Getting to Yes Book Summary in Hindi – बिज़नेस में मोलभाव एक्सपर्ट बनने का तरीका

Getting to Yes Book Summary in Hindi – Hello दोस्तों, साल 1981 में प्रकाशित हुई बुक Getting to Yes आपको बेहतर तरीके से मोलभाव करना सिखाएगी। इस बुक समरी की मदद से आप जान पाएंगे कि किस तरह से आप बिना कुछ नुकसान सहे, किसी भी चीज को लेकर मोलभाव करते हुए खुद के लिए फायदे का सौदा तय कर पाएंगे। तो अगर आपको अपने छोटे या बड़े बिज़नेस में मोलभाव अच्छे से करना है तो आप ये बुक समरी आगे पढ़ सकते हैं।

 

Page Contents

यह बुक समरी किसके लिए है?

 

हर उस व्यक्ति के लिए जो कि खुद को मोलभाव करने में एक्सपर्ट बनाना चाहता हो, फिर चाहे उसे कोई बिजनेस डील करनी हो, या घर के लिए कोई समान खरीद कर लाना हो।

 

हर उस व्यक्ति के लिए जो ये जानना चाहता है कि कैसे किसी भी डील में हर सिचुएशन में खुद के लिए जीत ही सुनिश्चित करें।

 

 

लेखक के बारे में

 

रोजर फिशर अमेरिका के हार्वर्ड लॉ स्कूल के प्रोफेशर थे, उन्होंने अपने सहयोगी लेखकों के साथ मिलकर के Harvard Negotiation Project की शुरुआत भी की थी। उनका जन्म साल 1922 में हुआ था और 2012 में उनकी मृत्यु हो गयी।

 

वहीं विलियम यूरी मशहुर मानव विज्ञानी यानी कि एंथ्रोपोलॉजिस्ट के रुप में जाने जाते हैं। वो दुनिया भर की बहुत सारी कारपोरेट संस्थाओं के साथ ही विभिन्न सरकारी संस्थाओं के लिए भी पीस नेगोशिएटर यानी की शांति वार्ताकार के रुप मे काम करते हैं।

 

ब्रूस पैटन भी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के लेक्चरर है साथ ही विंटेज पार्टनर्स नाम की एक कंपनी के सह संस्थापक भी है। विटेंज पार्टनर एक अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी कंपनी है जो कि विभिन्न कम्पनियों को उनके नेगोशिएशन स्किल को बढाने में मदद करती है।

 

 

Getting to Yes Book Summary in Hindi – बिज़नेस में मोलभाव एक्सपर्ट बनने का तरीका

 

अच्छे से मोलभाव करना सीखिए, सब कुछ आपके मोलभाव करने पर ही निर्भर है।

 

आज शायद इस बात पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल होगा कि पहले किसी भी तरह के फैसले को लेने से पहले शायद ही कोई बैठकर उस बारे में बात करता था। फिर चाहे फैसले घर के हों, या फिर बिजनेस से जुड़े हों।

 

 पहले किसी भी चीज को लेकर सिर्फ एक ही व्यक्ति अपना फैसला सुना देता था और बाकी के सब चुपचाप उसको मान लेते थे। घर में अक्सर बड़े बुजुर्ग जो कह देते थे सब उस पर ही आँख मूंद कर यकीन करते थे और वो सर्वमान्य हो जाता था।

 

 ठीक इसी तरह कंपनी में जो सबसे सीनियर बॉस होता था, उसके अकेले के ही फैसले पर पूरी कम्पनी चला करती थी। ऐसा नहीं है की इस तरह से बूढ़े बुजुर्गों के लिये हुए फैसले गलत ही होते थे, लेकिन किसी भी फैसले को लेने से पहले सबका राय और मशविरा लेना जरूरी होता है।

 

