The CEO Next Door Book Summary in Hindi – साल 2017 में रिलीज हुई किताब “The CEO Next Door” ये बताती है कि एक अच्छा सी.ई.ओ और ग्रेट सी.ई.ओ में क्या अंतर होता है. इस किताब को लिखने के लिए लेखक ने काफी ज्यादा रिसर्च भी की थी.
क्या आपको कॉर्पोरेट में सक्सेस चाहिए, क्या आप सी.ई.ओ के सफर को जानने के इक्छुक है या फिर क्या आप एक ऐसे बिजनेस प्रोफेशनल है जिन्हें सक्सेस के मन्त्र को समझना है तो ये बुक आपके लिए है।
लेखक
इस किताब का लेखन दो लेखकों ने किया है. जिनका नाम Elena Botelho और Kim Powell है. दोनों लेखकों को बिजनेस का अच्छा-ख़ासा एक्सपीरियंस भी है. बड़े-बड़े बिजनेस लीडर्स की पर्सनालिटी और मेंटालिटी पर इन दोनों ने काफी ज्यादा रिसर्च भी किया है.
The CEO Next Door Book Summary in Hindi – आम लोगों को वर्ल्ड क्लास लीडर्स बनाने वाली बातें
सी.ई.ओ का जन्म नहीं होता है, उन्हें बनाया जाता है
आज के समय में आप किसी भी सी.ई.ओ को देखकर क्या सोचते हैं? यही ना कि इसके पास तो महंगी गाड़ी है और शानदार लाइफ स्टाइल है. लेकिन क्या आपको पता है कि उस पोजीशन पर बैठे हुए इंसान का बैक ग्राउंड इतना मज़बूत नहीं था. ना ही उसके पास कभी महंगी गाड़ी हुआ करती थी और ना ही उसने कभी ऐसी लाइफ स्टाइल को जिया था.
ज़्यादातर केस में तो ये भी देखने को मिलता है कि हायर पोजीशन में बैठे हुए इंसान के पास अच्छी डिग्री भी नहीं होती है. अब यहाँ सवाल यही उठता है कि आखिर वो इस पोजीशन में पहुंचा कैसे? इस समरी को पढ़ने के बाद आपके मन के सभी सवालों का जवाब आपको मिल जायेगा.
हम लोगों में से कई लोग ऐसा ही सोचते हैं कि किसी भी कंपनी को चलाने वाला कोई स्पेशल आदमी होता है. वो नार्मल आदमी से अलग होता है. कई तो ऐसा भी सोचते हैं कि सी.ई.ओ बनने के लिए आपके पास काफी महंगे कॉलेज की डिग्री होनी चाहिए. या फिर आपके पास कोई बहुत बड़ी पहुच होनी चाहिए. लेकिन इस किताब के माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं कि ये सब बस और बस गलत फहमी हैं.
एक स्मार्ट प्रोजेक्ट था जिसके ऊपर इस किताब के लेखकों ने काम किया था. उस प्रोजेक्ट में 2600 सी.ई.ओ के ऊपर रिसर्च की गई थी. उस रिसर्च में कई चौकाने वाली बातें निकलकर सामने आई थीं.
उनमे से एक बात ये थी कि अधिकत्तर सी.ई.ओ तो कंपनी के नार्मल कर्मचारी ही थे. समय के साथ उन्होंने खुद के अंदर लीडरशिप क्वालिटी को पैदा किया था. इसी के साथ 70 प्रतीशत से ज्यादा सी.ई.ओ ने इस बात को स्वीकार किया था कि उनका कभी सपना भी नहीं था कि वो इस पोजीशन में काम करेंगे. उन्होंने कहा कि जब उन्होंने अपने काम की शुरुआत की थी. तब उन्होंने इस बारे में कुछ भी नहीं सोचा था.
यहाँ पर डॉन स्लेगर का एग्जाम्पल लेते हैं. वो इस समय अमेरिका की नामी कंपनी के सी.ई.ओ हैं. अगर उनके एजुकेशन की बात करें तो उन्होंने कभी भी कॉलेज का मुंह तक नहीं देखा है. लेकिन इस समय वो अमेरिका के नम्बर एक सी.ई.ओ हैं. उनको ये उपाधि ग्लास डोर वेबसाइट ने दी है. इस वाकये से ये बात तो साबित हो जाती है कि सी.ई.ओ बनने के लिए ज़रूरत नहीं है कि आपके पास कोई लम्बी चौड़ी डिग्री ही हो. कुछ स्किल्स होती हैं. जिनके ऊपर आपको काम करना पड़ता है. उन स्किल्स को आपको खुद के अंदर समय के हिसाब से डेवलप करना पड़ता है.
