तृणावर्त वध
पूतना के साथ घटित घटना को अभी कुछ ही दिन बीते थे। एक दिन बाहर बरामदे में कृष्ण यशोदा की गोद में बैठे खेल रहे थे। अचानक वह यशोदा को भारी लगने लगे। जब यशोदा से सहा न गया तब उन्होंने कृष्ण को अपनी गोद से उतारकर नीचे बैठा दिया और बचा हुआ काम निबटाने भीतर चली गई। इधर कंस को कृष्ण के जीवित होने का पता था। उसने उन्हें मारने के लिए तृणावर्त नामक दैत्य को भेजा। तृणावर्त बवंडर का रूप धरकर गोकुल आया। जोरो की धूल की आंधी चलने लगी और चारों ओर अंधकार छा गया। अचानक आए बवंडर से सभी घबरा गए। सभी कुछ बवंडर के साथ उड़ने लगा। किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी तृणावर्त धीरे से नंद के घर में घुसा और अपने साथ बाल कृष्ण को उड़ा ले गया। बवंडर को आता देख यशोदा कृष्ण को लेने भागी आई पर उसे कृष्ण कहीं नहीं दिखे। उसका मन शंकाओं से घिर उठा। अनजाने भय से वह घबराकर मूर्च्छित होकर वहीं गिर पड़ी।
बवंडर के रूप में तृणावर्त कृष्ण को लेकर आकाश में ऊपर और ऊपर उड़ता जा रहा था। अचानक उसे लगा कि बालक का भार बढ़ता ही जा रहा था। धीरे-धीरे भार इतना बढ़ा कि वह उसे सहने में असमर्थ हो गया, उसकी गति धीमी हो गई। अवसर पाकर कृष्ण ने तृणावर्त का गला पकड़कर जोर से दबाया। असहाय तृणावर्त का तभी प्राण निकल गया और वह धरती पर आ गिरा। आकाश में छाया अंधकार समाप्त हो गया था, बवंडर थम चुका था। गोकुलवासी कृष्ण को ढूँढ रहे थे। उन्होंने एक विशालकाय दैत्य को धरती पर मृत पड़ा देखा और कृष्ण को उसकी छाती पर बैठकर खेलता पाया। आश्चर्यचकित लोगों ने भागकर सबसे पहले कृष्ण को उठाया। उन्हें सुरक्षित देखकर वे भागे-भागे यशोदा के पास गए। यशोदा अपने पुत्र को सुरक्षित देखकर अत्यंत प्रसन्न हुई । उसे लगा कि यह नंद के अच्छे कर्मों का ही प्रभाव है जो कृष्ण सुरक्षित रहे। उसने ईश्वर का आभार व्यक्त किया।
नटखट कृष्ण
समय बीतने के साथ-साथ कृष्ण बड़े हुए। वह अत्यंत नटखट थे। तरह-तरह की शरारत कर गोपियों को परेशान किया करते थे। दूध दुहने का समय होते ही बछड़ों को खोल दिया करते थे, सिकहर पर लटके मटकों में छेद कर दिया करते थे तथा ओखली पर चढ़कर उन्हें उतारने की चेष्टा किया करते थे। गोपियों के घर से दूध-दही और मक्खन चुराकर अपने गोप सखाओं में बाँट दिया करते थे। यशोदा से शिकायत किए जाने पर वह साफ-साफ मुकर जाते थे और दूसरों का नाम लगा देते थे। एक बार एक गोपी ने कृष्ण को मक्खन चुराते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया था। वह कृष्ण को पकड़कर माँ यशोदा के पास ले गई। वह यशोदा को कृष्ण की करतूत बताना चाहती थी किन्तु अवसर पाते ही कृष्ण हाथ छुड़ाकर भाग खड़े हुए। जब गोपी यशोदा से शिकायत करने पहुँची तब कृष्ण को पहले से ही यशोदा की बगल में बैठे देख उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। वह चाहकर भी यशोदा से शिकायत नहीं कर पाई और यशोदा के पीछे छिपे कृष्ण गोपी को देखकर मंद-मंद मुस्कराते रहे।