Follow Your Gut Book Summary in Hindi – छोटे-छोटे बैक्टीरिया के बड़े बड़े फायदे

Follow Your Gut Book Summary in Hindi – ये किताब आपको बैक्टीरिया की दुनिया की सैर कराती है। इसका नजरिया माइक्रोबायोलॉजी वाला न होकर इस बात की तरफ है कि इन छोटे-छोटे जीवों का हमारी रोज की जिंदगी में कितना बड़ा महत्व है। बैक्टीरिया हमारे चारों ओर ही नहीं शरीर के अंदर भी रहते हैं।

अगर ये न होते तो हमारी जिंदगी इतनी आसान नहीं होती। हमने तो बचपन से यही सुना है कि अच्छी तरह हाथ धोकर खाना खाओ, सफाई का ध्यान दो वरना बैक्टीरिया नुकसान करेंगे। जबकि सच तो ये है कि कुछ नुकसान होने के बावजूद इनके फायदों की लिस्ट भी बहुत लंबी है। ये हमको हैप्पी और हेल्दी बनाए रखते हैं। तो क्यों न इनके बारे में कुछ और जाना जाए।

अगर आप एक गर्भवती महिला हैं, या अगर आप हाइजीन और जर्म्स को लेकर बहुत सावधान रहते हैं, अगर आप बायोलॉजी और मेडिसिन पढ़ने वाले छात्र है तो ये बुक आपके लिए है।

लेखक

रॉब नाइट कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी सैन डियागो के पीडियाट्रिक्स और कम्प्यूटर साइंस विभाग में प्रोफेसर हैं। वे ISME जर्नल के संपादक और अमेरिकन गट प्रोजेक्ट के को-फाउंडर भी हैं। ब्रैंडन एक अवार्ड विनिंग लेखक हैं जो विज्ञान से जुड़े टॉपिक्स पर लिखते हैं। उनका काम Sierra मैगजीन, the Los Angeles Times और California मैगजीन में छप चुका है। उनकी रॉब नाइट पर लिखी बायोग्राफी को The Best American Science and Nature Writing साल 2012 के एडिशन में जगह मिली थी।

Follow Your Gut Book Summary in Hindi – छोटे-छोटे बैक्टीरिया के बड़े बड़े फायदे

हमारे शरीर में पाए जाने वाले बैक्टीरिया की संख्या हमारी कोशिकाओं से भी ज्यादा होती है।

हम हमेशा गट फीलिंग को सबसे ऊपर रखते हैं। लेकिन गट पर किसका राज चलता है? बिना माइक्रोस्कोप के नजर भी न आने वाले मामूली से बैक्टीरिया का। गट ही नहीं बल्कि हमारी सूंघने की ताकत, मूड और हेल्थ की कमांड भी इनके हाथों में रहती है। यानि ये हमारी रोजमर्रा की बहुत सी एक्टिविटीज कंट्रोल करते हैं।

हो सकता है किसी दिन तारों की गिनती कर ली जाए पर हमारी आंतों के बैक्टीरिया उससे भी ज्यादा निकलेंगे। लोग जर्म्स के नाम से घबराते हैं लेकिन हमारे पहली सांस लेने से आखिरी सांस लेने तक कोई ऐसा पल नहीं होता जहां बैक्टीरिया का रोल न हो। अगर आप भी इनमें से एक हैं तो हिम्मत करके इस किताब को पढ़ लीजिए। हो सकता है आपकी सोच बदल जाए।

इस समरी को पढ़ कर आप जानेंगे कि सीजेरियन सेक्शन से पैदा होने वाले बच्चों का माइक्रोबियल फ्लोरा कमजोर क्यों होता है? माइक्रोब्स का हमारे जीवन में कितना महत्व है? और एन्टीबायोटिक्स के क्या नुकसान हैं?

तो चलिए शुरू करते हैं!

हमारा जेनेटिक मेकअप, हमारी कोशिकाएं और हमारा शरीर हमको इंसानी रूप देते हैं। लेकिन इससे आगे भी बहुत कुछ है जिसे समझने की जरूरत है। हमारे शरीर में कोशिकाओं की संख्या लगभग 10 ट्रिलियन होती है जबकि माइक्रोब्स यानि सूक्ष्मजीव इससे लगभग दस गुना होते हैं। ये एक कोशिकीय जीव होते हैं। इनको मिलाकर माइक्रोबायोम कहा जाता है जिनमें से ज्यादातर बैक्टीरिया होते हैं।

