अबाबील की सलाह
एक किसान सन के बीज अपने खेत में बो रहा था। दाना चुगती कुछ चिड़ियों को देखकर अबाबील ने उनसे कहा, “सावधान! किसान जो बीज बो रहा है वह बहुत खतरनाक है।” चिड़ियों ने एक दूसरे की ओर देखा और पूछा, “क्यों?” “वे सन के बीज हैं। एक-एक बीज को चुग लो। यदि अभी ऐसा नहीं किया तो बाद में पछताओगी,” अबाबील ने सलाह दी। हालांकि चिड़ियों ने उसकी सलाह नहीं मानी और अपनी ही धुन में मग्न रहीं। धीरे-धीरे सन बड़ा हो गया। किसान ने सन को काटा, उसके तवे को भिगाया और फिर उससे रस्सी बनाई और फिर रस्सी का जाल बुना। वह उसी जाल में चिड़ियों को फँसाया करता था। एक दिन अबाबील उधर से जा रही थी। जाल में फँसी चिड़ियों को देखकर अबीबील वहाँ आई और बोली, “मैंने तुम लोगों को पहले ही सचेत किया था पर तुमने बात ही नहीं सुनी,” और वह उड़ गई।
सीख: समय पर सलाह मान लेनी चाहिए।
तीन बकरे
एक नदी के किनारे एक ओर तीन बकरे रहते थे- नन्हा बिली बकरा, मंझला बिली बकरा और बड़ा बिली बकरा । नदी के दूसरी ओर हरी-हरी घास देखकर एक दिन उनका मन ललचा उठा। उन्होंने पुल पार कर दूसरी ओर जाने का निश्चय किया। पुल के नीचे एक दैत्य रहता था जो पुल पार करने वालों को खा लेता था। नन्हा बिली बकरा ज्योंही पुल से जाने लगा दैत्य उसे पकड़ने आया। वह डरा पर उसने दैत्य को अपने बड़े भाई को खाने की सलाह दी। दैत्य को लालच आ गया। थोड़ी देर बाद मंझला बिली बकरा आया। उसने कहा कि बड़ा भाई बस आने ही वाला है, उसे खाना। अधिक मांस मिलेगा। दैत्य बड़े बिली बकरे की प्रतीक्षा करने लगा। बड़ा बिली बकरा अत्यंत शक्तिशाली था तथा पैने सींगों वाला था। जब दैत्य बड़े बकरे को पकड़ने आया तब उसने दैत्य को जोर से अपने पैने सींगों से मारा। असावधान दैत्य नदी में जा गिरा।
सीख: लालच नहीं करना चाहिए।
सत्यवादी राजकुमार
एक राजा को अपने तीन पुत्रों में से किसी एक को अपना उत्तराधिकारी चुनना था। उसने अपने पुत्रों को बुलाकर कुछ बीज देते हुए कहा कि इन बीजों से जिसके स्वस्थ पौधे उत्पन्न होंगे वही उसका उत्तराधिकारी बनेगा। एक माह के बाद सबसे बड़ा पुत्र एक पौधा लेकर आया जिसमें छोटे-छोटे फल लगे हुए थे। दूसरा पुत्र भी एक पौधा लेकर आया जिसमें सुंदर फूल लगे हुए थे। तीसरे पुत्र ने क्षमा याचना करते हुए कहा कि वह कुछ भी उगा नहीं सका क्योंकि बीज ही खराब थे। राजा ने प्रसन्न होकर कहा कि वह परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ। उसने सभी को मृत बीज ही दिए थे पर दोनों बड़े राजकुमार सच्चे नहीं थे। राजा ने छोटे पुत्र की सच्चाई और ईमानदारी से प्रसन्न होकर उसे ही अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
सीख: ईमानदारी और सच्चाई से ही मनुष्य महान बनता है।
तीन भाई
एक समय की बात है, किसी गाँव में एकता, द्विता और तृता नामक तीन भाई रहते थे। वे बड़े ही शांत स्वभाव के थे। दुनिया से दूर वे बस अपने काम में ही मग्न रहते थे। उनका अधिकांश समय ध्यान में ही बीतता था। सरोवर के किनारे उनका छोटा सा घर था। प्रतिदिन कपड़े धोने के बाद वे उसे अपने हाथ में पकड़े-पकड़े ही सुखाते थे। उन्हें भय था कि गिरकर कपड़े गंदे न हो जाएँ। एक दिन वे कपड़े सुखा रहे थे तभी एकता ने देखा कि एक चील अपने पंजों में मेंढक लेकर जा रही थी। वह चिल्लाने लगी, “छोड़ दो, छोड़ दो” उसका ध्यान हटा और हाथ का कपड़ा नीचे गिरकर गंदा हो गया। द्विता भी चील को देखकर चिल्लाया, “उसे मत पकड़ो, छोड़ दो”, अनजाने में उसका कपड़ा भी गिरकर मैला हो गया। तीनों में बुद्धिमान तृता ने जब यह देखा तब सोचा, “कुछ न कहना ही श्रेयस्कर है” और वह शांत रहा।
सीख: हर बात पर अपनी प्रतिक्रिया देना उचित नहीं है।
कबूतर और बलिदान
एक शिकारी शिकार करके वापस अपने घर जा रहा था। मूसलाधार बारिश होने लगी और वह ठंड से काँपने लगा। एक वृक्ष के नीचे वह रुक गया। उसी वृक्ष पर कबूतरों का एक जोड़ा रहता था। कबूतरी के वापस नहीं आने से कबूतर बहुत चिंतित था। दुर्भाग्यवश कबूतरी उसी शिकारी के जाल में फँस गई थी । चिंतित कबूतर को देखकर कबूतरी ने कहा कि वह शिकारी के जाल में है। उसने सलाह दी कि अतिथि का हर हाल में सत्कार करना। कबूतर ने कांपते शिकारी को बचाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी कर आग जला दिया। शिकारी बहुत भूखा भी था। अपने सिवा वह शिकारी को क्या देता यह सोचकर वह स्वयं जलती आग में भूख मिटाने के लिए कूद गया। यह देख शिकारी विह्वल हो उठा। उसने कबूतरी को छोड़ दिया। अपने साथी को जलता देख वह भी अग्नि में समा गई।
सीख: अतिथि सत्कार परम् धर्म है।
सुनहरा हंस
एक राजा के महल में कमल से भरपूर सुंदर सरोवर था। उसमें सुनहरे हंस रहते थे। छह महीने में एक बार प्रत्येक हंस अपना-अपना एक पंख राजा को उपहार स्वरूप दिया करता था। एक दिन एक दूसरा पक्षी उड़ता हुआ वहाँ आया। वह भी उसी सरोवर में रहना चाहता था। घमंडी हंसों ने उसे वहाँ रहने से मना कर दिया क्योंकि वे तो राजा को कर के रूप में अपना-अपना पंख दिया करते थे। फिर उनके सरोवर में किसी दूसरे पक्षी का क्या काम! उस पक्षी ने राजा से जाकर शिकायत कर दी। राजा ने उन पर विश्वास कर लिया। अतिथि का सत्कार नहीं करने से राजा हंसों से क्रुद्ध हो गए। राजा ने अपने सेवकों को उन सभी हंसों को मार डालने का आदेश दे दिया। सेवक भाले लेकर सरोवर की ओर गए। ज्योंही हंसों ने उन्हें शस्त्रों के साथ आता देखा वे सभी एक साथ तालाब छोड़कर चले गए।
सीख: अतिथियों का सदा सत्कार करना चाहिए।