1000 लोगों को मारने का प्रण लिया अंगुलिमाल ने, की मैं 1000 लोगों को मार दूंगा ऐसी प्रतिज्ञा करता था वो। राजा बिम्बिसार से उसका बैर था। राजा बिम्बिसार ने उसका कुछ छीन लिया, अंगुलिमाल डाकू नाम उसका बाद में पड़ा।
अब 999 लोगों मार दिया, जिस पहाड़ी पे वो रहता था गांव वालो ने उस पहाड़ी पे जाने का रास्ता बंद कर दिया कि उस पहाड़ी पे कोई जाये नहीं, वहां पर नोटिस बोर्ड लगाए गए की “यहाँ पर जाना निषेध है, यहाँ पर अंगुलिमाल रहता है, ये 999 लोगों को मार चूका है।”
राजा खुद काँपता था, वहां जाते वक़्त और इसलिए वो रास्ता ही बंद कर दिया। उस अंगुलिमाल की माँ कभी कभी उनसे मिलने जाती थी, लेकिन जब उसने 999 को मार दिया तो माँ ने जाना बंद कर दिया, कि क्या पता ये मुझे ही मार दे अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए।
पूरा का पूरा गांव अंगुलिमाल के नाम से भी काँपता था। और एक दिन एक घटना घटी महात्मा बुद्ध आए, महात्मा बुद्ध के साथ उनका एक शिष्य था, और उसी रास्ते पे चलने लगे।
शिष्य ने बोला “तथागत यहाँ जाना ठीक नहीं है, यहाँ अंगुलिमाल रहता है, उसने 1000 लोगों को मारने का प्रण लिया, 999 लोगों को वो अब तक मार चूका है, आपका यहाँ से जाना खतरे से खाली नहीं है, रास्ता बदल दीजिये।”
बुद्ध का जवाब आया – “बुद्ध ने कहा अगर तू मुझे नहीं बताता, तो संभवतः मैं यहाँ से ना जाता, लेकिन अब तूने मुझे बता दिया है, तो मैं ये रास्ता छोड़ने वाला नहीं हूँ, उस अंगुलिमाल को मेरी जरुरत है, वो साधु ही क्या जो अपना रास्ता बदल दे, मैं तो जाऊंगा, तू चाहे तो लौट जा।”
और महात्मा बुद्ध उस रास्ते से आगे बढ़ने लगे।
अंगुलिमाल ने दूर से आते हुए बुद्ध को देखा। बुद्ध उस रस्ते पे आगे बढे, और जब अंगुलिमाल ने दूर आते हुए बुद्ध को देखा तो बड़ा प्रसन्ना हुआ कि आज मेरी प्रतिज्ञा पूरी होने की समय आ गया, आज एक हज़ारवां वध करूँगा और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करूँगा।
उंगलियों की माला अपने गले में लटकाता था अंगुलिमाल। जैसे ही बुद्ध नजदीक आए क्या तेज, क्या चाल, क्या एनर्जी और उसको देखके अंगुलिमाल के हाथ कांपे।
फिर भी अंगुलिमाल ने बोला सन्यासी तू रुक जा। हालाँकि मुझे बड़ी खुशी हो रही है की तू मेरा हज़ारवां शिकार है, आज मेरी प्रतिज्ञा पूरी होने का समय है, लेकिन तू रुक, तू आगे मत बढ़। क्यूंकि उसका तेज अंगुलिमाल सहन नहीं कर सका।
बुद्ध ने बोला “डरता क्यों है ! किससे डरता है !”
