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चाणक्य जैसी एक आदमी

कहानी1 year ago12 Views

एक बार मूसलाधार वर्षा होने के कारण एक नदी के किनारे बसे एक गांव में भीषण बाढ़ आ गयी। नदी के पानी ने रात के अंदर उस गांव को चारो तरफ से घेर लिया था। पानी तेजी से लोगो के घरो में घुसना शुरू हो गया था। लोग घबराकर अपने घरो का सामान बेचने में लग गए थे, तब तक लोगो के लग-भग सारे जानवर पानी में बहकर इधर-उधर जाने लगे।

तब गांव के सभी लोग अपने जरुरत का सामान लेकर अपने परिवार सहित गांव से थोड़ी दूर एक ऊँचे टीले पर जाकर बस गए और बारिश के रुकने और अपने गांव से नदी के पानी के निकलने की प्रतीक्षा करने लगे थे।

परन्तु जब गांव वालो को ये पता चला की उस बाढ़ के और बढ़ने की संभावना है और इस बार उस बाढ़ में ये ऊँचा टीला भी पानी में डूब सकता है, तो सभी गांव वालो ने वहां से पलायन करने का निस्य कर लिया था।

गांव के मछवारों ने अपनी छोटी छोटी नांव को उस नदी में उतार दिया था, जिसमें गांव के लोग अपने सामान के संबार हो गए थे।

उन गांव वालो में से एक व्यक्ति ऐसा भी था, जिसके पास उसका पालतू कुत्ता भी था।

लोगो ने उस व्यक्ति से कहा की वो अपने कुत्ते को साथ लेकर न चले, लेकिन वो व्यक्ति अपने कुत्ते को छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ।

आखिरकार उस व्यक्ति के साथ उस कुत्ते को भी उस नांव में बैठा लिया गया।

कुत्ता आखिर था तो जानवर ही, इसलिए वो नांव पर शांत कैसे बैठ सकता था, नांव चलने की कुछ देर बाद ही कुत्ते ने नांव पर उछलना-कूदना और भौंकना शुरू कर दिया।

कुत्ते के डर से जब नांव से बैठे आदमी अपनी जगह से हिलते-डुलते थे तो वो छोटी सी नांव अपना संतुलन खोने लगती थी, जिससे नांव में बैठे सभी लोग घबरा जाते थे।

कुत्ते का मालिक अपने कुत्ते को बहुत सँभालने की कोशिश करता था परन्तु वे इन प्रयास में कामियाब नहीं हो पाता था।

इसलिए अब उसे भी कुत्ते को अपने साथ लेकर आने की भूल पर पछतावा होने लगता है कुत्ते के उछल-कूद से जब सभी लोग बहुत परेशान होने लग जाते है,

तब उस नांव पर चंवार एक लड़का कुत्ते के मालिक से कहता है – “अगर आप कहते है तो मैं इस कुत्ते को एक मिनट में सही कर सकता हूँ”

अब कुत्ते के मालिक के पास उस लड़के के बात मान लेने की आलावा कोई चारा भी नहीं था।

और कुत्ते के मालिक के हाँ करते ही उस लड़के ने कुत्ते को उठाकर नदी में फेंक दिया।

बस फिर क्या था ! कुत्ता पानी के बहाव में जोड़ जोड़ से हिचकोले खाने लगा, वो अपनी जान बचाने की कोशिश में तेजी से उस नांव का पीछा करने लगा।

कुछ देर तक सबक सीखने के बाद उस लड़के ने कुत्ते को सहारा देकर उस नांव पर वापस सढ़ा लिया।

नांव पर वापस आते ही वो कुत्ता अपने मालिक के पेरो के पीछे दुबककर चुपचाप मिनमिनाता रहा था।

लड़के की इस चतुराई को देखकर नांव में बैठे लोग उसके बहुत प्रसंशा करने लगते है।

कुत्ते का मालिक उस लड़के से पूछता है की – “कुत्ते को शांत करने के लिए तुम्हारे दिमाग में ये युक्ति कैसे आयी”

वो लड़के ने सभी को समझाते हुए ये कहा की – “कभी दूसरे की परेशानी या उनके दुःख का पता, हमे तब तक नहीं चल पाता, जब तक हम स्वयं उस परिस्थिति में नहीं आते। इसी तरह इस कुत्ते को भी पता नहीं था की इसकी वजह से हमारी जान को खतरा हो रहा है, मगर अब खुद पानी में गिरने के बाद इसे इस नांव की और परिस्थिति को समझ में आगया, अब ये दुबारा उछल-कूद नहीं करेगा”

जब सभी लोग सुरक्षित नदी पार करके एक सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाते है, तो सभी एक बार फिर उस लड़के को धन्यवाद कहते हुए उसकी सूझ-बूझ और सीख की प्रसंशा करते है।

उसी दिन से गांव के सभी लोग उस लड़के को चाणक्य की दूसरे रूप मानने लगे।

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