आज के समय में यही चीज बदलती हुई दिख रही है। अब किसी भी स्तर पर कोई भी फैसला लेने से पहले लोग काफ़ी सोच विचार और बातचीत करते हैं सबकी राय सुनते हैं और फिर जिस पर सबकी सहमति बनती है उसी फैसले को सब स्वीकार करते हैं।

 

आज चाहे घर के भीतर के फैसले हों, बिजनेस के हो या फिर किसी राजनीतिक पार्टी द्वारा लिए गए फैसले हो, अब किसी भी निर्णय तक पहुँचने के लिए हर स्तर के लोगों के सुझाव और सलाह जरुर ली जाती है।

 

 कंपनी के सीईओ कोई भी डिसीजन लेने से पहले अपने एम्प्लॉई से बात करते हैं उनकी राय लेते हैं। नेता भी अपने वोटर्स से और पार्टी कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क में बने रहते हैं। क्या सही है और क्या गलत हमेशा ये समझाने में लगे रहते हैं।

 

आज इंटरनेट का जमाना है, अंगुली चलाने मात्र से ही हम हर चीज के बारे में इन्फॉर्मेशन ले सकते हैं। अब अगर घर का कोई बुजुर्ग बच्चे को किसी काम को करने के लिए मना करता है तो बच्चा खुद इंटरनेट से उस काम के फायदे और नुकसान को समझ सकता है। और अगर किसी बड़े ने उसे कुछ गलत बताया है तो वो उन्हें भी सही जानकारी देने की काबिलियत रखता है।

 

 कुल मिलाकर हर जगह पर आज बोलने और अपना मत रखने का प्लेटफार्म बना हुआ है। फिर चाहे दोस्त के साथ किसी मूवी के अच्छी या खराब होने की बहस हो या फिर किसी कंपनी द्वारा लिए जाने वाले किसी फैसले को लेकर होने वाली बातचीत हो। हर जगह आपको अपनी बात मजबूत पक्ष के साथ रखनी आनी चाहिए। लोगों को अपनी बातों से संतुष्ट करने का गुण आपके अन्दर होना चाहिए।

 

इसलिए आपके मोलभाव करना यानी कि अपनी बातों को वजन के साथ रखना और सामने वाले को कन्विंस करता आना चाहिए। ये आपके पर्सनल लाइफ से लेकर प्रोफेशनल लाइफ में भी बहुत काम आने वाला है।

 

 

व्यर्थ की बहस से बचें, इसमें सिर्फ आपका नुकसान ही होगा

 

कई बार दो पक्षों में होने वाली बातचीत ऐसे मोड़ पर पहुँच जाती है जहाँ से उसका कुछ भी हल निकलना असंभव होता है। जैसे की मान लीजिए कि दो कम्पनियों के बीच किसी डील को लेकर बात हो रही है। लेकिन शुरु में ही ये पता लग गया है कि इस डील में कोई भी पक्ष समझौता करने वाला नहीं है। तो इस स्थिति में बेहतर यही होगा कि आप बेकार की बहस ना करें। पहले ही स्टेप में डील कैंसिल कर के बात खत्म करें।

 

क्योंकि ये बात आपको भी अच्छे से पता है कि यहाँ पर बहस करने से कोई फायदा नहीं है क्योंकि दोनों पक्ष में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं होगा। कोई भी अपनी हार नहीं मानेगा। ऐसे में अगर यहाँ ज्यादा बातचीत की गयी तो हो सकता है कि बहस उग्र रूप ले ले। और फिर दोनों पक्षों का रिश्ता भी खराब हो सकता है। जो कि किसी भी हालत में आपके लिए फायदेमन्द नहीं है। और इस तरह की बहस में आपकी एन्जी और टाइम दोनों ही खराब होता है।

 

इसलिए बेहतर है कि ऐसी चीजों से बचने के लिए शुरु में ही अपनी बात साफ तौर पर रखे और बात को ख़त्म करें। क्योंकि व्यर्थ की बहस से आपको सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही होगा।

 

 

ये बात हमेशा ध्यान में रखें कि आप “इंसानों” के साथ मोलभाव कर रहे हैं।

 