आप खुद को इस माइक्रोबायोम इकोसिस्टम का होस्ट कह सकते हैं। इसमें तरह-तरह के माइक्रोब्स होते हैं। इंसानी डीएनए लगभग 99.99% एक सा होता है। लेकिन जब गट माइक्रोब की बात आती है तो ये दूसरे इंसान से 10% सिमिलर भी नहीं होता।

असल में हमारा माइक्रोबियल एनवायरमेंट इतना अलग होता है कि वो हमारी पहचान बन सकता है। आप जिस माउस या पेन का इस्तेमाल करते हैं उसे माइक्रोब्स के आधार पर बाकियों से अलग पहचाना जा सकता है। आपकी हथेली के ही 85% माइक्रोब्स दूसरों से अलग होते हैं। इसे आप अपना “microbial fingerprint” भी कह सकते हैं।

आपके हाथ, पेट, स्किन हर जगह ये सूक्ष्मजीव होते हैं। लेकिन इस वजह से आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। ये बिना आपका नुकसान किए चुपचाप अपना काम करते रहते हैं। इनमें से ज्यादातर आपकी आंतों में होते हैं। यहां इनके दो मुख्य काम हैं। एक तो ये भोजन में आए फाइबर को प्रोसेस करते हैं और ये तय करते हैं कि आप भोजन से कितनी कैलोरी लें।

दूसरा ये कि आपकी दवाइयां सही तरह से असर करें। स्किन के माइक्रोब स्किन से ही निकलने वाले पसीने और ऑयल पर जिंदा रहते हैं। पसीने की महक भी इनकी वजह से होती है। इसी महक की वजह से कुछ लोगों को मच्छर ज्यादा काटते हैं और कुछ को कम। यदि इन बातों का सार निकालें तो यही समझ आता है कि हम सर से पैर तक माइक्रोब्स से घिरे हुए हैं।

नार्मल डिलीवरी होने पर बच्चों का माइक्रोबियल एनवायरमेंट मजबूत बन जाता है पर ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चों में इसकी कमी रह जाती है।

जब बच्चा माँ के गर्भ में होता है तब उसके आस-पास एक भी माइक्रोब नहीं होता। यानि वो पूरी तरह जर्म फ्री रहता है। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं है कि माइक्रोब्स बच्चे को प्रभावित नहीं करते। गर्भवती महिला के गट माइक्रोब्स में बदलाव आ जाता है ताकि वो भोजन से ज्यादा एनर्जी ले सकें और गर्भ में पल रहे बच्चे को सही पोषण मिलता रहे। लेकिन गर्भाशय से बाहर आते ही बच्चे की “जर्म फ्री” स्थिति बदल जाती है।

स्टडीज से ये बात पता चली है कि गर्भावस्था में महिलाओं के प्रजनन अंगों में लैक्टोबेसिलस जैसे कुछ माइक्रोब्स बढ़ने लगते हैं। गर्भाशय से बाहर आते हुए बच्चा इनके संपर्क में आता है और ऐसा माना जाता है कि इनसे बच्चे पर एक प्रोटेक्टिव लेयर बन जाती है। जबकि सीजेरियन बच्चों को ऐसा प्रोटेक्शन नहीं मिलता है।

नॉर्मल डिलीवरी में होने वाली तकलीफ से बचने के लिए लोगों का झुकाव ऑपरेशन की तरफ होने लगा है लेकिन इससे बच्चों को नुकसान हो रहा है। ये बच्चे माँ की स्किन में पाए जाने वाले माइक्रोब्स के संपर्क में आते हैं न कि उस माइक्रोबियल एनवायरमेंट के जो उनके जन्म के लिए ही बनता है। इस बात के संकेत मिलते हैं कि सीजेरियन बच्चों की इम्यूनिटी नॉर्मल डिलीवरी से पैदा हुए बच्चों से कमजोर होती है।

उनको अस्थमा, फूड एलर्जी और मोटापे का खतरा ज्यादा होता है। हालांकि इस विषय पर अभी बहुत रिसर्च की जरूरत है। स्टडीज में वक्त लगेगा। लेकिन इसका हल जरूर मौजूद है। लेखक की वाइफ का सीजेरियन सेक्शन ही हुआ था पर उन्होंने अपने नवजात शिशु में साफ कॉटन की मदद से माइक्रोब ट्रांसफर कर दिए थे। इस मेथड से ऐसे सभी बच्चों तक ये प्रोटेक्टिव लेयर पंहुच सकती है।

माइक्रोब्स आपके वजन और मूड पर भी असर डालते हैं। आज इतने डाइट प्लान आ चुके हैं जिनकी गिनती करना मुश्किल है। लेकिन आपका वजन क्या होगा इसमें डाइट के अलावा गट माइक्रोब्स का भी योगदान होता है। वैज्ञानिक चूहों पर ये प्रयोग कर चुके हैं। उन्होंने चूहों में अलग-अलग सूक्ष्मजीव डाले। जब एक कम वजन वाले चूहे में किसी मोटे चूहे के माइक्रोब्स ट्रांसफर किए गए तो उसका वजन भी बढ़ गया।

