Complete Shri Krishna Katha – जन्म से लेकर गोलोक धाम तक

अघासुर वध

गोकुलवासी धीरे-धीरे वृंदावन में बस गए थे। प्रतिदिन सभी बड़े लोग अपनी दिनचर्या में निकल जाते थे। बच्चे तरह-तरह के खेल में व्यस्त रहते थे। नए-नए खेल, नई-नई जगहें ढूंढते रहते थे। एक दिन कृष्ण तथा बलराम अन्य बालकों के साथ जंगल में खेल रहे थे। तभी अघासुर नामक विशाल दैत्य वहाँ आया। वह पूतना और बकासुर का भाई था। पूतना की मृत्यु के बाद कंस ने कृष्ण को मारने का काम अघासुर को सौंपा था। अघासुर दूर से खड़ा होकर कृष्ण तथा अन्य बालकों को खुशी-खुशी खेलता देख रहा था। उसे अचानक उसकी बहन पूतना याद आई और वह बदला लेने के लिए क्रोध से पागल हो गया। वह कृष्ण को मारने का उपाय सोचने लगा। तभी उसे एक युक्ति सूझी। उसने मन ही मन निश्चय किया कि कृष्ण, बलराम तथा उसके सखाओं को मारे बिना वह वृंदावन नहीं छोड़ेगा। अभी बच्चे जंगल में अकेले हैं। इस अवसर पर उन्हें आराम से मारा जा सकता है।

अघासुर को अपनी बहन पूतना की याद आई। उसे यह भी याद आया कि किस प्रकार एक छोटे से बालक के द्वारा उसे अपने प्राण गंवाने पड़े थे। क्रोधित अघासुर मन ही मन अपनी मृत बहन पूतना की मौत का बदला लेने का निश्चय कर चुका था। कृष्ण-बलराम तथा बालकों को जंगल में खेलते देखकर उसे एक युक्ति सूझी। एक बड़े अजगर का रूप धरकर वह वहीं ज़मीन पर लेट गया। उसने अपना बड़ा सा मुँह खोल रखा था। अघासुर ने अपने शरीर को एक पर्वत का सा बड़ा बना लिया था। उसका खुला हुआ मुँह और बड़े-बड़े दाँत ऐसे लग रहे थे मानो ढेर सारी गुफाओं के द्वार हों और वे सभी आकाश को छू रही हों। अघासुर चुपचाप बिना हिले-डुले लेट गया। वह कृष्ण और अन्य बालकों की प्रतीक्षा करने लगा। उसके मुख के भीतर गहरा अंधकार था। उसे पता था कि बच्चे उसे उत्सुकतावश अवश्य देखने आएँगे और गुफा समझकर छान-बीन करेंगे।

जंगल में खेलते-खेलते अचानक एक बालक ने इस विशाल पर्वत तथा गुफा को देखा। उसने अन्य बच्चों को इसके बारे में बताया। शीघ्र ही सभी बालक गुफा के बाहर आकर जमा हो गए जो वास्तव में भेष बदला हुआ अघासुर था। उत्सुकतावश सभी गुफा के भीतर चले गए। हालांकि कृष्ण जानते थे कि यह छद्म रूप में अघासुर था पर वह भी अपने मित्रों के साथ- साथ भीतर चले गए। गुफा में जाते हुए सभी बालक खूब चहक रहे थे। उन्हें लगा कि भीतर उन्हें खूब नई-नई चीजें देखने को मिलेंगी। ज्योंही अंतिम बालक ने गुफा में प्रवेश किया अघासुर ने अपना मुख बंद कर लिया। भीतर घुप अंधेरा हो गया। कृष्ण के मित्र घबरा उठे। कृष्ण ने उन्हें सांत्वना दिया और कहा कि उन्हें डरने की आवश्यकता नहीं है। कृष्ण ने स्वयं को बड़ा करना शुरु किया। वह इतने बड़े हो गए कि अघासुर का दम घुटने लगा। वह दर्द सह नहीं सका और मर गया। उसका मुँह खुल गया और कृष्ण के साथ सभी बालक सुरक्षित बाहर आ गए।

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