किसी भी विषय पर जब पर बात हो रही होती है तो वहाँ हमेशा दो पक्ष मौजूद होते हैं। और दोनों ही पक्ष अपनी बात को सही साबित करने में लगे होते हैं। ये दोनों ही लोग बात करते समय अपना एक्सपीरियंस,वैल्यू और इमोशन भी साथ मे लेकर बैठे होते हैं। और जरुरत पड़ने पर इन सब चीजों का अपने हिसाब से इस्तेमाल भी करते हैं।

 

ऐसे में कई बार ऐसा भी होता है किसी एक चीज पर अलग-अलग लोगों के रिएक्ट करने का तरीका भी अलग-अलग होता है। जैसे कि किसी बात को लेकर हो सकता है कि आप बहुत ज्यादा इमोशनल हो रहे ही लेकिन सामने वाले को ये इरिटेटिंग सा लग रहा है।

 

ऐसे में किसी भी निर्णय को लेने के लिए होने वाली बातचीत के दो फेज़ होते है। पहला फेज़, जब दोनों पक्ष आपस में सहमति से बात करते हुए किसी मुद्दे का हल निकालना चाहते हैं। जबकि दूसरा फेज़ वो होता है जब एक पक्ष इमोशनल हो उठता है और बहस के दौरन होने वाली बातों को पर्सनली लेकर रिएक्ट करने लगता है।

 

इन दोनों फेज़ के बीच बहुत बारीक सा अन्तर है। तो ऐसे में आपको किसी भी टॉपिक पर बात करते समय या चीज़ो का मोलभाव करते समय इस बारिश से अन्तर को समझना बेहद जरुरी है। क्योंकि किसी भी डील के दौरान आपदा या सामने वाले पक्ष का गुस्सा या इमोशनल होना पूरे डील को खराब कर सकता है। इसलिए कभी भी कोई भी डील या मोलभाव करते समय इस बात का ख्याल जरूर रखें कि आप इंसानों के साथ डील कर रहे हैं। और उनके पास इमोशंस भी है।

 

 

समस्या से लड़िये, ना कि उस इंसान से जिसके साथ आप मोलभाव करने जा रहे हैं।

 

कभी किसी भी मोलभाव या डील का लक्ष्य किसी की हार यजे जीत नहीं होना चाहिए। क्योंकि डील का मतलब हार जीत नहीं बल्कि आपसी समझौता है, ये किसी भी समस्या का हल निकालने की एक प्रक्रिया है। ये कोई हार जीत का खेल नहीं है।

 

ये तरीका तभी काम करेगा जब दोनों पक्ष के लोग किसी भी समस्या को एक जैसे नजरिये से देखते हुए उसका हल निकालने की कोशिश करेंगे। ना कि अलग-अलग सुझाव देते हुए खुद को बेहतर साबित करने की होड़ में रहेंगे। कई बार किसी बात का हल निकालने के लिए दोनों पार्टी को टेबल के एक ही साइड में बैठकर बात करना ज्यादा फायदेमन्द होता है ऐसा करने से आपका फोकस समस्या के हल पर रहेगा ना कि समस्या को लेकर एक दूसरे पर आरोप लगाने पर।

 

ऐसा करने के लिए आपको हमेशा एक दुसरे के लिए कड़वे शब्दों का प्रयोग करने से बचना चाहिए। आप एक दूसरे पर पर्सनल अटैक करने से बचें, बात कितनी भी बढ़ जाये लेकिन आप किसी पर पर्सनल अटैक मत कीजिये। किसी के व्यवहार और उसके नेचर को लेकर उस पर कमेंट मत कीजिये। तभी आप बिना किसी वाद-विवाद के किसी भी समस्या का हल निकाल पाएंगे।

 

उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आपकी शादी टूट चुकी है लेकिन आपके छोटे बच्चे हैं जिनकी जिम्मेदारी को लेकर आप दोनों को निर्णय लेना है। ऐसे में आप जब इस बारे में बात करें तो सिर्फ इसी समस्या पर चर्चा करें। बाकी आपका रिश्ता क्यों टूटा? इसमें किसकी गलती थी? इन सब विषयों पर अब बात करना बेकार है।

 

तो आपको हमेशा समस्या से लड़ना है, ना कि उस इंसान से जिसके साथ आप मोलभाव कर रहे हैं।

 

 

किसी भी समस्या का हल निकालने से पहले दोनों पक्षों की इच्छा जरूर जान लीजिए।

 

अक्सर कई बार समस्याओं का हल इसलिए भी जल्दी नहीं निकल पाता है क्योंकि उसमें दोनों पक्ष की सहमति नहीं बन पाती है। ऐसे में आपको किसी भी समस्या का हल निकालने के लिए दोनों पक्षों की खुशी और इच्छा को जरुर ध्यान में रखना चाहिए। जैसे की मान लीजिए आप अपनी फैमिली के साथ कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं। आपकी इच्छा किसी बीच पर जाने की है लेकिन आपकी पत्नी हिल स्टेशन जाना चाहती है। ऐसी स्थिति में अगर आप किसी एक कि ही इच्छा और खुशी का ध्यान रखेंगे तो शायद आप बेहतर निर्णय नहीं ले सकेंगे।

 

आप दोनों की इच्छा का सम्मान करते हुए किसी माउंटेन सी वाले इलाके में घूमने के लिए भी तो जा सकते हैं। जहाँ पर आपका समंदर की लहरों को देखने का भी ख्वाब पूरा हो जाएगा और आपकी पत्नी हिल स्टेशन भी घूम लेगी। ये सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण है, आप इसी तरह से जिंदगी में हर छोटी-बड़ी चीज पर डिसीजन लेते हुए अपना निर्णय ले सकते हैं।

 

किसी के साथ मिलकर किसी भी चीज का निर्णय लेते वक्त ये जानने की कोशिश करें कि आपके विचार और सामने वाले के विचार में अंतर कहाँ आ रहा है? और आप क्या ऐसा कर सकते हैं जिससे दोनों की इच्छा का सम्मान हो सकता है?

 

ऐसे में किसी भी निर्णय को लेने से पहले दोनों पक्षों की इच्छा और खुशी को जानने की कोशिश करें। ऐसा कर के बेशक आप एक बेहतर फैसला ले सकते हैं।

 

 

समस्या का पूर्ण हल निकालने से पहले उसके विकल्पों पर भी जरूर ध्यान दें।

 

जब दो लोग बैठकर किसी चीज पर बातचीत कर के कुछ निर्णय लेने की कोशिश करते हैं तो ज्यादातर ये पहले से ही निर्धारित होता है कि किस तरह का निर्णय आने पर दोनो पक्ष खुश रहेंगे। इस वजह से अक्सर जब किसी भी विषय पर निर्णय लेने के उद्देश्य से दो लोग बात करने बैठते हैं तो ये पहले से ही पता होता है कि इस बातचीत का आखिर निर्णय क्या आने वाला है। किसी एक पक्ष के लिए या तो हाँ होगी या फिर ना!

 

लेकिन.क्या ऐसा हो सकता था कि आप दोनों सीधे-सीधे रिजल्ट देने के बजाय किसी और विकल्प पर भी विचार यर सकते थे? आप किसी समस्या के दो से अधिक हल के बारे में भी सोचिए। सिर्फ हाँ या ना में ही मत उलझे रहिये, बल्कि हर सम्भव हल पर विचार कीजिये।

 

उदाहरण के लिए जब नोबेल प्राइज देने वाली कमेटी किसी को प्राइज देने का विचार करती है तो वहाँ पर एक अवॉर्ड के लिए कई सारे उम्मीदवार होते हैं। और फिर उन सभी उम्मीदवारों को अलग-अलग क्राइटेरिया में रखते हुए एक दूसरे से तुलना की जाती है। अन्त में जो सबसे बेहतर होता है उसे ही पुरस्कार के लिए चुना जाता है। ऐसा नहीं होता कि कमेटी सिर्फ किसी एक नाम को लेकर बहस शुरु कर देती है कि इसे पुरस्कार दिया जाए या नहीं?

