The Joys of Compounding Book Summary in Hindi

कंपाऊंडिंग एक पावरफुल कॉन्सेप्ट है जो आप अपनी नॉलेज को बढ़ाने, खुद को इम्प्रूव करने और वेल्थ बिल्ड करने के लिए यूज़ कर सकते हैं। रोज़ के कुछ पेज पढ़कर आप साल में कईं बुक्स पढ़ सकते हैं। रोज़ तीस मिनट का एक्सरसाइज़ आपके हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा। सालों साल इंवेस्ट करते रहना और इंटरेस्ट को कंपाउंड होते देना आपको बहुत अमीर बना सकता है। ये समरी आपको सिखाएगी कि आप अपने गोल्स अचीव करने के लिए और फ़ाईनेंशियली इंडीपेंडेंट रहने के लिए कंपाऊंडिंग को कैसे यूज कर सकते हैं। आगे जानने के लिए पूरी समरी ज़रूर पढ़ें।

अगर आप एक इंवेस्टर है, इंवेस्ट करना सीखना चाहते हैं या फिर अमीर बनना चाहते हैं तो यह बुक आपके लिए है।

लेखक

गौतम बैद एक चार्टर्ड फ़ाईनेंशियल एनालिस्ट (CFA) हैं। वो ‘स्टेलर वेल्थ पार्टनर इंडिया फंड’ के मैनेजिंग पार्टनर हैं जो यूएस इंवेस्टर्स के लिए इंवेस्टमेंट पार्टनरशिप हैं। बैद ‘कम्प्लीट सर्कल स्टेलर वेल्थ’ में इक्विटी एड्वाइज़र भी हैं जो इंडियन सिटीजंस को पोर्टफ़ोलियो मैनेजमेंट सर्विस देता है।

The Joys of Compounding Book Summary in Hindi

इंट्रोडक्शन

आप लाइफ में जो कुछ पाना चाहते हैं, पा सकते हैं। जो छोटे-छोटे स्टेप्स आप आज लोगे वो कईं सालों बाद एक बड़ी अचीवमेंट में तब्दील हो जाएंगे। ये कंपाउंडिंग का पावर है।

आज के बाद दोबारा कभी अपने आपको अंडरएस्टिमेट मत करना और देखो धीरे-धीरे रोज़ आप कितना बदलाव ला सकते हैं। आज आप जो एफ़र्टस कर रहे हो, वो भले ही छोटे हों लेकिन कुछ ही सालों बाद आप देखोगे कि वो कितनी बड़ी अचीवमेंट में बदल जाएंगे। कंपाउंडिंग का मतलब है कि टाइम को अपना काम करने दो और फिर देखो आपकी कोशिश क्या रंग लाती है। ये बदलाव आज या कल में नज़र नहीं आएगा लेकिन कंपाऊँडिंग एक दिन आपके करियर और फ्यूचर गोल्स के लिए किसी जादू की तरह असर करेगा।

इस बुक के ऑथर gautam बैद इस बात पर खास ज़ोर देते हैं कि हमें लगातार सीखना चाहिए। जब आप अपनी नॉलेज को कंपाऊँड करते हैं तो आपकी सेल्फ-वैल्यू और सेल्फ वर्थ भी बढ़ती जाती है। सबसे बढ़िया इनवेस्टमेंट जो आप कर सकते हो वो है खुद पर इनवेस्टमेंट करना।

ये समरी इन्वेस्टमेंट के ज़रिए कंपाउडिंग की पावर के बारे में बताएगी। इससे आपको फ़ाईनेंशियल इनफॉर्मेशन भी मिलेगी जो आपकी फ़ाईनेंशियल लिट्रेसी को बढ़ाएगी। तो इस समरी की मदद से नॉलेज अचीव कीजिए और अमीर बन जाइए।

Becoming a Learning Machine

लाइफ में सबसे सक्सेसफुल लोग वो होते हैं जो लर्निंग मशीन की तरह होते हैं। वो नॉलेज के अलग-अलग सोर्सज़ का स्वागत करते हैं और हमेशा कुछ नया सीखने के लिए उतावले रहते हैं। सक्सेस का सीक्रेट यही है कि आप हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखते रहें। एडिशनल आइडीयाज़ अलग-अलग सिचुएशन में आपके काम आएंगे।

लर्निंग का सीक्रेट है रीडिंग। वॉरेन बफ़ेट, जो दुनिया के सबसे सक्सेसफुल इंवेस्टर हैं, अपने दिन का 80% पढ़ने में और कुछ नया सीखने में गुज़ारते हैं। वो अपना टाइम किसी ऐसी चीज़ में वेस्ट नहीं करते जो उन्हें लगता है कि फ्यूचर में उनके काम नहीं आने वाला है। यहाँ तक कि ट्रेवलिंग के वक्त भी वॉरेन एक जगह बैठकर पढ़ते रहते हैं ताकि उनकी नॉलेज लगातार बढ़ती रहे।

रीडिंग, लर्निंग का एक ऐसा तरीका है जिसे सबसे ज़्यादा अनदेखा किया जाता है। लोगों को दिन में कुछ घंटे पढ़ने में ही बोरियत होने लगती है। लेकिन आपको वॉरेन बफ़ेट की तरह पढ़ने की ज़रूरत नहीं है। आप अपनी सुविधा के हिसाब से पढ़ सकते हैं। अगर आप रोज़ आधा घंटा भी पढ़ेंगे तो आपकी नॉलेज का दायरा बढ़ेगा।

ज़्यादातर लोग इसलिए नहीं पढ़ते क्योंकि उन्हें ये एक बड़ा काम या कमीटमेंट लगता है। वो किसी बुक के पन्ने देखकर और ये सोचकर उसे पढ़ने का इरादा छोड़ देते हैं कि “मुझे नहीं लगता कि मैं इसे पूरा भी कर पाऊँगा”। लेकिन आप इसे एक पूरी बुक की तरह देखने के बजाए चैप्टर्स और पेज़ेस की तरह देखें। खुद से कहिए “मैं रोज़ 25 पेज पढ़ूँगा”। ऐसा करने से आप महीने के अंत तक दो बुक फ़िनिश कर लेंगे।

रोज़ के 25 पेज से शुरुवात करो। अगर आप ऐसा करोगे तो आप हर महीने करीब 750 पेज पढ़ लेंगे। अगर आप पूरे साल इसी स्पीड से पढ़ते रहे तो साल के 9,000 पेज फ़िनिश कर लेंगे। यानि आप करीबन 10-30 बुक्स पढ़ लोगे.

