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Complete Shri Krishna Katha – जन्म से लेकर गोलोक धाम तक

कहानी1 year ago1.1K Views

कृष्ण और द्रौपदी

एक रात की बात है… द्रौपदी सो रही थी। अर्जुन और भीम ने देखा कि युधिष्ठिर सोई हुई द्रौपदी के चरण स्पर्श कर रहे थे। दोनों भाई यह दृश्य देखकर अचंभित थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था। अंततः उन्होंने युधिष्ठिर से इसका कारण जानने के लिए पूछा “भाई, आपने उनके चरणस्पर्श क्यों किए?” युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को अपने साथ आने के लिए कहा। वे अपनी कुटिया के पास के एक बड़े बरगद के वृक्ष के नीचे गए। वहाँ उन्होंने बहुत सारे देवताओं को पेड़ से देवी का आवाहन करते देखा। शीघ्र ही द्रौपदी उस वृक्ष से देवी के रूप में प्रकट हुई। देवताओं ने उसे सोने का सिंहासन बैठने के लिए दिया। और फूलों से उनकी पूजा करी। यह सब देखकर अर्जुन की समझ में आया कि द्रौपदी एक देवी थी जिसने मानव रूप में अवतार लिया था। कुछ लोग द्रौपदी को महाकाली का अवतार मानते हैं जिनका जन्म भारत के अत्याचारी और दंभी राजाओं के नाश में कृष्ण की सहायता करने के लिए हुआ था।

एक बार क्रोधी स्वभाव वाले दुर्वासा ऋषि दुर्योधन के पास गए और उसे खूब आशीर्वाद दिया। पाण्डवों का अहित चाहने वाले दुर्योधन ने वन में रह रहे पाण्डवों के पास दुर्वासा ऋषि को यह विचारकर भेजा कि पाण्डव उन्हें भोजन नहीं करा पाएँगे और दुर्वासा के क्रोध का कारण बनेंगे। दुर्वासा ऋषि अपने ढेर सारे शिष्यों के साथ पाण्डवों के पास वन में गए। पाण्डवों को आशीर्वाद दिया, द्रौपदी को भोजन पकाने के लिए कहकर स्वयं शिष्यों के साथ नदी पर स्नान करने चले गए। दुर्भाग्यवश द्रौपदी उस दिन सबको भोजन कराकर स्वयं भी खा चुकी थी। अक्षय पात्र खाली था। दुर्वासा के श्राप से बचने के लिए उसने कृष्ण से विनती करी। कृष्ण आए और उन्होंने कहा ” अक्षय पात्र लाओ।” अक्षय पात्र के भीतर उन्हें चावल का एक दाना मिला। कृष्ण ने उसे खाकर जोर की डकार ली। आश्चर्यजनक रूप से, उसी समय दुर्वासा तथा उनके शिष्यों को भी पेट भरे होने का आभास हुआ और उन्होंने भी डकार लिया। वे स्नान कर आए और बिना भोजन किए ही वापस लौट गए।

सहायक घटोत्कच

अभिमन्यु अर्जुन तथा कृष्ण की बहन सुभद्रा का पुत्र था। वह एक महान योद्धा था। बलराम की पुत्री वत्सला अभिमन्यु की वीरता से प्रभावित होकर उससे विवाह करना चाहती थी। बलराम ने उसका विवाह दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण कुमार से निश्चित कर दिया था। अभिमन्यु और वत्सला ने घटोत्कच से सहायता मांगी। जिससे ये दोनों बिना किसी बाघा के विवाह कर सकें। जिस दिन वत्सला का विवाह लक्ष्मण कुमार से होना था उस दिन घटोत्कच ने वत्सला का रूप धरा और विवाह मण्डप में बैठ गया। उसने धीरे से लक्ष्मण का हाथ पकड़ा और फिर उसे इतनी जोर से दबाया कि लक्ष्मण वहीं बेहोश होकर गिर पड़ा। होश में आने पर लक्ष्मण ने स्वयं ही वत्सला के साथ विवाह से इंकार कर दिया। उसने कहा कि वह यह संबंध नहीं चाहता है, क्योंकि वत्सला के पास कुछ अदृश्य शक्तियाँ हैं। इस प्रकार लक्ष्मण और वत्सला का विवाह न हो सका।

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