इसी के साथ उस सर्वे में ये भी कहा गया था कि सी.ई.ओ बनने के लिए आपको जीनियस होना भी ज़रूरी नहीं होता है.
एक स्टेटिक्स आपको बताते हैं. अगर हम फार्च्यून 500 कंपनी की बात करें तो मात्र 7 प्रतीशत ही ऐसे सी.ई.ओ हैं. जिनके पास अच्छे स्कूल की डिग्री है. इसी के साथ 8 प्रतीशत तो ऐसे सी.ई.ओ हैं. जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी कॉलेज अटेंड नहीं किया था.
फैसले लेने की क्षमता बहुत कुछ तय करती है
इससे पहले वाले अध्याय में हमने पढ़ा है कि सी.ई.ओ बनने के लिए कॉलेज डिग्री की भी ज़रूरत नहीं होती है. इसी के साथ इस अध्याय में हम समझेंगे कि इंटेलिजेंट होना भी ज़रूरी नहीं होता है.
यहाँ तक कि ये भी देखा गया है कि जिन सी.ई.ओ का हाई आई क्यू होता है. उन्हें इनफार्मेशन पैरालिसिस की तरह ट्रीट किया जाता है. उनको इनफार्मेशन पैरालिसिस इसलिए कहा गया है क्योंकि वो किसी भी फैसले में पहुँचने से पहले बहुत ज्यादा समय ले लेते हैं. एक सी.ई.ओ को दिन भर में कई सारे इवेंट को अटेंड करना पड़ता है. उसे कई सारी मीटिंग के लिए फैसले लेने पड़ते हैं.
इसलिए ये बहुत ज्यादा ज़रूरी हो जाता है कि आप सही और सटीक के साथ ही साथ जल्दी फैसला भी लें. उस फैसले को लेने के साथ ही साथ आपके अंदर ये काबिलियत होनी चाहिए कि आप उस फैसले को बैक भी कर सकें.
यहाँ पर स्टीव गोर्मन का एग्जाम्पल लिया जा सकता है. उन्होंने एक बस कंपनी को टेक ओवर किया था. उस समय वो कंपनी काफी ज्यादा घाटे में थी. अब उनके सामने दो रास्ते थे. पहला कि उसे बंद कर दें या बेच दें. और दूसरा कि उसके किराए को बढ़ा दें. गोर्मन ने जल्दी फैसला लेते हुए, अमेरिका के मैप के अनुसार उस जगह से बस सर्विस बंद कर दी जहाँ की जनसंख्या कम थी. इसका असर क्या हुआ था? इसका असर ये हुआ था कि 4 साल के अंदर ही कंपनी फायदे में आ गयी थी.
इसलिए गोर्मन की ही तरह अपने बिजनेस के लिए विनिंग फार्मूला की तलाश करिए. एक बार जब वो मिल जाए तो आप उस फैसले के ऊपर अडिग रहने की कोशिश करिए.
इसलिए कहा भी गया है कि सी. ई. ओ बहुत होशियार हों ना हों. लेकिन उनके पास जल्दी से फैसला लेने की क्षमता होनी चाहिए. जितनी जल्दी आप अपनी इस क्षमता के ऊपर काम करने लगेंगे. उतनी ही जल्दी आपको सफलता भी मिलने लगेगी.
किसी भी सी.ई.ओ की ज़िन्दगी में फैसले लेने की क्षमता का बहुत बड़ा योगदान होता है.