ये टेक्नीक कंपाउंडिंग के पावर को यूज़ करती है। इस कॉन्सेप्ट में आप टाइम और एक्यूमुलेशन को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर आप सिंगुलेरीटी में देखो तो 25 पेज बहुत ज़्यादा या समय लेने वाले नहीं लगते। लेकिन कंपाउंडिंग आपको काफ़ी आगे तक ले जा सकता है और आपको वो बड़ी-बड़ी चीज़े अचीव करने का मौका दे सकता है जो आपको कभी मुमकिन नहीं लगा होगी।

कंपाउंडिंग एक ऐसा सीक्रेट है जिसे ज़्यादातर सक्सेसफुल लोग इस्तेमाल करते हैं। ये सिर्फ़ फ़ाईनेंशियल फील्ड में ही नहीं बल्कि रियल लाइफ सिचुएशन में भी लागू हो सकता है। अगर आप आज अपना पैसा कमपाउंड करोगे तो रिटायर होने की उम्र तक आप मिलियनेयर बन चुके होंगे। अपनी नॉलेज को हर दिन कंपाउंड करके आप अपनी लाइफ में एक लर्निंग मशीन बन सकते हो।

रीडिंग सिर्फ़ नॉलेज के लिए नहीं होनी चाहिए। आपको इसलिए भी रीडिंग करनी चाहिए क्योंकि ये आपको फ्यूचर में बेहतर फ़ैसले लेने में मदद करती है। सोशल मीडिया पोस्ट और मैगजीन आपकी नॉलेज नहीं बढ़ाएंगे बल्कि बायोग्राफी, हिस्ट्री बुक्स और नॉन-फिक्शन बुक्स बढ़ाएंगी। आप बुक्स पढ़कर अपनी नॉलेज को कंपाउंड कर सकते हो।

हर नई बुक आपको कुछ नया सिखा सकती है। इसमें वो सारे टॉपिक्स कवर होने चाहिए जो आपके लिए नए या मुश्किल हैं। अगर आप ऐसी बुक्स पढ़ेंगे जो आपको सेम नॉलेज दे रही है तो ना तो आपको उसे पढ़ने में इंटरेस्ट आएगा और ना ही वो फ़्यूचर में आपके काम आएगी।

ऐसे ऑथर्स की बुक्स पढे जिनके पास ऑफर करने के लिए कुछ और हो। ऐसे टॉपिक्स चूज़ करो जिनके बारे में आपकी नॉलेज कम हो। अलग-अलग सोर्सज़ से या अलग-अलग टाइप की बुक्स पढ़ने से आपकी नॉलेज का दायरा बढ़ेगा। वो टॉपिक्स जिनके बारे में आपको ज़रा भी नॉलेज नहीं है, जिसके बारे में आपने कभी कुछ पढ़ा नहीं है , ऐसे टॉपिक्स भी अगर आपको पढ़ने को मिलें तो झिझको मत। आपको लाइफ की ज़्यादा से ज़्यादा चीजों के बारे में जितनी ज़्यादा इनफॉर्मेशन होगी, उतना बेहतर होगा।

कोई भी चीज़ अगर आप पढ़ना चाहते हैं तो इसके चार तरीके होते हैं। आप एलीमेंट्री, इंस्पेक्शनल, एनालिटिकल या सिंटॉपिकल (elementary, inspectional, analytical or syntopical) लेवल पर पढ़ सकते हैं।

एलीमेंट्री लेवल पर सिर्फ़ रीडिंग करना और ये जानना होता है कि वर्ड्स को कैसे प्रोसेस किया करना है। इसमें आप जानते हैं कि टर्म्स और सेंटेंस का मतलब क्या है। लेकिन आप ज़्यादा गहराई में जाकर ये जानने की कोशिश नहीं करते कि ऑथर क्या कहना चाहता है। एलीमेंट्री रीडर्स सिर्फ़ वर्ड टू वर्ड पढ़ते है। उन्हें मेटाफर और इडियम का मतलब समझ नहीं आता है।

नेक्स्ट लेवल हैं इंस्पेक्शनल रीडिंग। इस टाइप की रीडिंग एलीमेंट्री लेवल से ऊपर होती है क्योंकि आप प्रोसेस कर रहे हो कि आइडीयाज़ का मतलब क्या है। जैसे आप किसी चीज़ के बारे में पढ़ते हो और समझने की कोशिश करते हो कि ऑथर क्या कहना चाहता है। हालांकि आप उसमें छुपा हुआ मतलब या मैसेज़ ढूँढने की कोशिश नहीं करते। आप जो सरफेस लेवल पर पढ़ते हो उसे इंस्पेक्ट करने की कोशिश कर रहे हो।

एनालिटिकल रीडिंग में आप बुक्स या सोर्स डॉक्युमेंट का एनालिटिकल रिव्यु करते हो। ये तीसरे लेवल पर आता है क्योंकि इसमें आप सिर्फ़ पढ़ नहीं रहे हो बल्कि गहराई से जानने की कोशिश कर रहो हो कि बुक कहना क्या चाहती है। इसमें बुक के हर हिस्से को एनालाइज़ करके पूरी पिक्चर जानने की कोशिश होती है। एनालिटिकल रीडिंग में अलग-अलग वर्ड्स और सेंटेंस के पॉसिबल इम्पोर्टेंस को जानने की कोशिश होती है। ये पूरी बुक को एक कंप्लीट पिक्चर की तरह देखने की और हर सेंटेन्स या चैप्टर के कॉन्सेप्ट को आपस में जोड़ने की कोशिश करती है।

सिंटॉपिकल रीडिंग इन सबसे हाई लेवल की रीडिंग है। ये एनालिटिकल रीडिंग से ऊपर है क्योंकि इसमें आप तुलना करते हैं कि आपने बाकि बुक्स या सोर्सज़ से क्या सीख। जैसे आप एक पेपर एनालाईज़ करते हो और उस इनफॉर्मेशन को बाकि ऑथर के दूसरे आइडीयाज़ से कंपेयर करते हो। ये आपको उन टॉपिक्स को बेहतर ढंग से समझने का मौका देता है जो आप पढ़ रहे हो और आप उन मिसिंग पीसेज़ को फिट कर पाते हो जो आपने शायद किसी और बुक में पढे होंगे।

किसी एक बुक से सीखे हुए आइडीयाज़ तब और भी बड़े पैमाने पर कंपाउंड हो जाते हैं जब आप उसे किसी और सोर्स के साथ जोड़कर देखते हो। अपनी लर्निंग को लगातार कपाउंड करने से आपकी इनोफ़र्मेशन और बढ़ती चली जाएगी। रीडिंग और कमपाउंडिंग के पावर को कभी हल्के में मत लेना। इसे आज से ही अपनी लाइफ में अप्लाई करना शुरू कर दो। ज़िंदगी भर के लिए एक लर्निंग मशीन बन जाओ और हर दिन कुछ नया सीखो।

The Key to Success in Life is Delayed Gratification

सक्सेस रातों-रात नहीं मिलती और ना ही आपको ये एक हफ्ते या एक महीने में मिलेगी। सक्सेस एक ऐसी चीज़ है जो कईं सालों की मेहनत और लगन का नतीजा होती है। अगर आप ये कॉन्सेप्ट नहीं समझेंगे तो आप कभी सक्सेसफुल नहीं बन सकते।

1960 के दशक में हुई एक स्टडी में delayed gratification यानी संतुष्टि मिलने में देर होना और उन लोगों पर इसके नतीजे को एनालाईज़ किया गया जो इसका वेट कर रहे थे। रिसर्चर्स ने बच्चों के एक ग्रुप से पूछा कि वो उसी वक्त एक मार्शमैलो लेना चाहेंगे या 20 मिनट इंतज़ार करने के बाद दो मार्शमैलो लेना चाहेंगे। चालीस साल बाद पार्टीसीपेंट्स को फिर से एक बार साथ में बुलाया गया और उनसे उनकी लाइफ के बारे में पूछा गया। जिन लोगों ने 20 मिनट वेट करने के बाद दो मार्शमैलो लेने का डिसीजन लिया था, उन्होंने अपनी लाइफ में उनसे ज़्यादा प्रोग्रेस की थी जिन्होंने उसी वक्त एक मार्शमैलो लेने का डिसिजन लिया था। उन्हें स्कूल में हाई स्कोर मिलते थे, उनकी सोशल स्किल ज़्यादा अच्छी थी, उनका स्ट्रेस लेवल कम था और वो ड्रग्स और शराब का भी यूज कम करते थे। डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन का मतलब है कि आज आप किसी चीज़ के बिना रह रहे हो तो इसलिए क्योंकि फ़्यूचर में आपको उससे बेहतर मिलने की उम्मीद है।

चार्ली मंगर बर्कशायर हैथवे के वाइस चेयरमैन और वॉरेन बफ़ेट के राईट हैंड मैन हैं। वो अपने हर टॉक और वर्कशॉप में डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन को प्रमोट करते हैं. चार्ली अपने सारे बिजनेस डिसीजन में कम्पाउंडिंग और डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन अप्लाई करते हैं और बर्कशायर हैथवे के लिए मिलियन डॉलर्स रेज़ करते हैं. अपने फर्म के लिए डिसीजन लेते वक्त उनका पूरा फोकस पेशंस और टाइमिंग पर रहता है.

