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भगवान शिव का जन्म

कहानी1 year ago11 Views

भगवान शिव जिन्हें सर्वोपरि, सर्वशक्तिमान कहा जाता है, उनकी शक्तिओं की व्याख्या हर पुराण में की गयी है, लेकिन फिर भी भगवान शिव के जन्म की कथा हर पुराण में अलग अलग बताई गयी है। यही कारण है की हमारे मन में भ्रम पैदा होना शुरू हो जाता है, जिससे दूर करने का ज्ञान हमें कही और से नहीं मिल पाता।

विष्णु पुराण के अनुसार

जब हमारे ब्रह्माण्ड का निर्माण नहीं हुआ था तब कॉस्मिक Ocean में भगवान विष्णु के नाभि से ब्रह्मा जी का जन्म हुआ।

ब्रह्मा जी को भगवान विष्णु का ज्ञान था लेकिन तभी वहां पर भगवान शिव प्रकट हुए, तब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को पहचानने से इंकार कर दिया। लेकिन ये सब देख कर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी याद करवाया की भगवान शिव कौन है।

तब ब्रह्मा जी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान शिव को पुत्र के रूप में माँगा। इसके बहुत बाद जब ब्रह्मा जी तप कर रहे थे, तब उनसे एक बच्चा प्रकट हुआ। वो बच्चा बेहत प्रचंड रूप में रो रहा था। वो स्वयं भगवान शिव थे।

जब ब्रह्मा जी ने पूछा की आप क्यूँ रो रहे हैं?

तो भगवान शिव ने कहा कि मैं ब्रह्मा नहीं हूँ!

तब ब्रह्मा जी ने उनका नाम रूद्र रखा, जिसका अर्थ होता है प्रचंड।

शिव पुराण के अनुसार

शिव पुराण में बताया गया है – एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी में विवाद हो रहा था, की दोनों में से कौन बड़ा है, तभी उन दोनों के सामने एक ज्वाला स्तम्भ प्रकट हुआ।

इसका छोर नजर नहीं आ रहा था, तब भगवान विष्णु उसका एक छोर ढूंढने गए और ब्रह्मा जी उसका दूसरा छोर। लेकिन वो ऐसा ना कर पाए, क्यूंकि उसका कोई अंत नहीं था, तब दोनों अपने पहले स्थान पर आ गए।

तब वहां पर भगवान शिव प्रकट हुए, तब दोनों को भगवान शिव की शक्ति का आभास हुआ।

ब्रह्म पुराण के अनुसार

ब्रह्म पुराण में भगवान शिव, भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी जन्म माँ शक्ति से हुआ, ऐसा बताया गया है।

दोस्तों यही कारण है की हमारे मन इन पुराणों को लेकर शंका होना शुरू हो जाती है।

तीनों पुराणों की बातें, एक दूसरे को काटती हुई नजर आती है।

आप यही सोच रहे होंगे की इनमें से एक सही पुराण होगा और बाकि गलत।

इसकी असल रहस्य जानने के लिए हम शिव पुराण की बात करते हैं –

शिव पुराण में सदाशिव को स्वयंभू कहा जाता है, यानी वो जो स्वयं प्रकट हुए हों। उनका ना जन्म हुआ, ना मृत्यु होगी।

इसी प्रकार विष्णु पुराण में भगवान विष्णु को सत्य ईश्वर कहा जाता है, वो समय से बाहर हैं, उनका कोई रंग रूप या आकार नहीं है। यानी हम देखें तो सदाशिव और सत्य विष्णु की परिभाषा एक समान है, यानी वो एक ही स्वरुप है। बस अलग पुराण में अलग अलग नाम।

वो ही सृष्टि संचालन के एक भौतिक रूप लेते हैं।

भौतिक सृष्टि में उनके ही कई भौतिक रूप आते हैं – सृष्टि उत्पत्ति के लिए ही ब्रह्मा जी आये, सृष्टि संचालन के लिए वो ही भगवान विष्णु जी के रूप में आये, प्रलय के समय उन्हीं का भौतिक रूप भगवान शिव आते है।

भौतिक सृष्टि के नियम हैं, जिनका पालन होता है, हमारी सृष्टि की कई बार रचना हो चुकी है और कई बार इसका विनाश हो चूका है। हर बार सृष्टि में उनके ही रूप बने। कभी ब्रह्मा जी से भगवान शिव ने जन्म लिया तो कभी भगवान शिव स्वयं स्तम्भ के रूप में प्रकट हुए। और जब सृष्टि का अंत हुआ तो वो उसी निराकार स्वरुप में समां गए।

यही कारण है की हर पुराण में आपको अलग अलग कथा मिल जाती है, अगर हम उसकी गहराई में जाये, तभी हमें सत्य की ज्ञान प्राप्त होता है।

भगवान शिव भी निराकार सदाशिव का भौतिक स्वरुप है, जो अलग अलग तरह से सृष्टि में आते हैं और अपना कार्य करते हैं।

दोस्तों सनातन धर्म को समझना सरल नहीं है, बड़ा ज्ञान को समझने के लिए हमें अपने माइंड का स्टर भी ऊँचा करना पड़ता है।

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