 

ठीक इसी तरह सिर्फ एक ही तरह के निर्णय पर मत डटे रहे। किसी एक समस्या के बहुत सारे सॉल्यूशन होते हैं। बशर्ते आपको आपस मे बात करते समय हर संभव हल पर नजर डालने की और उस पर विचार करने की जरुरत है। कई बार तो इन विकल्पों में ही बेहतर हल छिपे हुए होते हैं, बस आपको इन्हें ढूँढ निकालना है।

 

 

हमेशा अपने निर्णय को लेने के पीछे एक मजबूत कारण रखिये।

 

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि किसी भी फैसले को लेने के पीछे आपका इंटेंशन कितना अच्छा है,या आप कितने लोगों का भला कर रहे हैं । फ़र्क सिर्फ इस बात से पड़ता है कि आप जो भी फैसला ले रहे है उसके पीछे का कारण कितना स्ट्रांग है? आप जो भी निर्णय ले रहे हैं क्या उसको पूरी तरह से जस्टिफाई कर पा रहे हैं? और अगर जस्टिफाई कर रहे हैं तो किस क्राइटेरिया में जाकर जस्टिफाई कर रहे हैं? क्योंकि बिना प्रॉपर सर्टिफिकेशन के लिया गया डिसीजन किसी लिहाज से ठीक नहीं है। ये ना तो आपके लिए बेहतर है और ना ही सामने वाले के लिए!

 

जैसे कि मान लीजिए आप किसी फ्लैट को खरीदने की डील कर रहे हैं। फ्लैट का ब्रोकर आपकी उम्मीद से कई गुना ज्यादा इसका दाम बता रहा है। ऐसे में आप उससे सवाल कर सकते हैं कि, किस वज़ह से इस फ्लैट का दाम इतना अधिक है? और क्या वो जिस क्राइटेरिया में फ्लैट की कीमत को आँक रहा है वो आपके लिए वर्थ है?

 

इसी तरह अगर आपने उस फ्लैट का जो दाम बताया है तो आपके पास भी इसका प्रॉपर रीजन होना चाहिए। आपके पास भी उस सवाल का जवाब होना चाहिए कि इस फ्लैट का दाम आपके हिसाब से इतना ही क्यों होना चाहिये? और आप किस क्राइटेरिया में रखकर फ्लैट के दाम को आँक रहे हैं ये भी बिल्कुल क्लियर होना चाहिए।

 

ऐसा कर के ना सिर्फ आप खुद के लिए बेहतर डील कर सकते हैं बल्कि सामने वाले को भी अपने डिसीजन से आसानी से सहमत कर सकते हैं।

 

 

अच्छा मोल भाव करने के लिए आपको पहले से ही तैयार रहना होगा।

 

कभी भी बिना तैयारी के किसी डील को फाइनल करने मत जाइए। तैयारी का मतलब आप जितना अधिक हो सके उतनी जानकारी जुटाने का प्रयास करें। जिस बारे में डील करनी है या जिस मुद्दे पर बात करनी है उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा फैक्ट और इन्फॉर्मेशन कलेक्ट करने की कोशिश करें।

 