चार्ली ने कैसे डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन का कॉन्सेप्ट यूज़ किया है, इसका एक रियल लाइफ example तब देखने को मिलता है जब उन्होंने टेनेको नाम के एक स्टार्ट-अप कंपनी में इन्वेस्ट किया. उस कंपनी के शेयर $1 में बिक रहे थे तो चार्ली ने कुछ मिलियन डॉलर्स के शेयर खरीद लिए. कुछ सालों बाद टेनेको के स्टॉक प्राइस $15 तक पहुँच गए और तब चार्ली ने उन्हें बेचने का डिसीजन लिया. अकेले इस इन्वेस्टमेंट से उन्हें $80 मिलियन की कमाई हुई और उन्हें बस इतना करना पड़ा था कि उन्होंने प्राइस बढने का वेट किया.

पेआउट मिलने के बाद चार्ली ने अपनी सारी कमाई ली लू को दे दी जो उन्हीं की तरह एक इन्वेस्टर थे और उन पर अपना सारा पैसा रीइन्वेस्ट करने की जिम्मेदारी डाल दी. ली लू ने चार्ली के $80 million को इन्वेस्ट करके कुछ ही सालों बाद $400 million बना दिया. चार्ली ने इतना पैसा बैठे-बैठे कमा लिया था. तो ये है कम्पाउंडिंग और डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन का पावर. इसमें बेशक आपको तुरंत ईनाम नहीं मिलेगा लेकिन अंत में जब मिलेगा तो बहुत मिलेगा.

चार्ली इतना पैसा इसलिए कमा पाए क्योंकि उन्होंने अपने पैसे को तुरंत कहीं खर्च करने के बारे में नहीं सोचा. अपनी पहली इन्वेस्टमेंट से कमाई करने के बाद भी उन्होंने सेलिब्रेट करने के बजाए जो कुछ था उसे किसी दूसरी कंपनी में फिर से इन्वेस्ट कर दिया. क्योंकि उन्होंने अपना ग्रेटीफ़िकेशन डिले करने का फैसला लिया था तो चार्ली ने अपने सारे इन्वेस्टमेंट्स के इंटरेस्ट को कम्पाउंड किया और पहले से कहीं ज्यादा कमाया.

अगर आप एक एंटरप्रेन्योर हैं तो आपको अपने बिजनेस डिसीजन लेते वक्त डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन को भी उसमें शामिल करना चाहिए. सिर्फ अपनी करंट अर्निंग्स के बारे में मत सोचो बल्कि लॉन्ग टर्म अर्निंग्स पर भी फोकस रखो.

ज़्यादातर कंपनीज़ अपनी करंट अर्निंग्स पर इतना ज्यादा फोकस रखती हैं कि वो उन अच्छी अपोर्च्यूनिटीज़ को अनदेखा कर बैठती हैं जो उन्हें लॉन्ग टर्म में फायदा पहुंचा सकते हैं. लेकिन इस तरह की सोच आपकी कंपनी के लिए नुकसानदायक है और हो सकता है कि एक दिन आपको दिवालिया बना दे.

आज कोस्को और एमेजॉन जैसे बिजनेस इसलिए सक्सेसफुल हैं क्योंकि वो डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन पर फोकस करते हैं। इन कंपनीज़ ने अपना प्रॉफ़िट मार्जिन कम रखा इसलिए शुरुवात के कुछ सालों में इनकी कमाई ज़्यादा नहीं थी।

अब क्योंकि इन्होंने अपने प्राइस कम रखे थे तो लोग इनसे शॉपिंग करना पसंद करते थे जिसके चलते धीरे-धीरे इनके लॉयल कस्टमर्स बनते चले गए। कोस्को और एमेजॉन की सफलता का सबसे बड़ा राज़ यही है। लो-प्रॉफ़िट मार्जिन के बावजूद उनकी सेल डबल हो गई क्योंकि उनके कस्टमर्स के ऑर्डर्स बढ़ते चले गए।

डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन सिर्फ़ फ़ाईनेन्स या बिजनेस डील्स में ही अप्लाई नहीं होता है बल्कि आप इसे रियल लाइफ सिचुएशन में भी अप्लाई कर सकते हो। जब आप कुछ नया शुरू करना चाहो या कुछ नया सीखना चाहो तो चीजों को अलग नज़रिए से देखने की कोशिश करो। ये मत सोचो कि आपको आज ही रिवॉर्ड मिल जाएगा बल्कि ये उम्मीद रखो कि फ़्यूचर में आपको अच्छे रिजल्ट ज़रूर मिलेंगे।

जैसे कि मान लो आप कोई नई लैंग्वेज सीखना चाहते हैं। शुरुवात में ये आपको थोड़ा challenging लगेगा। लेकिन जैसे-जैसे आप सीखते जाओगे, आपको general कॉन्सेप्ट समझ आता जाएगा और कुछ महीनों में ही आप धड़ल्ले से एक नई लैंग्वेज बोल रहे होंगे। बेशक शुरुवात में आप एक एक्सपर्ट नहीं थे लेकिन आपकी रोज़ की 1% प्रोग्रेस कुछ ही महीनों बाद 100% में बदल जाएगी।

एक और example लेते हैं। मान लो आपको वेट कम करना है। इसके लिए आप रोज़ हेल्दी डाइट लेंगे और रोज़ एक्सरसाइज़ करेंगे। लेकिन इसके बावजूद आपका वज़न कम नहीं होता। लेकिन अगर आप लगातार कोशिश करते रहे तो जल्द ही आप कुछ पाउंड घटा सकते हैं और कुछ और महीनों या साल भर बाद ही आपकी कमर थोड़ी पतली नज़र आने लगेगी। तो इतनी जल्दी हार मत मानिए। डटे रहिए और अपने एफ़र्टस को टाइम के साथ-साथ कंपाउंड होने दीजिए।

Building Earning Power Through a Business Ownership Mindset

एक बिजनेस शुरू करण challenging काम है। ये सबके बस की बात नहीं है। ये आपके बस की भी बात नहीं होगी अगर आप बिजनेस डिसिजन लेने और अपने नेक्स्ट मूव के लिए स्ट्रेटेज़ी बनाने में कईं-कईं घंटे बिता देते हैं। हालांकि बिजनेस करना सक्सेस पाने और पैसे कमाने का सबसे भरोसेमंद तरीका है। अगर आप अपना बिजनेस खड़ा कर रहे हैं तो आप अपने टाइम के मास्टर खुद बन सकते हैं।