अंगुलिमाल ने बोला सारी बातें ठीक है, मैं तुझे मार दूंगा।
बुद्ध ने बोला “तू क्षत्रिय है, मैं भी क्षत्रिय हूँ, देखते हैं कौन किसका वध करता है, मार दे”
अंगुलिमाल ने बोला “सन्यासी तू रुक।”
बुद्ध बोला “मैं तो 50 साल पहले रुक गया अब तू रुक जा।”
अंगुलिमाल के दिल में मानो ऐसा लगता है की महाभारत से भी ज्यादा खतरनाक युद्ध छिड़ा होगा की मैं मारू या इसको ना मारू! क्यूंकि बुद्ध की वो तेज देखके वो पागल हो गया। और इतनी बात करते करते बुद्ध अंगुलिमाल के बिल्कुल सामने आके खड़े हो गए।
अंगुलिमाल ने बोला “तेरे को मार दूंगा, तू लौट जा।”
बुद्ध ने बोला “तुझे लौटाने आया हूँ, मार दे !”
अंगुलिमाल ने बोला “तुझे डर नहीं लगता सन्यासी !”
बुद्ध ने बोला “डर किस चीज का ! मार दे लेकिन एक शर्त है”
अंगुलिमाल अपने हाथ में एक खड़ग रखता था। उसने बोला मार दूंगा शर्त क्या है !
बुद्ध ने बोला “एक पेड़ की ऊपर टहनी है इसको काट दे पहले”
अंगुलिमाल ने अपना खड़ग उठाई और खटाक से टहनी के दो टुकड़े कर दिए।
टहनी काट गई और बुद्ध मन ही मन मुस्कुराए कि बात तो मान रहा है। इस अवस्था में भी बात मान रहा है, इसके परिवर्तित होने की संभावनाएं पूरी है।
अब जब टहनी काट गई तो अंगुलिमाल ने बोला “अब”
बुद्ध ने बोला “इस इस टहनी को फिर से जोड़ दे।”
अंगुलिमाल ने बोला कि “तू सन्यासी पागल हो गए क्या ! जो कट गया वो जोड़ा थोड़ी जा सकता है।”
बुद्ध बोलै “मैं भी तो तुझे यही कह रहा हूँ, काटना बहुत सरल है, जोड़ना बहुत मुश्किल है। तूने 999 लोगों को काट दिया, अब एक को जोड़ के बता !
आंसुओ से भर गया, अंगुलिमाल की आंखे, गले से उंगलिओ की माला उतार कर बुद्ध के चरणों में डाल दी। बुद्ध पलट गए, उससे बात नहीं की और पलटे, बुद्ध को पता था की मेरे पीछे जरूर आएगा, और अंगुलिमाल बुद्ध के पीछे पीछे बुद्धं शरणं गच्छामि करता हुआ बुद्ध के पीछे हो लिया।
विचार बदल गया दोस्त और अंगुलिमाल की जिंदगी पूरी तरह से बदल गयी। एक विचार आपकी जिंदगी बदलने के लिए काफी है।
बुद्ध गाँव में आये और सन्यास दिया अंगुलिमाल को और अंगुलिमाल सन्यासी हो गया। राजा को पता चला और राजा बड़ा प्रसन्न हुआ, कि फाइनली टेंशन दूर हो गयी। और बुद्ध ने आखिर में अंगुलिमाल को बोला जा भिक्षा मांग के आ।
अब अंगुलिमाल भिक्षा मांगने गया, उन्ही लोगों के घर, जिनके घरवालों को अंगुलिमाल ने काट दिया था, लोगों ने पत्थर मारे। लहू लुहान वापस आया बुद्ध के पास।
बुद्ध ने हाथ पकड़ा स्पर्श किया, और अंगुलिमाल बोलै “पीड़ा हो रही है!”
बुद्ध ने बोले “पीड़ा तो मन को होती है, पत्थर तो शरीर को मारे गए हैं, मन तो तू अपने साथ ले गया, अब काहे की पीड़ा, अब तो पीड़ा चली गयी।”
सीख – एक व्यक्ति 999 लोगों को मारने के बाद भी सन्यासी बन सकता है, यानी की विचार बदले तो दुनिया बदल सकती है।