The Rise Book Summary in Hindi – लेखिका सारा लेविस द्वारा लिखी गयी ‘द राइज’ नाम की ये किताब हमें किस्से और कहानियों के जरिये बताती है कि कैसे मानव जाती की बड़ी से बड़ी खोज की शुरुवात भी एक फेलियर से ही हुयी थी. फेलियर एक ऐसा सच है जो हर किसी की जिंदगी का हिस्सा है. लेकिन साथ ही फेलियर वो रास्ता है जिससे गुज़रे बिना सक्सेस की मंजिल तक पहुँच पाना नामुमकिन है.
क्या आप एक नए आईडिया की तलाश में हैं, क्या आप फेलियर का सामना नहीं कर पाते हैं, क्या आप एक क्रिएटिव इंसान है तो ये बुक आपके लिए है।
लेखिका
सारा लेविस येल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ आर्ट की फैकल्टी में एक क्यूरेटर और हिस्टोरियन हैं. उसने प्रेसिडेंट ओबामा की आर्ट पालिसी कमिटी में काम किया है साथ ही ओपरा की पॉवर सूची में भी उनका नाम शामिल है.
The Rise Book Summary in Hindi – अपने मंजिल तक पहुँचने के रास्ते कैसे ढूंढे ?
मास्ट्री इस बात पर डिपेंड नहीं करती कि आप कितनी बार फेल हुए बल्कि इस बात पर करती है कि आपनें कितनी बार दोबारा कोशिश की.
अगर आपने लाइफ में कभी कुछ क्रिएटिव किया है तो आप फेल भी जरुर हुए होंगे. लेकिन फेलियर से डर कर कहीं आपने क्रिएटिविटी का साथ तो नहीं छोड़ दिया? क्यूंकि, अक्सर हम फेलियर को एक नेगेटिव आउटकम की तरह देखते है.
अगर हम हिस्ट्री के कुछ बहुत ही सक्सेसफुल और क्रिएटिव लोगों की बात करें तो उनका मानना था कि फेलियर कोई निराश होने वाला इवेंट नहीं है, फेलियर अपने आप में एक पॉजिटिव शुरुवात है. किसी भी चीज़ में मास्ट्री हासिल करने से पहले फेलियर भी जरुरी है.
इस किताब की यह समरी आपको बताएगी कि क्यूँ फेलियर से डरने की नहीं बल्कि उसे समझने की जरुरत है और कैसे फेलियर हमें सक्सेस के और करीब ले जाता है.
जब भी हम किसी आर्टिस्ट या किसी एथलिट, यानी किसी क्रिएटिव प्रोफेशन वाले की बात करते हैं तो हम उनकी लाइफ के बारे में बताने के लिए सक्सेस- फेलियर, अच्छा-बुरा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ये शब्द कभी-कभी हमें सच्चाई से बहुत दूर ले जाते हैं. जैसे फेलियर को ही ले लीजिये जिसे अक्सर इतने नेगेटिव तरीके से बताया जाता है कि हम सब फेल होने के नाम से ही डरते हैं.
फेलियर कैसे हमें मास्ट्री के और करीब ले जाता है इस बात को समझने से पहले आईये देखते है कि मास्ट्री आखिर है क्या? अक्सर हम मास्ट्री को परफेक्शन या सक्सेस के साथ जोड़ते हैं, लेकिन ये दोनों ही चीज़ें दूसरों के नज़रिए की बात है. लेकिन, असल में तो मास्टरी एक कभी न ख़त्म होने वाली प्रोसेस है, जैसे हम किसी ऐसी चीज़ को पकड़ने की कोशिश में हैं जिसे पकड़ना ऑलमोस्ट इम्पॉसिबल है. मास्ट्री यानी लगातार पूरी मजबूती से अपने गोल की तरफ बढ़ते जाना.
इस बात को थोड़ी गहरायी से समझने के लिए हम तीरंदाजी के बेसिक प्रिंसिपल यानी आर्चर’स पैराडॉक्स को समझते हैं. इसके मुताबिक जब एक तीरंदाज़ अपना तीर कमान पर चढ़ा कर छोड़ता है तो उसका तीर कभी सीधा नहीं जाता बल्कि उसके ऊपर मौसम, हवा और भी कई बहरी चीज़ों का असर आता है. इसलिए एक तीरंदाज़ को उन सभी चीज़ों का ध्यान रखकर तीर चलाना पड़ता है, जिनपर उसका कोई कंट्रोल नहीं है.
