स्वतंत्रता आवश्यक है
एक दिन अकबर बीरबल के साथ शाही उद्यान में सैर कर रहे थे। तभी उन दोनों ने पक्षियों को अपने घोंसलों में लौटते देखा। अकबर ने कहा, “इन बेचारे पक्षियों को प्रतिदिन भोजन की खोज में दूर जाना पड़ता है। मेरे पक्षी अपने सुनहरे पिंजरे में प्रसन्न हैं। उन्हें अच्छा भोजन भी प्राप्त होता है।” बीरबल ने कहा, “क्या मैं आपके तोते को अपने हाथ में ले सकता हूँ?” अकबर सहमत हो गए। बीरबल ने पिंजरा खोला और तोते को अपने हाथ में ले लिया। तोते के नहीं उड़ने से वह आश्चर्यचकित था। अकबर ने उसे उड़ाने की बहुत चेष्टा की पर तोता हाथ से नहीं उड़ा। पक्षी के इस व्यवहार से अकबर परेशान हो उठा। बीरबल ने तब कहा, “महाराज, पक्षियों का स्वभाव चारों ओर उड़ना है। वे अपना भोजन स्वयं ढूँढते हैं। उन्हें पिंजरे में रखकर आप उनके उड़ने की क्षमता और स्वतंत्रता समाप्त कर रहे हैं। अब तोते की आदत पिंजरे में बैठे रहने की हो गई है और वह उड़ना ही भूल गया है।” बीरबल की बातें सुनकर अकबर उदास हो गया। शाही पशु चिकित्सक को बुलाकर अपने सभी पक्षियों का इलाज करवाया। उनके स्वस्थ हो जाने पर अकबर ने बड़े ही प्रेमपूर्वक उन्हें अपने हाथों में लिया। वे सभी उड़कर खुले आसमान में विचरने लगे।
दामादों के लिए प्राणदण्ड
एक दिन अकबर ने अपने दामाद को संदेश भेजा, “कृपया कुछ दिनों के लिए मेरी पुत्री को भेज दें। ” किन्तु दामाद ने अपनी पत्नी को भेजने से मना कर दिया। आग बबूला हुए अकबर ने बीरबल से कहा, “राज्य के सभी दामादों को फाँसी पर चढ़ाने की व्यवस्था करो।” बीरबल मान गया। कुछ दिनों के बाद उसने अकबर को सारी तैयारी का निरीक्षण करने के लिए बुलाया। अकबर ने देखा कि ढेर सारे फाँसी के फंदे लगे हुए थे। वहाँ पर दो विशेष फंदे भी थे- एक सोने का था और दूसरा चाँदी का। अकबर ने बीरबल से पूछा, “वह सोने और चाँदी का फंदा किसके लिए है?” बीरबल ने उत्तर दिया. “ओह! महाराज, वह मेरे और आपके लिए है।” “क्या? किसने कहा कि मैं फाँसी पर चढ़ने जा रहा हूँ?” “महाराज! आपने…” बीरबल ने कहा, “आपने ही कहा था कि राज्य के सभी दामादों को फाँसी दे दी जाए। आप भी तो किसी के दामाद हैं। कल सबसे पहले आप जाएँगे, आपके पीछे मैं और फिर दूसरे लोग।” अकबर अत्यधिक शर्मिंदा हुआ। अकबर ने तुरंत अपना आदेश वापस ले लिया।
ऊँट की टेढ़ी गर्दन
एक बार अकबर की समस्या का समाधान बीरबल ने चुटकियों में कर दिया। प्रसन्न होकर अकबर ने बीरबल को अच्छी-खासी रकम इनाम में देने का वायदा कर दिया। कई दिन बीत गए पर बीरबल को इनाम नहीं मिला। बीरबल ने याद भी दिलाया पर अकबर ने अनसुनी कर दी। दिन बीते बीरबल ने भी भूल जाने में ही भलाई समझी और अकबर को भी याद दिलाना छोड़ दिया। एक दिन अकबर और बीरबल बाज़ार में थे तभी उन्होंने एक ऊँट को देखा। अकबर ने बीरबल से पूछा, “क्या तुम उस ऊँट को देख रहे हो? उसकी गर्दन टेढ़ी क्यों है?” बीरबल ने अवसर का लाभ उठाना चाहा। अकबर को इनाम की बात याद दिलाने की सोचकर बीरबल ने कहा. “महाराज! अवश्य ही ऊँट ने किसी से वायदा किया है पर बाद में उसे पूरा करना भूल गया है। इसी कारण उसकी गर्दन टेढ़ी हो गई।” ऐसा उत्तर सुनकर अकबर अचंभित रह गया। साथ-साथ वह यह भी समझ गया कि इशारा किस ओर था। अगले ही दिन अकबर ने बीरबल को बुलाया और इनाम की रकम उसे देकर बोला, “कहीं मेरी गर्दन तो टेढ़ी नहीं हुई न?”