जिसके साथ आप बात करने वाले हैं उसके बारे मे भी जितनी इन्फॉर्मेशन मिल सके जुटाने की कोशिश कीजिये। सामने वाले व्यक्ति का नेचर कैसा है? क्या वो आपकी बात ज्यादा देर तक सुनने की क्षमता रखता है या नहीं? उसका इंटरेस्ट क्या है? किस चीज को लेकर वो इमोशनल होता है? और वो जो भी डिसीज़न लेगा क्या उसके लिए वो पूरी तरह से स्वतंत्र है या फिर उसे किसी और का भी ध्यान रखना है? वो पर्टिक्युलर किस पार्टी, धर्म या मान्यता पर यकीन करता है? सब कुछ. जितना आप उसके बारे में जान सकेंगे उतना ही आपके लिए इस डील में निर्णय लेना आसान होगा। कहने को तो ये सब छोटी और बकवास चीजे लगती है लेकिन वास्तव में इतनी जानकारी होने पर आप बड़ी आसानी से किसी भी निर्णय पर पहुँच सकते है या यूँ कहें कि आप सामने वाले को बहुत आसानी से कन्विंस कर सकते हैं।

 

इसके साथ ही आप डील को करने की लॉजिस्टिकल डिटेल पर भी ध्यान दीजिए। जैसे कि कब और कहाँ पर आप ये डील करने वाले है? जगह कौन सी है? ऑफिस या घर? या फिर कोई पब्लिक प्लेस? एक दूसरे से फेस टू फेस बात करने वाले हैं या फिर फोन पर ही डील होने वाली है? सुबह बात होनी है या शाम को? ये छोटी-छोटी इन्फॉर्मेशन भी आपको किसी भी डील को बेहतर अंजाम तक पहुँचाने में मदद करती है।

 

ऐसे में किसी भी मुद्दे पर बात करने जा रहे हो, फिर चाहे वो ऑफिस की डील हो या फिर आप घर के किसी गम्भीर मुद्दे पर बात करने जा रहे हो। इस तरह की छोटी-छोटी इन्फॉर्मेशन जुटा कर के आप खुद को उसी हिसाब से तैयार कर के अपनी डील को बेहतर परिणाम में बदल सकते हैं।

 

 

मोल भाव सिर्फ बातचीत है: इस बातचीत को ध्यान से सुनें और जो फैक्ट है उसी पर टिके रहें!

 

इस बात से तो आप भी काफी हद तक सहमत होंगे कि अधिकतर समस्याएं सिर्फ बातचीत ना होने की वजह से ही बढ़ती जाती हैं। अधिकतर गलतफहमियां सिर्फ़ कम्यूनिकेशन गैप की वजह से खड़ी हो जाती हैं। और एक दूसरे की बात और इंटेंशन क्लियर न होना ही आपस मे लड़ाई झगड़े का कारण बनता है। ऐसे में इस तरह की समस्या से बचने का सबसे आसान तरीका ये है कि आप बातों को अहमियत दीजिये। जितनी शिद्दत से आप चाहते हैं कि लोग आपकी बातें सुने उतनी ही शिद्दत से आप दूसरों की भी बातें सुनिए।

 

 और दूसरों की सिर्फ उन्ही बातों को मत सुनने की कोशिश कीजिये जो आप सुनना चाहते हैं बल्कि उन बातों को भी सुनिए जो कड़वी हैं और जिसे आप सुनना नहीं पसन्द करते। लेकिन इस कड़वी बात का भी रियेक्शन गुस्से में आकर या इमोशनल होकर मत दीजिए। बल्कि उनकी इस कड़वी बात के पीछे की नब्ज पकड़ने की कोशिश कीजिये, फैक्ट को बाहर निकालिए। और फिर उस बात की जड़ को खत्म करने की कोशिश कीजिये।

 

आप किसी भी डील या बातचीत को एक अच्छे मुकाम पर तभी पहुँचा सकते हैं जब आप बात करेंगे और चीजों को गहराई से समझने की कोशिश करेंगे। शांत होकर बैठना किसी भी बातचीत का हल नहीं निकाल सकता है। और सिर्फ बोलना भी आपको बेहतर रिजल्ट नहीं दे सकता। इसलिए बोलने और सुनने का बैलेंस से ही आप किसी भी मोल भाव यानी कि डील को बेहतर तरीके से निपटा सकते हैं।

 

 

सबसे बेहतर तरीका भी सफलता की पूरी गारंटी नहीं दे सकता।

 