ऐसे ही मास्ट्री के प्रोसेस में भी हमें कई ट्रायल्स लगाने पड़ते हैं और उन ट्रायल्स पर हमारा कोई कंट्रोल नहीं होता. तो चाहे फेलियर मिले या सक्सेस दोनों से ही कुछ न कुछ तो सीखने को जरुर मिलेगा, और यही सीखने की कला ही मास्ट्री कहलाती है.
यही नहीं, सक्सेस तो हमें सिर्फ सीखाती है लेकिन फेलियर तो सिखाने के साथ-साथ कई बार मोटिवेशन भी दे जाते हैं. जैसे प्ले राइटर टेनिस विलियम कहते हैं कि जब उनका प्ले फेल हो जाता है तो वो सीधा अपने टाइप राइटर की तरफ जाते हैं और फिर से कुछ बेहतर लिखने लगते हैं. जबकि, जब उन्हें सक्सेस मिलती है तब ऐसा नहीं होता.
देखा जाए तो जब तक आपके मन में कुछ नया करने की इच्छा है तब तक आपको फेलियर और सक्सेस जैसी बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता.
ज्यादातर, हमनें जो पा लिया और हम जो पा सकते हैं उसमें एक बड़ा गैप होता है.
क्यूंकि, हम फेलियर को गलत नज़रिए से देखते हैं इसलिए कई बार हम अपनी कामयाबियों को भी ठीक से नहीं समझ पाते. अक्सर, हम थोडा सा पा कर खुश हो जाते है. फेलियर के रिस्क के कारण अपने सही पोटेंशियल को एक्सप्लोर ही नहीं कर पाते. इसलिए, जो हमने पाया है और जो हमारा पोटेंशियल है उसके बीच एक फासला रह जाता है जिसे लेखिका नें ‘द गैप’ का नाम दिया है.
जैसे जाने-माने अमेरिकन कवी हार्ट क्रेन की पोएट्री को जब उस समय के महान कवी एजरा नें देखा तो कहा कि उनका काम उनके पोटेंशियल से काफी कम है, वो इससे काफी अच्छा कर सकते हैं, तब हार्ट क्रेन को ये एहसास हुआ कि वो एक गैप में हैं. अब सवाल ये उठता है कि इस गैप को भरा कैसे जाए?
इस गैप को भरने के लिए सबसे पहले आपको अपने लिए एक ऐसी पनाह ढूँढनी होगी जहाँ आप फिजिकली और मेंटली एकदम सुकून महसूस करें और अपने काम पर ध्यान दे सकें. जहाँ आपको किसी भी क्रिटिसिज्म का डर नहीं हो और आप अपने काम को लेकर एक्सपेरिमेंटेशन कर सकें. क्यूंकि, काम के शुरुवात में क्रिटिसिज्म थोडा खतरनाक होता है.
जैसे प्ले राइटर अगस्त विल्सन को ये पनाह एक रेस्टरेंट में मिली, जहाँ वो आराम से अपनी कल्पनाओं पर काम किया करते थे. सबसे मजेदार बात तो ये है कि वो अक्सर पेपर नैपकिनों पर लिखा करते थे क्यूंकि उन्हें लगता था ये बहुत सेफ है यहाँ इसे कोई नहीं पढ़ पायेगा और अगर कोई गलती हुयी तो बुराई भी नहीं करेगा.
लेकिन अकेले में अपनी क्रिएटिविटी पर काम करना थोडा खतरनाक भी हो सकता है क्यूंकि, जब हम लम्बे समय तक आइसोलेशन में रहते हैं तो हम सच से काफी दूर हो जाते है और फिर अक्सर हमें लोगों के बीच जाने में और प्रेशर हैंडल में डर लगता है.
इसलिए, अपनी सेफ पनाह में उतने ही देर काम करें जब तक आपको कोई आईडिया ना आ जाये, उसके बाद आप खुद को प्रेशर और क्रिटिसिज्म के लिए तैयार रखें. कई जाने-माने क्रिएटिव लोगों का तो ये भी मानना है कि प्रेशर हमारी क्रिएटिविटी के लिए काफी अच्छा है. जैसे लियोनार्ड बर्नस्टें (Leonard Bernstein) का कहना था कि अगर आप कुछ बड़ा करना चाहते है तो आपके पास एक प्लान होना चाहिए और जरुरत से थोडा कम समय. यानी कम समय का प्रेशर हमसे कुछ बेहतरीन करवा सकता है.
अगर आप अपने सही पोटेंशियल तक पहुँचना चाहते हैं तो शुरुवात में अपने लिए एक सेफ पनाह ढूँढें और फिर जब आपको अपना आईडिया मिल जाए तो खुद को क्रिटिसिज्म और प्रेशर झेलना के लिए तैयार कर लें.