फेवरेबल रिजल्ट्स चाहिए तो स्टेक होल्डर्स को समझने की कोशिश करते रहिये
जैसा कि पिछले अध्यायों में हमने पढ़ा है कि ज्यादातर सी.ई.ओ इन्ट्रोवर्ट होते हैं. आपको काफी कम सी.ई.ओ ऐसे मिलेंगे जो एक्स्ट्रोवर्ट होते हों. इन्ट्रोवर्ट होने के पीछे भी एक कारण है. वो ये है कि ग्रेट सी.ई.ओ होने के लिए आपको दूसरों के नज़रिए को भी समझने की क्षमता होनी चाहिए. किसी भी कंपनी के सी.ई.ओ को ये समझना चाहिए कि ऐसी क्या चीज़ है जो उसके कस्टमर को मोटिवेट करता है. उन्हें ये भी समझ आना चाहिए कि आखिर कंपनी के स्टेक होल्डर्स क्या चाहते हैं?
जब आप लोगों को सही से सुनने की शुरुआत कर देते हैं उस समय आप अंदाज़े में रहना बंद कर देते हैं. इसलिए किसी सी.ई.ओ के लिए ये बहुत ज़रूरी होता है कि आपको दूसरों की बात समझ में आनी चाहिए. कभी भी बहुत ज्यादा जीनियस बनने की भी कोशिश नहीं करनी चाहिए.
अगर सामने वाला कुछ कह रहा है. तो फिर कभी भी ये मत दिखाने की कोशिश करिए कि आपको सब मालुम है. हमेशा किसी बच्चे की तरह सामने वाले को सुनने की कोशिश करिए. कई बार ऐसा देखा गया है कि बड़ी-बड़ी दिक्कतों का हल दूसरों के नज़रिए से निकल जाता है.
नील फिसके सी.ई.ओ के तौर पर शानदार रहे हैं. वो लांजरी ब्रांड के लिए काम कर रहे थे. तब उन्होंने फैसला किया कि वो औरतों से मिलकर इसके बारे में बात करेंगे. वो अपने फैसले पर अडिग रहे. उन्होंने कई औरतों का इंटरव्यू भी किया था. उन्होंने प्रोडक्ट के बारे में महिलाओं की राय भी ली थी. इस दौरान उन्होंने ओब्सर्व किया कि उन्होंने कई सारी गलत धारणाएं बनाई हुई थी. उन्होंने अपने प्रोडक्ट को सर्वे के हिसाब से ही लांच किया था. इसका असर ये हुआ था कि कुछ सालों के बाद ही उनका ब्रांड सुपर हिट हो चुका था.
इस एग्जाम्पल से आप समझ सकते हैं कि सी.ई.ओ की भी जिम्मेदारी है कि वो कस्टमर के साथ बातचीत करते रहें. किसी भी सी.ई.ओ के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि वो अपने ग्राहकों को कितना जानते हैं?
कस्टमर के साथ ही साथ अपनी कंपनी के बोर्ड मेम्बर्स को जानना भी बहुत ज़रूरी है. एक सी.ई.ओ के तौर पर आपको पता होना ही चाहिए कि कंपनी के बोर्ड मेम्बर्स का विजन क्या है? क्या उनके पास और कोई ग्रेट आईडिया है? जिससे कंपनी की मदद हो सकती है.
कई सारे सवाल भी हैं जो किसी भी सी.ई.ओ को खुद से पूछते रहने चाहिए कि बोर्ड मेम्बर्स का चुनाव कैसे होना चाहिए? क्या वो सी.ई.ओ की ज़िम्मेदारी पूरी तरह से निभा पा रहे हैं? क्या उनके अंदर बोल्ड फैसले लेने की क्षमता है?
अच्छे और बोल्ड फैसले लेते रहिये अगर ज़रूरत हो तो रिस्क लेने से भी पीछे मत हटियेगा. कई बार देखा गया है कि बड़े-बड़े सी.ई.ओ ने रिस्क वाले फैसले लेकर. कंपनी की कहानी ही बदल दी है.
लोगों की सुनिए, उनका सम्मान करिए, ज्यादा होशियार बनने से बेहतर है कि आप समझदार बनने की कोशिश करिए.
अगर कहीं भी सी.ई.ओ की पोजीशन के लिए दो लोगों के बीच में कम्पटीशन है तो जो आदमी ज्यादा रिलाएबल होगा. पोजीशन उसी को मिलेगी. ये हमेशा देखा गया है कि पोजीशन हमेशा रिलाएबल आदमी को ही जाती है.