ये बात उन लोगों के लिए क्या मायने रखती है जिनमें वो बात ही नहीं है जो एक बिजनेस को चलाने के लिए चाहिए? तो क्या इसका मतलब वो कभी अमीर नहीं बन पाएंगे? वेल, इसका जवाब थोड़ा मुश्किल है। आप शायद अपने अंदर वो स्किल कभी डेवलप ही ना कर पाएं जो एक बिजनेस को चलाने के लिए चाहिए। लेकिन आप इंवेस्टिंग से अब भी अमीर बन सकते हैं। ये एक बेहतर ऑप्शन है जिस पर ज़्यादातर लोग यकीन करते हैं।

इंवेस्टिंग ट्रिकी और challenging काम है। आपको अच्छी कंपनीज़ में इन्वेस्ट करने का नॉलेज होना चाहिए। हालांकि सवाल ये है कि क्या इंवेस्टिंग से आप उतना ही पैसा कमा सकेंगे जितना कि बिजनेस से? तो इसका जवाब है हाँ। इंवेस्टिंग आपको ढेर सारा पैसा और वो सब कुछ दे सकती है जो आप चाहते हैं।

इंवेस्टिंग आपको पैसे कमाने का मौका देती है और बदले में आपका टाइम भी ज़्यादा नहीं मांगती। आप प्रॉफ़िट कमाते-कमाते अपने दूसरे काम भी कर सकते हैं। हालांकि इंवेस्टिंग सबकी चॉइस नहीं होती लेकिन अगर आप अमीर बनना चाहते हैं तो आपको इसके बारे में सीरियसली सोचना चाहिए। लॉन्ग टर्म स्टॉक्स में इन्वेस्ट करके आप काफी पैसा कमा सकते हैं क्योंकि आपका पैसा हर साल के हिसाब से कंपाउंड होता जाता है।

इंवेस्टिंग के आपको कईं फायदे मिलते हैं। ये हैं इसके 6 मेन फायदे जो आपको इंवेस्ट करने के लिए कंविन्स कर सकते हैं। ये सारे फायदे उन फायदों से कंपेयर किए जाएंगे जो आपको एक बिजनेस से मिलते हैं। लेकिन आपको भी खुले दिमाग से दोनों के फायदे सुनने के लिए तैयार रहना होगा।

सबसे पहले तो इंवेस्टिंग आपको एक मौका देती है किसी बिजनेस का एक हिस्सा पाने की और वो भी बिना उस बिजनेस को चलाए। ये आपको उस हिस्से पर दावा करने का मौका देती है जिसकी वैल्यू आपके स्टॉक्स के बराबर होती है।

जब आप कोई बिजनेस चलाते हैं तो आप उस कंपनी के 100% ओनर होते हैं। लेकिन इसके साथ ही सारे डिसिजन लेने और स्ट्रेटेज़ीज बनाने की जिम्मेदारी भी आपकी ही होती है। इंवेस्टिंग आपको बिना डायरेक्टली इनवॉल्व हुए मालिकाना हक देती है। ये किसी के लिए भी पैसिव इनकम कमाने का सबसे बढ़िया तरीका हो सकता है।

दूसरी बात, इंवेस्टिंग आपको अपने रिस्क डाइवर्सीफ़ाई करने का मौका देती है। आपको अपना सारा पैसा किसी एक कंपनी में नहीं लगाना है। आप इसे बाँटकर कईं कंपनी में लगा सकते हो जिससे आप रिस्क को कम से कम कर सकते हैं। खुद का बिजनेस चलाने का मतलब है कि अपना सारा पैसा कैपिटल के तौर पर एक कंपनी में लगाना और ये उम्मीद रखना कि वो कंपनी आगे चलकर सक्सेसफुल होगी। लेकिन इन्वेस्टिंग में आप अपनी सेविंग्स का सिर्फ एक हिस्सा इन्वेस्ट करते हो और यही हिस्सा आपको हायर रिटर्न दे सकता है जोकि इस बात पर डिपेंड करता है कि आप किस टाइप के स्टॉक्स में इन्वेस्ट कर रहे हो।

जैसे मान लो आपने अपनी लाइफ सेविंग्स में से $140,000 खुद के एक स्टार्ट-अप केमिकल कंपनी में लगाया या फिर आप अपनी सेविंग्स का सिर्फ $70,000 किसी बड़ी केमिकल कंपनी जैसे विनति ऑर्गनीक्स में इन्वेस्ट करते हो।

अपने स्टार्ट-अप से प्रॉफ़िट कमाने में आपको शायद कुछ साल लगें पर अगर आप पहले से जमी जमाई किसी बड़ी कंपनी में पैसा लगाते हैं तो आप कुछ महीनों में ही प्रॉफ़िट कमा सकते हैं।

अपने ऑप्शन डाइवर्सीफ़ाई करने में जो चीज़े शामिल हैं, वो है विनति जैसी कंपनीज़ के अलावा एप्पल या नाईकी जैसे बड़े brands में इन्वेस्ट करना। जिन कंपनीज़ में आप इन्वेस्ट करते हैं अगर वो अलग-अलग फील्ड से हों तो लॉस होने के चांसेस कम से कम हो जाते हैं क्योंकि अगर एक कंपनी से लॉस हो भी गया तो दूसरी से आपको प्रॉफ़िट हो सकता है।

इन्वेस्टिंग का तीसरा फायदा है कि ये आपको अपने डिसिशन पर ज़्यादा कंट्रोल रख पाने की एबिलिटी देता है। इसमें आपको वो लडाइयां लड़ने की ज़रुरत नहीं है जो आप लड़ना नहीं चाहते हैं। आप खुद चूज़ कर सकते हैं कि कौन सा मैच खेलना है और कौन सा जाने देना है। जब आप खुद का बिजनेस करते हैं तो आपको हर हाल में उसे मैनेज करना पड़ता है फ़िर चाहे नुकसान हो या फायदा। आप अपनी पूरी लाइफ सेविंग एक कंपनी में लगा देते हैं और आपको इस बात की पूरी कोशिश करनी पड़ती है कि कंपनी फ़्यूचर में अच्छा परफ़ॉर्म करे। जब आप इन्वेस्ट करते हो तो आप सिर्फ अच्छे रिटर्न और एसेट्स वाली कंपनीज़ ही चूज़ कर सकते हो। उनके अच्छे या बुरे टाइम में आपको उनके साथ खड़े होने की ज़रूरत नहीं है। आप जब चाहे अपने स्टॉक्स खरीद या बेच सकते हो।

फ़ोर्थ एडवांटेज है ज़्यादा से ज़्यादा मौकों का फायदा उठाना। जब आप इन्वेस्टमेंट का डिसिशन लेते हो तो आप किसी भी प्रॉफिटेबल कंपनी को चूज़ करके तुरंत उसके स्टॉक्स खरीद सकते हो। लेकिन अगर आप खुद का बिजनेस कर रहे हैं तो आप सिर्फ अपने बिजनेस से जुड़े रहेंगे। आप दूसरे वेंचर या मौकों की तलाश में नहीं रहते क्योंकि आप सिर्फ अपने बिजनेस तक ही सीमित रह जाते हैं।

इन्वेस्टिंग आपके लिए चीजों को काफी आसान बना देती है क्योंकि आप कभी भी अपना पोर्टफोलियो बढ़ा सकते हैं। आपको बस एक कंपनी के भले-बुरे के बारे में नहीं सोचना पड़ता। आप इन्वेस्ट कर सकते हैं, दूसरो के बारे में रिसर्च कर सकते हैं, किसी और कंपनी में इन्वेस्ट कर सकते है और यही बार-बार रिपीट कर सकते हैं।

