दिया। वह झूठा तिल किसी को नहीं खिलाना चाहती थी। अतः वह अपने पड़ोसी के पास घुले तिल को लेकर गई। धुले तिल के बदले उसने बिना साफ किया हुआ तिल मांगा। पड़ोसी अत्यंत प्रसन्न हुई पर उसके पुत्र ने उसे रोकते हुए कहा कि भला कोई क्यों साफ किए हुए तिल को बिना साफ किए तिल से बदलेगा? पड़ोसी ने समझ लिया कि अवश्य तिल खराब होंगे और उसे वापस भेज दिया।

सीख: प्रस्ताव भले ही आकर्षक हो, स्वीकारने से पहले विचारना आवश्यक है।

चूहों की मित्रता

एक बार हाथियों का एक झुण्ड पानी की खोज में एक गाँव से होकर जा रहा था। वहीं एक खंडहर में बहुत सारे चूहे रहते थे। सुबह का समय था। खाना ढूँढते हुए बहुत सारे चूहे हाथियों के पैर से कुचल गए। बचे हुए चूहे मदद की गुहार करते हुए अपने नेता के पास गए। नेता ने हाथीराज से मिलकर उन्हें सावधान रहने के लिए कहा। साथ ही यह भी आश्वासन दिया कि आवश्यकता पड़ने पर चूहे उनकी सहायता अवश्य करेंगे। चूहे का अनुरोध हाथीराज ने मान लिया। एक दिन दुर्भाग्यवश हाथी शिकारी के बनाए गड्ढे में फँस गए। शिकारी उन्हें रस्सी से बांधकर गाड़ी लाने के लिए चला गया। हाथीराज को चूहों की याद आई। उन्होंने सहायता की गुहार की। चूहों ने आकर रस्सियाँ काटीं और हाथियों को मुक्त कर दिया।

सीख: शक्तिशाली को भी सहायता की आवश्यकता पड़ती है।

साधु और चूहा

जंगल के पास एक कुटिया में एक साधु रहता था। प्रतिदिन वह जंगल जाकर अपने खाने के लिए कुछ फल लाया करता था। खाने से जो बचता था उसे एक कटोरे में रख लेता था। एक चूहा उसे उठाकर ले जाता और मजे से अपने परिवार के साथ, खाता था। एक दिन साधु पास के गाँव में गया। वहाँ उसकी मुलाकात एक चतुर व्यक्ति से हुई। साधु की परेशानी का कारण उसने पूछा। साधु ने उसे चूहे की शरारत के विषय में बताया। चतुर व्यक्ति ने चूहे का घर ढूँढकर उसे भगा देने की सलाह दी। घर जाकर साधु ने चूहे का बिल ढूँढा। भीतर चूहे ने ढेर सारा भोजन इकट्ठा कर रखा था। उसने सारा भोजन हटा दिया। बेचारे चूहे भूख से बेहाल होने लगे। कुछ दिनों बाद भोजन की खोज में चूहे अपने आप साधु का घर छोड़कर दूसरी जगह चले गए। अब साधु आराम से रहने लगा।

सीख: नकारात्मकता को जड़ से दूर कर देना चाहिए।

मित्रतापूर्ण कौआ

एक कौआ एक चूहे से मित्रता करना चाहता था। उसने चूहे से मिलकर उसे अपने मन की बात बताई। चूहा मित्रता नहीं करना चाहता था क्योंकि चूहे तो कौए का भोजन होते हैं। पर कौए ने चूहे से एक अच्छा मित्र होने का वादा किया। चूहा मान गया। एक दिन कौए ने कहा, “सूखा पड़ने के कारण लोग पक्षियों को पकड़ रहे हैं। अतः मैं अपने मित्र कछुए के पास जंगल में जा रहा हूँ।” चूहे ने भी उसके साथ जाना चाहा। वह उड़ नहीं सकता था अतः उसने कौए से पीठ पर बैठाकर ले चलने का अनुरोध किया। दोनों चल पड़े। वे शीघ्र ही जंगल में सरोवर के पास पहुँच गए। वहाँ पहुँचकर कौए ने कछुए को आवाज दी, “कछुए भाई, कहाँ हो तुम? देखो मैं आ गया….” कछुआ कौए को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ और चूहे से भी उसकी मित्रता हो गई। सब खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे।

सीख: अच्छे मित्रों की संगति से संतुष्टि मिलती है।

बगुला और कौआ

एक पीपल के वृक्ष पर एक बगुला और एक कौआ रहता था। दोनों मित्र तो थे पर उनकी प्रवृत्ति एकदम भिन्न थी। बगुला दयालु था पर कौआ स्वार्थी और दुष्टात्मा था। गर्मी की एक दोपहर थी। एक शिकारी वृक्ष के नीचे थककर विश्राम कर रहा था। सूरज सिर पर चढ़ आया था। उसकी किरणें सीधे शिकारी के चेहरे पर पड़ रही थीं। बगुले को दया आ गई। वह उड़कर शिकारी के ऊपर गया और अपने पंखों को फैलाकर उसने सूर्य की किरणों को रोक लिया। तभी कौए ने शिकारी पर विष्ठा कर दी। अचानक से शिकारी की नींद खुल गई। ऊपर पंख फैलाए बगुले को देखकर उसे बहुत रोष हुआ। उसने बगुले को दोषी मानकर उस पर तीर छोड़ दिया। तीर सीधा बगुले को जाकर लगा और उस बेचारे को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

सीख: दुष्ट प्रवृत्ति वालों के साथ नहीं रहना चाहिए।

Leave a reply

Loading Next Post...
svgSearch
Popular Now svg
Scroll to Top
Loading

Signing-in 3 seconds...

Signing-up 3 seconds...