अब कोई कैसे जानेगा कि आप रिलाएबल पर्सन हैं. इस बात का पता उनको आपकी कमिटमेंट से लगेगा. इसलिए हमेशा कोशिश करिए कि कभी भी आप अपनी कमिटमेंट से पीछे न हटें.
जीनोम प्रोजेक्ट ने कई सारे सी.ई.ओ के ऊपर रिसर्च किया था. ये रिसर्च उनकी पर्सनालिटी को लेकर था. उसके रिजल्ट में ये निकलकर सामने आया था कि 94 प्रतिशत सी.ई.ओ अपनी कमिटमेंट के बड़े पक्के होते हैं. उस रिसर्च में ये भी दिखा था कि वो लोग जिन्हें डिसीप्लीन की आदत थी. उन्हें लोग ज्यादा पसंद करते हैं. बजाय उनके जिनको हम मैड जीनियस कहते हैं.
क्योंकि जो लोग जीनियस होते हैं उनका व्यवहार भी काफी ज्यादा अजीब सा ही रहता है. उन्हें किसी भी कमिटमेंट से कोई लेना-देना नहीं होता है. उन्हें बस इस बात का गुरूर होता है कि वो कभी भी कुछ भी कर सकते हैं.
इसलिए अगर आपको सी.ई.ओ तक का सफर तय करना है. तो सबसे पहले अपने अंदर डिसीप्लीन को लेकर आइये. हमेशा याद रखिये कि कंपनी की तरफ आपका कमिटमेंट क्या है? अगर आपने किसी भी प्रोजेक्ट के लिए कमिट किया है तो उसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी भी आपकी ही है. इसलिए हमेशा अपने काम के प्रति ईमानदार रहने की कोशिश करिए. आपकी ईमानदारी ही आपको विजय के रास्ते में लेकर जायेगी.
जिंदगी में आप कितनी भी उचाईयों में पहुँच जाएँ. सबसे ज़रूरी कदम होता है. आपका वो पहला कदम जिसको आपने उस बिजनेस की शुरुआत करने के लिए उठाया था. इसलिए हमेशा से अपने बिजनेस की तरफ उठाया हुआ अपने पहले कदम को याद रखियेगा.
अब आप सोचिये कि किसी भी नए बिजनेस मैन के लिए उसका पहला कदम क्या होना चाहिए? क्या वो कदम बिजनेस कार्ड छपवाना होना चाहिए या फिर अपने बिजनेस के लिए फंड्स की व्यवस्था करना होना चाहिए.
आपको बता दें कि आपका पहला कदम ये देखना होना चाहिए कि वो बिजनेस आपकी लाइफ स्टाइल को कितना सूट करता है? क्या वो बिजनेस आपकी लाइफ स्टाइल को दर्शाता है?
किसी भी आईडिया के ऊपर काम करने से पहले इस बात का ख्याल रखियेगा कि वो आईडिया आपके गोल और वैल्यूज से मैच करता हो. जीवन में कभी भी अपने कुछ बेसिक एथिक्स से समझौता मत करियेगा.
यहाँ वैल्यूज की बात इसलिए हो रही है क्योंकि किसी भी प्रोजेक्ट के ऊपर आपका समय और पैसा दोनों लगेगा. उस समय, पैसे और एनर्जी के साथ न्याय तभी होगा जब आपका काम आपके वैल्यूज के हिसाब से बैठता हो.
इसको आप इस तरह से भी समझ सकते हैं कि मान लीजिये आप एक सामाजिक प्राणी हैं. तो फिर आपका बिजनेस कुछ ऐसा होना चाहिए. जिससे आप लोगों से कनेक्ट हो सकें. जब आप ऐसे किसी प्रोजेक्ट के ऊपर काम करेंगे तो फिर आपका काम एक अलग ही रूप में नजर आएगा.
इन सब बातों के ऊपर एक सवाल ये उठता है कि आखिर आप उस बिजनेस आईडिया की पहचान कैसे करें जिससे आपको ख़ुशी और संतुष्टि दोनों मिले?
इसके लिए आपको खुद का आकलन करना पड़ेगा. जब तक आप खुद से बात करने की शुरुआत नहीं करेंगे. तब तक आपको पता भी नहीं चलेगा कि कौन सा काम आपको बेस्ट सूट करता है? उस काम की पहचान तभी होगी जब आपकी खुद से पहचान होगी.