जब हम जीत के करीब पहुँच कर हारते हैं तब हमें अपनी असल कमियों का पता चलता है. कभी केवल कुछ सेकंड्स की देर के कारण आपकी बस या ट्रेन छुटी है? खासकर, जब आप किसी बहुत जरुरी काम से जा रहे हों. यकीनन आपको बहुत फ्रस्ट्रेशन हुआ होगा. इस जरा सी देर की चूक से तकलीफ तो होती है लेकिन साथ ही आपको ज़िन्दगी भर का सबक भी मिल जाता है कि अगली बार से आपको अपना टाइम कैसे मैनेज करना है.
ठीक इसी तरह ज़िन्दगी की रेस में भी जब आप जीतते-जीतते हार जाते हैं तब आपको पता चलता है कि आपमें अभी क्या-क्या कमियाँ हैं और फिर आपके मन में जीतने की जो चाह उठती है वो आपको उन सारी कमियों से ऊपर ले जाती है.
ये बात साइकोलोजिस्ट डैनियल कहमैन और एमोस टावस्की नें साबित की है कि जब हम जीत के करीब पहुँच कर हारते हैं तो हमारी सोच का दायरा बदल जाता है और हमारा दिमाग ये सोचने लगता है कि अब जीतने के लिए और क्या किया जा सकता है. हार जितनी दर्दभरी होगी उतना ही हमारी सोच जीत को पाने के लिए हमें मोटीवेट करेगी.
जैसे मिल्खा सिंह ‘द फ्लाइंग सिख’ 1956 के मेलबर्न ओलिंपिक में बस कुछ ही सेकंड्स के कारण गोल्ड मैडल से चूक गए थे. उनकी इस हार नें उन्हें अन्दर से हिला कर रख दिया उन्होंने अपने ऊपर इतनी मेहनत की कि 1960 में जब वो रेस ट्रैक पर आये तो उन्होंने सारे रिकार्ड्स तोड़ दिए.
जब एक जरा सी चुक से आप हार जाते हैं तो ना केवल आप अगली जीत के लिए मोटीवेट होते हैं बल्कि आपको ये एहसास होता है कि जीतने से ज्यादा सीखना जरुरी है. आपकी सोच जीत की जगह मास्टरी की राह पर चलने लगती है और फिर आपको जीतने से कोई नहीं रोक पाता.
एथलिट जूली मोस इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण हैं, 1986 की आयरनमैन रेस में वो बाकियों से 6 मिनट की लीड पर थीं, लेकिन अचानक वो गिर गयी. उनके पैरों में इतना दर्द हो रहा था कि वो खड़ी भी नहीं हो पा रही थी, लेकिन फिनिश लाइन उनके सामने थी, उन्होंने रेंगते हुए वो रेस ख़त्म की क्यूंकि तब उनका फोकस जीतने पर नहीं बस फिनिश लाइन तक पहुँचे पर था.
ज़िन्दगी का रेस ट्रैक भी कभी सीधा नहीं होता इसलिए चाहे जितने मोड़ आये आपको फिनिश लाइन तक पहुँचने की हिम्मत दिखानी पड़ेगी.
अपने पोटेंशियल तक पहुँचने के लिए दर्द से दोस्ती जरुरी है.
मास्टरी की राह पर चलते हुए आपको बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, उनमें से एक है दर्द. दर्द एक ऐसा एहसास है जिससे कोई पीछा नहीं छुड़ा सकता. कभी हार का दर्द, कभी किसी को खोने का दर्द. दर्द चाहे छोटा हो या बड़ा अगर इससे सही तरीके से डील ना किया जाए तो ये हमारे पोटेंशियल को कम कर देता है.
अक्सर लोग दर्द से बचने की कोशिश करते हैं लेकिन इससे बचना नामुमकिन है क्यूंकि ये ज़िन्दगी का सच है, इसलिए इससे बचने की बजाये इसके सामने सरेंडर करने में ही भलाई है. जितना आप इससे बचेंगे उतना ही ज्यादा आपको तकलीफ होगी.
जैसे लेखिका की ज़िन्दगी में दुखों का पहाड़ तब टूट पड़ा जब एक ही साल के अन्दर एक-एक करके उनके सभी 7 दोस्तों की मौत हो गयी. वो काफी सदमे में थीं उनका काम, उनकी सेहत, सब बिगड़ रहे थे. एक दिन उन्हें ये एहसास हुआ की मौत तो एक ऐसा सच है जिसे कोई नहीं बदल सकता उसके बाद उन्हें ज़िन्दगी के हर पल की कीमत का पता चला.