और अंत में बात करें तो इन्वेस्टिंग आपको खुद का बिजनेस चलाने की तुलना में कम कमिटमेंट देती है। जैसा कि हमने पहले भी बताया, एक बिजनेस खड़ा करने का मतलब है कि आपको काफी बड़ा अमाउन्ट लगाना पड़ेगा। आपको ही सारे नफ़े-नुकसान उठाने होंगे और प्रॉफ़िट भी आप ही कमाएंगे। जबकि इन्वेस्टिंग में चीज़े एकदम सिंपल और क्लियर होती है। आप किसी भी वक्त खरीद या बेच सकते हैं और कुछ ही दिनों में आपके बैंक अकाउंट में पैसा आ जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये ज़्यादा लिक्विड इनवेस्टमेंट है।

इन्वेस्टिंग करना या खुद का बिजनेस चलाना , या फिर दोनों करना, ये आपकी चॉइस पर डिपेंड करता है। तो अब टाइम आ गया है कि आप अपनी स्किल्स को एसेस करें और तय कर लें कि आपके अंदर वो चीज़ है या नहीं जो आपको एक बिजनेस चलाने की काबिलियत देती है, या फिर आपको बस इंवेस्टिंग तक सीमित रहना चाहिए।

Intelligent Investing is All About Understanding Intrinsic Value

इन्वेस्टिंग के फायदे के बारे में हम पहले ही चर्चा कर चुके हैं। तो चलिए अब इसके मैकेनिक्स पर बात करते हैं।

इन्वेस्टिंग कमज़ोर दिल वालों के लिए बिल्कुल नहीं है। ये उन लोगों के लिए भी नहीं है जो तुरंत बहुत सारा पैसा कमाने का सपना देखते हैं। आपको अपने अंदर वो राईट स्किल्स और नॉलेज़ डेवलप करनी पड़ेगी जो आपको इन्वेस्टिंग से बहुत ज़्यादा पैसे कमाने में मदद कर सके। ज़्यादातर लोग इन्वेस्ट करते वक्त अपने दिल की बात सुनते हैं।

इनवेस्टमेंट करते वक्त वो अपने ईमोशन्स में आ जाते हैं और अपनी फीलिंग्स के हिसाब से डिसिशन लेते हैं। लेकिन इंटेलिजेंट इन्वेस्टर्स ये गलती कभी नहीं करते। वो पढ़ते हैं, एनलाईज़ करते हैं और जो सीखते हैं, उसके बेसिस पर डिसिशन लेते हैं। ईमोशन्स झूठ बोलते हैं। डेटा इन्फॉर्मैशन आपको वहाँ ले जाएगा जहां आप जाना चाहते हैं।

लोगों के ओवरऑल डिसिशन, स्टॉक मार्केट में ज़्यादातर प्राइस को आसानी से इन्फ़लुएंस करते हैं। अगर कईं लोग एक साथ में सेम स्टॉक ले रहे हैं तो प्राइस बढ़ जाते हैं। अगर उनमें से ज़्यादातर अपने स्टॉक्स बेच देंगे तो उस स्टॉक के प्राइस गिर जाएंगे। इसके अलावा कंपनीज़ perceived स्टॉक प्राइस को भी आसानी से मेनीपुलेट कर सकते हैं। वो अपने स्टॉक्स को और ज़्यादा desirable बना सकते हैं जिसके चलते इन्वेस्टर्स उस कंपनी में अपना पैसा लगाने के लिए लाईन लगाए खड़े हो जाएँ।

इंवेस्टिंग करते वक्त पहला काम आपको ये करना है कि कंपनी के फ़ाईनेंशियल स्टेटमेंट्स को एनालाईज़ करना है। लॉंग टर्म इन्वेस्टर के तौर पर आपको पता होना चाहिए कि आप किस तरह की कंपनी में इन्वेस्ट कर रहे हैं और उनका मैनेजमेंट प्रॉब्लम को कैसे हैंडल करता है।

कंपनी जिस फ़ील्ड में है, उसमें उसकी मैनेजमेंट स्किल्ड और नॉलेज़ेबल होनी चाहिए। आपके इनवेस्टमेंट की वैल्यू तभी बढ़ पाएगी जब कंपनी पैसा कमाएगी। याद रहें, इन्वेस्टिंग का मतलब है कि आपका उस कंपनी के एक हिस्से में हक बन जाता है। आपको ये ध्यान रखना होगा कि वो फ़्यूचर में अच्छा परफ़ॉर्म करे ताकि आपको अच्छे रिजल्ट की गारंटी मिल जाए।

एक फ़ाईनेंशियल स्टेटमेंट को एनालाईज़ करना सिर्फ कुछ नंबर्स पर नज़र डालने से कहीं ज़्यादा होता है। आपको देखना पड़ेगा कि कैसे कंपनी की मैनेजमेंट अपने एसेट्स को यूज़ करती है और कैसे वो अपने ओवरऑल ऑपरेशन को फ़ाईनेन्स करती है।

ये ध्यान रहे कि आपको सिर्फ वही कंपनीज़ चूज़ करनी है जो इन्टरनली जेनरेटेड रिसोर्सेज यूज करें बजाए उन कंपनीज़ के जो फंडिंग के आउटसाइड सोर्सेज़ पर डिपेंडेंट रहते हैं। अगर कंपनी आउटसाइड फंडिंग पर डिपेंडेंट हो गई है तो इससे मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं क्योंकि उनका बिज़नस पहले जैसा प्रॉफिटेबल नहीं रहेगा इसलिए कंपनी नए इन्वेस्टर्स के पैसे पर डिपेंडेंट हो जाती है ताकि उसके ऑपरेशन बिना किसी रूकावट के चलते रहें। आपको कंपनी के intrinsic वैल्यू को देखना चाहिए नाकि अर्निंग per शेयर को। वो इसलिए क्योंकि intrinsic वैल्यू कंपनी की असली वैल्यू बताती है जो उनके एक्चुअल अर्निंग्स पर बेस्ड होती है नाकि वो वैल्यू जो मैनेजमेंट बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने की कोशिश करता है।

intrinsic वैल्यू कंपनी की बुक वैल्यू को केलकुलेट करती है और इसके अलावा फ़्यूचर में इसकी कैश फ्लो जेनरेट करने की एबिलिटी को भी देखती है। असल में ये वो प्राइस है जो कंपनी की आज की वर्थ और इसके कल के सारे प्रोजेक्टेड अर्निंग्स के बारे में बताती है।

जो कंपनी अपने intrinsic वैल्यू से कम में सेल कर रही हैं, वही ग्रेट ईन्वेस्ट्मेंट मानी जाएंगी। इसका मतलब है कि मार्केट में फिलहाल वो स्टॉक अंडरवैल्यूएड है और फ़्यूचर में ऊपर जाएगा। अपने intrinsic वैल्यू से ऊपर स्टॉक्स ट्रेडिंग का मतलब है कि मार्केट स्टॉक को ओवरवैल्यू कर रहा है, जिसके पीछे वजह शायद मेनीपुलेटेड फ़ाईनेंशियल स्टेटमेंट हो सकता है।

ऐसे ओवरवैल्यूएड इन्वेस्टमेंट्स को अवॉइड करो और इनमें कभी भी ट्रेडिंग मत करो। इसकी वजह ये है कि ऐसी कंपनी के स्टॉक प्राइस अपनी intrinsic वैल्यू की वजह से गिर जाते हैं जिसके चलते आपका सारा पैसा आखिर में डूब जाता है।

