कृष्ण और बरबरीक
बरबरीक भीम का पौत्र था तथा एक महान योद्धा था। कुरुक्षेत्र में कौरवों और पाण्डवों के बीच युद्ध शुरू हो चुका था। वह महाभारत युद्ध में भाग लेने के लिए मात्र तीन तीर और धनुष लेकर आ रहा था। ब्राह्मण वेषधारी कृष्ण ने रास्ते में उसे रोककर उसकी खिल्ली उड़ाई, “बस इसी तीन बाण से तुम लड़ोगे?” “हाँ! मैं इन्हीं से लड़ेंगा” तब उन्होंने एक बाग से पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को छेदने की उसे चुनौती दी। बरबरीक ने चुनौती स्वीकार कर बाण चलाया। क्षण भर में बाण ने सभी पत्तों को छेद कर कृष्ण के पैरों का चक्कर काटना शुरु कर दिया क्योंकि कृष्ण ने एक पत्ता पैर के नीचे दबा रखा था। कृष्ण ने उसका लोहा मान लिया और पूछा, “तुम किसकी ओर से लड़ोगे?” उसने कहा, “हारने वाले की ओर से।” तब कृष्ण ने उससे उसका शीश दान में मांग लिया। बरबरीक अंत तक युद्ध देखना चाहता था। कृष्ण ने उसकी इच्छा पूर्ण करी। उसका सिर कटकर एक सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित हो गया और वहीं से बरबरीक ने पूरा कुरुक्षेत्र युद्ध अपनी आँखों से देखा।
कृष्ण का क्रोध
सूर्योदय होता और प्रतिदिन शंख की ध्वनि के साथ युद्ध शुरु हो जाता था। सूर्यास्त के साथ पुनः शंखध्वनि होती और युद्ध समाप्त हो जाता था। भीष्म अपनी पूरी शक्ति से लड़ रहे थे। पाण्डवों की सेना को बहुत क्षति हो रही थी फिर भी दुर्योधन भीष्म को ताने मारता कि वह पूरी शक्ति से युद्ध जानबूझ कर नहीं कर रहे। दुर्योधन के तानों से आहत भीष्म ने त्राहि मचा दी। उन्हें रोकने के लिए अर्जुन आया। अर्जुन भी भीष्म पर पूरी शक्ति से वार नहीं कर पा रहा था। अर्जुन के रथ का चक्का निकल गया। कृष्ण को बहुत क्रोध आया। उन्होंने रथ का चक्का उठा लिया और भीष्म पर प्रहार करने दौड़े। अर्जुन हतप्रभ रह गया। कृष्ण के पैर पकड़कर उसने क्षमा याचना करी और कहा, “प्रभु, आपने युद्ध में शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा करी थी। अपनी प्रतिज्ञा मत तोड़िए। मैं लहूँगा।” इस प्रकार कृष्ण की प्रतिज्ञा टूटने से बची और अर्जुन ने अपनी पूरी शक्ति से लड़ना शुरु किया।
भीष्म के अंत की योजना
भीष्म को अपनी मृत्यु के समय का चयन करने का वरदान देवताओं से प्राप्त था। भीष्म के कारण पाण्डवों की युद्ध में बहुत क्षति हो रही थी। तब कृष्ण ने शिखण्डि को युद्धक्षेत्र में लाने का सुझाव अर्जुन को दिया। वह जन्म से स्त्री थी पर बाद में वरदान के कारण उसने पुरुष का शरीर प्राप्त किया था। भीष्म अनभिज्ञ थे कि अब शिखण्डि पुरुष है। इसी का लाभ उठाकर अर्जुन अपने रथ पर शिखण्डि को ले आया। उसे देखकर भीष्म ने अपना सिर झुकाकर कहा, “मैं स्त्री पर शस्त्र नहीं चला सकता…’ अगले ही पल अर्जुन ने भीष्म पर बाणों की बौछार कर दी और उन्हें बुरी तरह से जख्मी कर दिया। प्राण त्यागने के लिए भीष्म शर शय्या पर लंबे समय तक पड़े उत्तरायण की प्रतीक्षा करते रहे क्योंकि उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान था और उत्तरायण का समय शुभ माना जाता था। उन्होंने युद्ध की समाप्ति पर युधिष्ठिर को एक अच्छे शासक बनने के लिए नीति और धर्म का ज्ञान भी दिया था।