गलतियों से सीखने की कोशिश करते रहिये
जब भी आप किसी भी बड़े आर्गेनाईजेशन को लीड करेंगे तो हर बार ये मुमकिन नहीं हो पायेगा कि चीज़ों को अपने हिसाब से मैनेज कर पायें. या फिर छोटी-छोटी चीज़ों पर आपका ध्यान भी नहीं जा पायेगा. इसके लिए ज़रूरी ये है कि आप एक सही सिस्टम का निर्माण करियेगा. ये सिस्टम कुछ ऐसा होना चाहिए कि सभी को अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी का एहसास होना ही चाहिए.
इसके लिए ज़रूरी है कि आप खुद को किसी ओर्केस्ट्रा का कन्डक्टर ही समझिये.
जिसका काम है कि सभी पर निगाह बनाकर रखे. ऑर्केस्ट्रा के कन्डक्टर का काम म्यूजिक बजाना नहीं होता है. उसका काम होता है कि शो के पहले से और शो के बाद भी सभी चीज़ों के ऊपर बराबर सा ध्यान बनाकर रखे. कंडक्टर शो में परफॉर्म करने वालों को उनके रिहर्सल के दौरान भी मदद करता है.
अगर देखा जाए तो स्टेज का पूरा ध्यान वही रखता है. उसके रहते हुए कभी भी किसी भी चीज़ में गलती नहीं हो सकती है. अगर आप एक वेल प्लांड सिस्टम बनाते हैं. तो उससे भी गलतियों पर रोक लग सकती है.
एक सी.ई.ओ होने के नाते आपको इस बात का ख्याल रखना है कि अगर आपकी कंपनी से किसी भी प्रोजेक्ट में कोई भी गलती होती है. तो उस गलती को दोबारा ना दोहराया जाए. इसको आप तभी कर सकते हैं जब आपके पास एक वेल प्लांड सिस्टम होगा.
ब्लॉकबस्टर विडियो और कोडक में कॉमन क्या है? उन दोनों के बीच में कॉमन ये है कि दोनों ने ही फ्यूचर ट्रेंड्स को नहीं अपनाया और फ्लॉप हो गये.
अगर आपको अपनी कंपनी के फ्यूचर ट्रेंड्स पर काम करना है. तो नए आईडिया को जगह देनी ही पड़ेगी भले ही उसके लिए किसी पुराने आईडिया को बंद करना पड़े.
ब्लॉकबस्टर विडियो और कोडक के फ्लॉप होने का एक ही रीजन था. वो रीजन ये था कि दोनों ही कम्पनियों ने नई संभावनाओं को नकार दिया था. उन्होंने फ्यूचर ट्रेंड्स के ऊपर ध्यान नहीं दिया था. यही वजह थी कि इन कम्पनियों को फ्लॉप होने का तमगा झेलना पड़ा था.
आज की भागती दौड़ती दुनिया में अगर आप बहुत तेज ना भी हो पायें. तो भी आपको अपडेट रहना ही है. अगर आप ट्रेंड्स से अपडेट रहते हैं तो फिर आप अपनी कंपनी के लिए कुछ बेहतर करने में कामयाब हो जायेंगे.
क्या आपके अंदर ट्रेंड हंटर बनने की क्षमता है?
Jean Hoffman ट्रेंड हंटर के एक ग्रेट एग्जाम्पल हैं. ये एक फार्मा कंपनी के सी.ई.ओ हैं. ये अपने गेम में हमेशा ही आगे रहते हैं. इसके पीछे का रीजन यही है कि ये हमेशा नये ट्रेंड्स पर अपनी नजर बनाकर रखते हैं.
आपको नोटिस होना पड़ेगा
आप अगर लाइफ में कुछ छोटे-छोटे रूल्स को फॉलो करें तो ऐसी लाइफ जी सकते हैं. जिससे आपको फायदा होगा और दूसरों को भी, इसलिए इस अध्याय में लेखक आपसे सवाल करते हैं कि क्या आप ऐसी जिंदगी के लिए तैयार हैं? उस रुल का पहला प्रिंसिपल है कि पर्सपेक्टिव को मेंटेन रखिए.