नए स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने से पहले हमेशा अलर्ट रहो और पूरी जानकारी हासिल करो। इससे पहले हमने बात की थी कि intrinsic वैल्यू से कम में बेचने वाली कंपनीज़ सबसे ग्रेट इन्वेस्टमेंट्स होती हैं क्योंकि वो डिस्काउंटेड प्राइस पर होती है।

हालांकि आपको हमेशा intrinsic वैल्यू के साथ अमाउन्ट को कंपेयर करना चाहिए। अगर आप हर डिसकाउंटेड स्टॉक में इन्वेस्ट करने लगे तो हो सकता है कि आप किसी ऐसी कंपनी मे इन्वेस्ट कर बैठो जो कल को डूब सकती है। लोअर स्टॉक प्राइस वाले कुछ स्टॉक्स कल के दिन और ज़्यादा गिरेंगे।

इसके पीछे कईं वजहें हो सकती हैं जैसे कि खराब मैनेजमेंट, पब्लिक इश्यूज़ वगैरह। वजह चाहे कोई भी हो लेकिन आपको ऐसी कंपनी से दूर रहना चाहिए जो डूब रही हो और ऐसा करने का एक ही तरीका है कि आप पहले उनके स्टेटमेंट्स को चेक कर लें और एनालाईज करें कि प्रोजेक्टेड अर्निंग्स रीजनेबल हैं या नहीं।

The Holy Grail of Long-Term Value Investing

लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग वो नहीं है जो शायद सब सोचते हैं। कईं लोग शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग पसंद करते हैं क्योंकि इसमें इन्वेस्टर्स को जल्दी और आसानी से पैसे कमाने का मौका मिल जाता है।

हालांकि लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग की बात करें तो ये आपको कुछ सालों में अमीर बनने का मौका देता है। अगर आप कम्पाउडिंग का कॉन्सेप्ट समझते हैं तो आप लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग में इसे काम करते हुए देख सकते हैं।

“ लॉन्ग टर्म” के नाम से ही बहुत से लोग डर जाते हैं। वो इसलिए क्योंकि उन्हें किसी एक कंपनी के साथ कमिटेड रहना मुश्किल लगता है और उन्हें फ़्यूचर के अनजान हालात के बारे में सोचकर ही डर लगता है।

लेकिन अगर सही तरीके से किया जाए तो लॉन्ग टर्म ट्रेडिंग आपको किसी और तरह के इंनवेस्टमेंट से ज़्यादा फायदा दे सकता है। वो इसलिए क्योंकि कंपाउंडिंग केरेक्टरस्टिक्स जो इसके साथ आते हैं वो आपके पैसे को कईं गुना बढ़ाकर बड़ी रकम में बदल देते हैं।

किसी कंपनी में इन्वेस्ट करने से पहले आपको तीन चीजों का ध्यान ज़रूर रखना चाहिए। ये हैं – इन्वेस्टेड कैपिटल (ROIC) पर रिटर्न, अर्निंग्स पर शेयर (EPS) और ग्रोथ रेट। ये तीन इंडीकेटर्स हैं जो आपको बताएंगे कि कोई कंपनी फ़्यूचर में नीचे गिरेगी या ऊपर जाएगी। ये आपको डिसाइड करने में हेल्प करेंगे कि किसी खास कंपनी में आपको इन्वेस्ट करना चाहिए या नहीं।

एक कंपनी का (ROIC) बहुत कुछ बताता है कि कंपनी अपने एसेट्स कैसे मैनेज करती है। (ROIC) बता सकता है कि कंपनी कैश में डूब रही है या कर्जे में। अगर कंपनी का (ROIC) इसके कॉस्ट ऑफ़ कैपिटल से ज़्यादा है तो इसका मतलब कि वो अच्छा कर रही है और काफी अच्छे से अपने एसेट्स को मैनेज कर पा रही है।

(ROIC) का कॉन्सेप्ट समझने के लिए यहाँ एक example लेते हैं। मान लो एक कंपनी जिसका एवरेज़ कॉस्ट ऑफ़ कैपिटल है 8% और (ROIC) है 15%, तो वो उस कंपनी के मुकाबले ज़्यादा प्रॉफिटेबल मानी जाएगी जिसका कॉस्ट ऑफ़ कैपिटल 12% और (ROIC) 15% है।

इन दोनों कंपनीज़ में से पहली कंपनी का प्रॉफ़िट मार्जिन 7% है जबकि दूसरी का प्रॉफ़िट मार्जिन 3% है। सेम (ROIC) होने के बावजूद इन दोनों कंपनीज़ में फ़र्क है। पहली कंपनी आपको एक इन्वेस्टर के तौर पर ज़्यादा रिटर्न देगी जबकि दूसरी सिर्फ 3% दे पाएगी। दूसरी कंपनी का कॉस्ट ऑफ़ ऑपरेशन भी ज़्यादा है इसलिए वो कम पैसा कमाएगी।

अर्निंग्स पर शेयर भी एक और इंपोर्टेन्ट इंडीकेटर है कि बिजनेस सक्सेसफुल होगा या नहीं। लेकिन इसे हमेशा ग्रोथ रेट से कंपेयर किया जाना चाहिए। हाई EPS कंपनी के लिए अच्छा होता है। हालांकि अगर इसे लो ग्रोथ रेट से जोड़कर देखा जाए तो इससे ये पता चलता है कि कंपनी सिर्फ शॉर्ट टर्म के लिए प्रॉफिटेबल है।

अब मान लो दो कंपनी है जिनका अर्निंग पर शेयर सेम है। कंपनी A का ग्रोथ रेट 15% है जबकि कंपनी B का सिर्फ 6%। अब अगर आप कंपनी B में 40 साल के लिए भी इन्वेस्ट करते हैं तो आपको जो प्रॉफ़िट मिलेगा वो कंपनी A के एक हिस्से के बराबर होगा। कंपनी A का हाई ग्रोथ रेट आपके इनवेस्टमेंट को फ़्यूचर में बड़े अमाउन्ट के तौर पर कंपाउंड कर देगा। कम्पाउंडिंग कितने कमाल की चीज़ है ना। इसे अगर हाई इंटरेस्ट रेट से जोड़ा जाए तो ये आपको बीस से तीस सालों में काफ़ी अमीर बना सकता है।

लॉन्ग टर्म इनवेस्टमेंट करते वक्त आपको इस बात की तरफ़ ध्यान देना चाहिए कि कंपनी अपने रिसोर्सेज कैसे यूज़ करती है। फ़ाईनेंशियल स्टेटमेंट और इंडीकेटर्स आपको काफ़ी कुछ बता सकते हैं लेकिन आपको ये भी पता होना चाहिए कि अगले कुछ सालों तक कौन लोग आपका पैसा मैनेज करेंगे।

ऐसी कंपनीज़ में इन्वेस्ट करें जो अपनी अर्निंग्स को रीइन्वेस्ट करते हों बजाए उनके जो अपने इन्वेस्टर्स को अच्छा-खासा डिविडेंड देने पर ज़ोर देते हैं। रीइनवेस्टमेंट कंपनी को फ़्यूचर में ग्रो करने और फलने-फूलने का मौका देता है। जबकि डिविडेंड सिर्फ शॉर्ट टर्म के लिए प्रॉफ़िटेबल होता है।

इसे इस तरह देखिए। किसी कंपनी के अपने प्रॉफ़िट को यूज़ करने के दो तरीके हैं। पहला तो ये कि वो अपने करंट इन्वेस्टर्स को खुश रख सकती है और दूसरा, कंपनी खुद को और प्रॉफिटेबल बनाने के लिए अपना प्रॉफ़िट यूज़ कर सकती है। एक इन्वेस्टर होने के नाते आप यही चाहेंगे कि आपको जल्द से जल्द बड़ा डिविडेंड मिल जाए। लेकिन अगर आप फ़्यूचर को ध्यान में रखे तो आप चाहेंगे कि कंपनी की वैल्यू में आगे चलकर इज़ाफ़ा हो।