जब आप अपने दर्द को समझ लेते हैं तो आपके लिए उसे भूल कर आगे बढ़ना आसान हो जाता है. अगर हम दर्द से उठने वाली फीलिंग्स और इमोशन को सही डायरेक्शन देने में कामयाब हो गए तो फिर ये दर्द फिर हमारी कमजोरी की जगह हमारी ताकत बन जाता है.
मार्शल आर्ट की एक शैली ऐकिड़ो भी इसी प्रिंसिपल पर बेस्ड है, जिसमें आप अपने अपोनेंट को समझ कर उसी की चाल का इस्तेमाल उसी के ऊपर करते है. वेंडी पामर ने इस तकनीक में महारत हासिल की, जिससे वह केवल 5’5 “होने के बावजूद सबसे महान ऐकिड़ो खिलाड़ी बने.
अगर हम हिस्ट्री के पन्ने पलट कर देखें तो हम जान पाएंगे के महान से महान लोगों के जीवन में भी बहुत से दुःख और तकलीफें आई है लेकिन उन सबनें अपनी इच्छा शक्ति के साथ उनका सामना किया.
जैसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर जो अपनी मोटिवेशनल स्पीच के लिए जाने जाते हैं उन्हें बचपन से हकलाने की प्रॉब्लम थी. एक रिपोर्टर नें उनसे पूछा कि उसकी ये प्रॉब्लम कैसे ठीक हुयी तो उन्होंने कहा कि जब आप मौत के सच से दोस्ती कर लेते हैं तो बाकि सभी चीज़ों से आप आसानी से निपट सकते है. दुसरे शब्दों में देखें तो उनका कहना था कि जब उन्होंने ज़िन्दगी के सच को समझ लिया तो उनकी ज़िन्दगी को जीने की इच्छा शक्ति इतनी बढ़ गयी कि उनकी हकालने की आदत खुद ब खुद ठीक हो गयी.
अपनी क्रिएटिविटी को बढ़ाने के लिए जरा शौक़ीन अवतार लीजिये. अगर आप लाइफ में कुछ बड़ा करना चाहते हैं तो खुद को एक्सपेरिमेंट करने दीजिये वो भी रिजल्ट कि चिंता किया बिना.
यहाँ शौक़ीन बनने का मतलब ये है कि आपको अपने आर्ट फॉर्म का शौक है. इसलिए आपके पास एक बिगिनर से तो ज्यादा अनुभव है, लेकिन आप खुद को कभी एक एक्सेपेर्ट की केटेगरी में नहीं रखते. अब आप कहेंगे कि शौक़ीन होना एक्सपर्ट होने से भी अच्छा कैसे है आईये देखते हैं.
एक एक्सपर्ट ये मान कर चलता है कि वो एक्सपर्ट है उसे सब पता है इसलिए वो खुद के लिए एक डेली रूटीन सेट कर लेता है. और चूँकि वो उसी रूटीन को फॉलो कर के सफल हुआ है तो वो उन्हीं घिसे पिटे तरीकों को सारी ज़िन्दगी इस्तेमाल करते रहता है. एक एक्सपर्ट अपना काम पैसों और करियर के लिए करता है इसलिए वो रिस्क लेने से डरता है.
वहीं दूसरी ओर एक शौक़ीन अपनी ख़ुशी के लिए काम करता है जिसके कारण वो आसानी से अपने आर्ट के साथ एक्सपेरिमेंट कर सकता है और उसे रिस्क लेने से डर भी नहीं लगता. जब आप बिना किसी प्रेशर के अपनी ख़ुशी के लिए काम करते हैं तब हमेशा ही आप ज्यादा बेहतर और कुछ नया सोच पाते हैं.
अगर आप एक्सपेरिमेंटेशन के फायदे जानना चाहते हैं तो आपको वैज्ञानिक आंद्रे गीम और कोन्स्टेंटिन नोवोसेलोव के बारे सुनना चाहिए जिन्होंने दुनिए की पहली टू-डायमेंशनल चीज़ ढूँढ निकाली, जो था पेंसिल के ग्रेफाइट का कार्बन स्ट्रक्चर इस खोज के लिए दोनों को नोबेल प्राइज मिला था. ये खोज उनके फ्राइडे नाईट एक्सपेरिमेंट का हिस्सा थी जिसमें वो कुछ ऐसे अजीबों गरीब एक्सपेरिमेंट किया करते थे जिनके सफल होने के चांसेस कम ही होते थे.
