जो मुझे पसंद
एक कंजूस के पास हीरे और मोती थे। उसने उन्हें एक गंदे कपड़े में बाँधकर अपनी झोंपड़ी में जमीन में दबा दिया था। दुर्भाग्यवश एक दिन कंजूस की झोंपड़ी में आग लग गई। वह बैठकर रोने लगा। उसके जौहरी पड़ोसी ने उससे रोने का कारण पूछा। कंजूस ने उसे मोतियों और हीरों की बात बताई। पड़ोसी ने कहा, “मैं तुम्हारी बहुमूल्य वस्तुओं को ला सकता हूँ। यदि मैं उन्हें ले आऊँगा, तो जो मुझे पसंद होगा वही तुम्हें दूँगा और शेष मैं रख लूँगा।” कंजूस राजी हो गया। जौहरी जलती हुई कुटिया में जाकर उस बहुमूल्य पोटली को ले आया। बाहर आकर उसने गंदा कपड़ा कंजूस को दे दिया। कंजूस आग बबूला हो उठा और जौहरी को बीरबल के पास लेकर गया। बीरबल ने पूछा, “तुम लोगों में क्या समझौता हुआ था?” जौहरी ने कहा, “यही कि जो मुझे पसंद होगा वहीं मैं उसे दूँगा।” बीरबल ने पूछा, “तुम्हें सबसे ज्यादा क्या पसंद है… जवाहरात या गंदा कपड़ा?” “निश्चित रूप से हीरे और मोती, ” जौहरी ने कहा। बीरबल ने कहा, “तब कृपया हीरे और मोती उसे दे दो क्योंकि वह तुम्हें पसंद है। तुम कपड़ा अपने लिए रख सकते हो।” जौहरी, बीरबल से चतुरता में मात खा गया था। उसका सिर शर्म से झुक गया।
तीन मूर्तियाँ
एक दिन अकबर के मित्र ने बीरबल के पास एक संदेश के साथ तीन मूर्तियाँ भिजवाई। संदेश कुछ इस प्रकार था, “ये तीनों मूर्तियाँ एक समान हैं, फिर भी एक सबसे अच्छी है, एक ठीक-ठाक है और एक सबसे बुरी है। कौन क्या है आपको बताना है?” बीरबल ने मूर्तियों का निरीक्षण कर कहा, “मुझे कल तक का समय देने की कृपा करें।” अगले दिन अकबर ने पूछा, “तुम्हें क्या पता लगा बीरबल ?” बीरबल ने मूर्ति की व्याख्या करते हुए बताया. ” प्रत्येक मूर्ति के बाएँ कान में एक छेद था। मैंने उन छेदों में एक पतला तार डाला। पहली मूर्ति के मुँह से तार निकल गया, दूसरी मूर्ति के दूसरे कान से तार बाहर निकला और तीसरी मूर्ति के पेट में तार गया।” “पहली मूर्ति उन लोगों की तरह है, जो जैसा सुनते हैं। वही बोलते हैं, वे बुद्धिमान नहीं होते इसलिए सबसे बुरे होते हैं। दूसरी मूर्ति उन लोगों की तरह है, जो एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं, वे राज नहीं रखते पर पहली मूर्ति की तरह हानिकारक नहीं है। तीसरी मूर्ति सबसे अच्छी है क्योंकि उस जैसे लोग, जो सुनते हैं उसे पचा लेते हैं और कभी भी राज प्रकट नहीं करते हैं।”
सिक्कों का थैला
एक बार एक तेल बेचने वाले और कसाई के बीच झगड़ा हो गया। उनका विवाद सुलझने का नाम ही नहीं ले रहा था। फलतः उन्होंने बीरबल से सहायता लेने का निश्चय किया। कसाई ने कहा, “मैं अपनी दुकान में बैठा माँस बेच रहा था तभी तेल विक्रेता ने मेरे पास आकर एक खाली पीपा माँगा। जब मैं भीतर पीपा लाने गया तब उसने मेरी दुकान में आकर मेरे सिक्कों का थैला चुरा लिया। फिर वह उस थैले को अपना बताने लगा।” तेल विक्रेता ने याचना करते हुए कहा । “नहीं, श्रीमान्! यह सच नहीं है। यह थैला मेरा ही है। मैंने इसे कसाई से नहीं चुराया है। मैं थैले में सिक्का डाल रहा था तब उसने यह देखा था।” बीरबल ने दोनों की बात सुनी, किन्तु कौन सच कह रहा था? इसका निर्णय न कर सका। अंततः उसने अपने सेवकों से एक हौदा मँगवाया। बीरबल ने उसे पानी से भरकर सिक्कों का थैला उसमें डाल दिया। जब सिक्कों से तेल निकलकर पानी की सतह पर तैरने लगा तब बीरबल समझ गया कि यह थैला तेल विक्रेता का ही है। झूठ बोलने के लिए कसाई को कठोर सजा दी गई।