1950 के दौरान की बड़ी कंपनियों में से सिर्फ 12% ही आज फॉर्चून 500 में अपनी जगह बरकरार रख पाई हैं। ज़्यादातर बड़ी कंपनियाँ उन दिनों या तो दिवालिया हो गई थी या उन्हें कुछ सालों बाद नई कंपनी ने खरीद लिया था। इन 12% में अपनी जगह बनाने वाली कंपनी में शामिल हैं फ़ाइज़र, जनरल मोटर्स, कोका-कोला, हर्षी और व्हर्लपूल।

बिजनेस के अलग-अलग फील्ड्स से आने के बावजूद इन सबने एक जैसी स्ट्रेटेजी अपनाई है और वो है अपनी अर्निंग्स को अपने ऑपरेशन में रीइन्वेस्ट करना और एक बड़ा कैपिटल वैल्यू बिल्ड करना। ये कंपनीज़ अपने बिज़नस ऑपरेशन को चलाने के लिए बाहरी fund पर डिपेंडेंट नहीं थीं यानि वो खुद से ही प्रॉफिटेबल थी। अपने प्रॉफ़िट को रीइन्वेस्ट करने से उनका पैसा सालों-साल कंपाउंड होता रहा और ज़्यादा कैपिटल का मतलब था intrinsic वैल्यू में इजाफा। बेशक उनके इन्वेस्टर्स को हर साल बड़े डिविडेंड नहीं मिले तो भी उनका इनवेस्टमेंट साल दर साल बढ़ता चला गया। लॉन्ग टर्म इन्वेस्टिंग का होली ग्रेल है एक ऐसी कंपनी ढूँढना जो हाई रिटर्न दे और उन रिटर्न को अपने ऑपरेशन में इन्वेस्ट करे। ये कंपनी और उसके इन्वेस्टर्स के ब्राईट फ़्यूचर की तरफ इशारा करता है। अगर आपको लगे कि कोई कंपनी ऐसी है तो तुरंत उसमें इन्वेस्ट कीजिए।

The Dynamic Art of Portfolio Management and Individual Position Sizing

अब जब आप जान चुके हैं कि उन कंपनीज़ को कैसे चुना जाए जिनमें आपको इन्वेस्ट करना है, तो अब टाइम आ गया है कि हम ये सीखें कि अपने इन्वेस्टमेंट को मैनेज कैसे किया जाए। इनवेस्टमेंट का मतलब सिर्फ बेस्ट कंपनी सिलेक्ट करके उसमें इन्वेस्ट करना नहीं है बल्कि ये सीखना भी है कि कितना इन्वेस्ट किया जाए और कितने स्टॉक्स खरीदे जाएँ। पोर्टफोलियो मैनेजमेंट और इंडीविजुअल पोजीशन साईज़िंग एक इंटेलिजेंट इन्वेस्टर होने के अहम हिस्से हैं। आपको सोच-समझकर अपना पोर्टफोलियो मैनेज करना होगा और आपको ये पता होना चाहिए कि आपको हर कंपनी के टोटल कितने स्टॉक्स खरीदने हैं।

एक स्टॉक पोर्टफोलियो को आप एक फ्रूट बास्केट से कंपेयर कर सकते हैं। आपका पोर्टफोलियो एक बास्केट है और जो स्टॉक्स आपने खरीदे हैं वो फ्रूट्स हैं। आपके पोर्टफोलियो में आपकी पसंद के कईं अलग-अलग स्टॉक्स हो सकते हैं। आपका गोल है एक ऐसा पोर्टफोलियो रखना जिसमें आपकी सारी इन्वेस्टमेंट डाइवर्सीफ़ाई हो जाए और एक इन्वेस्टर के तौर पर आपका रिस्क कम से कम हो। हालांकि अपने इनवेस्टमेंट को डाइवर्सीफ़ाई करने का भी लिमिट होता है।

डाइवर्सीफ़िकेशन का मतलब है अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सीफ़ाई करना। इसमें आप अलग-अलग कंपनीज़ के मल्टीपल स्टॉक्स खरीदते हो। एक डाइवर्स पोर्टफोलियो एक इंडीविजुअल इन्वेस्टमेंट का रिस्क कम कर देता है क्योंकि ये आपको अपने पैसे को बहुत सारी कंपनीज़ में डिवाइड करने का मौका देता है। जैसे अगर आपको कंपनी A से घाटा हुआ और कंपनी B से मुनाफ़ा तो आपका ज़्यादा नुकसान नहीं होगा और अगर दोनों कंपनीज़ से आपको फायदा होता है तो आप विन-विन सिचुएशन में रहेंगे। ज़्यादातर इन्वेस्टर्स क्यों अपना पैसा डाइवर्सी करते हैं इसके पीछे वजह ये है कि मार्केट कभी भी अनस्टेबल और नाज़ुक हो सकती है।

कुछ स्टॉक्स ग्रेट इन्वेस्टमेंट साबित होते हैं लेकिन मार्केट की वजह से ईज़ीलि अफेक्ट हो जाते हैं। उनके प्राइस लगातार ऊपर-नीचे होते रहते हैं। इसलिए अच्छा रहेगा अगर आप उन्हें ज़्यादा स्टेबल स्टॉक इन्वेस्टमेंट्स के साथ पेयर करें।

दो टाइप के रिस्क होते हैं जो ज़्यादातर इन्वेस्टर्स को फेस करने पड़ते हैं, ये है मार्केट रिस्क और बिजनेस रिस्क। मार्केट रिस्क मार्केट में ही छुपे होते हैं जिन्हें कंपनी कंट्रोल नहीं कर सकती। जबकि बिजनेस रिस्क वो हैं जो इंडीविजुअल कंपनीज़ फेस करती हैं जिसके चलते उनके ऑपरेशन रुक जाते हैं और वो दिवालिया होने के कगार पर पहुँच जाते हैं। अच्छी कंपनीज़ में बिजनेस रिस्क काफी लो होता है जबकि जिनके फ़ाईनेंशियल स्टेटमेंट्स डाउटफुल होते हैं, उनमें रिस्क काफी हाई होता है।

अलग-अलग इंडस्ट्रीज़ के बिजनेस रिस्क भी अलग-अलग होते हैं जो उनके मार्केट पर डिपेंड करता है। इसलिए डाइवर्सीफ़िकेशन ज़रूरी है। अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सीफ़ाई करके आप किसी भी तरह के फ़्यूचर बिजनेस रिस्क को कम कर सकते हैं। एक इन्वेस्टर के तौर पर या तो आप डाइवर्सीफ़ाईड या फिर कन्सन्ट्रेटेड पोर्टफोलियो रख सकते हैं। यानी एक ऐसा पोर्टफोलियो रख सकते हैं जिसमें कईं स्टॉक्स हो या फिर मार्केट से एक या दो स्टॉक्स ही मेंटेन कर सकते हैं.