वैसे सिद्धांतों के अनुसार तो अगर किसी भी मुद्दे पर बेहतर फैसला लेना है तो दो पक्षों को बैठकर आपस मे खुले रुप से इस पर बातचीत करनी होती है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि बहस के सभी अनुकूल माहौल होने के बावजूद भी किसी मुद्दे का बेहतर रिजल्ट नहीं निकल पाता है। ऐसा कई कारणों से हो सकता है। जैसे कि कई बार दूसरे पक्ष की मंशा ही नहीं होती है कि किसी समस्या का बेहतर हल डिसाइड हो सके। वो मन मे जो निश्चय कर के आये होते हैं सिर्फ उसी पर टिके होते हैं और किसी भी सूरत में उससे अलग कोई भी निर्णय लेने पर राजी होते ही नहीं हैं। ऐसे में आप खुद की तरफ़ से कितना भी बेहतर प्रयास कर लें, लेकिन आप उन्हें किसी भी चीज के लिए राजी नहीं कर सकते।

 

यहां तक कि आपकी सारी बातों से सहमति जताने के बाद भी वो बिना अर्थ का कारण देकर आपके द्वारा बताए गए हल को रिजेक्ट कर देते हैं। ऐसे स्थिति में आप को भी साफ तौर पर स्पष्ट कर देना चाहिए कि आप किसी भी फैसले को तभी स्वीकार करेंगे जब उसका कोई मजबूत कारण हो। इस तरह से लंबी चौड़ी बहस करने के बाद व्यर्थ के कारण के चलते आप किसी गलत फैसले को स्वीकार नहीं कर सकते।

 

एक बात को और समझ लें, जिंदगी में लगभग सभी चीज़ो को, सभी समस्याओं को बातचीत के जरिये सुलझाया जा सकता है लेकिन फिर भी बहुत से मुद्दे ऐसे होते हैं जिसका समाधान आप बातचीत से नहीं निकाल सकते हैं। ऐसे में बेहतर यही होगा कि ऐसे मुद्दे पर बहस करने से बचें। जैसे कि आप दुनिया के कितने भी बेहतर बातचीत करने वाले या मोलभाव करने वाले क्यों ना हो जाये, लेकिन आप कभी व्हाइट हाउस या ताजमहल तो नही खरीद सकते ना?

 

 

Conclusion –

 

इस बुक समरी के जरिये आपको इन सवालों के जवाब मिले हैं –

 

कैसे मोल भाव किया जाए? और क्यों किसी के साथ बातचीत के जरिये किसी समस्या का हल निकालने की कला सीखना जरूरी है?

 

मोलभाव करना सीखें – क्योंकि हर समस्या का हल बातचीत से संभव है। और, तनावपूर्ण माहौल में बात करना अवॉयड कीजिये।

 

आप किसी से बातचीत कर के बेहतर निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए कुछ खास टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.

 

जैसे कि,

 

किसी भी हल तक पहुँचने से पहले उसके विकल्पों पर जरुर ध्यान दें।

 

कुछ भी डिसीजन को लेने के पीछे बेहतर कारण तैयार रखें। और अपने हर फैसले को एक खास तरह के क्राइटेरिया में रखकर तौलें।

 

किसी भी डील को करने से पहले खुद को तैयार करें।

 

वास्तव में बातचीत करना ही मोलभाव है – इसलिए पहले ध्यान से सुने और फैक्ट्स को जानने की कोशिश करें।

 

और एक बात हमेशा याद रखिये, कई बार सबसे बेहतर तरीका भी आपको सफलता नहीं दिलवा सकता।

 

 

 तो दोस्तों आपको आज का हमारा यह बुक समरी कैसा लगा, अगर आपका कोई सवाल और सुझाव या कोई प्रॉब्लम है वो मुझे नीचे कमेंट करके जरूर बताये और इस बुक समरी को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।

 

आपका बहुमूल्य समय देने के लिए दिल से धन्यवाद,

Wish You All The Very Best.

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