एक्सपेरिमेंटेशन से इनोवेशन होते हुए हमने हिस्ट्री में कई बार देखा है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बच्चों की तरह खेलने से भी क्रिएटिविटी बढ़ती है. इसलिए आजकल कई कंपनियाँ अपने ऑफिस में अपने एम्प्लाइज को खलेने का मौका भी देने लगी है.
ये बात साइंस नें भी साबित कर दी है कि खेलने से हमारी थिंकिंग एबिलिटी बढती है. एक स्टडी के दौरान चार साल के बच्चों के दो ग्रुप बनाये गए और दोनों को एक जैसा खिलौना दिया गया. पहले ग्रुप को उस खिलौने का इस्तेमाल सिखा दिया गया जबकि दुसरे ग्रुप को नहीं.
साइंटिस्ट ये देख कर हैरान रह गए के खेल के दौरान दुसरे ग्रुप नें उस खिलौने के कई छुपे फीचर भी ढूंढ लिए. यानी खेलते खेलते भी आप काफी कुछ सीख सकते हैं.
मास्टरी की राह पर चलने से पहले सब्र करना सीख लें.
सेटबैक और फेलियर को हराकर मास्टरी तक पहुँचने के लिए एक आखरी गुण जो आपने जरुर होना चाहिए है वो है सब्र. आईये पहले समझते हैं कि सब्र आखिर है क्या और हमें इसका इस्तेमाल कैसे करना है.
सब्र यानी खुद को इतना मजबूत बना लेना कि बार-बार हार का सामना करने पर भी हम टूटे ना, हमारी इच्छा शक्ति इतनी बड़ी हो कि हर बार हम अपनी गलतियों से कुछ नया सीखें और खुद को बेहतर और बहतर बनाते चले जायें.
अपनी ज़िन्दगी में सब्र का गुण लाने के लिए आपको पहले दर्द को एक्सेप्ट करना होगा और हार्ड वर्क के लिए तैयार रहना होगा.
एक आर्टिस्ट को अपनी ज़िन्दगी में बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जरा सोचिये आपकी वो पेंटिंग जिसे बनाने में आपने जान लगा दी उसे देख कर लोग उसमें ज़माने भर की कमियाँ निकाल रहे हैं, तो आपको कैसा महसूस होगा. लेकिन, इस क्रिटिसिज्म से निराश होने की बजाये आप इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए भी कर सकते हैं. यानी अपने क्रिटिक का हर पॉइंट नोट करें उसमें से जो आपको अपने लिए बेहतर लगता है उसपर काम करें, खुद में सुधार लायें और बाकियों को भूल जायें. यही सब्र की सही पहचान है.
आयोवा यूनिवर्सिटी के वर्ल्ड फेमस राइटिंग प्रोग्राम में एक बहुत दिलचस्प बात सामने आई कि दुनिया के महान राइटर वो बने जिन्होंने बिना रुके प्रयास किया वो नहीं जिनके अन्दर नेचुरल टैलेंट था. इसलिए फेलियर को अपनाएं क्यूंकि ये उस आग की तरह है जो आपको तपा कर खरा सोना बना देगा.
Conclusion
असल में हम जिसे फेलियर कहते हैं वो तो एक लर्निंग एक्सपीरियंस के जैसा है जिसके बिना हम मास्टरी तक नहीं पहुँच सकते. एक बार आप फेलियर को इस तरह से देखने लगे तो आप अपने सभी सेटबैक को मोटिवेशन के रूप में देखने लगेंगे. क्यूंकि अगर आपको कुछ ज्यादा पाना है तो आपको कुछ ज्यादा कोशिश भी करनी होगी.
अगली बार जब आप खुद को बिलकुल नीचे पाएं तो खुद से कहें ‘चलो अच्छा है अब यहाँ से तो बस ऊपर जाने का ही रास्ता है.’
नीचे गिरना आपको फेलियर जैसा लगेगा लेकिन ऐसा है नहीं इसका बस इतना ही मतलब है कि अब अपनी उम्मीद के पंखों को और मजबूत करो और अगली बार इससे भी ऊँची उड़ान भरो.
तो दोस्तों आपको आज का हमारा यह The Rise Book Summary in Hindi कैसा लगा ?
आज आपने क्या सीखा ?
अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये।
आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,
Wish You All The Very Best.
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Bahot hi khubsurat tarike se samjaya aapne iss summary ko. Aapka khub khub aabhar
Thank you very much ashish.