कृष्ण की माया और ब्रह्मा
एक बार कृष्ण अपने सखाओं के साथ यमुना नदी के किनारे गए। उन्होंने सखाओं से कहा, “नदी का यह किनारा साफ-सुथरा है। बालू भी काफी नरम है, हम सब यहीं खेल सकते हैं। पर भूख लगी है चलो पहले कुछ खा लें।” वे सभी वहीं बैठकर अपने साथ लाया हुआ खाना खाने लगे। इधर वो सभी भोजन करने में मस्त थे उधर उनकी गायें और बछड़े चरते -चरते जंगल में काफी भीतर तक चले गए थे। भोजन समाप्त होने पर उनका ध्यान उनके मवेशियों की ओर गया। वे उन्हें दिखाई नहीं दिए। उन्होंने चारों ओर ढूँढा पर उनका कहीं पता नहीं चला। अपने माता-पिता को क्या उत्तर देंगे यह सोचकर वे घबरा उठे। कृष्ण ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा, “मित्रों, चिंता मत करो। तुम लोग यही ठहरो, मैं अभी उन्हें ढूँढकर लाता हूँ।” यह कहकर कृष्ण गायों को ढूँढने नदी के किनारे से जंगल की ओर चल दिए पर दूर-दूर तक मवेशियों का कहीं पता नहीं था।
कृष्ण गायों को ढूँढने लगे और उनके मित्र वहीं यमुना नदी के किनारे बैठे उनकी प्रतीक्षा करने लगे। गायों को ढूँढते हुए कृष्ण जंगल में काफी दूर तक चले गए। ब्रह्मा ने यह सब देखा तो उन्होंने कृष्ण की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने जंगल में गई हुई गायों और सभी चरवाहे बालकों को गायब कर कहीं छिपा दिया। कृष्ण ने जंगल में गायों को बहुत ढूँढा पर वे नहीं मिलीं। वे यमुना किनारे लौट आए। वहाँ अपने मित्रों को न पाकर उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। कृष्ण तुरंत समझ गए कि यह सब ब्रह्मा की चाल है। वे कृष्ण की परीक्षा ले रहे थे। फलतः कृष्ण ने गोपों और गायों का रूप धरा और वृंदावन लौट गए। गोपों के माता-पिता अपने बच्चों तथा मवेशियों को सुरिक्षत आया देख बहुत प्रसन्न हुए। कृष्ण की दिव्य शक्तियों के कारण माताओं तथा पुत्रों में असीम प्रेम दिख रहा था। गायें भी अपने बछड़ों को बहुत प्यार करने लगी थीं। किसी को कोई शंका नहीं हुई। सब सहज भाव से चलने लगा।
लगभग एक वर्ष तक कृष्ण ने गायों और गोपों का रूप धरे रखा। इसी बीच बलराम को कुछ शंका हुई। उन्होंने सोचा, “मैंने पहले कभी भी गाय और बछड़ों के बीच इतना प्रेम नहीं देखा… माता-पिता भी अपनी संतान पर बहुत प्रेम दर्शा रहे हैं..” अपने मन की शंका दूर करने के लिए बलराम ने अपने दिव्य चक्षु खोले। दिव्य चक्षुओं से देखने पर सभी गाय बछड़े, गोपों, बांसुरी, छड़ी, आभूषणों आदि में उन्हें कृष्ण ही दिखलाई दिए। बलराम ने जाकर कृष्ण से कहा, “हे प्रभु! ये बछड़े और गोप न तो देव हैं न ही ऋषि। ये सभी आप सदृश लगते हैं। हे कृष्ण ! यह माजरा क्या है?” तब कृष्ण ने बलराम को ब्रह्मा के छल के विषय में बताया। कुछ दिनों बाद जब ब्रह्मा व्रज लौटे तब वे कृष्ण को गोप सखाओं तथा गायों के साथ खेलते देख अचंभित रह गए। उन्हें अपनी दृष्टि पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। उन्होंने सोचा. ” भला यह कैसे संभव है? पिछले वर्ष मैंने तो गोपों और गायों को छिपा दिया था।”
ब्रह्मा तो कृष्ण की परीक्षा ले रहे थे। पर जब उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तब सभी गायों और गोपों में श्रीकृष्ण को विद्यमान पाया। सभी गोपों का वर्ण नीला था और पीतांबरधारी थे। उनके हाथों में दिव्यास्त्र और सिर पर मोर का मुकुट था, कानों में कुंडल, गले में हार, हाथों में कड़े, पैरो में पाजेब और दमकता हुआ शरीर था। ब्रह्मा ने देखा कि ब्राह्मण कृष्ण की अर्चना कर रहे थे। यह दृश्य देख ब्रह्मा अचंभित रह गए। उन्हें कृष्ण की सत्यता पता चली। वे कृष्ण के पास गए। आँखों में अश्रु भरकर उन्होंने कृष्ण की स्तुति करी और नमन किया। छिपाई हुई गायों और गोपों को लेकर वे यमुना तट पर आए। कृष्ण उन सभी को लेकर गाँव वापस लौटे और वे सभी अपने-अपने घर चले गए। हालांकि एक वर्ष बीत चुका था पर गोपों को लगा मानो एक पल ही बीता था और वे अपनों से पल भर के लिए ही दूर हुए थे।