जबकि एक पतले मनुष्य के माइक्रोब्स किसी पतले चूहे में डालने पर उसका वजन कम ही रहा। वजन के अलावा गट माइक्रोब्स आपके व्यवहार और ब्रेन के फंक्शन पर भी असर डालते हैं। गट और ब्रेन के इस कनेक्शन को microbiome-gut-brain axis कहा जाता है। डिप्रेशन से गुजर रहे ज्यादातर लोगों की आंतों में इन्फ्लामेशन होता है। इससे राहत देने के लिए आंतों में पाया जाने वाला ऑसिलीबैक्टर बैक्टीरिया, गामा अमीनोब्यूटेरिक एसिड नाम का प्राकृतिक tranquilizer बनाता है।

ये एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो नींद की दवाइयों और दिमाग को शांत करने में इस्तेमाल होता है। गट माइक्रोब्स ऑटिज्म से भी बचाव कर सकते हैं। कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नॉलॉजी के वैज्ञानिकों ने चूहों को ऑटिज्म के लिए जिम्मेदार 4-EPS का इंजेक्शन दिया। इन सबमें ऑटिज्म के लक्षण नजर आने लगे।

लेकिन जब उनमें Bacteroides fragilis नाम का माइक्रोब डाला गया तो न सिर्फ ऑटिज्म सुधरने लगा बल्कि उनकी गट प्रॉब्लम भी ठीक हो गई। ये प्रयोग अभी मनुष्यों पर नहीं हुआ है। लेकिन इसने इन छोटे-छोटे जीवों के बड़े रोल को जरूर समझाया है और भविष्य के लिए एक उम्मीद जगाई है।

माइक्रोबायोम को बेहतर बनाने में प्रोबायोटिक्स और प्रीबायोटिक्स बहुत मदद करते हैं ।

इतना सब पढ़कर अब आप ये सोच रहे होंगे कि ऐसे कौन से तरीके हैं जिससे माइक्रोबायोम बेहतर बनाया जा सकता है। प्रोबायोटिक्स बहुत काम के होते हैं। इनमें जीवित बैक्टीरिया और दूसरे सूक्ष्मजीव होते हैं। इनको गुड बैक्टीरिया कहा जा सकता है। इनमें से ज्यादातर आपकी गट में पहले से मौजूद होते हैं। प्रोबायोटिक्स आपको सप्लीमेंट, सपोसिटरी और फूड आइटम जैसे कई फार्म में मिलते हैं। कुछ में एक ही तरह के बैक्टीरिया होते हैं जबकि कुछ में मिक्स होते हैं।

यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने अभी तक इनके सेहत से जुड़े होने के दावों को मान्यता नहीं दी है इसलिए इनको फूड सप्लीमेंट की तरह बेचा जाता है। लेकिन ऐसी बहुत सी स्टडीज हैं जिनसे ये पता चला है कि प्रोबायोटिक्स बच्चों में डायरिया और वयस्कों में IBS होने पर बहुत फायदा करते हैं। आप भी इनके फायदे खुद इस्तेमाल करके समझ सकते हैं। इसके लिए पहले डॉक्टर से सलाह जरूर कर लें। प्रीबायोटिक्स भी मददगार होते हैं।

इस कैटेगरी में ऐसा भोजन आता है जिससे माइक्रोब्स की ग्रोथ होती है। इनमें इनुलिन जैसे डाइटरी फाइबर और लेक्टुलोस या गैलेक्टो ऑलिगोसैकराइड जैसे तत्व आते हैं। बैक्टीरिया इनको खाकर फलते-फूलते हैं। प्रीबायोटिक्स की एक स्टैंडर्ड परिभाषा तो नहीं है पर स्टडीज बताती हैं कि इनसे कब्ज, इन्सुलिन रेजिस्टेंस, क्रॉन्स डिजीज और IBS में बहुत आराम मिलता है। ये कहा जा सकता है कि प्रीबायोटिक्स हाई फाइबर डाइट की तरह काम करते हैं।

हमारे पूर्वजों की डाइट में फाइबर की भरपूर मात्रा होती थी जबकि हम इससे काफी दूर हो गए हैं। ज्यादातर माइक्रोब्स फाइबर पर ही सर्वाइव करते हैं। इसलिए इनको भोजन में शामिल करना और भी जरूरी हो जाता है।