जैसा कि हमने पहले भी बताया है, एक डाइवर्सीफ़ाई पोर्टफोलियो ओवरऑल रिस्क को कम करने में काफी मददगार साबित हो सकता है। जबकि एक कन्सन्ट्रेटेड पोर्टफोलियो आपको हायर वैल्यू और डिविडेंड दे सकता है। हालांकि आपके पोर्टफोलियो की क्म्पोजिशन इस बात पर डिपेंड नहीं करनी चाहिए कि आप दूसरों से क्या सुनते हैं या फिर आपको क्या ठीक लगता है। ये आपके फ़ाईनेंशियल गोल्स और ज़रूरतों के हिसाब से प्लान होना चाहिए। अगर आप हायर रिटर्न चाहते हैं तो आपके लिए एक कन्सन्ट्रेटेड पोर्टफोलियो ज़्यादा बेहतर रहेगा। लेकिन अगर आप सेफ इन्वेस्टिंग साइड पर हैं तो एक डाइवर्सीफ़ाईड पोर्टफोलियो आपकी जरूरतों के हिसाब से फिट बैठेगा।

इन्वेस्टर्स को अपना स्टॉक पोर्टफोलियो बहुत ज़्यादा डाइवर्सीफ़ाई नहीं करना चाहिए। डाइवर्सीफ़िकेशन् के फायदे कब खत्म हो जाएंगे, इसकी भी एक खास लिमिट होती है। अच्छे डाइवर्सीफ़िकेशन् में 8-15 कंपनीज़ आती हैं। इससे ज़्यादा कुछ भी आपके रिवॉर्ड को न्यूट्रीलाईज़ कर देगा जो आपको उन स्टॉक्स से मिलने वाले होते हैं। आपका इन्वेस्टमेंट मार्केट के टोटल परफॉरमेंस को दिखाएगा नाकि उन कंपनीज़ को जिनमें आपने इन्वेस्ट किया है।

इंडीविजुअल पोजीशन साईज़िंग एक और ज़रूरी पॉइंट है जिसे आपको इन्वेस्टिंग से पहले ही करना पड़ेगा। आपको पता होना चाहिए कि कितना पैसा काफ़ी है और कितने अमाउन्ट तक मैक्सिमम आपको इन्वेस्ट करना चाहिए।आपकी साईज़िंग आपके गोल पर ज़्यादा डिपेंड करती है बजाए इसके कि आप मार्केट से क्या एनालाइज़ करते हैं। साईज़िंग करते वक्त आपका हर इनवेस्टमेंट मायने रखता है। आपको इतना पैसा लगाना चाहिए कि आपके प्रॉफ़िट में फ़र्क पड़े। सक्सेसफुल इन्वेस्टर्स की पहचान इस बात से तय नहीं होती कि उनके कितने गेस सही निकले या कितनी कंपनीज़ में इन्वेस्ट करके उन्हें फायदा हुआ बल्कि इस बात से है कि अपने हर गेस से उन्होंने कितने पैसे कमाए।

इन्वेस्टिंग एक गेसिंग गेम है जो फैक्ट्स और डेटा पर बेस्ड होता है। हर इनवेस्टमेंट के साथ आप 100% श्योर नहीं हो सकते, लेकिन आप ये उम्मीद और दुआ ज़रूर कर सकते हैं कि आपका हर गेस सही निकले। आपका पोजीशन साईज़िंग इतना होना चाहिए कि आपके गेस का आपको फायदा मिले। अगर नहीं तो फिर इन्वेस्टिंग करने का मतलब ही क्या है?

Conclusion

सबसे पहले, आपने एक लर्निंग मशीन बनने के बारे में जाना। सक्सेसफुल बनने का एक ही तरीका है कि आप रोज़ कुछ ना कुछ नया सीखते रहें। सीखने का बेस्ट तरीका है पढ़ना। दुनिया के सबसे सक्सेसफुल लोग अपने डेली रूटीन का बड़ा हिस्सा पढ़ने मे गुज़ारते हैं। रोज़ के 25 पेज से शुरूवात करते हुए इसे अपनी आदत मे शुमार कर लीजिए।

दूसरा, आपने डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन के बारे में जाना। जैसा कि कहावत है, ‘अच्छी चीजें उन्हीं को मिलती हैं जो सब्र रखते हैं’। आप डीलेड ग्रेटीफ़िकेशन को हर फील्ड में यूज कर सकते हैं जैसे स्टडी, सेविंग और खुद को इम्प्रूव करने में। जब आप कन्सिस्टन्ट रहेंगे तो आपको बहुत जल्द ग्रेट रिजल्ट भी देखने को मिलेंगे।

थर्ड, आपने इन्वेस्टिंग के पावर के बारे में जाना। किसी बिजनेस में इन्वेस्ट करके आप उसके एक हिस्से के हकदार बन जाते हैं और आप अपने रिस्क को डाइवर्सीफ़ाई कर सकते हैं और कम मेहनत मे ज़्यादा पैसे कमा सकते हैं। ये पैसिव इनकम कमाने का बेस्ट जरिया है। आप छोटी रकम से शुरुवात करके आगे फ़्यूचर में अमाउन्ट बढ़ा सकते हो और अगर आपने इंटरेस्ट को टाइम के साथ कंपाउंड होने दिया तो आपका पैसा हमेशा बढ़ता रहेगा।

फ़ोर्थ, आपने intrinsic वैल्यू के बारे में जाना। इन्वेस्टिंग से पहले आपको ये देखना होगा कि स्टॉक की intrinsic वैल्यू क्या है। ये टेक्नीक आपको उस वक्त बैटर डिसिजन लेने में मदद करेगी जब आप इनवेस्टमेंट के लिए कंपनी चूज़ कर रहे होंगे। इससे आप डिसाइड कर सकते हैं कि कोई स्टॉक ओवरवैल्यूएड है या नहीं और अपनी फॉरकास्टेड अर्निंग्स के बेस पर बढ़ेगा या घटेगा.

फ़िफ़्थ, आपने लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के होली ग्रेल के बारे में जाना। किसी कंपनी में लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट करने से पहले आपको तीन इंडीकेटर्स देखने चाहिए – रिटर्न ऑन इंवेस्टेड कैपिटल, अर्निंग्स per शेयर और ग्रोथ रेट। सिर्फ उन्हीं कंपनीज़ में इन्वेस्ट करें जो अपना ज़्यादा पैसा अपने ऑपरेशन पर रीइन्वेस्ट करते हैं। अगर इसे हाई रिटर्न से जोड़ दिया जाए तो कंपनी और उसके इन्वेस्टर्स के लिए ये एक ब्राईट फ़्यूचर की निशानी है।

और लास्ट में आपने पोर्टफोलियो मैनेजमेंट और इंडीविजुअल पोजीशन साईज़िंग के बारे में जाना। एक डाइवर्सीफ़ाईड पोर्टफोलियो आपको पूरे रिस्क को एकदम ना के बराबर करने में मदद करती है। इससे आप अपने पैसे की सेफ़्टी से समझौता किए बिना हाई रिटर्न मेंटेन कर पाते हैं। हर इनवेस्टमेंट में आप जो पैसा लगाते हैं वो आपके एक्सपेक्टेड रिटर्न से मैच होना चाहिए।

लाइफ का अल्टिमेट सीक्रेट है कंपाउंडिंग। आपकी डेली चॉइसेज़, हैबिट्स और आपके एक्शन आज से दस या बीस साल बाद आपको काफी बढ़िया रिजल्ट देंगे। अगर आप सक्सेसफुल होना चाहते हैं तो आज से ही शुरुवात करें और चीजों को स्टेप बाये स्टेप लेते हुए आगे बढ़े। कंपाउंडिंग की पावर आपकी लाइफ चेंज कर सकती है बशर्ते कि आप रोज़ लगातार सीखते रहें, इमप्रूव करते रहें और डटे रहें।

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