स्टीफेन हाकिंग लोगों को एक सिंपल सी स्टोरी बताते हैं कि हम जिस दुनिया में रहते हैं, ये भी ब्रह्माण्ड का बस एक छोटा सा गृह है. इस बात से वो ये समझाना चाहते हैं कि हमको हर चीज को इतना सीरियस लेने की ज़रूरत नहीं है. हमें एक पर्सपेक्टिव बनाकर रखना चाहिए.
लेखक भी इस अध्याय के माध्यम से यही कहना चाहते हैं कि हार और जीत में नज़रिए का फर्क होता है. कई बार जो आपको हार लग रही है. वो किसी के लिए जीत से भी ज्यादा हो सकती है. अंतर बस इतना है कि आपको अपने नज़रिए को थोड़ा सा शिफ्ट करना पड़ेगा.
इसी तरीके से आपको किसी भी कंपनी को लीड भी करना चाहिए. बहुत ज़रूरी होता है कि एक सी.ई.ओ के पास एक अलग नज़रिया मौजूद होना चाहिए. उस नज़रिए से आप अपनी कंपनी में काम करने वालों को एक अलग दिशा दिखा सकते हैं.
उदाहरण के लिए आप किसी का इंतजार सीढ़ी के पास कर रहे हों, लेकिन वो आपको वहां ना मिले. क्या पता उसने सीढ़ी का रास्ता ना लेकर एलीवेटर का रास्ता ले लिया हो. जीवन में कई ऐसे पड़ाव आयेंगे जब आपको लगेगा कि बात नहीं बन रही है. तभी आपके करैक्टर का टेस्ट भी होता है कि आप अंदर से कितने मज़बूत हैं ? उस दौर में बस आपको अपने नज़रिए को थोड़ा सा बदलना पड़ेगा. आपकी बात बन जायेगी.
दूसरा नियम है सेल्फ डिसीप्लीन, अगर आप इस नियम का फॉलो करते हैं तो आप अपने गोल्स तक आसानी से पहुंच जाएंगे. सेल्फ डिसीप्लीन शब्द सुनने में जितना छोटा लगता है इसके परिणाम उतने ही बड़े होते हैं. अगर आप अपने एक्शन के ऊपर कंट्रोल करना सीख गए तो समझ जाइए कि आप अपनी जिंदगी को भी खुशहाल बना लिया. जिंदगी में खुश रहना है तो अपने आस-पास के साथ खुद के अंदर सेल्फ डिसीप्लीन होना बहुत ज़रूरी है.
इसी के साथ ही साथ कभी भी खुद को काम से ऊपर या फिर अपनी कंपनी से ऊपर मत समझ लीजियेगा. अगर आपने ऐसी गलत फहमी पाल ली तो फिर आप कभी भी ग्रेट सी.ई.ओ नहीं बन सकते हैं.
आपको जिसने भी हायर किया है. उसे एक टीम प्लेयर की ज़रूरत है. उसे ऐसे सी.ई.ओ की ज़रूरत है. जो पूरी टीम को साथ में लेकर चल सके. जिसके अंदर लीडरशिप क्वालिटी भी होनी चाहिए. उसे पता होना चाहिए कि बोल्ड फैसले कैसे लेने हैं. अगर आपके अंदर टीम प्लेयर की क्वालिटी आ जाएगी तो फिर आप एक ग्रेट सी.ई.ओ की राह में आगे बढ़ जायेंगे.
Conclusion
हम लोगों में से कई लोग ऐसा ही सोचते हैं कि किसी भी कंपनी को चलाने वाला कोई स्पेशल आदमी होता है. वो नार्मल आदमी से अलग होता है. कई तो ऐसा भी सोचते हैं कि सी.ई.ओ बनने के लिए आपके पास काफी महंगे कॉलेज की डिग्री होनी चाहिए. लेकिन लेखक बता देना चाहते हैं कि सी. ई. ओ सुपर ह्यूमन नहीं होता है. वो बस अपने स्किल्स और जॉब के प्रति ईमानदार होता है.
अगली बार जब कभी आप किसी मीटिंग में हों तो लोगों को सुनें और अपनी बात बड़ी क्लियर और साफ़ अंदाज़ में रखियेगा.
तो दोस्तों आपको आज का हमारा यह The CEO Next Door Book Summary in Hindi कैसा लगा ?
आज अपने क्या सीखा ?
अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये।
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.
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