एंटीबॉयोटिक्स का ज्यादा इस्तेमाल माइक्रोबायोम को नुकसान पंहुचाता है और इससे रेजिस्टेंस भी डेवलप हो सकता है। एंटीबायोटिक्स की खोज माडर्न मेडिसिन में एक मील का पत्थर साबित हुई थी क्योंकि इनके इस्तेमाल से न जाने कितने लोगों को बचाया जाना संभव हुआ। लेकिन इनके कुछ साइड इफेक्ट्स नजरअंदाज नहीं किए जा सकते। ये गुड और बैड बैक्टीरिया में फर्क नहीं कर सकते।

हम इनका इस्तेमाल बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया के खात्मे के लिए करते हैं पर ये उन बैक्टिरिया को भी खत्म कर देते हैं जो हमारे शरीर के लिए फायदेमंद हैं। इनके लिए बैक्टिरिया मतलब बैक्टीरिया। स्टडीज से पता चलता है कि अगर बच्चे को जन्म के छह महीनों के अंदर ही एंटीबायोटिक्स दे दिए जाएं तो इससे Bifidobacterium नाम के बैक्टीरिया की ग्रोथ खराब हो जाती है जो हमारी इम्यूनिटी को मजबूत करता है।

आगे चलकर ऐसे बच्चों में मोटापा, अस्थमा और कई तरह की एलर्जी होने का खतरा बढ़ जाता है। एक और बड़ा नुकसान ये है कि कुछ बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स के प्रति रेजिस्टेंट हो जाते हैं। इसकी संभावना सबसे ज्यादा तब होती है जब आप दवाओं का कोर्स पूरा नहीं करते हैं। यानि अगर आपकी हालत में सुधार आ रहा है तब भी आपको तब तक दवाई लेनी है जितनी आपके डॉक्टर ने लिखी है।

वरना कुछ बैड बैक्टीरिया आपके सिस्टम में रह जाते हैं और समय के साथ इतने मजबूत होते जाते हैं कि उन पर दवाएं असर करना बंद कर देती हैं। एंटीबायोटिक्स कृषि क्षेत्र के लिए भी चिंता का विषय हैं। 1950s में किसानों ने ये देखा कि जिन पशुओं को एंटीबायोटिक्स की हल्की डोज दी जाती थी उनका वजन बढ़ने लगता था। जितना वजन उतना मीट और उतना ही मुनाफा।

लेकिन इस वजह से उनका रेजिस्टेंस बढ़ता ही गया क्योंकि बिना पूरी डोज दिए सभी बैड बैक्टीरिया खत्म नहीं होते थे। अब पशुओं में बीमारियों का खतरा बना रहता था। इसलिए EU ने अपने यहां लो डोज एंटीबायोटिक्स बैन कर दिए हालांकि दूसरे देशों में इनका इस्तेमाल जारी है। आज की तारीख में बस ये उम्मीद की जा सकती है कि लोग गुड बैक्टीरिया का महत्व समझें और एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल सोच समझकर किया जाए।

Conclusion

माइक्रोब्स हमारी सेहत के लिए जरूरी हैं। हम अपने खान-पान में बदलाव करके, प्रोबायोटिक और प्रीबायोटिक चीजों का इस्तेमाल करके इनको हेल्दी बनाए रख सकते हैं। एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल तभी करें जब बहुत जरूरी हो न कि हर मामूली सर्दी-जुकाम में। और जब भी लेना जरूरी हो तो इनकी डोज अधूरी न छोड़ें। याद रखिए दिल का रास्ता तो पेट से जाता ही है पर सेहत का रास्ता भी पेट से ही जाता है। यानि आपका पेट स्वस्थ रहता है तो आप भी स्वस्थ रहते हैं।

क्या करें

आप अपने माइक्रोबायोम के बारे में पता लगा सकते हैं। अमेरिकन गट प्रोजेक्ट इसके लिए मदद करता है। एडवांस डीएनए सीक्वेंसिंग तकनीक की वजह से ये सुविधा $99 में मिल जाती है। पेमेंट के बाद आपके पास एक किट भेजी जाती है जिससे आप अपने माइक्रोबायोम की जांच खुद कर सकते हैं। जितना हो सके अपने माइक्रोबायोम को हेल्दी बनाए रखिए ताकि आप मोटापा, एलर्जी और डिप्रेशन जैसी बीमारियों से दूर रहें।

तो दोस्तों आपको आज का यह Follow Your Gut Book Summary in Hindi कैसा लगा ?

आज आपने इस बुक समरी से क्या सीखा ?

अगर आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव है तो मुझे नीचे कमेंट में जरूर बताये।

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,

Wish You All The Very Best.

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